Mysterious nights [part 131]

रूही हवेली से, घर वापस आ जाती है लेकिन उसकी हालत खराब होती है ,क्योंकि उसे भूली-बिसरी  सभी बातें स्मरण हो आती हैं।  उसके माता-पिता चिंतित होते हैं और उससे पूछते हैं -आखिर उसके साथ क्या हुआ था ?

 तब वह बताती है-' मैं उस हवेली की, बहु थी किंतु मेरे पति की मृत्यु शीघ्र ही हो गई थी, इसके बावजूद भी उन लोगों ने मुझे, अपनी हवेली में रखा, और मेरे साथ कुकृत्य किया। जब मुझे उनकी योजनाओं  का पता चला, कि ये लोग, सही नहीं हैं तो मैंने हवेली से भाग जाने का निश्चय किया। 


 एक रात्रि मैं, हवेली से बाहर निकलने का प्रयास करती हूं किन्तु वहां जगह -जगह पर पहरे लगे हुए थे,उन्हें भी इस बात का अंदाजा हो गया था कि मैं यहाँ से भाग जाना चाहती हूँ। न ही, मैंने उनसे कुछ कहा ,न ही उन्होंने मुझे जतलाया कि वे जान गए हैं, बल्कि पहरा और बढ़ा दिया। 

तब मैंने बहुत सोचा ,योजना बनाई, मैंने अपनी सास के साथ एक शर्त रखी - मैं उनकी पत्नी तभी बनूंगी जब ये चारों मुझसे  विवाह कर लेंगे क्योंकि जब मैंने गौरव की शिकायत, अपनी सास से की थी, कि रात्रि में मेरे साथ किसी ने गलत किया है, उन पर कोई असर नहीं हुआ, उनके लिए तो जैसे यह साधारण सी बात थी।तब मैंने सोचा था,जब तक ये लोग विवाह की तैयारी करते हैं, तब तक मुझे सोचने और बाहर निकलने का शायद मौका मिल जाये। 

 मैं किसी की कोई सहायता भी नहीं ले सकती थी क्योंकि मेरी सहायता के लिए कोई भी तैयार नहीं होता, उस गांव में, उन लोगों का दबदबा है और गांव के लोगों का, हवेली के लोगों से इतना ज्यादा मेलजोल भी नहीं था। तब मैं एक दिन हवेली की छत पर गयी , और अंदाज़ा लगाया कि कितनी साड़ियां बांधकर मैं, इससे नीचे उतर सकती हूं।हवेली की ऊंचाई बहुत थी किन्तु क्या करती ?प्रयास ही कर सकती थी। तब मैंने हवेली की पिछली दीवार के सहारे भागने की योजना बनाई।  

अभी मैं योजना बना ही रही थी, तभी एक दिन मेरी सास दमयंती ने कहा -आज तुम्हें दुल्हन की तरह सजना होगा। 

क्यों ? आपसे तो मैंने पहले ही कह दिया था,' कि मैं तैयार हूं किंतु उससे पहले इन चारों को मुझसे  विवाह करना होगा। 

तुम पहले से ही, इस घर की बहू हो, यह बात सभी जानते हैं, यदि हम दोबारा तुम्हारा विवाह,अपने बेटों से  करते हैं, तो समाज को हम क्या बताएंगे ? एक विधवा से हम, अपने बेटों का विवाह करने जा रहे हैं। लोगों को लगेगा, कि हमारे बेटों के लिए कोई रिश्ता आ ही नहीं रहा है। हमारी रस्मों के विषय में बाहर वाले नहीं जानते,इसीलिए तुम्हें इसी रूप में , इन चारों को स्वीकार करना होगा।

जिस बात को आप लोग समाज के सामने स्वीकार नहीं कर सकते ,वो सही हो ही नहीं सकती है ,एक भाई की विधवा से संबंध बनाना उचित नहीं है। 

तुमसे कहा तो है ,बाद में ,शहर में जाकर तुम शादी कर लेना,घूरते हुए दमयंती जी ने कहा - हमने तुमसे कोई बात छुपाई नहीं है, न ही छुपाना चाहते हैं, जो भी हो रहा है सरलता और सहजता से हो रहा है हमें जबरदस्ती करने के लिए मजबूर मत करना, कहकर उन्होंने मुझे,मेरे कमरे की तरफ धकेल दिया।

 मेरे साथ मुझे सजाने के लिए शहर से आई  एक लड़की भी थी जो मुझे तैयार करती है। उसे देखकर मुझे थोड़ी उम्मीद जागी। उससे, मैंने विनती  की - कृपया, मेरी सहायता करो ! मुझे इस हवेली से बाहर निकाल दो !

मेरी बात सुनकर, वह लड़की डर गई और बोली -आप इसकी उम्मीद तो छोड़ ही दो ! यदि तुम जिंदा रहना चाहती हो,तो जो कुछ भी हो रहा है, उसे सहजता से स्वीकार कर लो ! इसी में तुम्हारी भलाई है , तुम जानती नहीं हो, ये लोग कितने खतरनाक हैं ? किसी की जान लेना उनके लिए मामूली बात है। मैंने बहुत, लड़कियों को, इनके सामने तड़पते, गिड़गिड़ाते हुए देखा है।  शहर में जो, इनका होटल है , उसमें रातों को न जाने कितनी जिंदा लाशें तड़पती रहती हैं, जो जिंदा हैं, वो तड़पती रहती हैं और जो इस जीवन से जा चुकी हैं , उनकी लाश तक का पता नहीं चलता कि कहां गई ? वह होटल दिन में खामोश और शांत रहता है किन्तु रात्रि में उसकी रातें जगमगाती हैं ,वो रातभर जागता है और उसकी'' रातें रहस्यमई'' बन जाती हैं ,ये रातें किसी -किसी के लिए जीवनभर की काली अंधियारी रात्रि लेकर आती है या फिर मौत का साया बन जाती है।  

 तुम यह सब जानती हो, और फिर भी, तुम इन लोगों के साथ आई हो। 

मेरी मजबूरी है, चुपचाप अपना काम करके चली जाती हूं, यहां मेरे लिए, मेरा यह रूप रंग आशीर्वाद साबित हुआ है, मैं यह कार्य करती हूं, सुंदर ना होने के कारण, इन लोगों की दृष्टि मुझ पर नहीं गई है इसीलिए मैं बची हुई हूं, नहीं तो, कुछ लड़कियों के लिए उनकी सुंदरता ही उनके लिए अभिशाप बन गई। तुम अपने को सौभाग्यशाली समझो ! जो ये लोग, तुम्हें अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं , वरना न जाने कितनी लड़कियां, अपनी इज्जत दांव पर लगाकर, मुंह छुपा गई , जिस किसी ने भी विरोध किया वह जीवन से ही उठ गई ,इसीलिए मुझे माफ करो !और यह  कह कर वह उसे तैयार करने लगी।

तैयार होते हुए ,मैं भी सोच रही थी ,यहाँ मेरी जान भी तो दांव पर लगी है ,'तेजस 'की विधवा बनकर उसके प्रेम में जीवन भर इस जीवन को समर्पित करना चाहती थी किन्तु यहाँ तो..... चार -चार को... छिः सोचा भी नहीं जाता। 

उस लड़की की बातें सुनकर मेरी रूह काँप गयी थी ,मैं सोच रही थी- मैं,कहां फंस गई ? मैं अपने घर भी किसी को यह बात नहीं बता सकती, हो सकता है ,मेरे माता-पिता को ही इसका दंड भुगतना पड़े। ये लोग कुछ भी कर सकते हैं, अपने घरवालों को कोई संदेश भेजूं भी तो कैसे ?कोई मेरी सहायता भी नहीं करेगा।  मेरी संपूर्ण योजना धरी की धरी रह गई, मन ही मन मैं परेशान हो रही थी ,कि किस तरह से इस हवेली से बाहर निकलूँ ?

 तब मैंने सोचा -चुपचाप तैयार हो जाती हूं कोई भी ऐसी हरकत नहीं, जिससे उन्हें मुझ पर संदेह हो जब उन्हें मुझ पर विश्वास हो जाएगा कि मैं इस रिश्ते के लिए तैयार हूँ।तब मौका देखकर भाग जाऊँगी।  जब मैं तैयार हो गई तो मुझे देखकर, दमयंती जी बहुत प्रसन्न हुई और बोली -तुम्हारे लिए एक विशेष कमरा सजा दिया गया है , आज तुम सुमित की दुल्हन बनोगी, यह सुनकर मेरी रूह कांप गई, और मन ही मन मैंने वहां से भागने का निश्चय कर लिया।

क्या शिखा वहां से भागने में सफल हो सकी ? या उसने प्रयास करना ही छोड़ दिया ,आगे क्या हुआ ?जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।     

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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