Qabr ki chitthiyan [part 25]

काव्या ,की आत्मा से जुड़ा अर्जुन, विचार करता है -कि इन सब चिट्ठियों का लेखा -जोखा किसी डायरी में अवश्य होगा ,तभी उसे स्मरण होता है कि विजय ने मरने से पहले कोई संकेत दिया था और वो संकेत उसी महेश्वर की फैक्ट्री में मिलेगा जिसकी चाबी इंस्पेक्टर देशमुख के पास होगी। जब काव्या इंस्पेक्टर देशमुख को यह सब बताती है ,तो वो उसकी सहायता करने के लिए तैयार हो जाता है। फैक्ट्री के उस मलबे में एक अलमारी से एक रजिस्टर मिलता है और वहीं उन्हें एक टेप भी मिलती है ,अब आगे - 


विजय का टेप बजते ही तीनों का खून ठहर गया। विजय की उस थकी हुई आवाज़ में एक नोट था—

“अगर तुम यह टेप सुन रहे हो, तो मैं मर चुका हूँ। रजिस्टर को देखा, वे 100 नामों की सूची बना रहे हैं — यह सिर्फ बलि नहीं, यह कहानी का अंत है। जो भी ‘लेखक’ है, वह लिखता है और दुनिया बदलती है। हमने उसे रोकने की कोशिश की—पर मैंने एक और छुपी हुई फ़ाइल छोडी है: ‘लेखक’ का असली नाम किसी दस्तावेज़ के पीछे है — ''कोई सरकारी एन्कोडिंग, लिंक्ड नंबर 47। किसी भी हालत में रजिस्टर को सार्वजनिक करो — पर याद रखना — लेखक अब तुम्हारे इर्द-गिर्द है। उसने जैसा लिखा, वैसा होने दिया।”

टेप खत्म होते ही ,तहख़ाने में गहरा सन्नाटा छा गया। सिर्फ  धड़कनें सुनाई दे रहीं थीं ,तब काव्या बोली  — यह सिर्फ़ शापित एक समूह की कथा नहीं रही; यह किसी ने योजनाबद्ध रूप से साठ-सात सालों में इस योजना को आकार दिया है ,एक बहुत बड़ी योजना है ।

रजिस्टर हाथ में लेते ही, आवाज़ ऊपर से आई, जैसे वहां बहुत सारे लोग हों। त्रिनेत्र के चुने  हुए,  कुछ लोग फैक्टरी की ओर दौड़ रहे थे । देशमुख ने तुरंत अपने रेड़ियो से तेज स्वर में कहा—'' बाहरी सुरक्षा!मजबूत हो !” पर आवाज़ टूटी हुई थी।

अभी वह अपने रेडियो से संदेश भेज रहा था ,अचानक दरवाज़ा टूट गया और तीन नकाबपोश नीचे उतरे। उनके बीच एक चेहरा कुछ जाना -पहचाना सा था ,जिसे काव्या ने पहचान लिया —यह वही चौकीदार था जिसने हवेली के पास पहले उन्हें देखा था — वही जिसका अँधेरे में निकलना संदिग्ध था, पर सबसे बड़ा झटका तब लगा जब नकाबपोश की एक झलक में एक और चेहरा अदृश्यता से झलका — इंस्पेक्टर राघव का बैज, जो वीरान जगह से मिल गया — पर राघव तो मर चुका था, यह बैज कहाँ से आया ? रजिस्टर के पन्नों पर एक छोटा-सा नोट उभर आया— किसी ने उसे अभी छेड़ा था — और पन्ने काली स्याही में कुछ शब्द उभरते गये:

“लेखक ने हर सत्य का ताज़ा पन्ना खुद चुना — और उसने रघुवीर के नाम पर लिखा: ‘संकेत’!”

नकाबपोश हमला करते हैं; देशमुख उनका सामना कर रहा है; काव्या रजिस्टर और टेप थामकर पीछे हटती है; अर्जुन भीतर से चिल्ला रहा है— पर ऐसे समय में उसकी आवाज़ धीमी है। घबराहट के बीच रजिस्टर के आख़िरी खुले पेज पर एक नाम अचानक अपने आप उभर आता है — लाल धब्बे से जैसे किसी ने मसीह का चिन्ह किया हो — और वह नाम था:“काव्या सान्याल”

अपना नाम देखकर ,काव्या की दुनिया थम गई। उसी पल, टूटी दीवार पर से ,कहीं से स्याही का एक छोटा-सा दाग गिरा—और रजिस्टर के नीचे से एक नया कागज़ फिसला — उस पर स्याही की हल्की रेखाओं में तीन शब्द उभरे — जैसे कोई चाप कर रहा हो:“लेखक: नजदीक है।”

देशमुख ने उन नकाबपोशों का खूब सामना किया, तभी उसकी सहायता के लिए अन्य लोग भी आ गए, कुछ  नकाबपोश भाग निकले। देशमुख ने कुछ नकाबपोशों को पकड़ा, पर बाहर का जाल और भी बड़ा था — बाहर शहर में तंत्र के हाथ फैल रहे थे। फैक्टरी की चिलचिलाती रात में तीनों खड़े थे —  उनके हाथ में,रजिस्टर और बजता हुआ'' ऑडियो टेप'' आख़िरी चेतावनी दे चुका था, और हवा में वही पुराना लाल-सा चिन्ह चमक रहा था।

काव्या ने रजिस्टर की पहली पंक्ति फिर से पढ़ी — और अब उसको समझ में आया कि यह बात सिर्फ़ बलि की नहीं; यह कहानी-लेखन की प्रक्रिया थी: हर पत्र, हर नाम, हर बलि — एक-एक करके किसी बड़े लेखक की किताब का अध्याय बन रहा था, और जब पन्ना पूरा होगा तो "लेखक" वास्तविकता के लेखक बनेगा।

मतलब वो जो कुछ भी लिखता है ,वास्तविक बन जाता है ,आँखों में आँसू और गले मे अर्जुन की आवाज के साथ काव्या ने कहा—
“हमारे पास दो रास्ते हैं: रजिस्टर को उजागर कर देना—पर जनता को बताने का मतलब कुल अराजकता; या रजिस्टर  के पन्नों को एक-एक करके नष्ट करना।

 पर हर नष्ट पन्ने के साथ—लेखक का ध्यान हमारे ऊपर आता है और अब उसने तो मेरे नाम पर स्याही गिरा दी है।”

अर्जुन ने धीरे से कहा—“हम सिर्फ़ एक काम कर सकते हैं — लेखक को पहचानो ! रजिस्टर ने उसका संकेत दिया: ‘लेखक: नजदीक है।’ यह नजदीकी उसका सबसे बड़ा हथियार है। हम जिस भी इंसान को सबसे पास समझते हैं, उसके अंदर झाँक कर देखेंगे — और वहाँ जो मिले, वही अगला मोड़ तय करेगा।”

आर्या ने चुपके से रजिस्टर का एक पन्ना पलटा — और वहाँ, छलनी सी काली लकीर में, एक एक शब्द उभर आया — उसने चीख कर कहा—“यहाँ लिखा है: ‘किसी ने उसे बचाने की शपथ ली थी — पर लेखक ने उसका नाम लिखा।’”हवा फिर तेज़ हुई, दूर से कौवों की कतारें उठीं। हवाओं के बीच कहीं एक आवाज़ सूक्ष्म सी गूँजी — मानो किसी ने पन्ना पलटते हुए कहा हो:

“अगला पत्र… तुम्हारे नाम पर लिखा जाएगा।”

उस तहखाने में जो घटना हुई ,उस घटना के पश्चात तीनों — काव्या, आर्या और देशमुख —गाड़ी में बैठे और  उस शहर से बाहर निकल आए,अब देशमुख उनके साथ था ,सड़क के किनारे से जली हुई ,पत्तियों की गंध आ रही  थी, और पीछे पुलिस साइरनों का शोर मद्धम पड़ चुका था।

देशमुख ने गाड़ी रोकते हुए पूछा —“अब हम कहाँ जाएँगे? शहर में हर जगह कैमरा लगे हुए हैं ,हर कैमरा तुम्हें ढूँढ रहा है, काव्या ! तुम्हारे नाम पर अब नोटिस जारी हो चुका है। और... (वह झिझका) शायद तुम्हारा नाम उस रजिस्टर में आने का मतलब ये है कि कोई तुम्हें मार देना चाहता है।”

काव्या की आवाज़ शांत थी, पर भीतर विस्फोट:-वो गुस्से से बोली -“अगर मेरा नाम लिखा है, तो मैं, वह पन्ना खुद फाड़ूँगी।”

अर्जुन की आत्मा उसकी आँखों में उतर आई -“पन्ना फाड़ोगी, तो लेखक जागेगा। उसने लिखा है — जो भी उसके लेखन को नष्ट करेगा, वही अगला अध्याय बन जाएगा।”

देशमुख उसकी बातें सुनकर हक्का-बक्का रह गया। “तुम लोग जो बोलते हो,जो भी बातें  मुझे बता रहे हो ,मुझे अब आधा यकीन आने लगा है और आधा डर लगने लगा है।”

काव्या ने गहरी सांस ली—“अगर डर लगने लगा है, तो समझो कि हम सच के पास हैं।”


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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