Jee lete hain

आओ !आज थोड़ा सा जी लेते हैं। 

''करवा चौथ'' का बहाना ही सही,

आज अपने को आईने में निहार लेते हैं। 

आओ !आज थोड़ा सा जी लेते हैं। 


आईने में देख ,अपने आपको,

वो पुरानी, अपनी पहचान ढूंढते हैं। 

इतने दिनों से कहाँ थीं ?हाल पूछते हैं।

ज़िंदगी से कुछ पल चुरा स्व के लिए जीते हैं। 

आओ ! आज थोड़ा सा जी लेते हैं।

महीनों हो गए, अपने आप से मिले। 

कुछ भूले -बिसरे पलों को जी लेते हैं।   

आईने में निहार,अपने आपसे मिल लेते हैं।

आओ !आज थोड़ा सा खुलकर जी लेते हैं।

मेहँदी के बूंटों में खो ,पी का नाम लिख,

दुल्हन सा रूप ले ,थोड़ा सा संवर लेते हैं। 

पायल की खनक संग, धानी चुनर ओढ़ लेते हैं।   

आओ !थोड़ा सा जी लेते हैं।  

गज़रे महक़ से सजन को रिझा लेते हैं। 

कार्यों से मुक्ति पा ,आज अपनी सुध लेते हैं। 

इस प्रीत की डोर को और दृढ़ करते हैं।  

आओ ! इन रस्मों में जी लेते हैं। 

 एहसास हो ,उनको,ये जीवन ! उनके लिए ,

 मूल्यवान हो, तुम !इस जीवन के लिए ,

नवीन वस्त्रों के रंगों में नूतन एहसास जगाते हैं। 

गठबंधन मजबूत हो , ऐसी रीत निभाते हैं।

आओ ! इस बंधन में ताज़गी भरते हैं। 

 बोझिल होती ,थकती ज़िंदगी में  

 रिवाजों की आड़ में ,प्रीत के पराग भरते हैं। 

 रंगों भरी , खुशनुमा यादगार भरते हैं। 

 आओ !थोड़ा सा जी लेते हैं।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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