रंजन ,शिल्पा को अपनी गाड़ी में,उसके कॉलिज छोड़ने के लिए आग्रह करता है किन्तु शिल्पा सोचती है -मुझे इसके साथ, इस तरह इसकी गाड़ी में बैठकर जाना चाहिए या नहीं, फिर सोचा -क्यों यहां खड़े होकर तमाशा बनना ?इसलिए वो तुरंत ही गाड़ी में बैठ जाती है ,किन्तु रंजन ये बात महसूस कर लेता है और शिल्पा से पूछता है -आपको मुझ पर विश्वास नहीं है।
देखिये !आप कुछ भी गलत मत सोचिये !ऐसा कुछ नहीं है, किंतु अभी तुम मेरे लिए अजनबी हो, मैं तुम्हें ठीक से नहीं जानती, मैंने पहले भी, किसी पर विश्वास करके उस' ऑडिटोरियम' में गई थी, वहां धोखा खा गई। अब आगे बढ़ने से पहले तो सोचना ही होगा कि जिसके साथ जा रही हूँ ,उस पर विश्वास किया जा सकता है या नहीं।
तुम अपनी जगह सही हो किन्तु तुम, मुझ पर विश्वास कर सकती हो। हर इंसान एक जैसा नहीं होता।
यह आप कह रहे हैं , हर इंसान अपने को ईमानदार और विश्वास योग्य ही समझता है किंतु दूसरे का विश्वास कितना जीतता है ,उसके प्रति कितना ईमानदार रहता है ?यह तो उसके आने वाले समय और व्यवहार से ही पता चल पाता है वरना हर आदमी अपने को अच्छा ही समझता और कहता है।
आप अपनी जगह सही है, किंतु हमें किसी न किसी पर तो विश्वास करना ही होगा। हो सकता है, एक बार धोखा मिल जाए तो यह जरूरी नहीं कि दूसरी बार भी धोखा ही मिले। हमें अपनी सकारात्मक सोच को लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
पहली बार भी इसी सोच के साथ आगे बढ़ी थी ,अब दूसरी बार हो या तीसरी बार कदम आगे बढ़ाने से पहले मन सचेत करता ही है ,कई बार हम उसकी परवाह नहीं करते और धोखा खा जाते हैं।
आप सही कह रही हैं किन्तु हम कब तक अपने जीवन के , उस धोखे को लिए, जीते रहेंगे ? वैसे उस समय आपने किस पर विश्वास किया था।रंजन जानना चाहता था कि शिल्पा का कोई 'लड़का दोस्त ''तो नहीं था।
किन्तु शिल्पा भी, उन पलों को भुला देना चाहती थी ,जिससे उसे, कुमार के फ़रेब स्मरण हों। तब वो बोली -उस पर्चे वाले पर, ऐसा भी कह सकते हैं, एक गलतफहमी हो गई थी , जो उसी समय दूर हो गई थी , मेरा कॉलेज आ गया, अब मुझे यही उतरना होगा।
ठीक है ,मैं गाड़ी रोकता हूँ ,हमारे जीवन में हमें बहुत से लोग मिलते हैं सभी बुरे भी नहीं होते और सभी अच्छे भी नहीं हो सकते। हम पढ़े -लिखे हैं ,कम से कम हम, यह जानकारी तो जुटा ही सकते हैं कि वो कितनी सही है ,तभी उसे स्मरण हुआ ,उसने भी तो शिल्पा से मना किया था ,यहां जाना उचित नहीं ,तब बोला -आपने तो मेरी बात भी नहीं मानी ,कहते हुए उसने गाड़ी को घुमाकर रोक दिया। शिल्पा गाड़ी से उतरकर आगे बढ़ी ,तब रंजन ने पूछा - आप कॉलेज से वापस कब लौटेंगीं ?
नहीं, मैं अपने आप चली जाऊंगी।
ठीक है, किंतु अब जाते समय, मैं, स्वयं तुम्हें लेने आया करूंगा।
दो-तीन मुलाकातों के पश्चात,अब रंजन उनके घर पर बिना किसी झिझक के आने लगा। एक दिन शिल्पा,अपने घर के बगीचे में, बड़ी तल्लीनता से पेंटिंग बना रही थी, उस दिन अचानक ही रंजन उनके घर पर पहुंच गया, और उसने कल्याणी जी से पूछा -शिल्पा कहां है ?
बगीचे में है, पेंटिंग बना रही है ,किसी प्रतियोगिता के लिए तैयारी कर रही है।
रंजन थोड़ा हिचकिचाया और उसने कल्याणी जी से पूछा -आंटी जी ! क्या मैं बगीचे में जा सकता हूं ?
हां हां क्यों नहीं, कल्याणी जी को, रंजन अच्छा लगने लगा था और वह चाहती थीं कि रंजन और शिल्पा एक दूसरे को समझें और इस रिश्ते को आगे बढ़ाएं। उस समय शिल्पा अपनी चित्रकार में व्यस्त थी,उसे मालूम नहीं था ,घर में कौन आया है , तभी रंजन धीरे से उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। शिल्पा बड़े ध्यान से, उस चित्र को बना रही थी , शिल्पा पता ही नहीं चला कि कब रंजन उसके पीछे आकर खड़ा हो गया है ,उसने देखा ,शिल्पा ने जुडा बांधा हुआ है ,उसके बालों की कुछ लटें उसके चेहरे पर आ रहीं थीं और वो धीरे -धीरे गुनगुना रही थी। शिल्पा की यह छवि रंजन को बहुत अच्छी लगी।उस पर उसे प्यार आया।
तभी पीछे से रंजन ने पूछा -क्या तुम्हें चित्रकारी इतनी पसंद है, कि तुम्हें ,मेरे आने तक का भी एहसास नहीं हुआ, तुम इसमें इतनी व्यस्त हो गईं।
ओह !तुम आ गए तुमने, मुझे बताया क्यों नहीं ?
यदि बता देता तो तुम्हारे इस शौक को किस तरह देख पाता ,अभी तक तो सुना था किन्तु कभी तुम्हें पेंटिंग बनाते नहीं देखा। शिल्पा ने अपने रंग और ब्रश मेज पर रखे और बोली -तुम सही कह रहे हो ,मुझे पेंटिंग करना इतना पसंद है ,कभी -कभी तो मैं अपने आपको भी भूल जाती हूँ। मन को एक सुकून मिलता है अब वह रंजन से खुलने लगी थी और उस पर विश्वास भी करने लगी थी । अब वह अपनी पेंटिंग्स के विषय में भी उससे चर्चा करती।
रंजन तो पहले से ही जानता था कि यह बहुत अच्छी पेंटिंग करती है,तब उसने शिल्पा के अधूरे चित्र को देखा और उसका भला बनने के लिए बोला -बहुत सुंदर चित्र बना रही हो, मुझे भी अपना शिष्य बना लो !
शिल्पा मुस्कुराई और बोली -बना सकती हूँ ,पहले पता तो चले जो, मेरा शागिर्द बनना चाहता है ,उसमें कुछ काबिलियत है भी या नहीं।
ठीक है ,पूछो ! तब तक कल्याणी जी ने रंजन के लिए एक कुर्सी और जूस भिजवा दिया था ,तब उस कुर्सी पर बैठकर सोचते हुए बोला - ये तुम बहुत सारे नीले हाथी बनाना चाहती हो और ये जो पीला रंग है ,उसके फूल खिलाने वाली हो ,और ये जो मटमैला रंग है ,इसके घोड़े बनाओगी।
हँसते हुए शिल्पा ने पूछा -तुम इस चित्र में क्या देख रहे हो ? मैं, कैसा चित्र बनाऊंगी ?
एक सपनों का शहर !
जिसमें नीले हाथी होंगे ,पीले फूल खिलेंगे और मटमैले रंग के घोड़े कहते हुए शिल्पा हंसने लगी ,वाह !क्या कल्पना की है ?
कल्पना ही तो है ,कुछ भी हो सकती है ,तभी वो उठा उसके करीब आकर बोला -इसमें एक सुंदर चित्र उभरकर आ सकता है ,जिसमें एक सुंदर आशियाना है ,उसमें दो प्यार करने वाले रहते हैं ,जो एक -दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। कहते हुए शिल्पा के गालों पर आई लट को उठाकर उसके कानों के पीछे समेट दिया। रंजन के हाथों से स्पर्श से शिल्पा का चेहरा गर्म होकर एकदम लाल पड़ गया। उसकी नजरें स्वतः ही झुक गयीं। न... न.. तुम्हें नजरें झुकाने की आवश्यकता नहीं है ,बल्कि आगे बढ़ने की आवश्यकता है। इस जहाँ को कुछ कर दिखाने की आवश्यकता है। उसने इस बात को और भी बढ़ावा दिया ताकि शिल्पा की पेंटिंग्स शहर में ही नहीं, शहर से बाहर पूरे देश में भी जाएं और विदेशों में भी उनकी चर्चा हो, इसके लिए उसने अपना भरपूर सहयोग दिया ।