Qabr ki chitthiyan [part 49]

रिद्धिमा के पिता की आत्मा, उस हवेली में प्रवेश करती है ,तब रिद्धिमा बताती है -कि उसके पिता किसी की जान बचाते हुए मरे गए किन्तु अब इनका आत्मा रूपी साया सभी को सच्चाई से रूबरू कराना चाहता है ,तब वो उस हवेली की एक कोठरी की तरफ इशारा करते हैं। 

तब  रिद्धिमा बोली—“यह वही जगह है,जहाँ असली गुनाह का बीज बोया गया था।”

कबीर ने अपने आँसू पोंछे—“और जिसका नाम…हमने नहीं लिया? वो कौन है ?”


साये ने धीरे से खिसककर दीवार के उस कमरे की ओर इशारा किया और बोला—“उस कमरे में वह सबूत है, जिससे पता चलेगा कि असली मास्टरमाइंड कौन था ?”

दीप्ति ने डरते हुए कहा—“और वह कौन है…?”

साया ने हवा में उँगली उठाई—और दीवारों पर अचानक एक नाम चमका,नाम देखकर ,सभी चीख पड़े।अनाया ने घुटी आवाज़ में कहा—“यह… यह कैसे हो सकता है!?”

कबीर ने अविश्वास में कहा—“ये झूठ है…यह कभी सच नहीं हो सकता!!”

गौरांश ने सिर पकड़ लिया—“नहीं…ये नाम…पूरी कहानी को उलट देता है…”

दीप्ति के चेहरे का रंग उड़ गया और दीवार पर जो नाम लिखा था—वह अनाया के  पिता का नाम था ।”

कमरा खामोश ! हो गया ,जैसे सबकी साँसें अटकी हों ।अनाया के कदम लड़खड़ा गए, उसे चक्कर आ गया उसने दीवार का सहारा  लिया। उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े—“न… नहीं…मेरे पापा…ऐसा नहीं कर सकते…!!”साया ने आखिरी वाक्य कहा—“जिस अपराध की कहानी कब्र से निकली…उसका सूत्रधार तुम्हारे घर में पैदा हुआ था ”और पूरा कमरे का अंधेरा एक चीख में बदल गया।  

कमरा अभी भी उस भारी, दमघोंटू ख़ामोशी में डूबा था। साया सीढ़ियों के ऊपर खड़ा था—एक ऐसी आकृति जिसे देखकर मनुष्य की हड्डियों तक में सिहरन उतर जाए।उसका शरीर जैसे धुएँ से बना हो,पर उसकी आँखें—ज़िंदा थीं।यही सबसे भयानक था।

गौरांश, अनाया, कबीर, रिद्धिमा और दीप्ति—सभी कुछ सेकंड के लिए पत्थर की मूर्ती की तरह स्थिर हो गए।

उसी क्षण साए की धीमी आवाज़ गूँजी—किन्तु  इतनी साफ़ कि मानो हवेली की हर दीवार उसे दोहरा रही हो।“जिसे मैंने देखा था…वह यहीं है।”

कबीर सबसे पहले बोला—“यह… यह क्या कह रहा है?हमारा कौन? कौन हो सकता है!?”

रिद्धिमा की आँखें फैल गईं ,“नहीं… नहीं… यह गलतफ़हमी होगी ,पापा ने किसी को कैसे देखा होगा!?उस रात तो वे छिपे हुए थे!”

गौरांश ने सिर हिलाया—“नहीं रिद्धिमा !तुम्हें सच पता नहीं,तुम्हारे पिता सिर्फ भाग नहीं रहे थे,वे कुछ ढूँढ भी रहे थे।” 

“क्… क्या?”

 सच ढूँढते-ढूँढते उन्होंने किसी को ऐसा काम करते देख लिया जिसके लिए उन्हें मार दिया गया।”

अनाया ने धीरे से कहा—“मगर… हमारे बीच कोई अपराधी…यह कैसे संभव है?”

कबीर भड़क गया—“कौन होगा? बताओ! किस पर शक कर रहे हो?”

गौरांश की आँखें एक-एक कर हर चेहरे पर गिरीं।

दीप्ति एकदम पीछे हट गई,“मुझे ऐसे मत देखो ! मैं— मैं तो सिर्फ यहाँ अपनी बहन को ढूंढने आई थी। ”

अनाया बोली—“मैं? मैं किसलिए—?”

कबीर बोला—“और मैं ! तुम्हारी मदद कर रहा हूँ !”

रिद्धिमा ने एक कदम पीछे लिया—“और मैं अपने पिता की सच्चाई ढूँढने के लिए आई थी…”

गौरांश शांत खड़ा था,पर उसकी आँखें सबसे ज़्यादा कबीर पर टिकी थीं .कबीर ने गौरांश की आँखें पढ़ लीं और भड़क पड़ा।“WHY ME!? मुझे क्यों घूर रहा है?”

“क्योंकि साया जिस तरह तुम्हें देख रहा है…उसकी निगाहें बस तुम पर अटकी हुई हैं,”कहते हुए गौरांश कबीर की तरफ बढ़ा। 

कबीर ने पीछे हटते हुए कहा—“क्योंकि मैं दरवाज़े के पास खड़ा हूँ! इसका मतलब ये नहीं कि मैं—ही... ”

 उस समय साया अचानक आगे बढ़ा ,उसकी उँगलियाँ धूमिल थीं ,उसका हाथ कबीर की ओर उठा—दूर से ही, कोई हवा की लहर नहीं चली, किसी के छूने का अहसास भी नहीं हुआ किन्तु कबीर एकदम से घुटनों पर गिर गया ,उसकी साँसें बंद होने लगीं ,गला सूख गया और वह एक ही बात चिल्लाने लगा—“मैंने कुछ नहीं किया !मैंने किसी को नहीं मारा!”

अनाया चीख पड़ी—“गौरांश! इसे रोको!”

गौरांश ने साए से कहा—“रुको! वह दोषी नहीं… सिर्फ डर रहा है!”

साया थम गया,कबीर हांफते हुए ,तुरंत जमीन पर लेट गया । 

गौरांश ने कबीर को उठाया,“कबीर ! तुम्हें इसलिए ड़र लगा क्योंकि तुमने कभी सच का सामना नहीं किया,पर तुम वो नहीं हो…”

अनाया ने तुरंत पूछा—“तो फिर कौन हो सकता है ?”

गौरांश ने चारों ओर देखते हुए कहा—“सोचो…उस रात हवेली के पीछे कौन था?कौन घर से बाहर निकला था? किसके चेहरे पर डर नहीं था ? बल्कि एक अजीब सुकून था। ”

उनकी निगाहें दीप्ति पर टिक गईं ,वह काँप गई।“तुम… तुम मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो!?”

गौरांश बोला—“क्योंकि… तुम उस समय वहाँ थीं, जिससे गौरव ने सबसे पहले कहा था—किसी को यह बात मत बताना कि मैंने क्या देखा है ?तुम ही वह आखिरी इंसान थीं,जिसने गौरव से बात की थी।”

अनाया ने स्तब्ध होकर पूछा—“रुकिए ! गौरव और दीप्ति—ये कैसे हो सकता है ?”

जब दीप्ती को लगा ,वो पकड़ी गयी ,दीप्ति के चेहरे का रंग उड़ गया,उसने हकलाते हुए कहा “हाँ… हम दोस्त थे,बस दोस्त…”

गौरांश चिल्लाया—“झूठ!”दीप्ति की आँखों में भय और बेचैनी उभर आई।

कबीर, जो अभी सँभला था, बोला—“दीप्ति? क्या तुम… वास्तव में उस रात वहां थीं?”

दीप्ति के होंठ काँप रहे थे,“मैं… मैं सिर्फ उसे समझाने गई थी ,वह कुछ बड़ा करने वाला था ,मैं डर गई थी।”

गौरांश गुस्से में बोला—“डर? या किसी के कहने पर गई थीं?”यह वाक्य कमरे की हवा में बिजली के करंट की  तरह सभी को झटका दे गया,साया धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा।

दीप्ति दहशत से ज़मीन पर बैठ गई,“नहीं… नहीं… मैं अपराधी नहीं हूँ!मैंने उसके पिता को नहीं मारा!मैंने किसी को नहीं मारा!”

अनाया ने पूछा—“लेकिन तुम वहां क्यों थीं ?”

दीप्ति की साँस टूटने लगी,घबराते हुए बोली  -“क्योंकि…क्योंकि मैं उस रात अकेली नहीं थी…”

कबीर ने आश्चर्य से पूछा—“मतलब?”

वह लगभग रो पड़ी—“मेरे साथ कोई और था,जो नहीं चाहता था कि गौरव उनके  सच को बाहर लाए।”

कबीर ने तुरंत पूछा—“वो कौन था ?”

दीप्ति की आँखों में दहशत फैल गई ,“मैं उसका नाम नहीं ले सकती !वह… वह बहुत बड़ा इंसान है…हम सबको खत्म कर देगा…”

अचानक साया उसके बिलकुल पास आ गया,उसके मुंह से एक ही शब्द निकला—“नाम.... ”

कमरा ठंडा हो गया ,दीप्ति ने काँपती आवाज़ में कहा—“वह… वह…”और तभी—ऊपर की दूसरी मंज़िल से एक जोरदार धमाका हुआ।

सब चौंक गए, वो साया भी  उस दिशा में मुड़ गया और उसकी आँखें पहली बार क्रोध से भड़क उठीं।

अनाया चीखते हुए बोली—“ऊपर कोई है!”

कबीर चिल्लाया—“हम तो सब यहीं हैं!तो फिर—?”

गौरांश ने धीरे-धीरे कहा—“मतलब…हममें से कोई नहीं,असली अपराधी—यहाँ पहले ही छिपा हुआ था।”

अचानक ऊपर से धीमे और भारी कदमों की आवाज़ आने लगी। ऐसी आवाज़ किसी बूढ़े की नहीं,किसी कमजोर की नहीं—बल्कि किसी ऐसे इंसान की थी जिसे अपने पापों से कोई डर नहीं ,उसकी चाल में एक ढ्र्ढ्ता थी। 

दीप्ति सिसक उठी—“वह… वह आ गया…हम सबको मार देगा…!”

कबीर ने अनाया को पीछे किया और बोला -“ तुम चिंता मत करो ! पहले हम देखते हैं ,वह  कौन है!”

सीढ़ियों की रेलिंग के पास एक छाया दिखलाई दी,ऊपर से आने वाला व्यक्ति अभी भी पूरी तरह दिखा नहीं था,लेकिन उसके कदम जैसे हवेली की आत्मा को जगा रहे थे और साया—पहली बार किसी आवाज़ से पीछे हटता दिखा, उसकी आँखों में पहचान का दर्द था। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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