Khoobsurat [part 61]

नित्या की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी ,एक न एक दिन तो उसे लौटना ही था किन्तु नित्या इस बात से परेशान थी कि जबसे उसकी बात रंजन से हुई थी वो घर नहीं आया था। उसे लग रहा था ,कहीं उसने कुछ गलत तो नहीं कह दिया ,वो जानती है ,शिल्पा और रंजन एक -दूसरे के करीब आ रहे हैं किन्तु कितना क़रीब ?क्योंकि आजकल लड़के -लड़की अपने रिश्ते को सिर्फ दोस्ती है ,कहकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं और अपनी उमड़ती भावनाओं को स्वयं ही स्वीकारना नहीं चाहते ,फिर चाहे उस दोस्ती की आड़ में कोई गलत राह ही क्यों न चुन लें,इसीलिए नित्या भी वही जानना चाहती थी कि यह रिश्ता सिर्फ दोस्ती ही है या फिर कुछ और......  

उधर शिल्पा की बेचैनी भी बढ़ रही थी,आजकल रंजन क्यों नहीं आ रहा है ?फिर सोचा -''मैं उसके लिए क्यों परेशां हूँ ?वो मेरा लगता ही क्या है ?उसकी अपनी इच्छा है , वो आये या न आये,मुझे क्या ?उसे  तो नित्या पसंद करती है। 


गांव से फोन आया ,नित्या बेटा !अब तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो गयी है ,थोड़ी माँ -बाप की भी सुध ले लो ! उन्होंने कल्याणी जी से भी कहा -बेटी तो वैसे ही, पराया धन होती ही है,एक न एक दिन उसे अगले घर जाना है कुछ दिन हमारे पास भी रह जाएगी ,वैसे एक जगह इसके विवाह की बात चल रही है ,हो सकता है ,वहां बात बन जाये। 

भइया !ये तो अच्छी बात है,कि कहीं बात चल रही है ,मैं भी अब शिल्पा के लिए चिंतित हूँ , आपकी बेटी है ,आपका अधिकार बनता है, आपकी जब इच्छा हो बुला लीजियेगा। कल्याणी जी मन ही मन सोच रहीं थीं -नित्या सुंदर है ,भला इसे कौन मना कर सकता है ?किन्तु शिल्पा के लिए न जाने कौन और कहाँ होगा ?किन्तु उन्हें इस बात की ख़ुशी थी कि उसकी पेंटिंग्स पसंद की जा रही थीं। इसकी सुंदरता नहीं तो इसके हुनर को देखकर कोई तो आगे आएगा ?सोचते हुए उन्होंने गहरी स्वांस ली। 

नित्या अब अपने घर जाने की तैयारी कर रही थी ,शिल्पा को आश्चर्य हुआ ,वो तो रंजन को पसंद करने लगी थी,अब क्या हुआ ? न ही रंजन आ रहा है और ये भी जा रही है। क्या इन दोनों के बीच कुछ हुआ है ?किन्तु न जाने क्यों दिल के एक छोटे से कोने में ,उसके जाने से कहीं संतोष और एक उम्मीद जाग उठी थी। हालाँकि यह बात वो स्वयं भी स्वीकार नहीं कर पा रही थी। तब उसने नित्या से पूछा -जा रही हो !

हाँ ,अब फिर कब आओगी ?

देखते हैं ,जब भी मौका मिलेगा ,वैसे तो अब पहले तुम्हें ही आना होगा। 

क्यों ?

क्योंकि पापा ने एक लड़का देखा है, मुझे लड़केवाले देखने आने वाले हैं ,वहां बात बन गयी तो मेरे विवाह में आना होगा। नित्या की बात सुनकर, शिल्पा को आश्चर्य हुआ और'' वो '' उसने पूछा -तुम तो रंजन के लिए बोल रही थीं, फिर रंजन का क्या होगा ?

वही होगा, जो तुम चाहोगी नित्या ने सरलता से कहा। 

 तुम क्या पहेलियां बुझाती रहती हो ? तुमने तो कहा था -कि तुम रंजन को पसंद करती हो। 

नहीं, तुमने गलत सुना था, मैंने कहा था- क्या तुम्हें रंजन पसंद है ? कि मैं पापा से बात कर सकूं। 

फिर तुम ऐसा क्यों पूछ रही थी ? 

तुम्हारे लिए पूछ रही थी, हंसते हुए नित्या ने कहा -क्या मुझे दिखता नहीं है, तुम दोनों कितनी बातें करते हो एक दूसरे के साथ रहते हो, एक दूसरे को समझना भी लगे हो, फिर मैं तुम दोनों के बीच में क्यों आऊंगी ? वह तो मैं तुमसे मजाक कर रही थी, मैं तुम्हारे मन की हालत जानना चाहती थी इसीलिए मैंने तुमसे पूछा था-कि रंजन कैसा लड़का है ? मैं जानना चाहती थी कि तुम्हारी नजरों में रंजन कैसा है ? किंतु तुम्हें मेरे मजाक पर भ्रम हो गया, मैंने रंजन से भी बात की थी किंतु उसने भी, मुझे कोई सही से जवाब नहीं दिया। मैं उसके मन की हालत भी जानना चाहती थी। सोच रही थी, मेरा जाना तो होगा ही, क्यों न जाने से पहले एक रिश्ते में एक मिठास भर दी जाए किंतु वह तो इतना डर गया, वो आया ही नहीं, कहते हुए जोर -जोर से हंसने लगी। 

शिल्पा एकदम खड़ी हुई और नित्या के गले लग गई और भावुक होकर बोली -तुम मेरे लिए कितना सोचती हो ? और मैं तुम्हें गलत समझ बैठी। 

यह कोई नई बात नहीं है , जब कोई किसी के प्रेमी के विषय में बातचीत करता है, तो असुरक्षा की भावना आ जाना स्वाभाविक ही है। वैसे एक बात बताओ !तुम इस तरह असुरक्षित महसूस करोगी , तो प्यार कब करोगी ? यदि उससे प्यार करती हो, तो उसे खुल कर बता दो !

यह बात तो मैं भी कह सकती हूं , यदि वह मुझसे प्यार करता है , तो वह भी तो अपनी बात मुझसे कह सकता है, अब तुम तो जानती ही हो ,' कुमार का धोखा  जब भी स्मरण होता है, किसी पर भी विश्वास करने का दिल नहीं करता, एक भय सा बना रहता है , यही भय मुझे आगे नहीं बढ़ने देता है। हो सकता है,रंजन इस रिश्ते को, दोस्ती तक ही सीमित रखना चाहता हो ! और वह मुझे इनकार कर दे ! तब मैं क्या करूंगी ? तब मैं अपने आप से भी नजरे नहीं मिला पाऊंगी।

 मैं तुम्हारा डर समझती हूं लेकिन कोई अच्छा सा मौका देखकर, प्रयास तो करना, हो सकता है रंजन ही पहल कर दे। चलो !अब मेरी पैकिंग हो गई है , भगवान ने चाहा तो सब अच्छा ही होगा। 

नित्या चली गई थी, उसके जाने के पश्चात घर सूना लग रहा था। नित्या को गए हुए अभी 2 दिन ही हुए थे, तभी रंजन आया, शिल्पा उसे देखते ही बहुत प्रसन्न हुई ,उसका दिल किया कि दौड़कर उसके गले लग जाए और शिकायत भरे लहजे में पूछे -इतने दिनों से कहां थे , क्या कर रहे थे, मिलने क्यों नहीं आए ? किंतु अपने आप  पर नियंत्रण कर बोली -बहुत दिनों पश्चात आए हो , सब ठीक तो है। 

हां, सब ठीक है, काम में बहुत ही व्यस्त हो गया था इसलिए आने का समय नहीं मिल पाया, किंतु तुम्हारे पास तो मेरा फोन नंबर है , फोन तो कर सकती थी, तुमने तो फोन भी नहीं किया , उल्टे रंजन ने उससे शिकायत की। 

मैंने सोचा, तुम व्यस्त होंगे , क्यों तुम्हें परेशान करना ?

ऐसा तुम कब से सोचने लगीं ? तुम्हारा फोन आता तो मुझे अच्छा लगता। 

अच्छा! क्या तुम मेरे फोन की प्रतीक्षा में थे। 

 नहीं, प्रतीक्षा करने का तो समय नहीं था, आ जाता तो प्रसन्नता होती। घर में और लोग कहां गए हैं ? क्या तुम अकेली हो, इधर-उधर झांककर रंजन ने पूछा। 

हाँ ,क्या तुम किसी और को 'मिस 'कर रहे हो ?क्योकि शिल्पा को लगा शायद ये नित्या के लिए कह रहा है ,नित्या ने तो अपना रिश्ता स्पष्ट कर दिया किन्तु रंजन का क्या ? 



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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