Khoobsurat [part 71]

ठंडी सुहावनी, प्रातः काल थी , सभी अपने प्रतिदिन के कार्य के लिए, अपने-अपने घर से निकले,कुछ अधेड़ उम्र अथवा बुजुर्ग लोग घूमने के लिए निकले थे। बच्चे अपने स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे। गृहणियों के लिए तो ये सुबह व्यस्तता भरी होती है। बच्चों और पति के लिए नाश्ता बनाना,बच्चों को तैयार करना। ऐसे में ,  समाचार पत्र वाला भी, आकर समाचार- पत्र फेंक कर चला गया।सभी अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हैं। 

ऐसे समय में, कुछ देर पश्चात एक दूध वाला आता है ,और वह बहुत देर से उस घर की घंटी बज रहा था किंतु घर से कोई बाहर नहीं निकला। मन ही मन सोच रहा था- क्या घर के लोग कहीं चले गए हैं ? इतनी देर से घंटी बजा रहा हूं, कोई दरवाजा ही नहीं खोल रहा, कितनी गहरी नींद में सोते हैं,ये लोग ! उसने दरवाजा देखा। दरवाजे पर कोई ताला तो नहीं था, अंदर से बंद था, उसने दोबारा, दरवाजे को बजाकर ही, घर के लोगों को जगाने का प्रयास किया।


 तभी उनके पड़ोसी मेहता जी, घूमते हुए उधर से निकले और बोले -क्या बात है ? इतनी तेजी से दरवाजा क्यों पीट रहा है ? घर में घंटी भी तो लगी है। 

 देखिए !न.....  साहब दूध लेकर आया हूं, लेकिन अभी तक किसी ने दरवाजा नहीं खोला। दो दिनों से आ रहा हूँ, कोई दरवाजा ही नहीं खोल रहा।पहले तो मैं ये सोचकर चला गया था कि शायद ये लोग कहीं गए होंगे किन्तु आज देख रहा हूँ तो दरवाजा तो अंदर से बंद है।  

 कहीं चले गए होंगे,इसमें परेशान होने की क्या बात है ?

 कहीं चले जाते तो उन्हें कह कर तो जाना चाहिए था, मैं दूध लेकर नहीं आता , वैसे कोई तो घर पर होगा क्योंकि दरवाजा अंदर से बंद है, उसने दरवाजे की तरफ इशारा किया। 

 मेहता जी ,घर के करीब आकर दरवाजा देखने लगे ,उन्होंने देखा, दूध वाला सही कह रहा है, घर में कोई तो होना चाहिए, उन्होंने भी घंटी बजाई किंतु अंदर से कोई आहट भी नहीं हुई। तब उन्होंने मुख्य द्वार से अंदर झाँका,उन्होंने देखा - अखबार भी वहां ऐसे ही पड़े हैं । मन में आशंका हुई कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई , ये लोग तो अभी आए हैं , फिर क्या कारण हो सकता है ?

साहब !यही तो मैं सोच रहा था ,यदि इन लोगों को जाना होता तो कहकर जाना चाहिए था ,किशनलाल अब इतने दिन दूध मत लाना। दो दिन हो गए किन्तु आज देखा, तो दरवाजे पर ताला तो नहीं लगा हुआ है। तभी मैंने सोचा -यहाँ कोई तो होना चाहिए।  

क्या हुआ ?मेहता जी ! क्यों परेशान हैं ?

अजी शर्मा जी !हमें क्या परेशानी हो सकती है ? दूध वाला दूध लेकर आया है , घर के लोग न जाने कहां चले गए हैं ?उससे मना भी नहीं किया ,वो रोज दूध लेकर आता है ,न जाने  कैसी गहरी नींद में सो रहे हैं ? कोई भी दरवाजा नहीं खोल रहा है , अखबार भी ऐसे ही पड़े हैं । 

ये  लोग तो अभी-अभी यहाँ आए हैं न..... वे जैसे इस बात की पुष्टि  करना चाहते थे । 

सही कह रहे हैं, पति-पत्नी हैं , सुना है, उनकी पत्नी तो बहुत बड़ी पेंटर है। 

और पति क्या करते हैं ?

ज्यादा जानकारी तो नहीं है ,उनसे मेरी मुलाक़ात एक -दो बार ही हुई है ,कह रहे थे ,पहले तो ,कहीं नौकरी करते थे किंतु अब पता नहीं क्या करते हैं ?कहकर वह व्यंग्य से मुस्कुराए क्योंकि उनके मन में विचार आया ,अब पत्नी की कमाई पर जी रहे हैं किन्तु प्रत्यक्ष किसी से कुछ नहीं कहा। 

 ये लोग, कहां से आए हैं ?

 सुना है, इनका परिवार इसी शहर में रहता है किंतु इन्होंने वह घर छोड़ दिया। 

ऐसा क्या कारण हो सकता है, उत्सुकता से शर्मा जी ने पूछा। 

अजी साहब !ये जानकारी तो आप बाद में भी ले सकते हैं ,अभी तो आप मुझे बताइये !मैं क्या करूं ?मुझे देर हो रही है। 

अब हम क्या बताएं ?हमसे भी तो... इन्होंने कुछ नहीं कहा,किसी को जाते हुए भी नहीं देखा ,तुम्हें जाना है तो तुम जा सकते हो ,मेहता साहब ने कहा।  अभी इन लोगों को आए हुए एक महीना ही तो हुआ है, हमें भी इनकी  कोई जानकारी नहीं है।

 शर्मा जी दरवाजे की तरफ देखकर बोले -दरवाजा तो अंदर से बंद है, किसी को तो दरवाजा खोलना चाहिए था।

 नर्मदा कॉलोनी में, अभी 1 महीने पहले ही,इन  पति- पत्नी ने यह एक ख़ाली कोठी किराये पर ली है, दोनों के रहन-सहन से तो यह लग रहा है, किसी अच्छे खाते- पीते परिवार से हैं , ज्यादा किसी से मतलब नहीं रखते हैं। एक -दो पास के घर हैं, उनसे दुआ -सलाम हो जाती है, उन पड़ोसियों में एक मेहता जी भी हैं किंतु आज मेहता जी भी नहीं बता पा रहे हैं कि इस परिवार ने दरवाजा क्यों नहीं खोला क्योंकि दरवाजा बाहर से बंद नहीं था, अंदर से बंद था।मन में शंकाएं उठ रहीं थीं किन्तु किसी से प्रगट नहीं कर पा रहे थे। 

तब वे भी शर्माजी के साथ आगे बढ़ ही रहे थे ,तभी एक व्यक्ति ने पूछा -क्या हुआ ?शर्माजी !

कुछ नहीं ,इस कोठी में जो लोग रहने आये हैं ,वो दो दिनों से दरवाजा नहीं खोल रहे हैं ,दूधवाला आया था ,तब हमें पता चला। 

हो सकता है ,अपने किसी कार्य में व्यस्त हों ?

 आप ये क्या बात कर रहे हैं ?दो दिनों तक ऐसे ही बंद थोड़े ही न रहेंगे। हो सकता है, कोई गड़बड़ हो,समाचार -पत्र और दूध लेने के लिए कोई तो बाहर आता ,उनका नौकर ही आ जाता।

नहीं ,उन्होंने अभी नौकर नहीं रखा है ,मेहता साहब ने जबाब दिया। उन्हें बातें करते देखकर अन्य लोग भी आकर खड़े हो गए ,और अपना -अपना सुझाव देने लगे -एक बार देखना तो चाहिए ,कहीं कुछ घटना तो न हो गयी हो। 

हम इस तरह किसी के घर में ताक -झांक नहीं करते ,मेहता जी बोले। 

ताक -झाँक करने के लिए कौन कह रहा है ?पड़ोसी धर्म निभाने के लिए कह रहे हैं ,एक अच्छे पड़ोसी होने के नाते मालूम तो होना चाहिए कि वे लोग दो दिन से दरवाजा क्यों नहीं खोल रहे हैं ?

यह देखने कौन जाये ?मेहता जी ने विवशता ज़ाहिर की। 

उनके समीप ही ,एक चौदह -पंद्रह वर्ष का लड़का खड़ा था ,बोला -अंकल !मैं जाऊं। 

तुम कैसे ?मेहता जी हिचकिचाए। 

 मुख्य द्वार से कूदकर चला जाऊंगा ?उसका जबाब सुनकर मेहता साहब बोले -इस तरह किसी के घर में कूदकर जाना उचित नहीं ,किन्तु आप लोग कह रहे हैं ,तो इसे भेजकर देख लीजिये !घर में कोई है या नहीं पता तो चले, आखिर ये लोग, दरवाजा क्यों नहीं खोल रहे हैं ?

यह सही है, सभी के सहमत होने पर वो लड़का, भीड़ में से निकलकर उस कोठी के मुख्य द्वार पर चढ़ने का प्रयास करता है और कहता है- अंकल मैं अभी देखकर बताता हूं।

 अच्छा तुम जा सकते हो तो जाओ , कहते हुए, मेहता जी ने उसे अंदर जाने की इजाजत दे दी।

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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