Qabr ki chitthiyan [part 18]

आर्या को बचाने के लिए ,अर्जुन और उसके साथी उसे  राघव के दोस्त की पुरानी हवेली में लेकर जाते हैं।  रात गहरी हो चुकी थी ,चारों लोग आर्या और उसकी माँ के साथ राघव की हवेली में पहुँचे।हवेली पुरानी थी—सफेद दीवारों पर सीलन, टूटी खिड़कियाँ, और हर कोने में अंधेरा।

अर्जुन ने कहा— जब तक हम मंडली का अगला ठिकाना नहीं ढूँढ लेते,तब तक हम लोग कुछ दिनों तक यहीं रहेंगे। ”

काव्या ने आर्या को, एक गर्म कंबल दिया,लेकिन जैसे ही आर्या ने बिस्तर पर सिर रखा, उसने धीरे से कहा—“दीदी… कोई मुझे पुकार रहा है।”


काव्या घबरा गई, “कौन?”

“एक आदमी… उसने कहा ‘आर्या, हमारे पास लौट आओ’।”

विजय ने तुरंत दीवार पर हाथ रखा—वहाँ से हल्की सरसराहट आ रही थी, मानो हवा नहीं, कोई आवाज़ सरक रही हो। काव्या ने आर्या को आश्वासन दिया -'ऐसा कुछ भी नहीं है ,ये तो बस तुम्हारा वहम है तुम आराम से सो जाओ !''

रात के करीब 3 बजे अर्जुन की नींद टूटी,कमरे में एक अजीब सी ठंडक थी, और दरवाज़ा आधा खुला था।वो एकदम से उठा और उसने आर्या के बिस्तर की तरफ देखा ,आर्या का बिस्तर खाली था।वह दौड़ते हुए बाहर आया और उसने देखा—आर्या गलियारे में खड़ी थी, एकदम स्थिर ,उसकी आँखें खुली थीं, पर उनमें कोई चेतना नहीं थी।

“आर्या!”आर्या ! अर्जुन ने उसे झकझोरा ,वह धीरे से बोली—“वे मुझे बुला रहे हैं…”

अचानक दरवाज़े के पीछे से हवा का झोंका आया, और दीवार पर' त्रिनेत्र मंडल ''का निशान उभर गया—लाल, चमकता हुआ।

काव्या और विजय भी जाग गए ,वहां के हालात देखते हुए विजय ने मंत्रोच्चार शुरू किया, “ॐ ह्रीं क्लीं नमः…”कमरा काँपने लगा और  दीवार का वो निशान, धुएँ में बदलकर गायब हो गया।

आर्या बेहोश होकर ज़मीन पर गिर गई,सुबह होने पर आर्या को होश आया ,तब उसने देखा ,उसकी कलाई पर बँधा लाल धागा अब काला पड़ चुका था।

विजय ने कहा,“उन्होंने अपने तांत्रिक जाल से आर्या की आत्मा को छूने की कोशिश की है, अगर हमने ये धागा नहीं हटाया, तो वे उसे कहीं से भी खींच सकते हैं।”

काव्या ने धीरे से धागा काटा,जैसे ही धागा टूटा, एक काला धुआँ उठा और हवा में विलीन हो गया।

अर्जुन ने कहा,“इसका मतलब मंडली जान चुकी है कि हम लोग कहाँ हैं ,क्या कर रहे हैं ?”

राघव ने तुरंत ही अपनी बंदूक लोड की और बोला -“अब वे हवेली तक आएंगे।”

आर्या अब शांत बैठी थी,उसने धीरे से कहा—“कल रात मैंने एक सपना देखा… मेरे सपने में वही आदमी था जिसने धागा बाँधा था ,उसने कहा - ‘अगर तुम हमारे पास नहीं आईं, तो कोई और तुम्हारे लिए मरेगा।’

काव्या ने पूछा—“कोई और? कौन?”

आर्या ने धीरे से कहा—“तुम…”

काव्या की साँस अटक गई ,अर्जुन ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं।“अब खेल शुरू हो गया है,अगर हमें मंडली को रोकना है, तो हमें उनके तांत्रिक केंद्र तक पहुँचना होगा।”

विजय ने कहा,“और वो है—''महेश्वर की समाधि '' जहाँ से ये सब शुरू हुआ था।

”हवेली के बाहर हवा तेज़ चल रही थी,दीवारों पर फिर वही तीन घेरों वाला निशान धीरे-धीरे उभरने लगा।अर्जुन ने बाहर देखा—गेट के पास कोई खड़ा था, लंबा कद, काले वस्त्र, और चेहरे पर कोई भाव नहीं था। वह बोला नहीं… बस एक हाथ में लाल धागे का टुकड़ा उठाकर दिखाया।

काव्या का दिल जैसे रुक सा गया और वो घबराते हुए बोली -“वो… मंडली का आदमी है।”

अर्जुन ने ठंडे स्वर में कहा—“अब वे आ गए हैं। 

रात फिर उतर चुकी थी ,आसमान पर बादल इकट्ठा हो रहे थे, चाँद अपना चेहरा धुँध में छिपाये हुए था।हवेली के चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था किन्तु इस शांति से जैसे डर लग रहा था , — किसी आने वाले तूफ़ान से पहले की शांति !

काव्या खिड़की के पास बैठी थी, आर्या उसी के पास सोई थी।उसकी साँसें हल्की थीं, जैसे डर अभी भी उसके भीतर कहीं ज़िंदा हो।

विजय ने कमरे के कोने में दीपक जलाया, और चारों तरफ़ रक्षात्मक चूर्ण (तांत्रिक सुरक्षा रेखा) बिखेरी।“ये रात बहुत भारी है,” उसने कहा -“मंडली आज कुछ बड़ा करने वाली है।”

अर्जुन ने ठंडे स्वर में जवाब दिया —“जो भी हो, इस बार हम तैयार हैं।”घड़ी ने बारह बजाए।और उसी पल दीवार पर लटका हुआ आईना हिलने लगा,आर्या नींद में बड़बड़ाई — “वो आ गए…”

काव्या घबरा गई, उसने आर्या को कसकर थाम लिया,आईने में अचानक एक छवि उभरी — वही आदमी, जिसने लाल धागा बाँधा था,उसका चेहरा स्याह था, आँखें लाल, और होंठों पर हल्की मुस्कान !उसने कहा —“हम तुम्हें लेने आए हैं, आर्या… अब विरोध मत करो !”

विजय ने मंत्रोच्चार शुरू कर दिया -“ॐ नमो कालेश्वराय भूतात्मने नमः!”आईना अचानक फट गया, और कमरा धुएँ से भर गया। हवेली की दीवारें जैसे जाग उठीं,अचानक हवेली के दरवाज़े अपने आप खुल गए। हवा के साथ चीख़ जैसी आवाज़ अंदर घुसी ,राघव ने तुरंत बंदूक उठाई और सभी को सावधान किया - “सब तैयार रहो!”

 जैसे ही उसने कमरे से बाहर झाँका, उसने देखा —सामने काले कपड़ों में तीन लोग खड़े थे, चेहरों पर लाल निशान !उनके हाथों में मशालें थीं। उनमें से एक  चिल्लाया —“वो बच्ची हमारे स्वामी की है! उसे हमें सौंप दो ! वरना ये हवेली जला दी जाएगी!”

अर्जुन गरजा — “पहले अंदर आकर देखो !”

और तभी—उनके हाथ की मशालें अपने आप हवा में उठीं और हवेली की दीवारों से जा टकराईं ,आग तो नहीं लगी… लेकिन दीवारों पर' त्रिनेत्र 'का निशान जल उठा।

विजय चौंका, “ये आग नहीं… ये आत्मिक चिन्ह हैं , उन्होंने हवेली को घेर लिया है।”

अचानक हवेली के फर्श पर दरार पड़ने लगी ,ऐसा लग रहा था ,जैसे फ़र्श को किसी ने नीचे से ज़ोर से ठोका हो ,फर्श के नीचे से एक हाथ निकला — सड़ा हुआ, हड्डियों से भरा।

काव्या चीख़ी - हे भगवान! यह कौन सी अदृश्य शक्ति है ?जो इस तरह से हमें, डरा रही है ?

राघव ने गोली चलाई, पर गोली दीवार में जाकर समा गई, उस हाथ को कुछ नहीं हुआ ,हाथ पीछे खिंच गया, पर तुरंत ही तीन और उभर आए।

विजय चिल्लाया —“वे आत्माएँ हैं! मंडली ने अपनी मृत आत्माओं को भेजा है!”

अर्जुन ने अपने पास रखी दीया-बत्ती उठाई और उन पर फेंक दी।एक पल के लिए नीली लौ भड़की, और आत्माएँ चीख़कर पीछे हट गयीं।

 इतनी आवाज में अब तक आर्या  जाग चुकी थी ,उसकी आँखें एकदम सफ़ेद हो चुकी थीं ,उसे देखकर लग रहा था ,वो यहां होकर भी यहां नहीं है ,उसने ठंडे स्वर में कहा —“वो कह रहे हैं… कोई एक तो जाएगा।”

काव्या उसकी हालत देखकर रोने लगी,उसने रोते हुए उसे आश्वासन दिया - “नहीं, बेटा ! कुछ नहीं होगा!”

आर्या बोली —“वो मुझे नहीं ले जाएँगे, अगर कोई और मेरे स्थान पर जाए…”

अर्जुन ने उसके कंधे पकड़ लिए ,“आर्या! तुम उनकी बातें मत सुनो! ये सब छल है!”

पर तभी हवा में एक फुसफुसाहट गूंजी —“किसी एक की आत्मा चाहिए… वरना सभी मरेंगे।”

विजय ने काँपती आवाज़ में कहा -“ये मंडली की काली शक्ति की' मंत्र ऊर्जा' है। उन्होंने इस हवेली को ही  ''बलि कुंड'' बना दिया है।”



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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