Aag mai tel chhidakna

''आग में घी डालना हो या तेल आग तो भड़केगी ही,निर्भर इस बात पर करता है, कि क्या वो आग पहले से ही प्रज्ज्वलित थी ? ''इसी प्रकार रिश्तों में ,यदि थोड़ी सी भी, किसी के प्रति कोई शिकायत रह जाती है और दूसरा आकर उसके मन की, उस बात को हवा दे दे या उसमें घी या तेल डाल दे !''आग भड़क उठेगी। ''हालाँकि निशि का यह उद्देश्य नहीं था किन्तु जब उसने यह बात कही है -तो दूर तलक जाएगी। 


 

 आज निशि रिश्तेदारी में, किसी कार्यक्रम में गई थी ,वहीं पर उसको, उसकी मौसेरी बहन मिल गई जो अपने पति के साथ आई थी। उनको देखकर निशि ,उनसे मिलने के लिए दौड़ी और तुरंत ही शिकायत भरे लहजे में , अपने जीजा जी से बोली -जीजा जी! आपकी यह अच्छी बात नहीं है ,आप दीदी को अपने साथ घूमाने क्यों नहीं ले जाते हैं ? अब इस उम्र में भी, अकेले ही घूम रहे हैं। जवानी में तो, अपने साथ कभी घुमाई नहीं, सारा दिन गृहस्थी में, लगाए रखा और अब जब घूमने का समय है, तो अकेले घूमने निकल जाते हैं मैंने आपकी, घूमने की बहुत सारी तस्वीर देखी हैं, किंतु मेरी बहन उनमें कहीं भी नहीं है। यह देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता। 

अब यह इस उम्र में कहाँ घूमने जाएगी ? यह घूम ही नहीं सकती, इसके घुटनों में दर्द रहता है, अब यह घूम कर क्या करेगी? तुम चाहो तो, तुम्हें साथ ले सकते ले जा सकता हूं ,कहकर उसके जीजा जी हंसने लगे। 

जीजा जी !मेरी यह बात हंसी में मत टालिए ! कभी आपने दीदी के लिए सोचा है -कि वह क्या सोचती होगी? कभी उससे पूछा है, कि वह जाना चाहती है या नहीं। 

उनकी यह बातें पल्लवी सुन रही थी, निशि की उन बातों ने, ''आग़ में घी डालने ''जैसा काम कर दिया। 

पल्लवी, बहुत दिन से मन ही मन सोच रही थी- जिंदगी के 10 वर्ष तो मैंने इनके बच्चों के पालन पोषण में लगा दिए, उसके पश्चात इनके माता-पिता की सेवा में, कभी इन्होंने यह नहीं कहा -पल्लवी! तुम थक गई होगीं, आराम कर लो ! पल्लवी चलो !आज तुम्हें बाहर घूमाकर लाता हूं , पल्लवी ! देखो !मैं आज तुम्हारे लिए क्या उपहार लेकर आया हूं ?

 उम्र का वह ऐसा पड़ाव था, पल्लवी ने जब अपनी ससुराल में कदम रखे ,तो ज़िम्मेदारियाँ भी साथ ही आ गयीं। सोचती थी-जब बच्चे पल जाएंगे, तो मैं जिंदगी चैन से गुजर -बसर करूंगी, ससुर बिमार रहते थे ,उनकी दवाई- गोली क्योंकि सास से भी इतना काम नहीं होता था। तब सोचा -अभी समय ही कहां है ?पल्ल्वी के पास भी समय नहीं था और किशोर ने भी कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया कि हमारी भी कुछ इच्छाएं हैं। 

अब बच्चे भी पढ़ रहे हैं ?तब उनकी पढ़ाई पर ध्यान देना ,उन्हें ट्यूशन ले जाना ,टैस्ट की तैयारी करवाना ,बाहर निकलना नहीं हो पाता ,बच्चों के इम्तिहान जो आ रहे हैं। बरसों इस गलतफ़हमी में जीती रही मेरा घर ,मेरा परिवार,मेरे बच्चे! यह समय भी कट जाएगा ,यह सोचते- सोचते पल्लवी यह नहीं सोच पाई कि उसकी जिंदगी भी तो, उसका साथ छोड़ती जा रही है, आगे बढ़ती जा रही है  बच्चे भी पढ़ गए, सास- ससुर तो अब नहीं रहे, लेकिन घर की जिम्मेदारियां अभी भी बरकरार हैं। किंतु अब कभी-कभी सोचने का समय मिल जाता है - कि शायद किशोर एक बार तो कहेंगे ! सारी उम्र काम किया है, चलो !आज घूमने चलते हैं , अब तो किशोर अपने दोस्तों के साथ अकेले ही घूमने निकल जाते, कभी पल्लवी से पूछा ही नहीं, कि तुम भी जाना चाहती हो या नहीं। अब उसे एहसास होता है , उसने जिंदगी के इतने बहुमूल्य पल इसी इंतजार में बिता दिए, कि  उसका आने वाला कल सुखद होगा। 

अब तो जैसे,किशोर को उसे इसी रूप में देखने आदत ही पड़ गई है ,वह उससे पूछता भी नहीं है, कभी यह भी नहीं पूछा -पल्लवी! तुम ठीक हो या नहीं , डॉक्टर के जाने की आवश्यकता होती है, वह भी वो मजबूरी में, तब बड़े मुंह बनाते हुए किशोर उसे लेकर जाता है, तब उससे कहता है -''तुम अपना ख्याल ही नहीं रखती हो'' किन्तु आज निशि के कथन ने उसकी दुखती रग़ को छेड़ दिया,उसके शब्दों ने जैसे ''आग में घी डालने'' जैसा कार्य किया।अब तक अपने को समझा लेती थी और समझाती ही आई है किन्तु आज उसके मन का दर्द उसकी आँखों से बह निकला। 

तब निशि बोली -जीजी !तूने स्वयं ही अपने आपको इस परिवार में बाँध लिया है ,जीजाजी! कहीं नहीं ले जाते तो स्वयं घूमने निकल जाया कर ,काम तो जीवनभर के हैं ,जब तू इस संसार में नहीं रहेगी ,तब भी काम होते रहेंगे। एक जीवन समाप्त हो जाता है किन्तु दुनिया के काम नहीं रुकते।

 जीजाजी ! ये मत समझना ,ये मेरी बीवी को भड़का रही है , किंतु क्या कभी आपने सोचा है , यह भी इंसान है, इसका भी दिल करता होगा, कहीं आए जाए, पूरी जिंदगी तुम्हारे परिवार और तुम्हारे घर में बिता दिया, कम से कम उसे इस उम्र में तो एहसास होना चाहिए कि जिन लोगों के लिए मैंने  इतना त्याग और समर्पण  किया है, वो मेरे अपने हैं, मेरा कितना ख्याल रखते हैं ? उसे इस परिवार से एक विश्वास तो मिलना चाहिए जिसकी मुझे कमी दिखती है। आप मेरा कहना मानो या मत मानो !किन्तु कभी ठंडे दिमाग से सोचकर देखना ,मैंने जो कुछ भी कहा गलत नहीं कहा।ऐसी महिलाओं के कारण ही आज घर बसे हुए हैं ,जो अपने लिए ही सोचती हैं ,उनके घर के लोग प्रतीक्षा में बैठे रहते हैं ,कब रोटी मिलेगी ?कहते हुए हंसने लगी।  

मेरी गृहस्थी अच्छी -खासी चल रही है , तुम्हारी बहन को,मुझसे ऐसी कोई शिकायत नहीं है, क्या तुमसे उसने कोई शिकायत की, तब तुम मेरी गृहस्थी में क्यों तेल छिड़क रही हो ? उसे क्यों भड़काना चाहती हो ? कहते हुए किशोर जी वहां से उठ कर चले दिए।

पीछे से निशि बोली -ये बातें कहने की नहीं ,महसूस करने की होती हैं ,जब हमारे दिल में किसी के प्रति प्रेम होता है ,तो स्वयं ही उसके लिए कुछ करने का दिल करता है ,उसका त्याग और समर्पण याद आता है ,उसके प्रति लापरवाह नहीं हुआ जाता। ''

किन्तु किशोर जी को शयद उसकी बातें चुभ गयीं और वो वहां से चले गए। अब यह तो पाठक ही बताएंगे !मैंने सही कहा या ''आग में तेल छिड़क दिया। '' 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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