आओ !आज थोड़ा सा जी लेते हैं।
''करवा चौथ'' का बहाना ही सही,
आज अपने को आईने में निहार लेते हैं।
आओ !आज थोड़ा सा जी लेते हैं।
आईने में देख ,अपने आपको,
वो पुरानी, अपनी पहचान ढूंढते हैं।
इतने दिनों से कहाँ थीं ?हाल पूछते हैं।
ज़िंदगी से कुछ पल चुरा स्व के लिए जीते हैं।
आओ ! आज थोड़ा सा जी लेते हैं।
महीनों हो गए, अपने आप से मिले।
कुछ भूले -बिसरे पलों को जी लेते हैं।
आईने में निहार,अपने आपसे मिल लेते हैं।
आओ !आज थोड़ा सा खुलकर जी लेते हैं।
मेहँदी के बूंटों में खो ,पी का नाम लिख,
दुल्हन सा रूप ले ,थोड़ा सा संवर लेते हैं।
पायल की खनक संग, धानी चुनर ओढ़ लेते हैं।
आओ !थोड़ा सा जी लेते हैं।
गज़रे महक़ से सजन को रिझा लेते हैं।
कार्यों से मुक्ति पा ,आज अपनी सुध लेते हैं।
इस प्रीत की डोर को और दृढ़ करते हैं।
आओ ! इन रस्मों में जी लेते हैं।
एहसास हो ,उनको,ये जीवन ! उनके लिए ,
मूल्यवान हो, तुम !इस जीवन के लिए ,
नवीन वस्त्रों के रंगों में नूतन एहसास जगाते हैं।
गठबंधन मजबूत हो , ऐसी रीत निभाते हैं।
आओ ! इस बंधन में ताज़गी भरते हैं।
बोझिल होती ,थकती ज़िंदगी में
रिवाजों की आड़ में ,प्रीत के पराग भरते हैं।
रंगों भरी , खुशनुमा यादगार भरते हैं।
आओ !थोड़ा सा जी लेते हैं।