धर्मशाला की दीवारें अब गीली नहीं थीं,बल्कि उन पर लाल निशानों की एक नई परत थी —तीन गोल चिह्न, बीच में एक लाल बिंदु।
काव्या ने रातभर उन्हें मिटाने की कोशिश की,लेकिन जैसे ही वो उन्हें पोंछती, निशान फिर से उभर आते।
आर्या ने धीरे कहा,“माँ, वो अब हमें देख रहा है।”
काव्या ने आर्या को बाँहों में भर लिया,“डरो मत ! अब हम डर से नहीं, सच्चाई से लड़ेंगे।”
अर्जुन अब तक शांत था,उसे धीरे -धीरे नींद आने लगी , नींद आते ही, नींद में उसके होंठ हिल रहे थे —“तीन गोले… एक द्वार…”बार-बार वही शब्द ,दोहरा रहा था। सुबह अर्जुन की आँखें खुलीं,जब वो बोला, तो उसकी आवाज़ भारी थी,“मैंने कुछ देखा… पर यकीन नहीं कि सपना था या हकीकत।”
काव्या उसके पास आई और उत्सुकतावश पूछा -“क्या देखा?”
“एक पुराना किला था , जहाँ तीन दिशाओं से नदियाँ मिल रही थीं ,बीच में एक पत्थर का स्तंभ था — उस पर वही गोले बने हुए थे।”
काव्या ने धीरे पूछा -“क्या उस पर कुछ लिखा हुआ था?”
“हाँ,” अर्जुन ने आँखें बंद करते हुए कहा,‘जहाँ तीन मिलें, वहाँ चारवाँ जन्मे।’”
काव्या ने चौंककर कहा -“मतलब… चौथा गोला?”
अर्जुन बोला -“शायद महेश्वर अब चौथा द्वार खोलना चाहता है।”
काव्या फिर से उसी पुजारी के पास गई।वह अब और कमजोर लग रहा था, जैसे हर रात उससे कुछ छिन रहा हो।
उसने अर्जुन के सपने की बात सुनकर कहा -“तीन गोले शिवपुर की प्राचीन मंडली का प्रतीक हैं,हर गोला एक तांत्रिक तत्व को दर्शाता है —‘भूमि’, ‘जल’, और ‘अग्नि’चौथा गोला जब खुलता है, तो वह ‘आत्मा’ बनता है।”
काव्या ने पूछा -“और अगर वो खुल गया तो?”
पुजारी बोला -“तो महेश्वर सिर्फ़ आत्मा नहीं रहेगा, बल्कि सजीव रूप ले लेगा —वो रूप ,जो सब कुछ निगल सकता है।”
उसने एक प्राचीन पुस्तक निकाली,उसमें लिखा था —“चौथा गोला केवल उसी के खून से बन सकता हैजिसने तीनों चिन्हों को देखा हो।”
काव्या का चेहरा सफ़ेद पड़ गया,“मतलब अर्जुन का खून?”
पुजारी ने सिर झुका लिया —“हाँ… अब वही इस चौथे गोले की कुंजी है।
रात ढल चुकी थी ,अर्जुन और आर्या सो गए थे ,
काव्या को नींद नहीं आ रही थी ,वो अकेली बैठी थी, तब उसे दीवार पर एक हल्की सी परछाई हिलती दिखलाई दी ।पहले तो उसे लगा,यह रोशनी से भ्रम हुआ है,फिर उसने देखा — वो छाया उसकी अपनी नहीं थी।वो धीरे-धीरे फर्श पर उतरी,और उसी से मिलती-जुलती आकृति में बदल गई।काव्या ने डरकर पीछे कदम खींच लिया।
छाया ने उसकी आवाज़ में कहा -“तू सोचती है कि तू उसे बचा पाएगी? वो अब मेरा है।”
काव्या काँपते हुए स्वर में बोली -“कौन है तू?”
“मैं… वो जो तेरा प्रतिरूप है।जिसमें महेश्वर ने अपना अंश छोड़ दिया है।”
अचानक दीया बुझ गया,कमरा अंधेरे में डूब गया,और छाया सीधे काव्या की ओर बढ़ी और काव्या बेहोश हो गई।सुबह जब काव्या उठी उसका शरीर ठंडा था,पर वो ज़िंदा थी ,उसके माथे पर वही तीन गोले बने हुए थे।
आर्या ने देखा और घबरा गई,वो दौड़कर अर्जुन के पास गई,“भैया! माँ पर कुछ लिखा है!”अब आर्या ,काव्या को माँ कहने लगी थी।
अर्जुन ने काव्या के माथे पर हाथ लगाया —चिह्न धड़क रहे थे,वो बोला -“अब वो तीसरे चरण में पहुँच गई है… आत्मा अब उसके आसपास मंडरा रही है।”
आर्या ने घबराकर कहा -“मुझे वो देखता है, जब मैं आँखें बंद करती हूँ।”
अर्जुन ने पूछा -“कौन?”
“महेश्वर।”
आर्या ने अपने हाथ जोड़े, और अनजाने में वही पुराना मंत्र बोला —“ॐ त्रिनेत्राय नमः…”
अचानक कमरे में हवा का भँवर बना,दीवारों पर बने चिह्न खुद मिट गए।
काव्या ने धीरे से साँस ली —“आर्या… वो मंत्र कहाँ से सीखा?”
आर्या बोली,“वो मुझे मेरे सपनों में सिखाता है।”
अर्जुन ने उसकी ओर देखा,“मतलब अब वो सिर्फ़ मुझसे नहीं, आर्या से भी जुड़ा है।”
काव्या को याद आया —वो नक्शा जो पिछली चिट्ठी में था।उस पर तीन गोले बने थे और बीच में लाल बिंदु !वो उसे फैलाकर देखने लगी।
अर्जुन ने ध्यान से देखा —गोले केवल प्रतीक नहीं थे,वो एक भूगोलिक नक्शा थे।
“देखो ये मोड़ नदी का है, ये जंगल की दिशा, और ये पहाड़ी का चिह्न…”
काव्या ने कहा -“मतलब वो जगह असली है?”
“हाँ,” अर्जुन बोला -“और वही चौथा गोला बनने की जगह है।”
आर्या ने धीरे से कहा -“वहीं वो लौटेगा।”
रात्रि में जब सब सो रहे थे ,तब रात्रि के तीसरे पहर,अर्जुन को किसी ने पुकारा —“अर्जुन…”
आवाज़ धीमी थी, पर कान के भीतर सीधी गूंजी ,अर्जुन उठा और बाहर गया,आँगन में हवा नहीं थी, लेकिन कोई वहाँ खड़ा था —धुंध में लिपटा, पर चेहरा साफ़… महेश्वर।
उसकी आँखें अब भी लाल थीं, लेकिन उनमें मुस्कान नहीं, ठंडी स्थिरता थी।“तू मुझे रोकना चाहता है?” उसने पूछा।
अर्जुन ने कहा -“जब तक मैं साँस ले रहा हूँ, तू अधूरा रहेगा।”
महेश्वर ने पास आकर कहा -“तो सुन, चौथा गोला तेरे खून से बनेगा,लेकिन उसका केंद्र आर्या है।अगर तू खुद को मुझसे नहीं जोड़ेगा,तो वो जल जाएगी।”
अर्जुन का चेहरा सख्त हो गया।“मैं उसे नहीं मरने दूँगा।”
महेश्वर मुस्कराया,“यही तेरी भूल है, अर्जुन !हर बचाने वाला एक न एक दिन बलि बनता है।”फिर वो धुंध में विलीन हो गया। सुबह होते ही अर्जुन ने फैसला किया —“अब भागने का नहीं, सामना करने का वक्त है।”
काव्या बोली -“लेकिन कैसे? हम उसकी जगह नहीं जानते।”
अर्जुन ने नक्शा खोला -“ये जगह यहाँ से सिर्फ़ 12 मील दूर है —‘त्रिकुटी वन’ वहीं तीन नदियाँ मिलती हैं।”
आर्या ने धीमे स्वर में कहा -“मुझे वहाँ जाना है,वो मुझे बुला रहा है।”
काव्या ने रोकर कहा -“नहीं, आर्या! वहाँ मौत है।”
अर्जुन ने दृढ़ स्वर में कहा -“नहीं काव्या, शायद वही मुक्ति का मार्ग है।”
संध्या ढलने से पहले तीनों 'त्रिकुटी वन ''के लिए निकल पड़े।आसमान काला था, हवा में धूल थी ,रास्ता सुनसान, पेड़ सूखे, जैसे सालों से किसी ने छुआ न हो।घंटों चलने के पश्चात वो एक पहाड़ी किनारे पहुँचे —जहाँ नीचे तीन धाराएँ मिलती थीं,और बीच में एक विशाल पत्थर का स्तंभ खड़ा था।
काव्या ने काँपते हुए कहा,-“यही है वो जगह।”
अर्जुन ने देखा —स्तंभ पर वही तीन गोले बने थे,पर अब उनमें चौथे गोले की जगह खाली थी।
अचानक जमीन से हल्की हलचल हुई,आर्या ने फुसफुसाकर कहा -“वो आ गया…”आसमान से लाल बिजली गिरी।नदी का पानी उबलने लगा,अर्जुन ने काव्या और आर्या को पीछे खींचा।पत्थर का स्तंभ धीरे-धीरे चमकने लगा।गोले एक-एक करके लाल हुए — भूमि, जल, अग्नि —और बीच का खाली गोला धीरे-धीरे बनने लगा,जैसे किसी अदृश्य हाथ से खींचा जा रहा हो।
अर्जुन ने चिल्लाकर कहा,-“काव्या! अगर ये पूरा हुआ, तो सब खत्म!”