रूही की ज़िद देखकर,तारा जी को डर लगता है ,और वो उसे समझाना चाहती हैं ,तुम जो कुछ भी कर रही हो ,बहुत गलत भी हो सकता है किन्तु सच्चाई जानने के लिए रूही कुछ भी करना चाहती है ,इसीलिए वो गर्वित से, उसकी हवेली में घूमने की ज़िद करती है। उसकी ज़िद देखकर ताराजी कह देती है -जैसी तुम्हारी इच्छा !
रूही को लगता है,उसकी बात से मम्मी सहमत नहीं हैं ,तब वो उन्हें समझाते हुए ,कहती है - मम्मी !आप समझ नहीं रहीं हैं, यदि मैं विवाह करके उस घर में चली जाती हूं और वहां मुझे सच्चाई का सामना करना पड़ेगा तो मैं न ही इधर की रहूंगी, ना ही उधर की, मैं फिर से ,पहले की तरह ही उस अनचाहे रिश्ते में बंधकर रह जाऊंगी और यदि मैं सच्चाई को पहले ही जान लेती हूं तो यह निर्णय मेरा होगा कि मुझे इस रिश्ते को आगे बढ़ाना है या नहीं।आप लोगों ने मुझे नया जीवन दिया है ,अब इस जीवन को मैं तनिक सी भी लापरवाही या थोड़ी सी मूर्खता के कारण बर्बाद करना नहीं चाहती। अब मैं रूही हूँ ,शिखा नहीं।
तारा जी ने आश्चर्य से रूही की तरफ देखा, और पूछा -ये नाम तुम्हें कैसे पता चला ?कि तुम्हारा असली नाम शिखा है।
शायद आप भूल गयीं ,उन महात्मा जी ने एक नाम लिया था ,वो अब भी मुझे याद है ,उन्होंने कहा था -तुम शिखा हो।
ओह !हाँ याद आया ,ये बात तो मैं भूल ही गयी थी ,शायद तुम सही कह रही हो, मैं ही थोड़ा भावुक हो चली थी। अब तुम्हारा जैसा जी चाहे करो !हम तुम्हारे साथ हैं किंतु मैंने तुम्हारे लिए आज दही- बड़े बनाए हैं,खाकर बताओ !कैसे बने हैं ?
आपको कैसे मालूम मुझे'' दही- बड़े'' बहुत पसंद है ?
उन्होंने रूही की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोली -तुम्हें मैंने पैदा नहीं किया तो क्या ?मां का रिश्ता ही ऐसा हो जाता है, मां को अपने बच्चों के विषय में सब पता चल जाता है, मां का दिल तो रखती हूं न.....
सच कह रही हो, कहते हुए वह, उनसे आकर गले से लिपट गई।
बस -बस अब ज्यादा मक्खन मत लगा।
यह मक्खन की बात नहीं है, सच में मेरा हृदय आपके अहसानो को, आपके प्यार को देखकर, भाव -विभोर हो उठता है, इतना तो शायद मेरे माता-पिता भी मेरे लिए नहीं करते,कहते हुए उसकी आँखें नम हो आईं , आपने मुझे फोन दिलवाया, मेरी हर सुख -सुविधा का ख्याल रखा, पापा ने मेरा इलाज करवाया,मुझे नया चेहरा ,नया नाम दिया, यह क्या कम बड़ी बात है ? वे मुझे सड़क पर भी छोड़ सकते थे..... मैं जीती या मरती ,जब मेरे अपनों ने ही, मुझे इस हालत में छोड़ दिया।
तभी तारा जी ने रूही के मुंह पर हाथ रखा, और उसे चुप कराते हुए बोलीं - वे अपने कैसे हुए ,अपने होते तो ऐसा कुछ करते ही नहीं,अब तुम कुछ ज्यादा बोलने लगी हो, मेरे लाड -प्यार का नाजायज़ फायदा उठा रही हो , भला कोई अपनी मां से इस तरह की बातें करता है। अब 'दही- बड़े' खाने हैं, या वापस रसोई में रख दूँ, मुंह बनाते हुए ,वे बोलीं।
खा रही हूं, बाबा !खा रही हूं, ऐसी खतरनाक माँ तो किसी को न मिले कहते हुए हंसने लगी।
आज मैं तुम्हारे घर आना चाहता हूं, फोन पर गर्वित ने कहा।
क्यों ?
क्यों, क्या ? तुम्हारे माता-पिता से तो पूछना ही होगा कि तुम्हें अपने घर ले जा रहा हूं , वरना सोचेंगे, हमारी बिटिया को भगा कर ले गया या फिर तुम ही मेरे होने वाले सास -ससुर से मुझे मिलवाना नहीं चाहतीं हो।
नहीं ,ऐसा तो कुछ भी नहीं है ,किन्तु ये जानकर अच्छा लगा ,तुम मेरे माता-पिता से डरते हो।
डरता तो मैं किसी के बाप...... कहते- कहते रुक गया उसे लगा कहीं, उसने कुछ अनुचित बोल दिया तो सारे किये - कराए पर पानी पड़ जाएगा। बात बदलते हुए बोला -अच्छा बताओ !किस समय तुम्हें लेने के लिए आऊं।
जब तुम्हारा जी चाहे ! पर यह ध्यान रखना कि मुझे वहां हवेली में रात नहीं बितानी है, दिन में ही वापस आना है।
हाँ -हाँ वो हम समझते हैं अगले दिन गर्वित ,रूही के दरवाजे पर खड़ा था, डॉक्टर साहब ने दरवाजा खोला -नमस्कार ! सर !कहकर गर्वित ने पैर छुए।
डाक्टर साहब ने, उसे ऊपर से नीचे तक देखा एक आकर्षक व्यक्तित्व का, देखने में किसी बड़े घर का लग रहा था ,आँखों पर चश्मा बाल करीने से बनाये हुए थे। डॉक्टर साहब ने, अपने चश्मे को ठीक करते हुए उससे पूछा -कौन हो ? किससे मिलना है
सर ! मेरा नाम गर्वित है ,आप मुझे नहीं जानते किन्तु मैं आपको अच्छे से जानता हूँ।
कुछ काम था ,उन्होंने गर्वित से पूछा क्योंकि वो नहीं जानते थे ,कि रूही किसी से बातें कर रही है और न ही किसी ने उन्हें बताया था।
गर्वित इधर -उधर देखते हुए ,पूछता है -क्या मैं अंदर आ सकता हूँ ?बैठकर बातें करते हैं।
क्यों ? मैं घर पर किसी को नहीं देखता ,क्लिनिक में या फिर अस्पताल में आना।
सर !मैं बीमार नहीं हूँ ?
तो फिर यहाँ क्यों आये हो ?तुम्हें अंदर किसने आने दिया ?
मैं ,ये कहना चाहता था, कहते हुए रुका ,क्या मैं अंदर आ सकता हूँ ,तारा जी ने, डॉक्टर साहब को किसी से बात करते देखा,पहले तो सोचा -उनका कोई दोस्त होगा किन्तु दोस्त को इस तरह दरवाजे पर क्यों खड़ा रखेंगे ,यह विचार आते ही ,वे आगे आईं और झाँककर देखने लगीं ,किसी अनजान को देखकर पूछा -डॉक्टर साहब ! कौन आया है ?
पता नहीं कौन है ? कहता है ,अंदर आकर बात करनी है।
सर !आपकी बेटी, मुझे अच्छे से जानती है ,बेटी का नाम आते ही तारा जी के ''कान खड़े हो गए। ''और नजदीक आकर उस लडके से पूछा -तुम्हारा क्या नाम है ?
आंटी जी !मैं, गर्वित !
ओह !अंदर आओ !कहते हुए उन्होंने डॉक्टर साहब का हाथ पकड़ उन्हें अपनी तरफ खींचा,और डॉकटर साहब से बोलीं -हमारी बिटिया का दोस्त है।
पारो का क्योकि उन्हें तो उम्मीद ही नहीं थी कि रूही भी किसी को अपना दोस्त बना सकती है।
तारा जी बोलीं -आप, अभी शांत रहिये ! मैं बाद में आपको सब बताती हूँ।
सर ! रूही और मैं दोनों दोस्त हैं ! शायद ,उसने आपको मेरे विषय में बताया होगा।
सर !मैं बीजापुर गांव से हूँ ,उसके इतना कहते ही डॉक्टर साहब !उछल पड़े।
क्या तुम बीजापुर गांव से हो ?तभी समीप बैठी तारा जी ने उनका हाथ दबाया।
जी ,क्या आप वहां किसी को जानते हैं।
डॉक्टर अनंत सम्भलते हुए बोले -नहीं ,किन्तु गांव का नाम कुछ सुना हुआ लग रहा है।