इतनी शानदार हवेली भरभराकर गिर चुकी थी,चारों तरफ़ धूल का धुंधलका फैला था, मानो किसी प्राचीन इतिहास को ज़मीन निगल गई हो कुछ देर तक, वहां सन्नाटा छाया रहा क्योंकि न जाने, यह हवेली अपने साथ क्या -क्या लेकर गयी है ? काव्या अर्जुन और राघव भी कहीं दिखलाई नहीं दे रहे थे,लग रहा था ,कहीं ये हवेली उन्हें ही न निगल गयी हो। किन्तु कुछ देर पश्चात ,अर्जुन, काव्या और राघव धूल से अटे हुए ,उस आँगन से बाहर निकलते दिखलाई दिए, उनके कानों में अभी भी महेश्वर की चीख़ें गूँज रही थीं। कुछ देर तक वे वहां खड़े, उस मलबे को देखते रहे, उनकी साँसें अभी भी उखड़ी हुई थीं ,धूल का असर भी था ,अपनी सांसों समेटते हुए,काव्या ने काँपते स्वर में अर्जुन से कहा—“हमने उसे रोक दिया… है ना?”
अर्जुन ने 'हाँ 'में सिर हिलाया, लेकिन आँखों में बेचैनी थी।“हवेली गिर तो गई है, लेकिन मुझे लगता है… कुछ अधूरा है,हालाँकि उसे खुश होना चाहिए कि उन्होंने महेश्वर को हरा दिया, किन्तु महेश्वर के वो आख़िरी शब्द उसे खुश नहीं होने दे रहे थे, उसके कानों में महेश्वर के वही आख़िरी शब्द बार -बार गूंज रहे थे ,जो उसने आख़िरी बार कहे थे —असली खेल तो अभी शुरू हुआ है—उसका मतलब हमें अभी समझना बाकी है।”
तभी दूर से आती ,पुलिस की गाड़ियों का शोर सुनाई दिया,सायरन बजाते हुए ,वे लोग पास आ रहे थे, अरे !इन लोगो को किसने सूचना दे दी ?अर्जुन बोला।
क्या तुमने सुना नहीं ,काम हो जाने के पश्चात ही पुलिस आती है ,अब जब सब कुछ हो गया ,तभी तो आई है कहते हुए राघव ने ठहाका लगाया, कुछ ही देर में इंस्पेक्टर देशमुख और उनकी टीम वहाँ पहुँच गई।
देशमुख ने गाड़ी से उतरते ही, अर्जुन की ओर देखा।“ये सब क्या हो गया? हमने सुना था- कि यहाँ… अजीब घटनाएँ हो रही हैं।”
अर्जुन ने गहरी साँस ली और मुस्कुराते हुए बोला -“आप देर से आए इंस्पेक्टर… लेकिन शायद सही समय पर, हवेली अब नहीं रही।”
देशमुख ने ढही हुई हवेली को देखा और माथे पर बल पड़ गए ।“इतनी बड़ी इमारत… ऐसे कैसे ढह गयी ?… ये तो रिपोर्ट में लिखना भी मुश्किल होगा।”ये सब कैसे हुआ ?क्या आप बता सकते हैं ?
धीरे -धीरे उस हवेली को ढहते देखकर ,यह बात गांव में 'आग की तरह फैल गयी '' थी,और जो गाँववाले, पहले हवेली के पास आने से भी डरते थे, अब जिज्ञासावश वहां आकर इकठ्ठा हो रहे थे।उस भीड़ में एक आदमी था—दाढ़ी वाला, साधारण कपड़ों में था लेकिन उसकी आँखें अर्जुन पर गड़ी हुई थीं,अर्जुन की नजरें उससे टकराईं ,उसने हल्की मुस्कान दी, फिर धीरे से भीड़ से निकलकर न जाने कहाँ ग़ायब हो गया ?
अर्जुन ने नोटिस किया, लेकिन तुरंत कुछ कह नहीं सका,वह उस व्यक्ति को ढूंढने के लिए भीड़ की ओर बढ़ा किन्तु काव्या ने उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया और बोली -कहाँ जा रहे हो ? काव्या ने भी उस आदमी को देखा और फुसफुसाकर अर्जुन से पूछा—“तुमने देखा? वो आदमी हमें ही घूर रहा था।”
अर्जुन ने सिर हिलाया।“हाँ… और उसका जाना महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं था।
देशमुख ने कागज़ और कलम निकाला।“देखिए, मुझे रिपोर्ट बनानी है, आप सब बताइए कि हवेली क्यों गिरी, और अंदर क्या हुआ ? कोई सबूत? कोई गवाह ?”
गवाह !हम ही हैं ,राघव ने हँसते हुए कहा—“इंस्पेक्टर साहब, अगर सच बताऊँ तो शायद ,आप खुद कहेंगे- कि हम पागल हैं।”
देशमुख ने सख़्त लहज़े में कहा—“मुझे परवाह नहीं, सच क्या है, वो तो सुनना ही है,रिपोर्ट जो बनानी है ”
अर्जुन ने थोड़ा रुककर कहा—“वहाँ आत्माएँ थीं, इंस्पेक्टर ! 'महेश्वर प्रसाद 'नाम का आदमी उन्हें कैद करके अपनी शक्ति बढ़ा रहा था लेकिन हमने उसे रोक दिया। आत्माएँ अब आज़ाद हैं।”
देशमुख हक्का-बक्का रह गया।“आत्माएँ !क्या तुम एक सरकारी आदमी से मज़ाक कर रहे हो?”
अर्जुन ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा —“अगर मज़ाक होता, तो ये हवेली आज भी खड़ी होती।”
पुलिस टीम ने मलबे की जाँच शुरू कर दी ,लेकिन अर्जुन, काव्या और राघव जानते थे कि उनका काम अभी खत्म नहीं हुआ है।
अगले दिन सुबह वे शहर लौट आए ,रात भर नींद नहीं आई ,करवटें बदलते हुए भी अर्जुन के कानों में अब भी आत्माओं की वही आभार भरी आवाज़ और महेश्वर की चेतावनी गूँज रही थी।
शहर के अख़बार में अगले दिन हेडलाइन छपी—“पुरानी हवेली का रहस्य: रातों-रात ध्वस्त!”“गाँववाले बोले—चीख़ों के बीच गिरी हवेली”
लेकिन सबसे चौंकाने वाली खबर अंदर छपी थी—“हवेली के मलबे में मिली -''बंद डिब्बे जैसी चीज़''—अंदर से खून के निशान।”
अर्जुन ने खबर पढ़ते ही, माथा पकड़ लिया।“यही है… खेल अभी खत्म नहीं हुआ, महेश्वर ने अवश्य ही ,कुछ पीछे छोड़ दिया है।
शहर की पुलिस ने अर्जुन को बुलाया,देशमुख ने गंभीर स्वर में कहा—“एक अजीब बात हुई है, मलबे से हमें कुछ हड्डियाँ मिलीं, लेकिन उनमें से कोई भी' महेश्वर प्रसाद' की नहीं थी।”
अर्जुन चौंक गया।“मतलब… उसका शव ही नहीं मिला?”
देशमुख ने सिर हिलाया।“बिलकुल ! या तो वो मारा ही नहीं गया… या फिर कोई उसकी लाश लेकर चला गया।”
इस खबर को सुनते ही ,काव्या की आँखें फैल गईं,और घबराते हुए बोली -“तो क्या… वो अब भी ज़िंदा हो सकता है?”
उसी रात अर्जुन के घर के दरवाज़े पर खटखटाहट हुई,न जाने इतनी रात गए कौन आ गया ?अलसाते हुए ,उसने दरवाज़ा खोला तो बाहर कोई नहीं था,बस ज़मीन पर एक पुरानी, पीली चिट्ठी रखी थी।
अर्जुन ने काँपते हाथों से चिट्ठी उठाई और पढ़ी,उसमें लिखा था—“खेल अभी अधूरा है, तुमने हवेली तो गिरा दी… लेकिन असली राज़ तुम्हें शहर की गलियों में मिलेगा।सावधान रहना… क्योंकि अब तुम्हारे अपने लोग ही, तुम्हारे दुश्मन बनेंगे।”नीचे सिर्फ़ एक अजीब निशान बना था—तीन गोल घेरे, जिनके बीच में खून की बूंद जैसा लाल दाग़।
अर्जुन की आँखें फैल गईं,उसकी आँखों से नींद उड़ गयी ,उसने चिट्ठी काव्या और राघव को दिखाई।
राघव ने गुस्से में कहा—“ये साफ़ है, महेश्वर के अनुयायी अब भी ज़िंदा हैं और वो हमें धमका रहे हैं।”
काव्या डरकर बोली—“अगर हमारे अपने लोग दुश्मन बनेंगे… तो किस पर भरोसा करेंगे?”हमारे अपने लोगों में कौन हो सकता है ?जो हमसे विश्वासघात करेंगे।
अर्जुन ने गहरी साँस ली और कहा—“भरोसा करना होगा… सिर्फ़ सच्चाई पर और इस चिट्ठी का मतलब हमें जल्द से जल्द खोजना होगा।”
उनकी आँखों में अब एक नया मिशन था—शहर की गलियों में छिपे महेश्वर के अनुयायियों को ढूँढना और असली राज़ खोलना।