अर्जुन,काव्या और आर्या तीनों 'त्रिकुटी वन ''में जाते हैं ,जहाँ चौथा गोला पूर्ण हो रहा था ,तभी अर्जुन आगे बढ़ा,और उसने अपनी हथेली काटी, अपनी हथेली का वो रक़्त उस गोले पर गिराया,गोला अधूरा रह गया।
महेश्वर की चीख़ गूंजी -“तूने द्वार अधूरा कर दिया!”
अर्जुन ने गहरी सांस ली,“हाँ, क्योंकि मेरी आत्मा अब तेरे साथ नहीं है,कहकर वो ज़मीन पर गिर पड़ा,काव्या और आर्या दौड़कर उसके करीब आईं ,लेकिन तभी स्तंभ के ऊपर एक नई लकीर बनी —जिसने सबको रोक दिया।
उस पर लिखा था—“द्वार अधूरा नहीं रहा,क्योंकि अब रक्त दो आत्माओं का है।”
काव्या ने भय से आर्या की ओर देखा —उसकी आँखें अब जल रही थीं,जैसे उसके भीतर कोई नया अस्तित्व जाग गया हो ,अर्जुन की साँसें भारी थीं,वो काव्या से बोला … आर्या को… बचा लेना…”और वो बेहोश हो गया।
काव्या ने उसे थामा,आर्या निर्विकार खड़ी थी,उसने धीरे कहा -“अब वो मुझमें है, माँ।”
हवा थम गई,नदी शांत हो गई,लेकिन आसमान में एक लाल चमक स्थिर हो गई —जैसे किसी ने द्वार खोल दिया हो।और फिर,एक नई आवाज़ गूंजी —“चिट्ठी अब नहीं भेजी जाएगी…वो खुद बोलेगी।”
त्रिकुटी वन से लौटे हुए,उन्हें दो दिन हो चुके थे,अर्जुन अभी भी बेहोश था, पर जीवित था
काव्या उसके पास बैठी रही,उसका भी चेहरा सूखा हुआ, होंठ फटे हुए ,पर आर्या — अब पहले जैसी नहीं थी।वो चुप रहती, किसी को नहीं देखती।कभी-कभी उसकी आँखें लाल हो उठतीं,जैसे भीतर से कोई और उसे देख रहा हो।
काव्या ने कई बार पूछा —“बेटा ! क्या हुआ है तुझे?”
आर्या सिर्फ़ एक ही बात दोहराती,“वो अभी गया नहीं है , माँ…! बस उसने जगह बदल ली है।”धीरे -धीरे लोगों को एहसास होने लगा इस परिवार में कुछ तो गलत है, गाँव के लोगों ने अब उस परिवार से दूरी बना ली थी।रात को उनके घर से अजीब आवाज़ें सुनाई देने लगी थीं,कभी किसी के दरवाज़े पर खून की बूंदें,कभी हवा में कोई नाम पुकारता हुआ स्वर — ‘आर्या…’
काव्या ने सब झुठलाने की कोशिश की,पर डर अब उनके घर की दीवारों में समा गया था।एक रात, पड़ोसी लता ने दरवाज़ा खटखटाया,“काव्या बहन! तुम्हारी बेटी… वो पिछली रात कब्रिस्तान के पास दिखी थी।”वहां क्यों गयी थी ?
काव्या का दिल काँप उठा -“क्या?”लता बहन !ये आप क्या कह रही हैं ?उसने अविश्वास से पूछा।
लता ने कहा -“हाँ, आधी रात को,वो कब्रितान में अकेली खड़ी थी…हवा में कुछ बोल रही थी, जैसे कोई मंत्र।”
काव्या अंदर भागी,आर्या अपने कमरे में थी —पर ज़मीन पर गीली मिट्टी थी, और पैरों के निशान भी,अगली सुबह, अर्जुन की आँखें खुलीं ,वो कमजोर लग रहा था, पर उसने बोलने की कोशिश की,“काव्या… वो कहाँ है ?
क्या तुम आर्या को पूछ रहे हो ?”“हाँ… मुझे उसकी धड़कन महसूस नहीं हो रही।”
काव्या ने घबराकर कहा -“क्या मतलब?”
अर्जुन बोला -“महेश्वर का आत्मा अब उसके भीतर है, अब वो उसी में है,वो उसे धीरे-धीरे अपने में बदल रहा है,जब चौथा गोला पूरा हो जायेगा — वो आर्या नहीं रहेगी।”
काव्या ने आँसू पोंछे,“तो अब हमें उसे बचाना होगा।”
अर्जुन ने सिर हिलाया और सुझाव भी दिया -“एक ही रास्ता है — ‘मालिनी देवी’!वो एकमात्र तांत्रिक हैं जो आत्मा के भीतर से आत्मा को खींच सकती हैं।”
काव्या ने नाम सुना तो चौंकी।“मालिनी देवी…! वह तो, कभी महेश्वर की शिष्या थी?”
“हाँ,” अर्जुन ने कहा,“लेकिन उसने गुरु की राह नहीं, मुक्ति की राह चुनी थी,वो अब पहाड़ों के उस पार रहती हैं — ‘पाताल घाटी’ में।”
काव्या ने दृढ़ स्वर में कहा,“मुझे वहाँ जाना होगा।”
अर्जुन ने उसका हाथ थामा,“ध्यान रखना, वो अब पहले जैसी नहीं है, वो इंसान से ज़्यादा एक ऐसा छोर है —जहाँ जीवन और मृत्यु की रेखा धुंधली पड़ जाती है।”
काव्या ने, मालिनी की तलाश में, अब घर छोड़ा,आर्या को अर्जुन के पास छोड़ दिया,लेकिन जैसे ही काव्या घर से बाहर गई,आर्या की आँखें फिर से लाल हो गईं,वो धीरे-धीरे उठी,अब वो आईने के सामने खड़ी हुई।आईने में अब ,उसका चेहरा नहीं था —वहाँ महेश्वर का चेहरा था।
“अब वो जा रही है, आर्या,” उसने कहा -“उसे लगा, कि वो तुझे बचा लेगी…पर तेरा उद्धार मेरे भीतर ही है।”आर्या की आवाज़ बदल गई थी,गहरी, ठंडी —“तू कौन है?”
“मैं वही, जिसे तू हर जन्म में खोजती आई है।”आईना टूट गया और आर्या बेहोश होकर गिर पड़ी।
काव्या अकेली चली जा रही थी,पहाड़ी रास्ता बहुत कठिन था,हवा में राख जैसी गंध थी ,तीसरे दिन वो एक पुरानी झोपड़ी तक पहुँची।दरवाज़े पर लाल धागे बंधे थे,और भीतर से 'धूप' की गंध आ रही थी।
एक धीमी आवाज़ गूंजी,“आ ही गई तू।”
काव्या ने देखा —सामने ही बैठी थी, मालिनी देवी !सफेद बाल, आँखों में नीला प्रकाश,और माथे पर त्रिशूल का चिह्न।काव्या झुक गई,“माँ, मेरी बेटी को बचा लीजिए।”
मालिनी देवी ने उसे गौर से देखा।“तेरी बेटी नहीं… उससे तेरी किस्मत बंध चुकी है,जो गोला अधूरा रहा,वो अब उसी में पूरा होगा।”
काव्या ने काँपते हुए कहा,“तो क्या अब कोई उपाय नहीं है ?”
मालिनी देवी बोलीं -“उपाय है… लेकिन कीमत भारी है।”मालिनी देवी ने अपने पास रखा पात्र उठाया।उसमें से लाल रोशनी झिलमिला रही थी, जैसे कोई धड़कता हुआ, दिल।“अगर तू चाहती है कि आर्या बचे,तो तुझे ,अपनी आत्मा के उस हिस्से को त्यागना होगा,जिससे तेरा प्रेम जुड़ा है।”
काव्या ने पूछा,“मतलब?”
“अर्जुन…”
काव्या स्तब्ध रह गई।“नहीं… वो मेरा पति है।”
मालिनी देवी बोलीं -“तेरी बेटी की आत्मा बचाने के लिए तेरे पति की आत्मा को बांधना होगा क्योंकि अब महेश्वर का चौथा गोला उसी के खून से अधूरा है।”
काव्या रो दी ,बहुत सोचने के पश्चात उसने अपने आँसू पोंछे और अपना निर्णय सुनाया -“अगर यही रास्ता है, तो मैं तैयार हूँ।”
मालिनी देवी ने कहा-“सोच ले !यदि तूने उसे खो दिया, तो वो कभी लौटेगा नहीं।”
काव्या ने दृढ़ता से कहा -“माँ ! आर्या जिंदा रहे ,अर्जुन को तो मैं हर जन्म में ढूँढ ही लूँगी।”उधर घर में अर्जुन की हालत बिगड़ रही थी,वो महसूस कर रहा था कि कोई उसकी ऊर्जा खींच रहा है।
आर्या पास बैठी थी,पर उसकी आँखों में अब सिर्फ़ एक ठंडी चमक थी।
“भैया…” उसने धीरे से कहा।“तू ,मुझसे डरता है?”
अर्जुन ने कहा -मैं तुझसे नहीं, उस चीज़ से डरता हूँ ,जो तुझमें है।”
आर्या मुस्कराई “तो फिर डर मत !क्योंकि अब वो तू है।”
अर्जुन ने चौककर देखा —उसके सीने पर वही तीन गोले उभर आए थे।“नहीं… ये कैसे…”
आर्या उठी और बोली -“अब जो अधूरा रह गया था, वो पूरा होगा।”हवा में एक तीखी गंध फैली,और कमरे का तापमान अचानक गिर गया।
उधर मालिनी देवी ने एक दीपक जलाया,और काव्या से कहा,“जब मैं जप शुरू करूँ,तू अपने पति की छवि को अपने मन से मिटाना।अगर तेरी आँखों में उसका चेहरा उभरा,तो बंधन टूट जाएगा।”
काव्या ने आँखें बंद कीं,मालिनी देवी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया —“ॐ कालात्मने नमः…आत्मानं मुक्तये नमः…”
दीपक की लौ हिली,और दूर अर्जुन की साँसें रुकने लगीं।आर्या चिल्लाई -“भैया!”
अर्जुन बोला,“भाग जा आर्या… वो तुझमें है, उसे अपने भीतर से निकाल दे…”
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता ,लेकिन तब देर हो चुकी थी, अर्जुन के सीने से एक हल्की लाल रेखा उठी,और हवा में विलीन हो गई —सीधी काव्या की ओर,मालिनी देवी की आँखें खुलीं।