Bachpan

घर में बैठे, इतने दिनों से ,
आज चलो, बच्चे बन जाते हैं। 
आज करेंगे , खूब मस्ती ,
अपना बचपन वापस ले आते हैं। 

बारिश में भीग ,
पानी में कागज़ की  नाव तैराते हैं। 
कुछ देर के लिए ही सही ,
अपनी ज़िम्मेदारियाँ  भूल जाते हैं। 
घर में जब तक 'लाइट 'न आये ,
आख़िरी अक्षर से अंताक्षरी गाते हैं। 
चलो ,आज बच्चे बन जाते हैं। 
ताशों की गड्डी  ले ,खेल -खेल में ,
बेमानी कर ,कुछ पत्ते छिपाते हैं। 
' 'कैरम '' में रानी के लिए लड़ जाते हैं। 
अपना बचपन वापस ले आते हैं। 
घर की छत पर ,पंखा लगा ,
 ज़मीन पर ,चटाई बिछा सो जाते हैं। 
पेड़ की डाली पर ,झूला डाल ,
ऊँची से ऊँची पेंग बढ़ाते हैं। 
चलो ,फिर से बच्चे बन जाते हैं। 
आसमान छूने की चाह में ,
ऊँची से ऊँची छत चढ़ जाते हैं। 
लुक्का -छुप्पी में ,देर तक छिप जाते हैं। 
मिलजुलकर ठंडी छत पर बैठ ,
दही संग ,आलू -परांठा खाते हैं। 
दूरदर्शन पर ,तेज़ आवाज़ में ,
 चित्रहार चलाते हैं।
झूमते -नाचते, अपने बच्चों को आज ,
अपना बचपन दिखलाते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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