Qabr ki citthiyan [part 19]

आर्या को ''त्रिनेत्र मंडली ''की बलि से बचाने के लिए,वे लोग राघव के दोस्त की एक पुरानी कोठी में चले जाते हैं किन्तु ''त्रिनेत्र मंडल ''के सदस्य वहां भी पहुंच जाते हैं और उस कोठी को घेर कर आर्या को मांगते हैं वरना किसी दूसरे की बलि के लिए कहते हैं ,अब वे लोग उस हवेली में फंस चुके थे।बंदूक ताने हुए ,दीवार के पास राघव खड़ा था।

अचानक एक काला साया पीछे से आया, और उसकी गर्दन पकड़ ली। राघव  छटपटाया,और उसी छटपटाहट में उसने गोली चला दी  — पर सामने कोई नहीं था।


काव्या दौड़ते हुए वहां पहुंची किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी,राघव ज़मीन पर गिरा पड़ा था , उसकी गर्दन पर लाल निशान उभर आए थे। उसकी आँखें खुली रह गईं — जैसे उसने आखिरी पल में कुछ बहुत ही डरावना देखा हो।

अर्जुन झुककर बोला -“राघव… उठो…”

विजय ने सिर हिलाया -“अब वो, हमें नहीं सुन सकता, मंडली ने पहली आत्मा की बलि ले ली।”

काव्या रो पड़ी ,आर्या ने काँपते हुए कहा —“अब वो मुझसे खुश हैं… पर वो वापस आएंगे।”

अर्जुन ने अपने आँसू रोकते हुए कहा —“अब हम छिप नहीं सकते, हवेली को समझना होगा ,हम हवेली के अंदर रहकर भी, उनकी नजरों से नहीं बच पा रहे हैं। 

विजय ने कमरे की दीवारों पर ध्यान दिया -वहाँ हल्के अक्षर उभर रहे थे — संस्कृत में कुछ लिखा था।

उसने फुसफुसाकर पढ़ा —“यत्र मृतात्मा विश्रामति, तत्र द्वारं निहितं भवति…”अर्थात 
(जहाँ आत्माएँ ठहरती हैं, वहीं द्वार छिपा होता है।)

तुरंत ही अर्जुन ने दीवार पर हाथ मारा,वहाँ एक खोखला हिस्सा था।दीवार टूटते ही एक छोटा सा दरवाज़ा निकला, जो तहखाने की ओर जाता था।

विजय ने कहा —यही असली जगह है, मंडली ने हवेली के नीचे ही तांत्रिक द्वार बनाया था।”

वे सीढ़ियों से नीचे उतरे,दीवारों पर मोमबत्तियाँ अपने आप जल उठीं और उनका पथ प्रशस्त करने लगीं ,वहां हवा भी नहीं चल रही थी ,तब भी वहां से लोबान और किसी जले हुए मांस की गंध आ रही थी।

बीच में पत्थर का एक कुंड था —जो  लाल द्रव से भरा हुआ था। विजय बोला —“यही ''बलि कुंड'' है। मंडली हर बलि से पहले यहाँ आत्मिक मंत्र उच्चारित करती है।”

काव्या काँप गई,“मतलब राघव की आत्मा अब यहाँ फँसी है?”

विजय ने सिर झुका लिया,“हाँ… लेकिन अगर हम इस कुंड को तोड़ दें, तो मंडली की शक्ति कमजोर हो जाएगी।”अर्जुन ने अपने आस -पास नजर दौड़ाई ,वहां उसे एक लोहे की छड़ दिखलाई दी ,उसने उस छड़ को उठाया और पूरी ताक़त से कुंड पर वार किया।कुंड चटक गया, और वह लाल द्रव ज़मीन में समा गया।

अचानक हवेली ऊपर से हिलने लगी — मानो कुछ टूट गया हो ,तभी हवेली के ऊपर से एक आवाज़ आई —“तुमने हमारा द्वार तोड़ा… अब तुममें से भी कोई नहीं बचेगा!”

विजय ने कहा —“वो महेश्वर की आत्मा है! अब वो खुद उतरेगा।”कमरे की हवा भारी हो गई, दीपक बुझ गया,अंधेरे में सिर्फ़ एक स्वर गूंजा —“तुम सब मेरे ऋणी हो… ख़ून से ऋण चुकाओ…”

आर्या ज़मीन पर गिर गई, तभी उसके मुँह से वही तांत्रिक मंत्र निकले, जो किताब में थे ,यह सब देखकर काव्या ने चीख़ते हुए कहा —“वो आर्या के अंदर आ गया है!”

अर्जुन ने झटके से आर्या को बाँहों में उठाया और बोला “हमें यहाँ से निकलना होगा, अभी!”

विजय पीछे मुड़ा -“जाओ! मैं इन्हें रोकूँगा!” विजय ने दीवार से तांत्रिक राख उठाई और कुंड के चारों ओर मंत्र लिखे - “महेश्वर! तू अब इस द्वार में बंध जाएगा ,अब तू इससे बाहर नहीं निकल पायेगा। ”तभी दीवारों से काले साये निकले, जो विजय पर टूट पड़े।

काव्या चीख़ी, “विजय!”पर तब तक देर हो चुकी थी —विजय ने आखिरी मंत्र बोला - और कुंड विस्फोट की तरह फट गया।उन्हीं आग की लपटों में उसका शरीर समा गया, दीवारों पर उभरे त्रिनेत्र निशान मिट गए।हवेली कांपी, और फिर सब शांत हो गया।

सुबह की धूप, हवेली के टूटे दरवाज़ों  से भीतर आई ,अब दरवाजे बचे ही कहाँ थे ?सब कुछ राख़ बन चुका था। अर्जुन, काव्या और आर्या बाहर बैठे हुए थे — थके, नींद से बोझिल आँखों से।

काव्या ने कहा —“वो दोनों चले गए…”

अर्जुन ने किताब उठाई — उसके पन्ने आधे जल चुके थे, लेकिन एक नया वाक्य उभरा था -

“एक गया, एक बाकी है।”वह सिहर गया।

काव्या ने पूछा — “इसका मतलब?”

अर्जुन ने ठंडे स्वर में कहा —“मंडली अब भी ज़िंदा है… और अब अगली बलि मैं हूँ।”

हवेली अब सिर्फ़ राख और धूल का ढेर थी।दिन निकलते ही अर्जुन, काव्या और आर्या पास के कस्बे की एक पुरानी  धर्मशाला में छिप गए थे। यह धर्मशाला भी लगता है ,बहुत पुरानी है ,दीवारें नमी से भरी हैं ,काव्या बोली। 

 लेकिन यहाँ कम से कम हवेली जैसा डर नहीं है,अर्जुन बोला। 

काव्या बार-बार वही सवाल दोहरा रही थी —“अब हम क्या करेंगे, अर्जुन?”हम तो घर से बेघर से हो गए ,इस तरह कब तक इस तरह भटकते रहेंगे ?

अर्जुन ने शांत स्वर में कहा -“विजय ने अपनी जान देकर हमें एक दिन का वक़्त दिया है,अब हमें मंडली की जड़ खोजनी है — जहाँ से सब शुरू हुआ था ।”

वह किताब का जला हुआ पन्ना पलटता है,एक कोने पर अक्षर कुछ धुँधले से हैं, पर एक पंक्ति साफ़ दिखती है—“जहाँ तीन नदियाँ मिलती हैं, वहीं आत्मा का द्वार खुलता है।”

काव्या ने पूछा , “इस शहर में तीन नदियाँ कहाँ मिलती हैं?”

अर्जुन ने धीरे कहा —“शिवपुर घाट… जहाँ महेश्वर की समाधि है।”

आर्या चुपचाप खिड़की से बाहर देख रही थी,उसकी आँखों में फिर वही अजीब ठंडापन था। 

शहर के बाहर एक जर्जर हवेली में,काले वस्त्रों में पाँच लोग अंधेरे में घेरा बनाये हुए बैठे थे,उनके मध्य में लोहे के पात्र में हड्डियाँ जल रही थीं।

मुखिया ने गहरी आवाज़ में कहा —“बलि कुंड के टूटने से हमारी शक्ति क्षीण हुई है,विजय ने आत्मा को बाँधने की कोशिश की, लेकिन उसने रास्ता खुद ही खोल दिया।”

एक और सदस्य ने पूछा —“क्या आत्मा अब स्वतंत्र है?”

मुखिया ने मुस्कराकर कहा —“हाँ… महेश्वर अब फिर से जीवित होने की तैयारी में है और उसके लिए आवश्यक माध्यम चुना जा चुका है,सभी ने मुखिया की तरफ प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा ,बिना देर किये उसने कहा — अर्जुन !

दीवारों से एक हल्की हँसी गूंजी ,और स्वर भी उभरा “जो उसे रोकने निकला था, वही उसका द्वार बनेगा।”

अगली सुबह अर्जुन ने देखा —उसकी हथेली पर एक तीन घेरे का हल्का लाल चिन्ह उभर आया था। 

वह घबरा गया ,उसने काव्या को पुकारा “काव्या… ये देखो।”

काव्या ने डरकर कहा, “ये तो वही मंडली का निशान है!”

अर्जुन बोला -“वो अब मुझे अपने माध्यम के रूप में चुन रहे हैं।”

वह झुककर गहरी साँस लेता है -“अगर मैंने  इस प्रक्रिया को न रोका… तो मैं खुद महेश्वर बन जाऊँगा।”

आर्या धीरे से बोली -“कल रात मैंने सपना देखा — आप जल में खड़े थे, और आपके चारों ओर वही लोग मंत्र पढ़ रहे थे।”

अर्जुन ने कहा -“मतलब, अब समय बहुत कम है।”



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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