Mysterious nights [part 130]

डॉ अनंत ने ,रूही की हालत देखकर उसे नींद का इंजेक्शन दे दिया था, उस इंजेक्शन से उसे गहरी नींद आ गयी थी , वह कुछ देर के लिए ,अपनी उन परेशानियों को भूल ,जो उसे रह -रहकर तंग कर रहीं थीं ,सो गई थी। सोते हुए किसी अबोध बच्चे की भाँति लग रही थी। वो उसकी हालत समझ रहे थे ,उन्होंने तारा जी से कहा -मुझे लगता है ,उसकी स्मृतियाँ लौट आई हैं ,जिसके कारण उसके मष्तिष्क पर अधिक दबाब पड़ रहा होगा।

 इसकी हालत देखकर तो यही लग रहा है ,इसकी वे स्मृतियाँ अच्छी नहीं हैं ,अवश्य ही उसके साथ बहुत कुछ बुरा हुआ है ,देखा नहीं, कितनी बुरी तरह से काँप रही थी ?तारा जी चिंतित स्वर में बोलीं। 


 जब दवाई का असर कम हुआ और  रूही की आंख खुली तो उसने, अपने आपको अपने बिस्तर पर पाया तारा जी बार-बार आकर उसकी हालत देख लेती थीं, तब भी वे उसे देखने के लिए आई थीं।  तभी रूही की आंखें खुलीं, उसने अपने सामने तारा जी को देखा तो उसे, जैसे सब कुछ याद आ गया किन्तु ऐसा लग रहा था ,जैसे कोई बुरा स्वप्न देखकर उठी हो,सिर में थोड़ा भारीपन था। उसने उठने का प्रयास किया ,तब  तारा जी, उसके करीब आई और उन्होंने पूछा -बेटा ! अब तुम्हारी तबीयत कैसी है ? अब तुम ठीक हो। 

रूही ने गर्दन हिलाई और मां की गोद में सिर रखा और रोने लगी, क्या कुछ हुआ है ? तुम इतनी परेशान क्यों हो ?उन्हें कुछ तो आभास था किन्तु वे उसके विषय में ,उसके मुख से जानना चाहती थीं। तब वे बड़े प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए पूछती हैं - तुम तो गर्वित के साथ हवेली देखने के लिए गई थी न.... . क्या वहां कुछ हुआ था ?

 रूही का किसी से भी बात करने का मन नहीं कर रहा था किंतु अब उसे सारी बातें याद आ चुकी थीं,जिस  सच्चाई को वह, इतने दिनों से जानना चाहती थी आज उसे एक दिन में ही मालूम हो गई। वह उस परिवार की '' अधूरी दुल्हन'' बनकर आई थी। एक ऐसी' दुल्हन' जो विवाह के समय ही' विधवा' हो गई थी। उन लोगों ने उसके साथ क्या-क्या नहीं किया ? अभी वही सब सोचकर उसकी रूह काँप रही थी और वह सोच रही थी -मुझे यह सब जानने की क्या आवश्यकता थी ?मैं यह सब क्यों जानना चाहती थी ? उसने विवशता भरी नजरों से तारा जी की तरफ देखा और सोचने लगी - सच ही तो कह रही थीं, ' कि सच्चाई जानने के पश्चात, तुझे दुख के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।' 

 तारा जी ने उसका सिर सहलाते हुए बोलीं - यदि तुम्हारा, अभी बात करने का मन नहीं है, तो कोई बात नहीं, चल कर हमारे साथ बैठो !अपने पापा से बात करो ! तब वे ,उसको पकड़कर नीचे ले आईं  और दिनेश से, कॉफी बनाने के लिए कहा। 

रूही अपनी उन बातों को स्मृतियों को स्मरण कर अभी भी बहुत परेशान थी , तब डॉक्टर अनंत ने कहा-तुम्हारे मन में जो कुछ भी चल रहा है, वह तुम्हें ,हमें बताना चाहिए यदि तुम हमें नहीं बताओगी, तो हम तुम्हारी समस्या का समाधान कैसे करेंगे ? आखिर तुम्हारे साथ क्या हुआ था ? उस हवेली में जाने के पश्चात क्या किसी ने कुछ कहा ?उन्होंने ये बात जानबूझकर कही ,ताकि इसके मन में जो भी चल रहा है ,कुछ तो कहे। डर से नहीं, तुम्हें होश से और समझदारी से काम लेना होगा। 

अपनी बातों को ध्यान से सुनते देखकर ,उन्होंने रूही से कहा - अपने मन में दृढ़ करो ! जो भी तुम्हारे साथ गलत हुआ है , उसको अब सही करना होगा। पहले हमें पता तो चले, तुम्हारे साथ क्या हुआ था ?

उनकी बात सुनकर, रूही रोने लगी और बोली - मैं 'रूही' नहीं 'शिखा' हूं , मेरा विवाह उसी परिवार के बेटे ''तेजस'' से हुआ था। उसकी बात सुनकर दोनों पति -पत्नी एक दूसरे को आश्चर्य से देखने लगे किंतु विवाह पूर्ण होने से पहले ही, मैं विधवा हो गई थी क्योंकि उन दिनों कोरोना का प्रकोप था ,तेजस को कोरोना हो गया था। फेरे पूर्ण होने से पहले ही उसकी मौत हो गयी थी ,अपूर्ण विवाह के कारण, मेरे घरवाले मुझे, मेरी ससुराल भेजना नहीं चाहते थे किंतु मेरी ससुराल वाले मुझे विदा कराने की ज़िद पर आ गए थे। मुझ ''अधूरी दुल्हन''को विदाकर, ले जायेंगे।

 मैं तेजस से ,बहुत प्रेम करने लगी थी, मैं भी उस घर में ' तेजस की विधवा'' बनकर रहना चाहती थी किंतु इन लोगों की दृष्टि कुछ और कह रही थी। इनके' तेजस 'से अलग चार बेटे और थे, जिनकी कुदृष्टि मुझ पर थी। उनके घर की रीत थी, एक ही स्त्री के साथ, सभी बेटे रहते थे। मेरी सास दमयंती भी, अपने चार पतियों के साथ उसी घर में रह रही थी। वह इस बात से संतुष्ट थी और उसने, मुझे भी इस बात के लिए तैयार भी किया था किंतु मुझे यह बात रास नहीं आई , मैं तेजस के सिवा किसी और को अपने पति के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहती थी किंतु एक दिन जबरन ही मेरे साथ, इस गर्वित के छोटे भाई ने, रिश्ता कायम किया। न जाने, इन लोगों ने मुझे क्या खिलाया था ?मुझे कुछ भी स्मरण नहीं था। 

 जब ये बात मैंने अपनी सास से कहीं, तब उन्होंने भी, इस बात का समर्थन किया और मुझे ही समझाने लगीं , मेरी सास दमयंती की सास सुनयना देवी ने, उस परिवार में ऐसा क्या हुआ था? वह मुझे नहीं मालूम किंतु चारों बेटों की एक ही पत्नी उस परिवार को जोड़े रखेगी यही कुछ, उन्होंने मुझे बताया था वरना यह परिवार टूट जाएगा। 

तब तुम्हारे साथ क्या हुआ ?क्या तुम उस रिश्ते में बंधी? तारा देवी ने उत्सुकता से, रूही से पूछा। 

जब मुझे दमयंती ने समझाया,' कि मुझे यह सब करना ही होगा। ''तब मुझे यह बात समझ आ गयी थी, कि ये लोग, इसीलिए मुझे यहाँ विदा करवाकर लाये हैं,इनके एक बेटे से मेरा विवाह हो चुका है,इस नाते मैं इस परिवार की बहु बन चुकी हूँ ,और अब सभी का मुझ पर अधिकार हो गया है ,ऐसा ये लोग समझते हैं ,इसमें मेरी इच्छा हो या न हो।'' 

तब मैंने सोचा-  मुझे यहां से निकल जाना चाहिए, उन लोगों ने, मुझ पर पहरे बैठा दिए थे , वे लोग सतर्क थे कि कहीं मैं इस परिवार से भाग न जाऊं, मुझे मेरे घर भी जाने नहीं दिया था,कहीं मैं ,अपने घरवालों को इस परिवार की सच्चाई न बता दूँ ,उन लोगों ने, मेरे घर वालों को बता दिया था, कि मैं कहीं रिश्तेदारी में गई हुई हूं। रोते हुए रूही ने बताया-आज भी मेरे घर वालों को तो यह भी मालूम नहीं होगा कि इन लोगों ने मेरे साथ क्या किया ,मुझे मारने का प्रयास किया , न जाने इन्होंने मेरे घर वालों को क्या बताया होगा ? मैं, ये भी नहीं जानती। 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post