काव्या ,राघव अर्जुन और विजय ये चारों 'कालेश्वर गोदाम'में घुस चुके थे और चुपचाप वहां से सबूत इकट्ठा कर रहे थे ,तभी एक आदमी आकर चिल्लाता है - घुसपैठिये ! उसकी आवाज सुनकर उस गोदाम में उपस्थित जितने भी मंडली के लोग थे, वे सतर्क हो गए और गोदाम का दरवाज़ा जोर से खुला और करीब आठ -दस नकाबपोश लोग अंदर घुस आए ,उनके हाथों में चाकू, लाठियाँ और मशालें थीं।
मुखिया गरजकर बोला—“तुमने हमारी किताब छूने की हिम्मत भी कैसे की ? अब तुम बचकर नहीं जा पाओगे।”
वे आगे बढ़ रहे थे ,लड़ाई शुरू हो गई ,राघव ने बिना देरी किये तुरंत ही गोली चलाई, जिससे एक नकाबपोश गिर पड़ा।
अर्जुन ने किताब को कसकर पकड़ा और काव्या को अपने पीछे किया।विजय ने वहीं से एक लोहे की रॉड उठाई और एक आदमी को जोर से मारा। चारों तरफ़ चीख़ें और गोलियों की गूंज फैल गई लेकिन मंडली के लोग लगातार आगे बढ़ते जा रहे थे ,तभी अर्जुन बोला - गोदाम तो सुनसान पड़ा था ,हम तो सोच रहे थे गिनती के ही लोग होंगे किन्तु ये तो और लोग भी आते जा रहे हैं।
तभी उनमें से एक ने मशाल फेंकी, जिससे गोदाम में आग लगने लगी।
काव्या चीख़ी—“ये पूरा गोदाम जल जाएगा!”
अर्जुन ने चिल्लाकर कहा—“किताब ले चलो! यही हमारी सबसे बड़ी ताक़त साबित होगी !”
वे तीनों किताब लेकर,उसी पिछली खिड़की से बाहर भागे ,जिससे अंदर आये थे, आग तेज़ी से फैल रही थी, बक्से फट रहे थे और चीख़ों की आवाज़ आ रही थी। गली में पहुंचते ही अर्जुन ने देखा-' कि नकाबपोश अब भी उनका पीछा कर रहे हैं।
यदि तुमसे से एक भी सामने आया तो बचेगा नहीं ,राघव ने बंदूक उठाकर धमकाया, जिससे वे कुछ पल रुक गए।
विजय की भी सांस फूल रही थी,भागते हुए बोला —“हमने उनकी सबसे बड़ी चीज़ छीन ली है… अब वो हमें नहीं छोड़ेंगे।
ये बेवकूफ़ हैं ,हमारा पीछा कर रहे हैं ,उन्हें पहले तो अपने उस गोदाम को बचाना चाहिए जो उन्हीं की गलती से ख़ाक होने जा रहा है ,भागते हुए अर्जुन बोला।
वो तो तब भी स्वाहा हो ही जायेगा, विजय उन्हें रास्ता दिखाते हुए बोला।
सुबह होते-होते गोदाम राख में बदल चुका था।शहर के लोग जमा हो गए थे, लेकिन मंडली का कोई सदस्य दिखलाई नहीं दे रहा था।अर्जुन ने किताब खोली और पन्नों पर उँगली फिराई।“अब हमें पता है… अगली 'बलि' कौन है ?अगर हमने इस लड़की ''आर्या'' को बचा लिया, तो मंडली की योजना अधूरी रह जाएगी।”
काव्या ने धीमे स्वर में कहा—लेकिन हमें ये भी पता है… अब हम उनके सबसे बड़े दुश्मन बन चुके हैं।”
अर्जुन ने किताब को कसकर पकड़ा और बोला—“ये सिर्फ़ पहली जीत है,लेकिन मंडली अब हमें खत्म करने के लिए हर हद पार कर देगी और शायद… महेश्वर की आत्मा भी कहीं न कहीं हमारी ओर देख रही है।”
तभी किताब के पन्नों से अजीब सी गंध आने लगी —मानो उसमें सिर्फ़ शब्द ही नहीं, बल्कि आत्माएँ भी कैद थीं।
सूरज की पहली किरणें, कमरे की टूटी खिड़की से भीतर घुस आई थीं,काव्या ने आधी रात तक आँखें नहीं मूँदी थीं। उसकी उंगलियाँ अभी भी उस काली किताब के पन्नों को बार-बार पलट रही थीं—हर नाम किसी सर्द साँस की तरह उसे महसूस होता था।अर्जुन खिड़की पर खड़ा था, सिगरेट आधी जली हुई थी,पन्ने को पलटते हुए, किताब में सिर्फ़ एक हफ़्ते की तिथि है,” उसने धीरे से कहा।
“मतलब, मंडली सात दिनों बाद बलि चढ़ाएगी,गहन सोच के साथ अर्जुन ने जबाब दिया।
राघव ने जवाब दिया—“अगर आर्या का परिवार इस शहर में हैं, तो हमें उस बच्ची को जल्दी ढूँढना होगा।”
विजय ने अपनी जेब से एक पुराना नक्शा निकाला -“किताब में जो पते दिए हैं, उनमें से एक नाम के सामने ‘सीता कॉलोनी’ लिखा है, ये लड़की आर्या, शायद वहीं की रहने वाली होगी।”
काव्या ने सिर हिलाया।“तो चलो… हमें अब किसी कीमत पर देर नहीं करनी चाहिए। वे चारों आर्या के घर की ख़ोज में निकले ,आर्य का घर'' सीता कॉलोनी'' में था ,जो एक बहुत पुराना इलाक़ा था ,संकीर्ण गलियाँ, दीवारों पर फटे चिपके पोस्टर और छतों से झूलती कपड़ों की रस्सियाँ उन सबको पार करते हुए वे लोग एक नीले दरवाज़े वाले मकान के सामने आकर खड़े हो गए जिस पर बाहर नाम लिखा था: “मीना शर्मा”।
काव्या ने दरवाज़े पर दस्तक दी,अंदर से एक थकी हुई, पर नम्र आवाज़ आई—“कौन है?”
दरवाज़ा खुला,सामने ,लगभग एक पैत्तीस -चालीस साल की औरत खड़ी थी, आँखों में बेचैनी, चेहरे पर धूप के कारण उसकी आंखें मिचमिचा रहीं थीं,उन्हें देखकर पूछा -कहिये !आपको किससे काम है ?
अर्जुन ने नम्रता से कहा—“हम पुलिस से हैं… आपको और आपकी बेटी को लेकर कुछ ज़रूरी जानकारी चाहिए।”
औरत चौकन्नी हुई,चिंतित स्वर में पूछा - “मेरी बेटी आर्या? क्या हुआ उसे?”
काव्या ने पूछा “क्या आर्या घर पर है?”
“हाँ… वो अंदर पढ़ रही है।”
अर्जुन के कंधे पर एक ठंडी हवा सी लगी,उसे महसूस हुआ—जैसे किसी ने भीतर से परदे हिलाए हों,आर्या कमरे से बाहर आई—सिर्फ़ दस साल की बच्ची किन्तु उसकी आँखों में एक गहरी, असामान्य चमक थी,उसकी मुस्कान भोली थी, पर उसके पीछे कोई अनकही छाया छिपी थी।
“माँ ! ये लोग कौन हैं?”उसने पर्दे की आड़ में खड़े होकर पूछा।
अर्जुन ने मुस्कराकर कहा—“हम तुम्हारे दोस्त हैं, आर्या ! बस तुमसे कुछ सवाल पूछने हैं।”
काव्या ने पूछा,“आर्या ! क्या तुम्हें हाल ही में किसी अजनबी ने देखा है या कुछ दिया है?”
आर्या ने थोड़ा सोचा, फिर बोली—“हाँ… पिछले हफ़्ते मंदिर के पास एक बाबा ने मुझे लाल रंग का धागा बाँध दिया था, कहा था-' कि इससे मुझे बुराई से बचाव मिलेगा।”
विजय और अर्जुन ने एक-दूसरे की तरफ़ देखा।विजय बोला—“वही मंडली का संकेत है, वो धागा सुरक्षा नहीं, 'निशान' है।”
मीना डर गई, “निशान? मतलब?”
विजय ने गंभीरता से कहा,- उन्हें जिसे बलि के लिए ले जाना होता है,वे ऐसे बच्चे को चिन्हित करते हैं ,अब ये उनकी दृष्टि में आ चुकी है और ये धागा बांधकर वे इसके सम्पर्क में भी रहेंगे और इस पर निगरानी रहेगी। अब हमें आर्या को यहाँ से हटाना होगा।
राघव ने पास की एक पुरानी हवेली का ज़िक्र किया—“मेरे दोस्त की पुरानी कोठी खाली है, शहर से थोड़ी बाहर, वहाँ कुछ दिनों के लिए सुरक्षित रह सकते हैं।”
काव्या ने मीना और आर्या को भरोसा दिलाया,-' कि वे सिर्फ़ उनकी मदद करने के लिए आए हैं।आर्या मुस्कराई, पर उसकी आँखों में अब भी सवाल थे—“क्या मुझे कुछ होगा ? दीदी?”बड़े भोलेपन से उसने प्रश्न किया।
काव्या झुककर बोली—“जब तक हम हैं, तुम्हें कुछ नहीं होगा।
उसी शाम शहर के दूसरे कोने में, काले कमरे में चार नकाबपोश लोग खड़े थे,कमरे के बीचोंबीच एक लाल गोला बना था, और दीवार पर महेश्वर की तस्वीर टँगी थी।
मुखिया ने गहरी आवाज़ में कहा—“गोदाम का बहुत नुकसान हुआ है, और वो किताब भी हमारे दुश्मनों के हाथ लग गयी है।अब हमें जल्द ही बलि पूरी करनी होगी… वरना आत्मा भटक जाएगी।”
दूसरा आदमी बोला,-“आर्या अब हमारे निशाने पर है, जो धागा हमने बाँधा था , वह हमें उसकी लोकेशन बताएगा।”
मुखिया ने दीवार पर रक़्त से एक चिन्ह बनाया।“आज रात… उसे ढूँढो।”