Khoobsurat [part 68]

 कल्याणी देवी जी, अपने परिवार की सबसे बड़ी बेटी हैं , परिवार में उनका कहा कोई नहीं टालता है। उनका विवाह भी अच्छे, पैसे वाले परिवार में हुआ है। उनके माता-पिता, यह अपना सौभाग्य मानते थे कि उनकी बेटी एक अच्छे परिवार में चली गई।  बड़ी बेटी होने के नाते और उसके पास पैसा होने के नाते, भी वो अपने मायके में परिवार के निजी निर्णय भी अक्सर वह स्वयं लेती थीं। उनके दोनों भाई छोटे थे ,बड़ा थोड़ा समझदार अपनी पढ़ाई और उन्नति के विषय में सोचता था । तब कल्याणी छोटे को समझाती थी ,तुझे भी अपनी  शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए,माता -पिता को लगता ,इसे अपने भाइयों की कितनी  फिक्र है ? कल्याणी जी  कभी -कभी हंसकर कह देतीं , दोनों ही काबिल हो जायेंगे ,सक्षम हो जायेंगे तो माता -पिता का ख्याल कौन रखेगा ?


 विवाह के पश्चात भी, परिवार के लोग उनका मान रखते थे। जैसा कह देती थीं , वैसा ही करते थे, छोटा भाई अब बड़ा हो गया, विवाह भी हो गया,अपने परिवार की पूर्ति के लिए कमा लेता था किंतु पैसे में अभी भी बहन से कम था इसीलिए बड़ी बहन होने के नाते, वह जो कह देती, उनका निर्णय सर्वमान्य होता। धीरे-धीरे इस तरह के व्यवहार की उन्हें आदत भी हो गई थी और कल्याणी जी को भी लगता था, कि मेरा कहा कोई टाल ही नहीं सकता। 

अपनी बेटी के साथ के लिए , उन्होंने अपने छोटे भाई से,नित्या को, पढ़ाने के बहाने अपने साथ ले आई किंतु नित्या अब इतनी छोटी भी नहीं थी कि वह मजबूरियों को, रिश्तो को, जरूरत को समझ ना सके , इसी के चलते वह चुपचाप अपनी बुआ के साथ आ गई थी। यहां पर भी बुआ जो कह देती थी, वही करती थी,नित्या  कई बार शिल्पा की मनमानियां भी झेलती थी। एक तरह से देखा जाए तो वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए ही यहां रुकी हुई थी। बुआ और बुआ की बेटी की आदतों को अच्छे से जानती थी,क्योंकि यहाँ रहकर उसे अपनी पढ़ाई जो पूरी करनी थी।  उनकी आदतों को जानते हुए भी, कुछ चीजें, वह नजर अंदाज कर जाती थी। उसे भी लगने लगा था कि बुआ बड़ी हैं , हम लोगों के अच्छे के लिए ही सोचती हैं ,उनका कहना मानने में कोई बुराई नहीं है। 

कल्याणी जी, को भी अपने इस रुतबे की आदत हो गई थी, जब उनसे प्रमोद ने, नित्या को विदा कराने के लिए कहा -तब वे  बोलीं -चली जाएगी, इतनी जल्दी भी क्या है ? शिल्पा ' पग फेरे'' की रस्म के लिए आएगी तब इसे भी आकर ले जाना। ऐसा व्यवहार, ऐसी बातें उनकी आदत में शामिल हो चुकी थीं।उन्हें लगता था ,उन्होंने जो कह दिया -'पत्थर की लकीर ''हो गया।  

तब प्रमोद बोला - मैं मानता हूं, नित्या आपकी भतीजी है, किंतु अब वह मेरी पत्नी है , मैंने उससे विवाह किया है इतने दिनों से यहां आई हुई है , अभी कुछ दिन, मेरे साथ भी ठीक से रह नहीं पाई है, मैं दफ्तर भी  जाता हूं, मुझे परेशानी होती है मुझे उसके साथ की आवश्यकता है। आप उसे विदा कर दीजिए ! जरूरत महसूस हुई या इसे मिलने की इच्छा हुई, तो मैं इसे लेकर आ जाऊंगा, किंतु फिलहाल में इसे यहां छोड़ने वाला नहीं हूं ,क्योंकि अब तक वो जान गया था ,शिल्पा के जाने के पश्चात इसको ही सब करना होगा ,अपनी बेटी से तो काम करवाती नहीं हैं और इसे ,इसके विवाह के पश्चात भी छोड़ नहीं रहीं हैं इसीलिए प्रमोद ने उन्हें' बिन लाग -लपेट के'' दो टूक जबाब' दे दिया।  

प्रमोद के ऐसी बातें सुनकर , कल्याणी जी को आश्चर्य हुआ, आज तक किसी ने भी उनसे  इस तरह से बात नहीं की ,उनकी बात की अवहेलना करना तो दूर की बात थी। अब तक तो सभी उनकी हां में हां ही मिलाते हुए आए हैं , अभी तक तो उन्होंने यही शब्द सुने हैं-जी ठीक है, जैसा आप उचित समझें , जो आप कहेंगीं , हो जाएगा।

 आज प्रमोद ने उनसे स्पष्ट कहा -'नित्या मेरी पत्नी है , और मैं इसे लेकर जाऊंगा।' इस अप्रत्याशित व्यवहार के लिए, उन्हें, उस पर क्रोध भी आया किंतु सोचा-अभी नई -नई रिश्तेदारी जुड़ी है , यह शायद हमें ठीक से जानता नहीं है , फिर सोचा ,विरोध भी करूं तो कैसे ?वैसे इसने कुछ गलत कहा भी नहीं है,इसकी भी तो नई -नई शादी हुई है , फिर भी उन्हें ,प्रमोद के इस तरह कहने से अपना अपमान महसूस हो रहा था ,  तब अपने को नियंत्रित करते हुए और अन्य रिश्तेदारों के सामने बड़प्पन दिखलाते हुए बोलीं -ठीक है, नित्या  तुम्हारी पत्नी है, तुम इसे ले जा सकते हो, हम उसकी विदाई का प्रबंध कर देंगे।

उन्होंने बाद में नित्या से पूछा  -तूने, इस लड़के में क्या देखा ? इतना पढ़- लिखने के बावजूद भी, बड़ों से कैसे बातें की जाती है, इसे इतनी भी तमीज नहीं है ?

 नित्या जानती थी, प्रमोद के इस तरह कहने  पर बुआ जी के अहम को चोट पहुंची है किंतु वह संतुष्ट थी और बोली -अब इसमें बुआ जी ! मैं क्या कह सकती हूं, जब वह मुझे ले जाना चाह रहे हैं ,मना भी तो नहीं कर सकती ,यदि इन्होने गुस्से में कह दिया ,यदि इसे यहीं रखना है ,तो यहीं रख लो !मैं इसे लेने नहीं आऊंगा ,जब यहीं रखना था तो विवाह क्यों किया ?तब क्या करेंगे ?अभी मैं, इन्हें ठीक से जानती भी नहीं , कह कर वह अपनी तैयारी करने लगी। 

कल्याणी की सोच रही थी, शिल्पा आएगी तो सब काम कैसे सब संभाल पाऊँगी ? कैसे यह सब कर पाऊँगी ?नित्या उसकी पसंद -नापसंद जानती है ,यह थोड़े दिन और रह जाती, तो थोड़ा सा काम और संभल जाता किंतु अब नित्या भी अपने घर की और अपने पति की हो गई थी। उसने कुछ भी नहीं कहा और चुपचाप तैयार होने लगी।  मजबूरी में कल्याणी जी को, नित्या को विदा करना पड़ा।

 उनके जाने के पश्चात, तब भी कल्याणी जी अपने भाई से बोलीं -तूने, यह कैसा दामाद ढूंढा है ? इसे तो अपने बड़ों से बात करने की तमीज ही नहीं है, जब मैं, उससे कह रही थी -'कि कुछ दिन के लिए, इसे छोड़ जाओ ! तो कहने लगा-'मेरा नित्या के बिना काम ही नहीं चल रहा है। ''अब कोई उससे पूछे ! क्या वह नित्या के बिना पहले काम नहीं करता था। यही तो छोटे लोगों की पहचान होती है, उनके मन में, न जाने प्रमोद के प्रति क्या-क्या विचार आ रहे थे ? किंतु सभ्यता के दायरे में रहकर कुछ न कुछ कह देना चाहती थीं।धीरे -धीरे अपने मन की गांठ खोल रहीं थीं। 

अब कहानी ऐसे मोड़ पर है, जहां पर कभी-कभी हंसते -खेलते दिखने वाले घर और रिश्तों  की असली सच्चाई कुछ और ही होती है। बाहरी तौर पर देखने पर भी, सब कुछ अच्छा नजर आता है किंतु जब उन रिश्तों की गहराई तक पहुंचते हैं तब पता चलता है कि वे रिश्ते कितने खोखले हैं ? अब तक हम देख रहे थे कि नित्या हमेशा शिल्पा के साथ खड़ी रहती थी, उसका साथ देती थी , उसको कई बार परेशानियों से भी उसने बाहर निकाला  लेकिन इसके बावजूद भी, उनके रिश्ते की एक और सच्चाई सामने आती है, नित्या की विवशता और कल्याणी जी उनकी बेटी का अपने धन के बल पर, पूरे परिवार पर दबाव बनाए रखना।  उनका अहंकार दिखता है ,किन्तु आज भी रिश्ते जुड़े हुए हैं ,अपने स्वार्थ से ही सही किन्तु उन रिश्तों की एक पहचान ,एक दर्द ,एक रोचकता उनमें नजर आती है। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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