दिल्ली की ठंडी सुबह !काँच की दीवारों वाला “इनसाइट पब्लिकेशन” ऑफिस हल्की धुंध में डूबा हुआ था।लिफ्ट के दरवाज़े खुले, और अंशुल मेहरा अंदर प्रवेश करता है —थोड़ा अस्त-व्यस्त,थका सा , नीली आँखों के नीचे हल्के काले घेरे, हाथ में कॉफी और गर्दन पर लटका आईडी कार्ड —“चीफ़ एडिटर इनसाइट पब्लिकेशन ”
वो खुद से बुदबुदाया,-“एक और दिन, एक और पांडुलिपि…”लेकिन आज कुछ अलग था।कल रात जो पार्सल आया था — “कब्र की चिट्ठियाँ – पूर्ण संस्करण” —वो उसके दिमाग से उतर नहीं रहा था ,वो हर बार जब लैपटॉप खोलता,स्क्रीन पर वही नाम अपने आप झिलमिलाता —''क़ब्र की चिट्ठियां डॉक्स ''
उसने सोचा, कि शायद ये कोई वायरस है,या फिर किसी जनसम्पर्क [PR] टीम की चाल है —लेकिन फाइल हटती नहीं थी,बल्कि हर बार खुलते ही, खुद को अपडेट कर लेती थी।
उस सुबह, कॉफी का पहला घूँट लेते ही, अंशुल ने फैसला किया —“आज इसे पढ़कर ही खत्म करता हूँ। जो भी बकवास है, मिटा दूँगा।”वो अपनी कुर्सी पर बैठा और मेज पर रखे सिस्टम की तरफ झुक गया,उसने फाइल खोली।पहला पन्ना खाली था ,फिर धीरे-धीरे अक्षर बनने लगे, जैसे कोई अदृश्य टाइप कर रहा हो —“अंशुल मेहरा, तुम अब सिर्फ़ पाठक नहीं रहे ,तुम कहानी का हिस्सा हो चुके हो।”यह सब पढ़कर वो चौंक गया।“कौन है, यहाँ?” उसने स्क्रीन की ओर झुककर कहा,उसने अपने आस -पास ध्यान लगाकर कुछ सुनने का प्रयास किया किन्तु कमरे में एकदम सन्नाटा था, सिर्फ़ CPU की हल्की गूँज सुनाई दे रही थी।
फिर नई लाइन उभरी —“तुम्हें याद है न..... '' ब्लैक हिल हवेली''वही जो 2025 में जली थी…”अंशुल की साँसें रुक गईं,वो अपनी फाइल्स में गया,उसने उस केस की रिपोर्ट एक बार पढ़ी थी —एक महिला पत्रकार, “आर्या मल्होत्रा”जो ब्लैक हिल हवेली में गायब हो गई थी।फाइल बंद होने से पहले उसने लिखा था:“वो कुछ खोज रही थी ,शायद किसी सच्चाई की तलाश में थी। ”
वो खुद से बोला,-“क्या बकवास है … ये कोई AI-जनरेटेड डेटा ट्रिक '' होगी…”लेकिन तभी, स्क्रीन पर एक और लाइन टाइप हुई —“वो आर्या अब तुममें है।”
अंशुल ने अपनी कुर्सी पीछे धकेली,जिसके कारण कॉफी गिर गई, और कीबोर्ड पर फैल गई।लैपटॉप झिलमिलाया, और स्क्रीन पर वही पुराना प्रतीक उभरा —“K – A”
“काव्या-आर्या…”वो फुसफुसाया।“क्या ये… वही कहानी है?”उसके पीछे की दीवार पर रोशनी गिर रही थी।काँच पर उसकी परछाई झिलमिला रही थी, लेकिन कुछ गड़बड़ थी —उस परछाई में, उसके होंठ हिल रहे थे… जबकि वो चुप था।“स्टॉप!”वो चीखा, “मैं नहीं खेल रहा ये गेम!”
परछाई मुस्कुराई और शीशे पर शब्द उभरे —“गेम नहीं,यह' पुनर्जन्म' है।”कहानी का पुनर्जन्म !
तभी उसका फोन बजा,स्क्रीन पर लिखा आया — “अननोन कॉलर.”उसने डरते-डरते रिसीव किया।
“Hello… कौन?”
दूसरी ओर एक ठंडी, स्थिर आवाज़ उसने महसूस की —“तुमने मेरा पत्र खोल लिया है, अंशुल।”
वो काँप गया, “क… कौन बोल रहा है?”
“वही जो हर बार नया नाम लेती है।कभी काव्या, कभी आर्या… अब अंशुल।”
फोन से एक हल्की साँस सुनाई दी — किन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा था ,जैसे कोई उसके बिल्कुल क़रीब खड़ा हो।“अब वक्त है, तुम अपनी चिट्ठी लिखो।”
“क्या मतलब?”
“हर कहानी तब तक पूरी नहीं होती,जब तक अगला लेखक उसे खत्म नहीं कर देता।तुम अब अगले हो।”उसके इतना कहते ही फोन कट गया।
वो घबराकर लैपटॉप के पास गया।फाइल फिर से बदल चुकी थी।अब उस पर लिखा था —“भाग 42 – लेखक: अंशुल मेहरा”और नीचे…“कहानी शुरू होती है।”
वो खुद से बड़बड़ाया -“ठीक है, जो भी है… देखता हूँ।”उसने टाइप करना शुरू किया —“कब्र की चिट्ठियाँ – एक नई कहानी।”जैसे ही उसने पहला शब्द लिखा,रूम का तापमान गिरने लगा ,अंशुल की साँसों से भी भाप निकल रही थी।घड़ी की सुइयाँ रुक गईं।फिर कंप्यूटर ने खुद से टाइप करना शुरू कर दिया —“हर लेखक सोचता है कि वो कहानी लिख रहा है,पर असल में कहानी ही उसे लिखती है।”अंशुल की उँगलियाँ अपने आप चलने लगीं ,रोकना चाहकर भी वो रुक नहीं पा रहा था।शब्द बह रहे थे —“ब्लैक हिल'' फिर से उठ खड़ी हुई,इस बार डिजिटल रूप में…”
वो नहीं जानता था कि बाहर क्या हो रहा है।कंपनी के सर्वर पर अचानक अनगिनत कॉपियाँ बनने लगीं —
क़ब्र की चिट्ठियां.डॉक्स (2), (3), (4) …हर कंप्यूटर में, हर यूज़र के नाम से।सिस्टम अपने आप ईमेल भेजने लगा —“आपके लिए एक कहानी।”
यह देखकर लोग डरने लगे —“ये फाइल खुद आ रही है!”IT विभाग ने सर्वर बंद करने की कोशिश की —पर नेटवर्क में नीली चमक फैल गई।एक के बाद एक स्क्रीन पर वही लाइन उभरी —“कब्र की चिट्ठियाँ – लेखक: आप।”
अंशुल के ऑफिस में रोशनी झपक रही थी।काँच पर अब उसकी तीन परछाइयाँ थीं।एक वो — जो डर से पीछे हट रहा था।दूसरी — जो कंप्यूटर पर लिख रही थी।तीसरी — जो खड़ी मुस्कुरा रही थी।
तीसरी परछाई ने कहा,“तुम्हें लगा तुम इसे खत्म करोगे?”
अंशुल ने काँपते हुए पूछा, “तुम कौन हो?”“वही जो तुमने लिखा।”
“मैंने कुछ नहीं लिखा!”“फिर यह सब किसने किया?”
वो चुप हो गया,स्क्रीन पर लिखा था —“लेखक: अंशुल मेहरा।”
परछाई बोली,“यही तुम्हारा जवाब है।”
धीरे-धीरे हवा भारी होने लगी,ऑफिस की लाइटें बुझ गईं।अब सिर्फ़ स्क्रीन की नीली चमक थी।कंप्यूटर में से एक वीडियो अपने आप चल रहा था ,वीडियो में 'ब्लैक हिल हवेली' दिख रही थी।कैमरा नीचे ज़ूम करता गया —और आकर एक कब्र पर रुक गया।उस क़ब्र के पत्थर पर लिखा था —“आर्या मल्होत्रा – 2025”फिर उसके पास वाली कब्र —“काव्या सान्याल – 2020”और तीसरी, ताज़ा कब्र —“अंशुल मेहरा – 2028”
अंशुल की साँस रुक गई -“क्या…?”
वीडियो में आवाज़ आई —“हर लेखक अपनी कब्र खुद लिखता है।”
अपनी क़ब्र देखकर ,अंशुल पागलों की तरह भागा ,ऑफिस के गलियारे में दौड़ा —पर हर कमरे में लोग नहीं थे,सिर्फ़ खाली कुर्सियाँ थीं ,या उसे वे ही नजर आ रहीं थीं और हर स्क्रीन पर वही फाइल खुली थी —
''क़ब्र की चिट्ठियां.डॉक्स ''और हर स्क्रीन पर अलग नाम —“लेखक मीरा ”
“लेखक :रितेश ”
“लेखक : अनाम ”
अंशुल चीखा,-क्या यहाँ कोई है ?”कहीं से जवाब नहीं आया।सिर्फ़ सर्वर की गूँज —जैसे किसी कब्रिस्तान में हवा सीटी बजा रही हो।
अंशुल की नज़र कॉन्फ़्रेंस रूम पर पड़ी।अंदर कोई बैठा था — झुका हुआ, लैपटॉप पर टाइप करता हुआ।
वो उसे देखकर अंदर भागा।“कौन है वहाँ?”वो आकृति धीरे-धीरे सीधी हुई।उसके बाल गीले थे, आँखें धुँधली, चेहरा जाना-पहचाना।“आर्या?” वो फुसफुसाया।
वो मुस्कुराई,-“अब मुझे आर्या मत कहो !मैं सिर्फ़ ‘कहानी’ हूँ।”“तुम तो … मर चुकी थीं।”
“हाँ, लेकिन मरना तो कहानी का सबसे खूबसूरत हिस्सा होता है।वहीं से अगला अध्याय आरम्भ होता है।”
अंशुल पीछे हट गया,चिल्लाते हुए बोला -“आख़िर ,तुम चाहती क्या हो?”
वो आगे बढ़ी, अंशुल की उंगलियाँ कीबोर्ड पर रखीं।“बस इतना कि तुम यह लिखो —‘कब्र की चिट्ठियाँ'' अब खत्म हो चुकी है।’”
“अगर मैंने ऐसा लिखा तो क्या होगा?”“कहानी बंद हो जाएगी और हम सब… मुक्त !”
अंशुल ने उसकी आँखों में देखा —वहाँ एक शांति थी,पर उस शांति में गहराई से कहीं एक प्रार्थना भी थी।
उसने धीरे से सिर हिलाया।लैपटॉप की ओर बढ़ा।स्क्रीन पर फाइल खुली थी।कर्सर झपक रहा था, जैसे उसी की प्रतीक्षा कर रहा हो।
उसने टाइप किया —“कब्र की चिट्ठियाँ अब खत्म हो चुकी है।”उसने Enter दबाया।
