Khoobsurat [part 54]

नित्या , अक्सर एक लड़के को, अपनी कोठी के बाहर खड़े होते देखती थी, वो अक़्सर उसे अपनी कोठी की तरफ ताकते हुए देखती ,जब कभी नित्या उधर जाती तो वो कभी पीठ फेर लेता, तो कभी दूसरी तरफ देखने लगता, नित्या को उसका यह व्यवहार बड़ा अजीब लगता था ,न जाने, यह कौन है ?एक दो बार देखकर तो उसने नजर अंदाज किया किंतु कई बार, उसको इस तरह घर के सामने खड़े देखकर, एक दिन नित्या ने उस लड़के को पकड़ ही लिया और बोली -ए..... तुम कौन हो ? जो इस तरह हमारे घर को घूरते रहते हो। 

 नहीं- नहीं, मैं इस कोठी को घूरता नहीं हूँ ,पहले तो वो घबराया किन्तु तुरंत ही सम्भल गया और बोला -देख रहा था कि कितनी शानदार कोठी है ,क्या इसे, इस तरह देखना गलत है ?मुझे लगता है ,मैंने इसे देखकर  कुछ गलत नहीं किया है, न ही, मेरी कोई सोच गलत है।


 उसकी बात सुनकर नित्या चुप हो गयी ,सोचने लगी, सही तो कह रहा है ,इसमें गलत ही क्या है ?नित्या को चुप देखकर उसने पूछा -  क्या यह घर' तमन्ना' जी का है ?उसके इस प्रश्न से नित्या के'' कान खड़े हो गए। ''  यह नाम तो आज तक हमने किसी को बताया ही नहीं, फिर तुम कैसे जान गए ?

तब वो शायराना अंदाज में बोला -''फूल की खुशबू, छुपाये नहीं छुपती ''मुस्कुराते हुए तब वह बोला -वो  एक अच्छी कलाकार हैं किंतु एक सरल ह्रदया भी ,मुझे लगता है ,उनका समय ठीक नहीं चल रहा है जिस पर विश्वास करती हैं, धोखा खा जाती हैं। 

क्यों, तुम क्या ज्योतिषी हो ?नित्या ने उसे घूरते हुए आश्चर्य से पूछा -तुम तो कोठी देख रहे थे ,या उसके अंदर रहने वाले लोगों की कुंडली ! तुम'' तमन्ना'' को कैसे जानते हो ? मन ही मन सोच रही थी ,लो !अब ये तमन्ना का एक और क़द्रदान आ गया और जब उसे देखेगा ,भाग जायेगा। 

उसने जैसे नित्या के मन की बात पढ़ ली ,किन्तु नित्या की उम्मीद के विपरीत बोला -नहीं, मैंने उन्हें देखा है वो बहुत अच्छे स्वभाव की हैं, किंतु कहीं ना कहीं फंस जाती हैं।

क्या तुम उसे जानते हो ?आश्चर्य से नित्या ने उससे पूछा - वैसे तुम कौन हो, क्या करते हो ?जो तुम दिख रहे हो ,वो नहीं हो ,अपना विस्तार से और सही -सही परिचय देना ,उसे डांट भरी चेतावनी देते हुए नित्या बोली।

 मेरा नाम' रंजन' है, मैं अपने खर्चे के लिए, रिक्शा चलाता था,मैं ही उन्हें, अपने रिक्शे में'' ऑडिटोरियम ''  उन्हें अपने साथ लेकर गया था ,जहां पर वह कांड हुआ था , मैंने उन्हें समझाना भी चाहा था लेकिन उन्होंने मेरी एक भी नहीं सुनी थी,क्योंकि मैं ठहरा एक रिक्शेवाला !वो मेरी बात क्यों सुनने लगीं ? किंतु मुझे लगता है -वो अभी भी किसी ऐसे शख्स के चक्कर में फंसी हैं ,जो उन्हें बहका रहा है या फिर फंसाना चाहता है।  

तुम्हें, ऐसा क्यों लग रहा है ? तुम अपने को इतना सीधा कैसे साबित कर सकते हो ?

मैं कोई सीधा नहीं हूं, मैं एक नेक इंसान हूं, जो एक ईमानदार और अच्छी लड़की को बचाना चाहता था।उस दिन वो बहुत खुश थीं उस पर्चे को हाथ में दबाये हुए थीं ,तभी मैंने जाना वो गलत जा रहीं हैं और देखिये !उनके साथ वो हादसा हो गया।  

तुमसे किसी ने कोई मदद नहीं मांगी रूखे स्वर में नित्या बोली।  

 इसीलिए तो मैं यहां खड़ा हूं, और देखता हूं कहीं कोई परेशानी में न फंस जाए। 

तुम यह सब सोचने और करने वाले कौन होते हो ? क्या तुमने उसकी सुरक्षा का ठेका लिया है या उसकी नौकरी की है ? उसका अपना परिवार है वे लोग, उसे संभाल लेंगे। 

आदमी संभलना भी चाहे, तो सम्भल नहीं पाता है , जब किसी पर' अंधविश्वास' हो जाता है। 

 तुम्हें ऐसा क्यों लगता है ? 

मुझे लगता है, किसी ने उनके साथ ऑडिटोरियम में भेजने के लिए झूठ बोला था या उनको फंसाना चाहा था, वो एक अच्छी लड़की हैं इसीलिए मुझे उनसे हमदर्दी हो गई है। इस बात को लगभग पंद्रह -बीस दिन हो गए होंगे, बात आई गई सी हो गई, नित्या ने उसे सख्ताई से मना कर दिया था कि उसे ,यहां इस तरह आने की कोई आवश्यकता नहीं है, किंतु न जाने क्यों नित्या को लगा ? यह लड़का सही है, कभी इसकी आवश्यकता पड़ेगी तो बुला लूंगी। आज वही समय आ गया है।

 शिल्पा, निराशा से भरी हुई थी, बहुत परेशान थी, नित्या को लग रहा था -कि यह सब जाल  कुमार का ही बिछाया हुआ है,पता नहीं, इस लड़के को हमसे क्या दुश्मनी हो गयी है ? किंतु शिल्पा, कुमार से बहुत प्रेम करती है इसलिए वो मुझ पर एकाएक विश्वास नहीं कर पाएगी किंतु जब आज, शिल्पा टूट रही थी ,बिखर रही थी, तब नित्या ने एक नया पैंतरा चला और शिल्पा को एहसास दिलाया, कि जिसके प्यार में वह डूब रही थी, वह लड़का ही ठीक नहीं था।

उस दिन नित्या ने, शिल्पा से बताया -क्या तुम जानना चाहती हो ?उस दिन होटल में तुम्हें कौन बचाने आया था ?उस दिन तो तुम कुमार के साथ थीं ,कायदे से देखा जाये तो ,उसे तुम्हारी सुरक्षा करनी चाहिए थी ,क्या तुम्हें कुमार ने बचाया था उससे प्रश्न किया ?

वही तो.... मैं नहीं जानती ,उस दिन मेरे साथ क्या हुआ ?वहां पुलिस कैसे आई ,मैं घर कैसे आई ?कुछ भी स्मरण नहीं है ,कहते हुए शिल्पा विचलित हो उठी। 

 तुम तो कुछ भी नहीं जानती क्योंकि कुमार ने,उस दिन तुम्हारी ड्रिंक में नशे की गोली जो डाल दी थी वह तुम्हारा अनुचित लाभ उठाना चाहता था किंतु उससे पहले ही पुलिस आ गई और वहां अफरा -तफ़री मच गई। उस समय तुम्हें किसने बचाया? कभी सोचा है ?

 इस बात को सोच-सोचकर तो मैं बहुत परेशान हूं लेकिन तुम यह सब बातें  कैसे जानती हो ? 

मैं यह बात इसलिए जानती हूं क्योंकि मैं नशे में नहीं थी। 

तब मुझे, किसने बचाया होगा ? आश्चर्य से शिल्पा ने पूछा। 

वह और कोई नहीं, रंजन था , एक खुद्दार, जिम्मेदार, मेहनतकश,ईमानदार लड़का !

''रंजन'' नाम सुनकर शिल्पा सोच में पड़ गई ,यह नाम मैंने कब और कहां सुना है ? नित्या यही तो चाहती थी कि शिल्पा का ध्यान, कुमार से हट जाए , और हुआ भी यही, वह रंजन के विषय में सोचने लगी -यह रंजन कौन है ,और उसने मुझे क्यों बचाया, कैसे बचाया ?

नित्या सारी सच्चाई जानती है, किंतु नित्या ने एक बार भी शिल्पा से कुछ नहीं कहा और न ही उसे कुछ बताया, क्योंकि जब समय आएगा तो स्वतः  ही शिल्पा को सच्चाई मालूम हो जाएगी। हालांकि नित्या उस दिन को भूल नहीं सकती, जिस दिन शिल्पा अच्छे से तैयार होकर, होटल में कुमार से मिलने के लिए गई थी। वह जानती थी, कुमार उसे मूर्ख बना रहा है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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