Khoobsurat [part 79]

शिल्पा खुशी -खुशी, तैयार होकर, रंजन के बॉस के घर जाती है लेकिन जब वहां पर नित्या को देखती है तो उसे आश्चर्य होता है और वहीं पर उसे पता चलता है, कि  रंजन का बॉस और कोई नहीं नित्या का पति ही है इस बात से उसे बहुत ईर्ष्या होती है। उसकी वह जलन की भावना, उसके व्यवहार में भी दिखलाई देती है। नित्या तो शिल्पा के व्यवहार से और उसकी सोच से पहले ही परिचित थी किंतु प्रमोद को उसका व्यवहार बडा ही अजीब लगता है। नित्या तब भी वातावरण को, शांत बनाए रखने के लिए चुपचाप कार्य करती रहती है किंतु शिल्पा से रुका नहीं गया और वह उसके कमरे में जाकर, उससे लड़ती है और उसकी बातचीत से उसकी घृणा का कारण भी पता चल जाता है। 

तब नित्या उससे कहती है - ये सब तुम, क्या सोच रही हो ?तुम इतना सब कैसे सोच लेती हो ? तुम्हें तो खुश होना चाहिए हम दोनों बहनें  एक ही शहर में रहेंगी ,एक दूसरे का सहारा बनेंगीं। 


सहारा !माय फुट ! रंजन अब ज्यादा दिनों तक तुम्हारे पति का नौकर बनकर नहीं रहेगा। 

वो तो अपने को बॉस समझते ही नहीं हैं , तुम अब भी देख लो ! तुम्हारे पति से इन्होंने एक बार भी बॉस जैसा व्यवहार नहीं किया बल्कि साढू भाई जैसा व्यवहार कर रहे हैं ,तुम्हें कितने प्यार से साली साहिबा !कहकर पुकार रहे हैं ?उनके व्यवहार में तुम्हें तनिक भी झलका, कि वो बॉस हैं। 

बस ,मुझे मत समझाओ !अपनी अच्छाई अपने पास रखो ! उसने एक बार भी प्रमोद को जीजाजी नहीं कहा तब बोली -तुम्हारे पति को ये तो पता है कि रंजन किस घर का दामाद है ?जानकर भी वो गलत व्यवहार नहीं कर सकते। नित्या समझ नहीं पाई इसने ये धमकी दी है ,या अपने पापा का रुआब दिखा रही थी।  

अच्छा ! ये तो संयोग की बात है ,कि प्रमोद ,रंजन के बॉस हैं ,कोई और भी होता, तो भी उसका कोई न कोई तो बॉस होता ही ,मेरे पति के ऊपर भी काम करने वाले हैं ,ये लोग एक -दूसरे के काम की क़दर करते हैं फिर तुम इनके बीच क्या कर रही हो ?इस बात को इतना क्यों बढ़ा रही हो ? देखो !तुम्हारे अच्छे -बुरे में मैंने हर तरह से तुम्हारा साथ दिया ,तुम्हें समझाया ,इस बात को इतना बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है ,शिल्पा के इस तरह के व्यवहार से नित्या को भी थोड़ी झल्लाहट हुई ,तब वो बोली -तुम आज इस घर में मेहमान बनकर आई हो ,इस बात का मान तो रखो ! प्रमोद तुम्हारे या मेरे मध्य क्या बात हुई ? नहीं जानते हैं ,तुम्हारे मन में जो आता है, करना.....  किन्तु यहाँ ये सब मत करो ! अब तुम जाओ !उन लोगों के पास बैठो !मैं अभी आती हूँ। शिल्पा मुँह बनाते हुए ,वापस आकर बैठ गयी। 

मिल लीं ,अपनी बहन से..... मुझे तो ये सोचकर ही आश्चर्य होता है ,इन्होंने दो -दो शादियां अटेंड कीं किन्तु हमारा परिचय आज हो रहा है ,वैसे मैं तो तुम्हें, तुम्हारे विवाह में ही जान गया था, प्रमोद ने कहा। 

शिल्पा के चेहरे पर फीकी सी मुस्कान आई और बोली -बहुत देर हो गयी अब हमें  चलना चाहिए।

 तब तक नित्या अपने कपड़े बदलकर और आइसक्रीम लेकर आ गयी थी। शिल्पा को, उसे देखकर हैरत हुई ,सलवार -सूट पहनने वाली, आज बिना बाजू वाला 'कोर्ड सेट ' पहनकर आई है। इसके रहन -सहन में कितना अंतर आ गया है ? किस तरह अपनी गृहस्थी को संभाल रही है ?सब कुछ हमारे घर में रहकर ही तो सीखा ,अपने घर गांव में रहती तो, गंवार ही रह जाती। इसे तो हमारा एहसान मानना चाहिए, इसको हमने ऐसे माहौल में रहने लायक बना दिया। देखो तो, इसके चेहरे पर कितनी ख़ुशी है ?

हो भी क्यों न..... बड़े अफसर से विवाह जो हो गया है ,वो भी मेरे पति के बॉस से , मैं इनके विवाह में गयी तो थी किन्तु मैंने इन्हें देखने में कोई रूचि नहीं दिखलाई थी, आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई  क्योंकि इसने मुझे बताया ही नहीं था कि ये किससे विवाह करने जा रही है ? मैंने भी सोच लिया था -मामा जी ,ने ऐसे ही कोई लड़का ढूंढ़ दिया होगा। 

क्या ये ऐसी ही है ,या यहीं ऐसा व्यवहार कर रही है ,प्रमोद ने रंजन से धीरे से पूछा -यार ! तुम इसे कैसे संभालते होंगे ?कहकर प्रमोद हंसा। 

''जब ओखली में सर दे ही दिया है ,तो मुसल से क्या डरना ?''कहकर रंजन भी हंस दिया ,तब वो प्रमोद से बोला -इस मामले में आप भाग्यशाली हैं। 

हम्म्म्म हम भी देखते हैं ,कब तक बॉस बने रह सकते हैं ?घर में तो सभी की हालत एक जैसी ही है ,दोनों हंसने लगे।

तभी जैसे रंजन को कुछ याद आया और वो शिल्पा के कान में फुसफुसाया -तुम इन लोगों के लिए जो उपहार लाई थीं ,दिया नहीं। 

कोई आवश्यकता नहीं है ,ये लोग इस क़ाबिल नहीं हैं , इन्हें इतना महंगा उपहार मिले ,आओ !चलते हैं ,रंजन को शिल्पा की बात पर क्रोध आया।

 तभी पीछे से नित्या  का स्वर सुनाई दिया ,ये उपहार तुम लोगों के लिए..... 

दोनों ने पलटकर देखा ,नित्या एक पैकेट लिए खड़ी थी ,तुरंत ही रंजन बोला -ये किसलिए ?

भई ,तुम दोनों पहली बार हमारे घर आये हो और इनकी [शिल्पा की तरफ देखते हुए ]बड़ी बहन होने के नाते हमारा भी कुछ फर्ज़ बनता है ,अपनी साली साहिबा को ऐसे ही खाली हाथ थोड़े ही न जाने देंगे। 

हमें इसकी आवश्यकता नहीं है ,रूखे स्वर में शिल्पा ने जबाब दिया। 

कैसे नहीं है ?जब इतने प्रेम से उपहार मिल रहा है ,तो ये प्रेमोपहार लेना, हमारा सौभाग्य होगा ,कहते हुए रंजन ने वो पैकेट ले लिया और शिल्पा से बोला -अब क्या अपने पर्स में ही रखे रखोगी ?निकालकर अपनी बहन को दे दो !रंजन ने कुछ इस तरह से कहा ,शिल्पा इंकार ही न कर सके। ये भी तो मुझसे अभी यही पूछ रह थी कि हम आप दोनों के लिए जो उपहार लाये हैं ,कब देना है ?अब दे दो !

शिल्पा ने रंजन की तरफ देखा नहीं बल्कि उसे घूरा अब उसके सामने और कोई उपाय ही नहीं था जो इंकार कर सके उसने अपना बैग खोला और छोटे -छोटे दो उपहार उन्हें थमा दिए। उनके चले जाने के पश्चात प्रमोद ने नित्या से पूछा -क्या ये तुम्हारी ही बहन है ?

हाँ ,मेरी बुआजी की लड़की ही तो है ,क्यों ?आप ऐसा क्यों  पूछ रहे हैं ?

उसके व्यवहार को देखकर नहीं लगा ,कि वो तुमसे मिलकर या तुम्हारे घर आकर खुश थी। 

हाँ, थोड़ी सी नाराज थी ,कह रही थी -''तुमने मुझे जीजाजी से पहले क्यों नहीं मिलवाया ?जीजाजी मेरे विषय में क्या सोचेंगे ?अपने जीजा को ही नहीं पहचानती। 

नित्या की बातें सुनकर प्रमोद मुस्कुरा दिया और सोचने लगा इस दोनों में कितना अंतर् है ,वो इसके घर आकर भी अपने मन के भाव छिपा न सकी और ये उसके क्रोध को छुपा गयी क्योंकि प्रमोद ने उन दोनों की बातें सुन  ली थीं, जब शिल्पा, नित्या से मिलने आई थी। 

  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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