Budhape ka sahara, bahu !

 दीप्ती जी ,बहुत दिनों से बिमार थीं ,उनकी बहु ऋचा ने अपनी सास की खूब सेवा की एक बार को तो उन्हें लग रहा था ,अब वो नहीं बचेंगी किन्तु बहु ने अपने व्यवहार और सेवा से उन्हें बिस्तर से खड़ा कर दिया। उसका व्यवहार और उसकी सेवा देखकर कई बार उनकी आँखों में आंसू आ जाते ,और भगवान से प्रार्थना करतीं -हे भगवान !न जाने मैंने पिछले जन्म में कौन से पुण्य कर्म किये थे जो इतनी अच्छी बहु मिली। कई तो उन्हें ही लगता ,ये मन ही मन मुझसे परेशान हो रही होगी और वे उससे कहतीं - मेरे कारण, तुम्हें कितनी परेशानी हो रही होगी ? 

मम्मी जी ! आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं ?बीमार तो कोई भी हो सकता है, आप जानबूझकर बिमार थोड़े ही न हुई हैं ,यदि मैं बीमार हो जाती तो आप क्या करतीं ?


तुम सही कह रही हो ,बेटियां भी उन्हें देखने आईं ,जब वो अकेले में थीं बेटियों से बोलीं -तुम तो अपनी ससुराल की हो गयीं ,किन्तु अब यही मेरे साथ है ,मेरी बेटी बनकर ही मेरी सेवा कर रही है ,बेटी ही क्यों बनाना है ?बेटी तो अपने घर की हो जाती है ,ये तो मेरे घर की लक्ष्मी है ,बहु, घर की लक्ष्मी होती है।आज यही मेरी बीमारी में मेरी सेवा कर रही है ,बुढ़ापे में भी सहारा बनेगी। 

माँ की बात सुनकर उनकी बेटी को लगा,हम मम्मी से व्यर्थ में ही लड़ते थे ,वे सही तो कह रहीं हैं ,आज भाभी ही बीमारी में उनके साथ हैं। तब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वो उस दिन को स्मरण करने लगी जब भाभी उनके घर आई थीं ,जब उन्हें अपनी मम्मी से शिकायत थी -'हमको तो इतना डांटती थीं और भाभी को लाड़ ,लडा रही हैं ,देखना एक दिन ये ही आपको एक दिन, घर के कोने में बिठा देगी।  

दीप्ति जी पहले से ही, बड़े नरम स्वभाव की हैं, सबसे बड़े प्रेम से बात करती हैं किंतु कई रिश्ते ऐसे हो जाते हैं कई बार उन्हें, अपना रवैया सख्त भी रखना पड़ता है। डांटना भी पड़ता है, नाराज भी होती हैं।  उन्होंने अपनी बेटियों को सभी घरेलू कार्य सिखाएं ताकि ससुराल में जाकर, उन्हें किसी का' मुंह ना देखना पड़े', या ताने न सुनने पड़े कि लड़की को कुछ भी नहीं आता है, इस कारण कई बार वो अपनी बेटियों के साथ सख़्त रवैया भी अपना लेती थीं , किंतु इसका अर्थ यह नहीं था कि वे अपनी बेटियों से प्रेम नहीं करती थीं किंतु उनकी बेटियों को लगता था -मम्मी, हमारे कार्य में ही कमी निकालती रहती हैं और हमें ही समझाती रहती हैं।

 आज उनकी बेटियां अपनी ससुराल में सुख पूर्वक रह रही थीं उन्होंने घर के सभी कार्य बखूबी संभाल लिए थे। 

 दीप्ति जी के बेटे नवल के विवाह में सब आए, सुनने में आया था कि होने वाली बहू के मां नहीं है। मन ही मन उनकी बेटियां सोच रही थी -चलो, अच्छा ही हुआ, अब मम्मी को पता चलेगा , कि  काम सीखाना किसे कहते हैं ? नवल के विवाह के पश्चात सब अपने-अपने घर चले गए , सभी रस्में भी पूर्ण हो गई अब घर में नवल और नई बहू और दीप्ति जी रह गए।

 नई बहू यानी की ऋचा , उसके पापा ने कहा था -मैंने अपनी बेटी को बहुत लाड- प्यार से पाला है, हालांकि मैंने उसे सभी कार्य करने सिखाए हैं लेकिन यदि उसमें कोई कमी रह जाए तो आप उसे कृपया करके माफ कर दीजिएगा बिन मां की बच्ची है, कुछ चीजें नहीं सीख पाई होगी तो आप उसकी मां बनकर सिखा दीजिएगा। 

आप इसकी चिंता ना करें ! अब आपकी बेटी, मेरे घर की बहु है, मेरी बेटियां तो अपनी ससुराल चली गईं अब तो हमें ही साथ में रहना है, धीरे-धीरे घर के सभी तौर- तरीके सीख जाएंगी , कहते हुए उन्होंने ऋचा को गले से लगा लिया। जब ऋचा  हनीमून से घूम कर आई ,उससे अगले दिन तब पर दीप्ति जी बोली - बेटा ! मैं पराठे बना रही हूं , तुम जरा नवल के लिए नाश्ता लगा दो और ये तरकारी भी काट देना, साथ के साथ इसे भी छोंक  दूंगी। ऋचा  ने उनके कहे अनुसार कार्य करना शुरू कर दिया। अभी वे ऋचा पर घर का पूरा भार नहीं डालना चाहती थीं।  सोच रही थीं - अभी इसकी उम्र ही क्या है ?धीरे-धीरे सब घर गृहस्थी में अपने आप रमने लगेगी। 

इस बीच उनकी बड़ी बेटी प्रगति आई , उसने देखा मम्मी, भाभी से बड़ा ही नरम व्यवहार करती हैं, बड़े प्रेम से उसे सभी कार्य सिखाती हैं जो कभी हमें सिखाए थे किंतु हमारे साथ उनका रवैया कभी भी ठीक नहीं रहा इस बात की शिकायत प्रगति को हुई तब प्रगति ने कहा -मम्मी ! आप हमारी माँ हैं  या भाभी की। 

क्या मतलब मैं कुछ समझी नहीं।

 मैंने देखा है, जब आप हमें सिखाती थीं, समझाती थी तो कितना डांटती थी किंतु भाभी को तो बड़े प्यार से समझाती हैं, हम क्या आपके सौतेले बच्चे थे ? और यह कल की आई आपकी सगी हो गई,मैं तो यही देखने आई थी, कि आप किस तरह भाभी को काम सिखाती हैं ? 

प्रगति कि इस बचपने जैसी शिकायत को सुनकर दीप्ति जी को हंसी आ गई और वो बोलीं -जब तुम अपने ससुराल में गई तो क्या तुम्हें किसी को काम सीखना पड़ा, कोई तुम्हारे पीछे तो नहीं पड़ा, कि तुम्हें यह नहीं आता तुम्हें वह नहीं आता। 

नहीं, ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ, बल्कि हमने बखूबी सभी कार्य संभाल लिए और आज भी संभाल रहे हैं। 

 तुमने यह नहीं सोचा -यह सब हमारी मां के डांट का नतीजा है, मां अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की  कल्पना करती है ,मैंने तुम्हारे लिए जो उचित लगा किया ,तभी आज मैं ,तुम लोगों की तरफ से संतुष्ट हूँ ,बेफ़िक्र हूँ, मेरी बेटियां सब संभाल लेंगी। ऋचा जो अभी आई है ,बेचारी के माँ नहीं थी ,उसकी माँ भी होती तो भी मैं अपने घर के तौर तरीक़े उसे बड़े प्रेम से समझाती। तुम मेरी बेटियां थीं मेरा तुम पर अधिकार था ,कि तुम्हारे भले के लिए सोचूं, किन्तु ये मेरी बेटी समान है ,इस घर की लक्ष्मी है ,जिसका जीवन अब यहीं व्यतीत होगा। अब मुझे इसे घर संभालने के साथ -साथ ये भी समझाना होगा,कि रिश्ते कैसे संभालने हैं ?

तुम लोग, तो अपने घर की हो गयीं,इसे भी अपना घर बसाना है ,बेटा, अपनी नौकरी पर चला जाता है। तब घर में हम दोनों ही तो रह जाते हैं ,जो एक दूसरे का सहारा भी हैं। इसका अल्हड़पन मेरे जीवन का अनुभव दोनों ही एक दूसरे का सहारा बनेंगे। जब मैं इसे प्रेम दूंगी ,तभी तो बदले में प्रेम की उम्मीद रख सकती हूँ। इसे मुझमें अपनी माँ नजर आएगी। ऐसा नहीं, ये ही मेरा सहारा बनेगी ,पहल मुझे ही करनी होगी,जब ये मेरे घर के वारिस को जन्म देगी तो इसकी देखभाल करना ,समय पर जच्चा -बच्चा का ख्याल रखना कम मुश्किल कार्य नहीं है। जब ये बच्चे की देखभाल में व्यस्त होगी तब इसे भी अपने लिए समय देने के लिए कहना होगा। कभी -कभी बच्चे को संभालना होगा।कोशिश तो यही रहेगी कि इसके मन में कड़वाहट घर न करे, जब मुझे कुछ होगा तभी तो मैं भी उसकी तरफ से उम्मीद रख सकती हूँ।

मम्मी !तुम नहीं समझती हो ,आजकल की लड़कियों को सीधी बनकर ये आपसे काम कराएगी जब आपकी बारी आएगी ,बहाना बनाकर भाग जाएगी। 

अब बेटा, जैसा भी है ,बुढ़ापे में तुम्हें, तुम्हारी ससुराल से तो नहीं बुला सकती ,तुम एक दो दिनों के लिए आ भी गयी तो क्या होगा ?बहु ही सहारा बनेगी ,कोई नकारात्मक सोच लेकर मैं इसके साथ गलत व्यवहार तो नहीं कर सकती ,मेरा काम भी नहीं करेगी तो घर तो संभालेगी ही। 

इस कहानी से यही सीख मिलती है ,किसी से सहारे की उम्मीद रखने से पहले तुम उसे एहसास दिलाओ !तुम भी उसके अपने हो ,कहते हैं -अपनापन और प्रेम अच्छे, अच्छों को बदल देता है किन्तु किसी के बदलाव से पहले तुम्हें अपने आपको बदलना होगा ,पहल तो तुम्हें ही करनी होगी।    

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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