डॉक्टर अनंत ने जब गर्वित के मुख से ''बीजापुर गांव'' का नाम सुना तो चौंक गए ,उनको इस तरह चौंकते देखकर गर्वित को शक हुआ ,तब उसने पूछा -क्या आप वहां किसी को जानते हैं किन्तु उससे पहले ही तारा जी ने उनका हाथ दबाया और उन्होंने बात संभाल तो ली किन्तु आँखों के इशारे से तारा जी से पूछा -ये कौन है और यहाँ क्यों आया है ? तारा जी ने भी उन्हें इशारे से शांत रहने के लिए कहा।
सर !हमारे गांव में हमारा बहुत बड़ा घर है, एक तरह से कह लीजिए, हमारी बहुत बड़ी हवेली है, जब मैंने रूही से इसी बात का ज़िक्र किया तो.... उसे हवेली देखने की इच्छा हुई, क्या मैं आपकी बिटिया का यह सपना पूर्ण कर सकता हूं।
डॉक्टर ,इतना तो समझ गए थे ये किस हवेली की बात कर रहा है और शायद ये उसी परिवार से हैं ,तब उन्होंने तारा जी की तरफ देखा ,जैसे पूछ रहे हों -यह सब क्या चल रहा है ?तारा जी ने पलकें झपकाई ,जैसे वो कह रही हों -आप इत्मीनान रखिये !मैं बाद में आपको सब समझा दूंगी।
तब वो गर्वित से बोलीं -बहुत अच्छे तरीके से, पूछ रहे हो ! बेटा !तुम्हारा यह अंदाज हमें पसंद आया किंतु एक बात का विशेष रूप से ख्याल रखना, हमारी बिटिया को सही -सलामत, हमारे घर पर भी छोड़ कर जाना, यह तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है।
जी मैं ख्याल रखूंगा , आपने मेरे कंधों पर, इतना बड़ा भर जो सौंप दिया है इसके लिए मैं आपका ह्रदय से आभारी रहूंगा , कहते हुए सामने से आती रूही को देखकर हंसने लगा।
तुम्हें क्या मैं भार लगती हूं, रूही ने भी गुस्सा करने का अभिनय किया।
अच्छा अब यह सब छोड़ो ! दोनों ही शीघ्र ही आ जाना तारा जी ने बात को समाप्त किया।
ये सब क्या हो रहा है ?रूही उस लड़के के साथ क्यों जा रही है ? वो उसे कैसे जानती है ?उनके बाहर निकलते ही डॉक्टर अनंत के प्रश्न आरम्भ हो गए।
तब तारा जी ने बताया -ये गर्वित उसी ख़ानदान का लड़का है ,उसी हवेली का सदस्य जिसे हमें उन महात्मा ने बताया था हमारी रूही को' डांडिया रास' में मिला था वहीँ इनकी दोस्ती हुई।
ये सब तुम क्या करवा रही हो ?और तुमने मुझे ये सब बताना उचित भी नहीं समझा और उस लड़की को भी तुमने अपनी इस योजना में शामिल कर लिया। तुम जानती हो ,वे कितने ख़तरनाक लोग हैं ?उन्होंने उसे जान से मारने का प्रयास किया था और वो मरते -मरते बची है और तुमने उसे उसी दलदल में फिर से भेज दिया,नाराज होते हुए अनंत ने पूछा।
मैं तुम्हारी फिक्र समझ सकती हूँ किन्तु उसे भी तो सच्चाई जाननी है और यही सोचकर उसने गर्वित को अपना दोस्त बनाया।
तुम समझ नहीं रही हो, उन्हें तनिक भी रूही पर शक हो गया तो फिर से उसकी जान को खतरा हो जायेगा। वो उसे मार भी डालेंगे तो हमें पता भी नहीं चलेगा ,तुम अभी बाहर जाओ !और उन्हें जाकर रोको !
उनकी परेशानी देखकर तारा जी को एहसास हुआ ,शायद उनसे बहुत बड़ी गलती हो गयी है ,फिर सोचा -मैंने ही उसे जाने की इजाज़त दी ,अब मना कैसे करूं ?तभी सोचा -दिनेश को भेज देती हूँ ,वो कह देगा ,पापा ने जाने से मना कर दिया ,यही सोचकर उन्होंने दिनेश को आवाज लगाई।
बाहर से आकर दिनेश कहता है ,वो लोग तो कब के चले गए ?
तुमने एक बार भी मुझे इनकी दोस्ती और इस लड़के के विषय में बताने का प्रयास नहीं किया ,यदि उस लड़की के साथ कुछ भी गलत हुआ तो उसकी जिम्मेदार तुम होंगी। वो तो बच्ची थी, ज़िद कर रही थी ,तुम तो समझदार थीं।
आप परेशान मत होइए !हमारी बेटी बहादुर है ,जब वो इतना सब कुछ झेल गयी तो इस बाहर आ ही जाएगी।
जीप में बैठकर, दोनों [रूही और गर्वित ]खुले आसमान के नीचे, काली सड़क पर उनकी गाड़ी फिसलती जा रही थी।
क्या तुमने अपने मम्मी -पापा को बता दिया, कि मैं आ रही हूं।
उसका प्रश्न सुनकर, वह चुप हो गया फिर बोला -मैं उन्हें आश्चर्यचकित कर देना चाहता हूं , वैसे तो वो इस तरह हवेली में किसी अनजान लड़की का आना पसंद नहीं करेंगे किंतु जब तुम चली ही जाओगी तो फिर निकालेंगे थोड़े ही न.... और दूसरी बात यह है, मम्मी से मैं पहले ही बता चुका हूं।
कोई पूछेगा, तो क्या करोगे ?
कह दूंगा, दोस्त है।
सिर्फ दोस्त ! उसकी आंखों में झांकते हुए रूही ने पूछा।
बीवी हो जाओगी, तो बीवी कहूंगा। हमें तो उस हवेली में रहने की आदत पड़ गई है हमें कुछ भी अलग नहीं लगता किंतु तुम जाना ही चाहती हो तो मुझे देखकर भी अंदाजा लगा सकती थी कि हमारी शान कुछ अलग ही है।
रूही देख रही थी, गर्वित को अपनी शान दिखाने का,अपनी बड़ी हवेली का बड़ा घमंड है, होटल चलाने के अलावा और भी कुछ करते हो।
हमारी संपत्ति इतनी है, हमसे वही संभल जाए वही बहुत है ,तुम क्या किसी नौकरी- पेशा लड़के की कल्पना करती हो, क्या तुम्हें व्यापारी पसंद नहीं है ?
नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है, व्यापार भी अच्छा है, किंतु ईमानदारी से किया हुआ व्यापार ही आगे बढ़ता है , न जाने वह किस सोच में चली गई। अब वे गांव के मोड पर आ चुके थे, इस सड़क को तो वह पहले भी देख चुकी है। उन्हें आते हुए गांव के लोग देख रहे थे, उन्हें इस तरह देखकर गर्वित ने कहा -यहां हमारी शान है। तुम्हें सर पर पल्लू रख लेना चाहिए।
किंतु मैं तुम्हारे परिवार में से अभी जुड़ी नहीं हूं , मैं अभी सिर्फ तुम्हारी दोस्त हूँ।
तुम ठाकुर परिवार की मेहमान हो, और ठाकुर परिवार की मेहमान को अदब से रहना चाहिए, एकदम से उसका चेहरा कठोर हो गया। यह तो अच्छा हुआ, आज भी रूही ने एक सुंदर सा सूट पहना था और उसने चुपचाप दुपट्टा अपने सिर पर रख लिया। अब रस्ते में एक मंदिर दिख रहा था,यह वही मंदिर था जिसके पंडित जी ने उसे आशीर्वाद दिया था, उसने यही सोचा, सिर ढक लेना ही ठीक था यदि पंडित जी ने उसे पहचान लिया, कि वह पहले भी यहां पर आकर जा चुकी है, कुछ गलत ना समझने लगे , क्योंकि पंडित जी बाहर ही खड़े थे उन्हें देखकर रूही ने उस दुपट्टे से चेहरे को ढ़क लिया।
सड़क के मोड़ से ही ,एक जानी पहचानी सी हवेली,नजर आने लगी, उसे देखकर ऐसा लग रहा था , जैसे इसे पहले भी कहीं देखा है ,शायद सपनों में बहुत सुंदर और अच्छी इमारत थी। वह पुरानी नहीं लग रही थी, जैसा अक्सर वह सोच रही थी, उसको बड़े अच्छे तरीके से रखा गया था। गर्वित ने हवेली के मुख्य द्वार पर जाकर, गाड़ी रोक दी और गाड़ी का हॉर्न बजाया कुछ देर पश्चात हवेली का बड़ा सा द्वार खुला और गर्वित की गाड़ी ने अंदर प्रवेश किया, गाड़ी बगीचों से होती हुई ,अपने स्थान पर जा लगी।रूही उस हवेली को आश्चर्य से देख रही थी और सोच रही थी -क्या कभी मैं की बहु थी ?