Khoobsurat [part 69]

प्रमोद ,कल्याणी जी के न चाहते हुए भी नित्या को विदा करवाकर ले गया ,तब कल्याणीजी अपने आहत हुए मन की चोट किसी को दिखा तो नहीं सकती थीं  किन्तु उनका वो दर्द छलककर अपने भाई के सामने आ ही जाता है। ऐसे में एक बेटी का बाप क्या कहे ? बेटी को भी नहीं रोक सकता था ,बहन की बातों का भी मान रखना था। 


 तब नित्या के पिता, बातों को संभालते हुए बोले -बहन जी !आजकल के बच्चे हैं ,जवानी का जोश है ,नया -नया विवाह हुआ है , बच्चे ,थोड़ा साथ में रहना चाहते हैं ,ये तो अच्छा है ,प्रमोद ने इतने पहले हमारी बेटी को आने दिया ,हमारे पड़ोस में अतरसिंह के दामाद ने तो सीधे मुँह पर मना कर दिया था  ,कह दिया -'अपनी पत्नी को साथ लेकर आएगा ,और साथ लेकर ही चला जायेगा। 'उससे तो हमारा दामाद सौ गुणा अच्छा है ,सबसे बड़ी बात बिटिया को कितना चाहता है ?क्या काम है ?आप हमें बताओ !हम संभाल देते हैं ,हमारे लायक कोई भी काम हो तो बताओ !अपने भाई के रहते, आपको किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए।कल्याणी जी खिसियाई सी मुस्कुराकर रह गयीं।  

ऐसे ही लोगों के कारण बिगड़ते रिश्ते भी संवर जाते हैं ,आज भी कहीं न कहीं सच्चाई और अच्छाई जिन्दा है किन्तु जिसको जो सोचना अथवा करना होता है ,करके ही रहता है वो उनकी प्रकृति में शामिल होता है। 

रास्ते में गाड़ी रुकवा कर प्रमोद ने नित्या से पूछा -अब तो खुश हो ! मुझे लगता है -तुम्हारी बुआ में पैसे का अहंकार है, उन्हें लगता है कि जो मैंने कह दिया-वह 'पत्थर की लकीर'' हो गया और मैंने  उनका कहना नहीं माना , इस कारण उनके अहम को चोट तो पहुंची है। 

यह बात मैं जानती हूं, किंतु अब मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं, नित्या का वहां से आने का एक विशेष कारण रंजन भी था, वह अब रंजन का सामना नहीं करना चाहती थी वह नहीं चाहती थी कि रंजन और उसका सामना हो और फिर रंजन उससे कोई भी, किसी भी तरह का अनुचित व्यवहार करें या फिर अनुचित सोच रखें। क्योंकि यदि बुआ को इस विषय में पता चल गया तो मुझे कभी माफ नहीं करेंगी और उसमें उन्हें रंजन की गलती नहीं लगेगी, अपनी बिटिया का घर तोड़ने के लिए, उसमें उन्हें मेरी ही गलती महसूस होगी इसीलिए अब इन लोगों से जितनी दूरी बनी रहे उतना ही उचित है।

 नित्या को लगता था मेरी जो जिम्मेदारी थी वह मैंने पूरी तरह से निभाई है अब मुझे अपने और अपने परिवार की ओर ध्यान देना होगा। तीन-चार दिन के पश्चात, नित्या के पास ,शिल्पा का फोन आया था और उसने, नित्या से शिकायत भी की थी -अब तू इतनी जल्दी ससुराल वाली हो गई , अब तेरा जीजा जी के बगैर गुजारा नहीं चल रहा, क्या मेरे आने तक नहीं रह  सकती थी मैं आ जाती तो चली जाती ?

नित्या  ने भी मजबूरी जतलाई, और बोली -अब इसमें मैं क्या कर सकती हूं ? मैं तो तुम दोनों के बीच में फंस गई हूं , इधर तेरे जीजा जी, मनमानी करते हैं, वे जबरन ही मुझे ले आए , तुझे बुआ जी ने नहीं बताया , अब वे  कहते हैं -कि हमने विवाह किसलिए किया है ? क्या तुम्हें मायके में छोड़ दें ! क्या तुम जीवन भर मायके का काम और मायके की फिक्र  करती रहोगी ?

नित्या के इतना कहते ही, शिल्पा भड़क गई और बोली -तुमसे, हमने ऐसा कौन सा काम करवा लिया ? जो  तुम इतनी कमजोर हो गई अरे साथ रहने के लिए ही तो कहा था। 

क्या तूने मुझसे लड़ने के लिए ही फोन किया है ?अब तू यह बता, कि तुम दोनों कैसे हो ?

हम ठीक हैं , अनमने स्वर में शिल्पा बोली -हालांकि यह बात उसे खुश होकर कहनी चाहिए थी, किंतु अपने मायके में आकर देखा कल्याणी जी परेशान हो रही थी इसलिए उसे नित्या पर क्रोध आया था, और उसे स्वयं भी कार्य करना पड़ रहा था। तब वो बोली -मैं , मम्मी से कह रही थी -अब उसकी कोई मजबूरी नहीं है, अपने घर -परिवार की हो गई है, हम भी कब तक उसकी तरफ आस लगाए बैठे देखते रहेंगे , उसे रुकना होता तो जीजा जी को समझा सकती थी ,किंतु उसे जाना होगा इसलिए बहाना बनाकर चली गई इसी गुस्से से उसने नित्या को फोन किया था, किंतु नित्य के ने इस बात को ज्यादा महत्व ही नहीं दिया। उससे, उसका हाल-चाल पूछने लगी।

 जबरन ही शिल्पा को शांत होने का अभिनय करना पड़ा, अब तो रंजन भी अपने घर जैसा सदस्य हो गया है किंतु वह देख रहा था, घर में नौकर जाकर होने के बावजूद भी इन लोगों को नित्य की कमी बहुत महसूस हो रही थी क्योंकि दोनों मां -बेटियों को संपूर्ण कार्य स्वयं ही संभालने थे, वह कितना कुछ संभाल रही थी ? प्रमोद आखिरी बार में, फिर से नित्या से मिलना चाहता था लेकिन उसकी यह तमन्ना पूर्ण न हो सकी। तब मन ही मन सोचा -ज्यादा दूर नहीं है ,मेरे बॉस की बीवी बनी है ,अब तो साली -जीजा का रिश्ता भी बन गया। जब इच्छा होगी, मिल लेंगे ,उसके चेहरे पर एक कुटिल  मुस्कान आ गयी। वह शिल्पा से बोला -डार्लिंग ! हमें भी अब शीघ्र ही घर के लिए निकलना होगा, हमें भी तो हनीमून के लिए जाना है, बताओ! कहां जाना चाहती हो ? अकड़ते हुए रंजन ने पूछा। वह सोच रहा था-यह शिमला, कश्मीर, नैनीताल किसी पहाड़ी स्थल पर जाना चाहेगी। 

किंतु शिल्पा बोली -''मैं मॉरीशस जाना चाहती हूं ''मैंने सुना है, वह बहुत अच्छी और सुंदर जगह है, शिल्पा के इतना कहते हैं रंजन की जैसे हवा निकल गई, शिल्पा जानती थी-नित्या, भारत में ही कहीं घूमने गई होगी किंतु वह दिखला देना चाहती थी कि हम अपना हनीमून विदेश में मनाकर आ रहे हैं। 

रंजन, शिल्पा की बात सुनकर घबरा गया, उसने कभी इस विषय में शिल्पा से बात नहीं की थी कि क्या उसे विदेश में जाना पसंद है या नहीं लेकिन आज ही यह विषय उठा है, तब उसे अपनी कमजोरी का एहसास हुआ। रंजन चुप हो गया, रंजन को चुप देखकर कल्याणी जी समझ गई , कि यह पैसे के खर्चे से घबरा गया है, करता ही क्या है, एक नौकरी ही तो करता है, तब वो बोलीं  -  तुम चिंता ना करो !मैंने  सब इंतजाम करवा  दिया है , पासपोर्ट, वीजा सभी बनवा दिए हैं। 

क्या ?आश्चर्य से शिल्पा ने अपनी मम्मी की तरफ देखकर पूछा। 

हां, मैं जानती थी, मेरी बेटी विदेश में अपना हनीमून मनाना चाहेगी , यह तो नहीं जानती थी, कि तुझे 'मॉरीशस' पसंद है , तेरे पापा ने और मैंने  तुम दोनों के लिए, सरप्राइज रखा है। तुम दोनों के लिए 'यूरोप ट्रिप' का प्रबंध किया है। 

ओह ! वाव  मम्मी !आपने मुझे खुश कर दिया कोई बात नहीं ,' मॉरीशस'' फिर कभी चले जाएंगे ,शिल्पा खुश होते हुए बोली - रंजन ! तुम क्या कहते हो ?

क्या रंजन अपने पैसे से अपना हनीमून मनाना चाहेगा ?या फिर ससुराल से जो सम्मान उसे मिल रहा है ,उसे स्वीकार कर लेगा ,आइये आगे बढ़ते हैं। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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