इंस्पेक्टर राघव और विजय उस'' त्रिनेत्र मंडली'' की भेंट चढ़ चुके थे। अर्जुन, आर्या और काव्या को साथ लिए एक धर्मशाला में छुप गया था किन्तु उनके छुपने का कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि उन लोगों ने अर्जुन को ही महेश्वर को वापिस लाने के माध्यम के रूप में चुना .प्रातःकाल जब अर्जुन उठा तब उसने देखा उसकी हथेली पर तीन घेरे का वही लाल चिह्न था ,जो मंडली का निशान है। शहर में अजीब बातें फैलने लगीं।
लोगों ने बताया - कि रात को घाट के पास लाल रोशनी दिखती है।
किसी ने कहा -कि पानी से हाथ निकलते हैं, तो किसी ने कहा — ऐसा लगता है ,जैसे कोई पुकार रहा हो।
एक बूढ़ा पुजारी अर्जुन के पास आया और उसे चेतावनी दी -“बेटा !अब घाट मत जाना, वहाँ अब देवता नहीं, कोई और जाग चुका है।”
अर्जुन ने पूछा, “आपने क्या देखा?”
पुजारी काँपते हुए बोला -“एक छाया… तीन सिरों जैसी आकृति, और उसके चारों ओर खून के गोले।”
काव्या और अर्जुन ने एक-दूसरे की ओर देखा -“यह वही जगह है… ।”
रात्रि धीरे -धीरे ढल रही थी, अर्जुन, काव्या और आर्या—तीनों धीरे-धीरे घाट की ओर बढ़ रहे थे ।
वहाँ हवा में सड़ी हुई मछलियों और धूप की गंध थी,पानी का रंग असामान्य लाल झिलमिला रहा था।
अर्जुन ने मशाल जलाई और बोला -“विजय ने कहा था-' आत्मा वहीं प्रकट होगी, जहाँ उसका द्वार है।”
वे घाट की सीढ़ियों से नीचे उतरे ,वहाँ एक पुरानी समाधि थी, जिस पर लिखा था —“महेश्वर तांत्रिक – शरीर यहाँ, आत्मा मुक्त।”
काव्या ने कहा -“तो क्या, आत्मा अब लौट रही है…”अर्जुन ने किताब निकाली।काव्या उस किताब को देखकर बोली, “इसमें तो आधे पन्ने जल चुके हैं।”
“नहीं,” अर्जुन ने कहा -“किताब खुद ज़िंदा है।”
जैसे ही उसने उस किताब को खोला - पन्ने अपने आप पलटने लगे, हर पृष्ठ पर वही लाल निशान, वही नाम।
अचानक किताब चमकने लगी —उसके भीतर से धुआँ निकलने लगा, जो धीरे-धीरे मानवी आकार लेने लगा।
आर्या डर गई और चिल्लाई - “वो… वही है…”
धुएँ में एक चेहरा उभरा —महेश्वर का चेहरा,उसकी आँखें लाल, और होठों पर वही शैतानी मुस्कान ! महेश्वर की आवाज़ घाट पर गूंज उठी —“अर्जुन… तू वही है, जिसने मेरी चिट्ठियाँ जलाईं ,अब मैं तेरे शरीर से अपने अस्तित्व को पूरा करूँगा।”
अर्जुन ने दाँत भींचे -“तू सिर्फ़ एक मृत आत्मा है, तेरी सत्ता अब ख़त्म हो चुकी है।”
महेश्वर हँसा —“मृत मैं था, लेकिन अब तू है,तेरी नसों में मेरा वही मंत्र बह रहा है।”
अर्जुन ने अपनी हथेली देखी —वह अब पूरी लाल हो चुकी थी,चिह्न धड़कने लगे, जैसे उसमें कोई जीव बस गया है।
अचानक आर्या बोली —“वो तुमसे नहीं, मुझसे जुड़ा है।”
अर्जुन और काव्या ने चौंककर देखा -आर्या की आवाज़ अब उसकी नहीं थी,वो बोली -“महेश्वर ने जब पहली बलि दी थी, उस समय मेरी आत्मा उसके द्वार में फँसी थी ,अब वो मुझे वापस चाहता है।”
काव्या सिहर गई —“मतलब आर्या वही आत्मा है, जो पहले से ही मंडली की थी?”
अर्जुन ने उसे झकझोरा -“नहीं, वो बच्ची अब निर्दोष है!”
महेश्वर हँसा -“निर्दोष? वह मेरी अपूर्ण क्रिया का अंश है,उसका जीवन सिर्फ़ मेरी वापसी का माध्यम है।
काव्या ने अपनी टॉर्च आर्या के हाथों पर डाली —वहाँ अब वही त्रिनेत्र उभर आया था,तब काव्या बोली -“अर्जुन! अगर अब हम उसे नहीं रोकते है तो आर्या मर जाएगी!”
अर्जुन ने किताब को ज़मीन पर फेंका और कहा -“तो फिर मैं खुद इसे खत्म करूँगा!”वह मशाल लेकर समाधि के पास पहुँचा और किताब पर आग लगाई।
काव्या चिल्लाई -“अर्जुन, नहीं!”
किन्तु किताब ने खुद को नहीं जलने दिया,उसे कुछ भी नहीं हुआ बल्कि —उसके पन्ने आग में जलने के बजाय, काले धुएँ में बदल गए, वो धुआँ अर्जुन के चारों ओर घूमने लगा।
महेश्वर की आवाज़ आई -“मैं अब तेरे भीतर हूँ…”अर्जुन गिर पड़ा, उसके शरीर पर वही लाल निशान फैल गए।
काव्या ने रोते हुए आर्या को पकड़ा और उससे कहा -“कुछ करो! उसे बचाओ!”
आर्या की आँखें फिर सफ़ेद हो गईं,उसने हवा में हाथ उठाया और मंत्र बोला - जो उसने कभी नहीं सीखा था —“ॐ त्रिनेत्राय नमः… आत्मा बन्धनाय स्वाहा…”
महेश्वर की चीख़ घाट पर गूंज उठी -पानी उबलने लगा, आसमान में लाल बिजली चमकी,अर्जुन के शरीर से काला धुआँ निकलने लगा —और वो महेश्वर की आकृति बनकर हवा में तैर गया।
वो बोला -“तुम मुझे बाँध नहीं सकते… मैं हूँ वो, जो चिट्ठियों से लौटता है!”
आर्या की नन्हीं हथेली से रोशनी निकली —वो सीधे महेश्वर की छाती में गई।
आवाज़ आई — धाम!और घाट पर सन्नाटा पसर गया।
प्रातः काल सूरज उगा ,घाट पर अब सिर्फ़ राख और किताब का आधा जला कवर पड़ा था।
अर्जुन बेहोश था, किन्तु ज़िंदा !काव्या ने उसे उठाया और उसके मुँह पर छींटे मारे ,उसकी बाँहें थाम लीं।
आर्या भी समीप ही बैठी थी, शांत, पर चेहरे पर परिपक्वता की अजीब चमक।उसने कहा -
“वो गया… लेकिन अधूरा नहीं।”
काव्या ने पूछा,“क्या मतलब?”
आर्या बोली -“उसकी आत्मा अब तुम्हारे साथ बँध गई है।”
काव्या ने डरकर पूछा, “किसके साथ?”
आर्या मुस्कराई —“अर्जुन के साथ।”
अर्जुन ने धीरे से आँखें खोलीं,उसकी पुतलियाँ में हल्की लाल झिलमिलाहट थी।वह बुदबुदाया —“कब्र से आई चिट्ठियाँ अभी खत्म नहीं हुईं हैं … बस लेखक बदल गया है।”पानी में धीरे से एक बुलबुला उठा और दूर कहीं, हवा में वही आवाज़ गूंजी —“अगली चिट्ठी तुम्हारे नाम है…”
धर्मशाला में सूरज की हल्की किरणें दीवारों से टकरा रही थीं,लेकिन कमरे में अंधेरा छाया था।
काव्या ने आँखें खोलीं—उसने देखा ,अर्जुन बिना हिले घंटों से खिड़की के पास खड़ा था।
वो धीमी आवाज़ में बोली -“अर्जुन… तुम जाग रहे हो?”उसने कोई जवाब नहीं दिया। काव्या उसके पास आई।उसने देखा ,अर्जुन की आँखें लाल थीं, पर उनमें कोई थकान नहीं, एक अजीब चमक थी।
तब अर्जुन ने धीरे से कहा—“रात भर मैं उसे महसूस करता रहा,वो यहाँ है… मेरे भीतर।”
काव्या काँप गई -“कौन?”
अर्जुन ने मुस्कराकर जवाब दिया—“महेश्वर।”
वो पीछे हटी, “अर्जुन, पागल मत बनो ! हमने उसे रोक दिया था—”
अर्जुन ने बीच में टोक दिया -“तुमने सोचा होगा ,उसे बांधा जा सकता है? नहीं काव्या… वो अब मैं हूँ।''मुझे महसूस हो रहा है ,मैं ,अब मैं नहीं हूँ ,कोई ओर हूँ ,दिन भर अर्जुन ने कुछ नहीं खाया ,वो बार-बार अपने को आईने में देखता और अपनी नब्ज़ पर उँगलियाँ रखता, हर बार एक पल के लिए उसकी त्वचा के नीचे कोई लाल रोशनी चमकती।
आर्या ने नोट किया—“भैया अब आप पहले जैसे नहीं लग रहे हैं ।”
काव्या ने उसे चुप कराया,इन्हें कुछ नहीं हुआ… बस सदमा है।”
लेकिन वो खुद जानती थी, कुछ तो बदल चुका है ,रात होते-होते अर्जुन के बोलने का लहजा, चलने की गति, यहाँ तक कि उसकी साँसों की लय भी बदल गई थी।जैसे कोई दूसरा व्यक्ति उसके भीतर साँस ले रहा है।