घर में बैठे, इतने दिनों से ,
आज चलो, बच्चे बन जाते हैं।
आज करेंगे , खूब मस्ती ,
बारिश में भीग ,
पानी में कागज़ की नाव तैराते हैं।
कुछ देर के लिए ही सही ,
अपनी ज़िम्मेदारियाँ भूल जाते हैं।
घर में जब तक 'लाइट 'न आये ,
आख़िरी अक्षर से अंताक्षरी गाते हैं।
चलो ,आज बच्चे बन जाते हैं।
ताशों की गड्डी ले ,खेल -खेल में ,
बेमानी कर ,कुछ पत्ते छिपाते हैं।
' 'कैरम '' में रानी के लिए लड़ जाते हैं।
अपना बचपन वापस ले आते हैं।
घर की छत पर ,पंखा लगा ,
ज़मीन पर ,चटाई बिछा सो जाते हैं।
पेड़ की डाली पर ,झूला डाल ,
ऊँची से ऊँची पेंग बढ़ाते हैं।
चलो ,फिर से बच्चे बन जाते हैं।
आसमान छूने की चाह में ,
ऊँची से ऊँची छत चढ़ जाते हैं।
लुक्का -छुप्पी में ,देर तक छिप जाते हैं।
मिलजुलकर ठंडी छत पर बैठ ,
दही संग ,आलू -परांठा खाते हैं।
दूरदर्शन पर ,तेज़ आवाज़ में ,
चित्रहार चलाते हैं।
झूमते -नाचते, अपने बच्चों को आज ,
अपना बचपन दिखलाते हैं।
बहुत सुंदर 🌻
ReplyDeleteshukriya
Delete💖💖💖👌👌bachpan yad aa gaya
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