रंजन के प्रश्न पर शिल्पा को फिर से नित्या की याद आ गई और बोली -दीदी चली गई है न.... उसका विवाह तय हो गया है इसलिए घर थोड़ा शांत है, मम्मी किचन में हैं , यह बात शिल्पा ने जानबूझकर रंजन से कही थी ताकि नित्या के प्रति, उसके मन में थोड़ा सा भी भाव हो तो वह समाप्त हो जाए।
अच्छा, नित्या जी का रिश्ता तय हो गया, हमें पता भी नहीं चला।
अभी तय तो नहीं हुआ है, हां लड़के वाले आएंगे अब देखते हैं क्या होता है ? अंदर प्रवेश करते हुए कल्याणी जी ने कहा।
अरे आंटी जी, आप ! आपको पता चल गया था, कि मैं आया हूं।
इस घर में, मैं बरसों से रह रही हूं, इस घर की हर आहट का मुझे पता होता है, कहते हुए वह कुर्सी पर बैठी और रंजन के लिए चाय नाश्ता लगवा दिया।
चाय- नाश्ता करते हुए , रंजन ने शिल्पा से पूछा -और कोई नई पेंटिंग बना रही हो , कौन-कौन सी नई पेंटिंग्स बनाई हैं ?
अभी तो नहीं बनाई है, एक -दो शुरू की थी, किंतु मन नहीं लगा अभी बीच में ही छोड़ दिया है।
हां, मैं समझ सकता हूं नित्या चली गई है, इसीलिए थोड़ा मन उदास हो गया होगा हालांकि वह सोच रही थी -कि वह कहे -' तुम्हारे न आने के कारण मेरा मन उदास था और पेंटिंग बनाने में मन नहीं लग रहा था।''
हाँ ,सही कह रहे हो ,कोई भी कला दिल से जुडी होती है ,और जब दिल साथ नहीं देता तो विचार ,सोच कहाँ गुम हो जाते हैं ? क्रोध हो तो,कुछ नकारात्मक बन जाता हैं ,ऐसे समय में तुम अपने नियंत्रण में नहीं रहते इसलिए शांत मन से ये कार्य करने चाहिए।
सही कह रही हो, शांत मन से ही जबरदस्त कला और योजना बनती है ,जैसे मेरे काम में भी, यही बात है ,हम जैसे लोगों को शांत ही रहना चाहिए।
शांत रहने का प्रयास तो किया ही जाता है किन्तु अपने आस -पास कुछ न कुछ ऐसा घट ही जाता है ,जिसके कारण मन पर प्रभाव पड़ता है और मन विचलित हो ही जाता है।
यही तो हमारी परीक्षा है ,विपरीत परिस्थिति में हम अपने आपको कैसे संभालते हैं ? लगता है ,तुम बातों को कुछ ज्यादा ही महसूस करती हो।
ऐसा नहीं है ,बातों का असर तो सभी पर पड़ता है किसी की प्रतिक्रिया देर से आती है किसी की शीघ्र ही आ जाती है ,कोई नजरअंदाज कर जाता है और कोई दिल में छुपा लेता है किन्तु उसकी क़सक कभी न कभी महसूस तो होती ही रहती है ,कहते हुए शिल्पा को कुमार की याद आ गयी। गहरी स्वांस लेते हुए ,तब बोली -हम बातों को कितना भी भुलाने का प्रयास कर आगे बढ़ने का अभिनय करने का प्रयास तो करते हैं किन्तु गाहे- बगाहे कभी न कभी वो यादें उन शांत पलों को छेड़ जाती हैं।
मैं समझ सकता हूँ ,कहते हुए रंजन ने शिल्पा का हाथ पकड़ लिया और बोला - ऐसे हादसों से ही, तो हमें बचना है,मैं समझ सकता हूँ ,अब हमें आगे बढ़ जाना चाहिए। शिल्पा समझ नहीं पाई कि वो कहना क्या चाहता है ? रंजन का फिर से उस घर में आना -जाना बढ़ गया।
एक दिन मौका देखकर , कल्याणी जी ने भी, रंजन से, शिल्पा के साथ विवाह की बात छेड़ ही दी क्योंकि उन्होंने नित्या और शिल्पा की बातें सुन ली थीं। उसके घर का भी पता लगाया था, वह अच्छे परिवार से था, खेत- खलिहान थे ,अच्छी बड़ी हवेली थी, उन्हें कभी पता नहीं चला कि उनके लड़के ने कभी शहर की गलियों में, अपनी पढ़ाई के लिए रिक्शा चलाई है । माता-पिता ने देखा, दोनों एक दूसरे को बहुत अच्छे तरीके से समझने लगे हैं, एक दूसरे को पसंद भी करते हैं, यह सोचकर उन्होंने शिल्पा और रंजन से उनके विवाह के विषय में बात करने का निर्णय लिया था ।
वे दोनों कहीं से घूमते हुए आ रहे थे, कल्याणी जी ने प्रसन्न होते हुए पूछा - यह जोड़ी कहां से आ रही है ?
मम्मी मैं और रंजन एक '' आर्ट गैलरी ''में गये थे , आपको पता है, मम्मी ! रंजन, मुझसे कह रहा है -वह मुझे,बहुत ऊंचाइयों पर देखना चाहता है , बड़े-बड़े कलाकारों में मेरा नाम देखना चाहता है।
हम्म्म्म यह तो अच्छी बात है,गंभीर होते हुए उन्होंने कहा -जरा मेरे साथ आना ! कहते हुए वे उस रंजन से अलग ले गयीं और शिल्पा को अलग कमरे में ले जाकर बोलीं - जो तुम, यह सब मिलकर सपना देख रहे हो, अब इस सपने को साथ जीने का प्रयास भी कर लो !
मैं कुछ समझी नहीं।
इसमें न समझने वाली कोई बात ही नहीं है, तुम्हारी बहन नित्या का विवाह तय हो गया है , अब तुमने, अपने लिए क्या सोचा है ? क्या तुम रंजन को पसंद करती हो ? शिल्पा ने रंजन की तरफ देखा और चुप हो गई।
तब कल्याणी जी बाहर आई , रंजन से पूछा -मैं मानती हूं , कि आजकल लड़के- लड़की दोस्ती कर लेते हैं किंतु समाज का एक दायरा है, जो हमें समझना होगा। दोस्ती के सहारे संपूर्ण जीवन नहीं जिया जा सकता है। अब इस दोस्ती को रिश्ते में बदलना होगा , क्या तुम दोनों तैयार हो ?
आंटीजी !ये निर्णय मैं कैसे ले सकता हूँ ?ये अधिकार तो माता -पिता का है।
ये तो अच्छी बात है ,हम तुम्हारी भावनाओं की क़द्र करते हैं ,हम तुम्हारे परिवार से भी बात कर लेंगे किन्तु उससे पहले तो तुम्हें बताना होगा कि शिल्पा तुम्हें पसंद है या नहीं। हमारा तो जो कुछ भी है ,इसी का है ,हमारी इकलौती बेटी है ,इसकी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है किन्तु हम चाहते हैं ,हमारी बेटी जहाँ भी रहे ,खुश रहे ,ये वाक्य उन्होंने जानबूझकर कहे थे ,ताकि उसके मन में 'न' करने का भाव आये ही नहीं ,यदि उसके मन में विवाह न करने का विचार न भी हो तो लालच में आ जाये। क्या करें ?अपनी बेटी के लिए तो सोचना और करना तो पड़ता ही है। ऐसे समय में उन्हें आभास हो रहा था कि एक बेटी का परिवार ,उसके लिए कितना कुछ सहन कर जाता है ? जब लोग उसे देखकर उसकी उपेक्षा करते हैं ,नजरअंदाज करते हैं तो वो भी अपने को विवश पाकर उस दर्द को कड़वे घूंट की तरह पी जाती हैं किन्तु बेटी के सामने वो ऐसा व्यवहार करती हैं ,जैसे वो उनकी परी है।