Qabr ki chitthiyan [part16]

अर्जुन, काव्या और राघव ''त्रिनेत्र मंडली ''के गुप्त संगठन की जानकारी लेने के लिए ,उस स्थान पर जाते हैं किन्तु वहां पर उन लोगों द्वारा, उन तीनो को जासूसी करते पकड़ लिया जाता है ,तब वे तीनों वहां से बचकर भाग निकलने में सफल हो जाते हैं और एक अँधेरी गली में घुस जाते हैं ,तभी एक अनजान शख़्स उनकी सहायता के लिए अपना हाथ बढ़ाता है। अर्जुन ऐसे समय में किसी पर कैसे विश्वास कर सकता था ?किन्तु ऐसे समय में उन लोगों से बचने के लिए ,वही उम्मीद की किरण नजर आया।


 अर्जुन पहले तो झिझका, लेकिन पीछा करते कदमों की आवाज़ सुनकर तब काव्या और राघव से बोला -आओ !चलते हैं।  वे तीनों उसके पीछे हो लिए ,वह आदमी उन्हें उस गली से निकलकर एक तंग दरवाज़े से अंदर ले गया और दरवाज़ा बंद कर दिया।अंदर बहुत अंधेरा था, उसने माचिस जलाई और दीपक जलाया।उस रौशनी में अब उसका चेहरा साफ़ दिख रहा था—मध्यम उम्र का आदमी, तीखी आँखें, थकी हुई मुस्कान।

तब वो अनजान व्यक्ति बोला -आप लोगों के लिए मैं अज़नबी हूँ ,इसीलिए मैं पहले अपना परिचय दे देता हूँ “मेरा नाम है… विजय ! मैं कभी ‘त्रिनेत्र मंडली’ का हिस्सा था ,लेकिन जब मैंने उस मंडली का असली उद्देश्य जाना और उन लोगों की सच्चाई अपनी आँखों से देखी… तो सब छोड़ दिया।”

अर्जुन उसकी बातें सुनकर चौंका और उससे पूछा -“तो तुम हमारे दुश्मन नहीं हो? किन्तु तुम हमारी सहायता क्यों कर रहे हो ?

विजय ने सिर हिलाया और बोला -“नहीं ,मैं तुम लोगों का दुश्मन नहीं हूँ किन्तु मैं चाहता हूँ कि ये मंडली खत्म हो जाये ,क्योंकि'' महेश्वर ने मेरी बहन की बलि ली थी।''शायद उस हादसे को स्मरण कर क्रोध से ,उसकी आँखें लाल हो गईं।“

मैंने सुना है ,ये लोग इंसानों की बलि देकर शक्ति हासिल करते हैं ,अर्जुन ने पूछा। 

तुमने सही सुना है … ये लोग बलि देकर शक्ति हासिल करते हैं और अब वो किसी बड़े आयोजन की तैयारी कर रहे हैं।”

काव्या ने काँपते स्वर में पूछा—“किस आयोजन की तैयारी ?”

विजय की आवाज़ भारी हो गई।“महेश्वर को वापस बुलाने का आयोजन,''

क्या इस शहर में ही,आश्चर्य से अर्जुन ने पूछा।

हाँ ,विजय ने संक्षिप्त जबाब दिया।  

 काव्या और राघव ने एक-दूसरे की ओर देखा। हवेली की तबाही, आत्माओं की मुक्ति… सब अब छोटी चीज़ें लग रही थीं, उनके सामने ,अब एक पूरा संगठन था दर्जनों लोग, और महेश्वर को पुनर्जीवित करने की योजना।

अर्जुन ने धीमे स्वर में कहा—“ असली खेल तो अब शुरू होगा ।”

विजय को जब विश्वास हुआ कि इन लोगों को मुझ पर,मेरी बातों पर  विश्वास हो गया है,तब उसने दीपक की लौ को थोड़ा ओर बढ़ा दिया।उसका चेहरा अब पहले से ज्यादा साफ़ दिख रहा था—थका हुआ, लेकिन दृढ़ !उसकी आँखों में 'बदले की ज्वाला' थी। एकदम से उसका चेहरा कठोर हो गया , -“तुम लोग सोच भी नहीं सकते कि ‘त्रिनेत्र मंडली’ इस समाज में अपनी कितनी गहरी जड़ें जमा चुकी है,” विजय बोला।

तब उसने उस कमरे में रखी केतली से चाय निकालकर तीनों को एक -एक छोटे कांच के गिलास में चाय दी और स्वयं भी पीते हुए बोला -“ये सिर्फ़ कोई'' तांत्रिक समूह'' नहीं है… ये शहर के बड़े-बड़े कारोबारियों और नेताओं तक फैला हुआ है।''महेश्वर''भी उनमें से सिर्फ़ एक था। उसका काम आत्माओं को बाँधकर ऊर्जा देना था। बाक़ी लोग उस ऊर्जा से फायदा उठाते थे।”

अर्जुन ने गहरी साँस ली और थके हुए स्वर में बोला -“मतलब हमें सिर्फ़ महेश्वर से नहीं, बल्कि पूरे संगठन से लड़ना है।”

विजय ने ''हाँ ''सिर हिलाया,तब वो बोला -“और सबसे बड़ा खतरा तो ये है कि उन्होंने पहले ही' महेश्वर' को वापस बुलाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए उन्हें…' मानव बलि' चाहिए।”

काव्या का चेहरा पीला पड़ गया -“किसकी बलि?”

विजय ने धीरे से कहा—“इस बार भी कोई मासूम बच्चा ”ही इनके षड्यंत्रों का शिकार होगा। यह सोचकर अर्जुन को क्रोध आता है ,तब गुस्से से अर्जुन ने मेज़ पर हाथ मारा,“नहीं! अब हमें इन्हें रोकना ही होगा,इनकी योजनाओं को विफ़ल करना होगा। 

राघव ने सिर हिलाया -“लेकिन हम सिर्फ़ चार लोग हैं, उनके पास दर्जनों आदमी हैं ,हो सकता है ,हमारी सोच से भी अधिक हों ,हम कैसे उन्हें हरा पाएंगे ?

विजय मुस्कराया -“संख्या सब कुछ नहीं होती, मैं इस समूह का सदस्य रह चुका हूँ , मैंने सालों तक इन्हें देखा है।
मुझे उनके गुप्त ठिकानों के बारे में पता है,तब वह अपनी योजना बताता है ,अगर हम उनके सबसे छोटे अड्डे को पहले तोड़ें, तो बाकी जगहों पर हमारा डर फैल जाएगा।”

अर्जुन ने आँखें सिकोड़ लीं और पूछा - और वे अड्डे कहाँ है?”

तभी विजय ने अपनी जेब से एक मानचित्र निकाला और उँगली से इशारा किया,“पुराने शहर की गलियों में ‘कालेश्वर गोदाम’ है , वहाँ मंडली का हथियार और काला सामान रखा जाता है।”तब उस मानचित्र के अनुसार उन्होंने योजना बनाई ,आज की रात हम चारों उस गोदाम पर नज़र रखेंगे ।राघव ने अपनी बंदूकें और कारतूस तैयार किए।काव्या ने कैमरा और टॉर्च रखी, ताकि सबूत भी मिल सके।अर्जुन ने डायरी का अधजला टुकड़ा साथ रखा—उसे भरोसा था कि कभी न कभी ये अवश्य काम आएगा।

विजय ने चेतावनी दी —“याद रखना !अगर पकड़े गए तो, ये लोग हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे लेकिन अगर गोदाम पर कब्ज़ा मिल गया, तो उनकी रीढ़ पर सीधा वार होगा।” आधी रात को वे चारों विजय के बताये हुए मार्ग पर चलते हुए ''कालेश्वर गोदाम ''पहुँच जाते हैं। उस गली में बहुत सन्नाटा था, लेकिन गोदाम से हल्की लाल रोशनी झाँक रही थी।उन लोगों ने अनुमान लगाया ,इस गोदाम में कोई तो है ,अंदर से अगरबत्ती और किसी जलते रसायन की सी गंध आ रही थी।

वे धीरे-धीरे बिन आहट के चलते हुए पीछे की दीवार फाँदकर अंदर पहुँचे,इस सबके लिए विजय ही उनकी सहायता कर रहा था। दीवार फांदकर अर्जुन ने अपने चारों ओर देखा—वहां बड़े-बड़े बक्से रखे हुए थे, जिन पर लाल निशान बना था,कुछ बक्सों से रक़्त की बूंदें टपक रहीं थीं।

काव्या उन लोगों के साथ आ तो गयी थी किन्तु वहां का वातावरण देखकर सिहर गयी, काँपते हुए स्वर में फुसफुसाई —“इन बक्सों में क्या हो सकता है?”

विजय ने चेहरा सख़्त किया -“कभी मत खोलना… शायद मानव हड्डियाँ या बलि का सामान भी हो सकता है ”

अचानक अर्जुन की नज़र एक मेज़ पर पड़ी,वहाँ एक बड़ी सी काली किताब रखी थी—चमड़े से बनी, उस पर वही तीन घेरे का निशान था,अर्जुन ने फुर्ती से वो किताब उठाई,उस किताब को खोलते ही उसकी आँखें फैल गईं।

उसमें शहर के दर्जनों लोगों के नाम लिखे थे— उनके जन्मदिन, और एक लाल निशान के साथ “बलि की तिथि”।

काव्या ने भी उस किताब को देखा और पन्ने पलटकर डरते हुए बोली—“ये तो… मौत की सूची है!”

अर्जुन का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा,कहते हुए वो उस किताब को बंद करने ही जा रहा था ,तभी उसके दिमाग़ में विचार आया -“ यदि इसमें ''बलि'' वाले लोगों के नाम हैं ,तब अगली बलि किसकी होगी ?उसका नाम भी इसमें ही  होगा।”

राघव ने दुबारा किताब खोलकर देखा।“नाम है… आर्या। उम्र—सिर्फ़ 10 साल। अभी वे लोग उस नाम को देख ही रहे थे ,उसी वक्त पीछे से आवाज़ आई—“घुसपैठिए!”


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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