चिट्ठी पढ़ने के पश्चात, अर्जुन का मन बेचैन हो गया,अब अर्जुन के लिए रात में सोना नामुमकिन हो गया,काव्या और राघव भी देर तक जागते रहे,तब राघव झुंझलाते हुए बोला -अपनी नींद तो ख़राब ही की किन्तु हमारी भी नींद ख़राब कर दी ,कम से कम सुबह तक का इंतजार तो कर लेता,हमें बताने की क्या जरूरत थी ?
सोचा तो यही था -तुम दोनों को ये बात सुबह बताऊंगा किन्तु मुझे बेचैनी सी होने लगी, नींद ही नहीं आ रही थी ,तब सोचा ,तुम दोनों ही क्यों सुकून की नींद लो ?कहते हुए अर्जुन मुस्कुराया। इतनी बेचैनी में उसने ज़बरन ही मुस्कुराने का प्रयास किया किन्तु विफ़ल रहा। उस समय कमरे में सिर्फ़ दीये की मद्धम रोशनी जल रही थी और हवा में उस पुराने कागज़ की अजीब सी गंध फैली हुई थी।
काव्या ने धीरे से कहा—“अर्जुन, ये निशान… तीन घेरे और बीच में लाल बिंदु… क्या ये निशान ! तुमने पहले कभी देखे हैं ?”
अर्जुन ने कुछ पल सोचा, फिर सिर हिलाया -“नहीं… लेकिन ये किसी साधारण इंसान का बनाया हुआ नहीं लगता,ऐसा लगता है ,जैसे -''ये किसी गुप्त संगठन का चिन्ह है।”इस चिन्ह को लगाने के पीछे उनका अवश्य ही कोई तो उद्देश्य होगा,ये भी हो सकता है ,उस संगठन के लोग, इस चिह्न के माध्यम से हमें चेतावनी देना चाहते हो।
राघव ने चिढ़कर कहा—“मतलब अब हम आत्माओं से निकलकर, किसी 'गुप्त गिरोह' से लड़ने वाले हैं?जिसका ये चिह्न है। ”
अर्जुन ने ठंडी और गहरी साँस छोड़ी।“शायद दोनों ही एक-दूसरे से जुड़े हैं,अगली सुबह अर्जुन सीधे अपने शहर की लाइब्रेरी गया,शहर की लाइब्रेरी पुरानी थी, वहाँ पुराने अख़बार और रिकॉर्ड धूल से ढके बक्सों में रखे थे,उसने चिट्ठी का निशान कागज़ पर बनाकर किताबें और फाइलें खंगालना शुरू किया,करीब दो -तीन घंटे बाद उसे एक अख़बार की कतरन मिली।
उसमें हेडलाइन थी—“गुप्त संगठन ‘त्रिनेत्र मंडली’ पर शक, यह संगठन रहस्यमयी मौतों से जुड़ा लगता है ।”
अर्जुन की आँखें फैल गईं,कतरन पढ़ते हुए पता चला कि यह संगठन करीब तीस साल पहले बना था।इसके सदस्य अपने गले में वही निशान लटकाते थे—तीन घेरे और बीच में लाल बिंदु,माना जाता था कि वे लोग आत्माओं की साधना करते थे और “अमर शक्ति” पाने की कोशिश में थे।
अर्जुन ने तुरंत काव्या और राघव को बुलाकर वो कतरन दिखाई और बोला - अब हमें इस ''त्रिनेत्र मंडल ''का रहस्य जानना होगा।\
काव्या घबराकर बोली—“इसका मतलब वो महेश्वर सिर्फ़ उस हवेली का मालिक ही नहीं था… वो इस संगठन का हिस्सा भी था।”
राघव ने दाँत भींचे और बोला इसका मतलब है, कि उसके पीछे और लोग भी हैं,उस संगठन में एक -दो लोग तो नहीं होंगे , शायद पूरी मंडली अब भी ज़िंदा है।”
अर्जुन ने दृढ़ स्वर में कहा—“और वही लोग अब हमें निशाना बना रहे हैं।”शाम तक अर्जुन ने और खोजबीन की -उसे पता चला कि शहर के पुराने हिस्से में, चौक के पास, एक परित्यक्त कोठी है—कहा जाता है, कि वहाँ ‘त्रिनेत्र मंडली’ की गुप्त बैठकें होती थीं।अर्जुन ने नज़र उठाई।“आज रात हम वहाँ जाएँगे।”
काव्या ने डरते हुए कहा—“लेकिन अगर वहाँ सच में उनके लोग मिल गए तो.... क्या होगा ?”
राघव ने अपनी बंदूक पर हाथ रखा और दृढ़ निश्चय के साथ बोला -“तो सामना करेंगे।”
क्या तुम भूल गए हो ?ये बंदूक'' महेश्वर'' का भी कुछ नहीं बिगाड़ सकी थी,काव्या ने चेताया।
अपने बचाव के लिए कुछ तो करना ही होगा ,लगभग रात्रि के ग्यारह बजे वे तीनों शहर के पुराने हिस्से में उस कोठी के पास पहुँचे।चाँद आधा था और आसमान पर बादल तैर रहे थे।कोठी की दीवारें टूटी-फूटी थीं,इसीलिए उन तीनों को कोठी के अंदर प्रवेश करने में कोई परेशानी नहीं हुई ,उन्होंने आस -पास नजर दौड़ाई, अंदर हल्की लाल रोशनी झिलमिला रही थी।
वे धीरे-धीरे अंदर घुसे ,हॉल में अजीब सी गंध थी—अगरबत्ती और खून की मिली-जुली गंध वहां फैली हुई थी ,दीवारों पर वही निशान बने थे—तीन घेरे और बीच में लाल बिंदु।
काव्या काँप उठी और धीमे स्वर में अर्जुन से पूछा -“यही है… त्रिनेत्र मंडली का ठिकाना।
वे आगे बढ़ते जा रहे थे ,तब उन्हें एक ”गुप्त गुफा दिखलाई दी, जिसके भीतर से मंत्रोच्चार की आवाज़ें आ रहीं थीं।
तीनों ने झाँककर देखा,करीब आठ -दस लोग काले कपड़ों में, गोल घेरा बनाकर बैठे हुए थे ,उनके मध्य लाल कपड़े पर एक बड़ा सा काला डिब्बा रखा हुआ था।
एक आदमी सबसे आगे बैठा था—उसकी दाढ़ी लंबी थी, आँखें जल रही थीं ,वह ऊँचे स्वर में, कह रहा था—
“महेश्वर गिर गया… लेकिन अब उसका मिशन अधूरा नहीं रहेगा,हम उसे फिर से बुलाएँगे,हम उसकी आत्मा को वापस बुला उसे जिन्दा करेंगे और उसके लिए हमें चाहिए… बलि।”
उस व्यक्ति की आवाज अर्जुन, काव्या और राघव भी सुन रहे थे ,ये सब सुनकर उन तीनों के रोंगटे खड़े हो गए।“बलि?” काव्या ने हकलाते हुए फुसफुसाई ।
राघव ने दाँत भींचे और बोला -“ये लोग अब भी पुराने रीति-रिवाज निभा रहे हैं।”
अर्जुन की नज़र उस डिब्बे पर टिक गई।“यही वो डिब्बा है, जो मलबे से मिला होगा ,शायद इसमें ही महेश्वर की शक्ति का हिस्सा कैद है।”किन्तु ये डिब्बा तो पुलिस के हाथ लगा था ,इस लोगों के पास कैसे आया ?अभी अर्जुन यही सब सोच रहा था किन्तु तभी किसी ने पीछे से अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा, वह चौंककर पलटा—तीन नकाबपोश खड़े थे।
“घुसपैठिए!” उनमें से एक चिल्लाया।
हॉल के सारे लोग उनकी ओर मुड़े।,मुखिया गरजकर बोला—“पकड़ो इन्हें! ये वही लोग हैं जिन्होंने ''महेश्वर'' को हराया था!”
क्षण भर में दर्जनों हाथ उनकी तरफ बढ़े अर्जुन ने काव्या को पीछे धकेला और राघव ने बंदूक निकाल ली।
गोली की आवाज़ गूँजी, लेकिन भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी ,उनमें से कोई भी डरकर पीछे नहीं हटा बल्कि उन तीनों को पकड़ने का प्रयास किया किन्तु तीनों ने ही किसी तरह अपने को उनसे आजाद किया और दौड़ते हुए ,वहां से निकलने का रास्ता खोजने लगे ,तभी दौड़ते हुए काव्या को एक खिड़की दिखलाई दी ,तब काव्या ने अर्जुन और राघव को पुकारा और उस खिड़की की ओर इशारा किया ,वे उस कमरे की पिछली खिड़की से कूद गए ,वहां से कूदते ही उन्हें अपने सामने अंधेरी गली दिखलाई दी , जहाँ बिल्लियाँ और कुत्ते चिल्ला रहे थे। आपस में लड़ रहे थे। मंडली के लोग उनका पीछा करते हुए उस गली में भी पहुंच गए ।
दौड़ते -दौड़ते अर्जुन की साँस फूल चुकी थी ,साँस फूलते हुए ही उसने कहा—“ये सिर्फ़ कुछ लोग नहीं… लगता है ,ये पूरा जाल है।”
राघव गरजकर बोला—“हमें इन्हें खत्म करना होगा किन्तु अभी तो हमें स्वयं इनसे बचना है।
दौड़ते हुए वे गली के एक मोड़ पर पहुंच गए ,तभी अचानक वहां उन्हें एक परछाई खड़ी दिखलाई दी ।काले कोट में, चेहरा सिर पर ओढ़े हैट से छुपाया हुआ था ,वह आगे आया और उसने फुसफुसाकर कहा—“इधर आओ… जल्दी!”