Khoobsurat [part 58]

गाड़ी से उतरकर 'रंजन 'अपना परिचय देता है ,तब नित्या उसे घर पर आने के लिए आग्रह करती है। 

 आप सही कह रही हैं,जब इतनी दूर आये हैं, तो घरवालों से मिलना तो बनता है, कहते हुए वो , गाड़ी की तरफ बढ़ता है ,तीनों गाड़ी में बैठ जाते हैं ,गाड़ी में बैठकर वो बताता है - अब मेरी एक बड़ी ही अच्छी कंपनी में नौकरी लग गई है ,मैं रिक्शा चलाता था ,इसीलिए आपने मुझे अपने हैसियत का नहीं समझा।  आप यह मत समझिएगा, कि मैं किसी गरीब परिवार से हूँ। रिक्शा चलाने का अर्थ यह नहीं था ,कि मैं परेशान और मजबूर था। मैं अच्छे परिवार से हूं किंतु मैं अपने दम पर कुछ करना चाहता था, घरवालों की सहायता भी नहीं लेना चाहता था, इसलिए मैंने रिक्शा चलाया ताकि आम लोगों को, पास से समझ सकूँ ,उनके करीब रहकर उनकी जरूरतों और परेशानियों को जान सकूँ।  जीवन में अनेक अनुभव करने चाहिए और मैंने किये भी हैं। कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, बस चाहत होनी चाहिए कि उस कार्य को सुचारू रूप से कैसे किया जाए ? 


 आपने मुझे अपने घर बुलाया ,मैं आपका आभारी हूँ, उसने नित्या से व्यंग्य से कहा। 

नित्या समझ रही थी ,कि ये मुझ पर व्यंग्य कर रहा है। 

तब वो बोली -हां हां क्यों नहीं ? अब तुम इस स्थिति में हो, कि तुम हमारे घर आ सकते हो, तब शिल्पा से बोली -यही ''रंजन ''है। 

शिल्पा उसे देखकर कुछ उदास सी हो गई और बोली -मैं जानती हूं, उस दिन भी मैंने बहुत बड़ी गलती की थी,इनका कहना नहीं माना था, तुमने मुझे इतने बड़े हादसे से बचाया, उसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !

चलो !आप बोली तो सही ,मैं तो सोच रहा था ,आपने मौन धारण किया हुआ है ,बोलने का सारा ठेका, इन्हें ही दे दिया है ,कहते हुए हंसने लगा ,वैसे मुझे लगता है -आज आपने' थैंक्स'  और' धन्यवाद' कहने के लिए ही मुँह खोलने वाली हैं।अरे आप तो एकदम से तुमसे आप पर आ गई।  रंजन समझ नहीं पाया कि यह किस विषय में बात कर रही है? कौन सा हादसा ? फिर उसने सोचा -शायद यह 'ऑडिटोरियम 'वाले हादसे की ही बात कर रही है। वह नहीं जानता था कि नित्या ने उसके विषय में शिल्पा से क्या कहा है ?

घर पर कल्याणी देवी ने, किसी अजनबी को बेटियों के साथ आते देखा ,तो उन्हें बड़ा अज़ीब लगा -और इशारे से नित्या से पूछा -कौन है ? रंजन को, अतिथि कक्ष में बिठाकर, नित्या अपनी बुआ को साथ लेकर अंदर आती है और उनसे बताती है -यह एक बहुत बड़ा अफसर है, एक बार इसने,  एक परेशानी में हमारी बहुत सहायता की थी, आज यह हमें मिल गया, तो इसका धन्यवाद देने के लिए हमने इसे  घर पर बुला लिया। 

 'रंजन ''को  देखकर,वो बहुत प्रसन्न हुईं , बातचीत के दौरान,, बातों ही बातों में पता चला वह तो उनके गांव के नजदीक ही गांव का लड़का है। अब तो उससे जैसे अपनापन बढ़ गया। सभी ने चाय -नाश्ता किया और उसे विदा किया। रंजन के जाते ही , कल्याणी देवी ने कहा -लड़का तो बहुत अच्छा है , क्यों न हम अपनी, शिल्पा के लिए, इससे रिश्ते की बात चलाएं ? तुम्हारी क्या राय है ?

''नेकी और पूछ- पूछ'' अभी यह हमें पहली बार मिला है, हम नहीं जानते, इसके मन में हमारी शिल्पा के लिए क्या विचार हैं और हमारी शिल्पा के मन में इसके लिए क्या विचार है ? यह भी तो जानना होगा। 

वह तो सीधे यही कहेगी - 'तुम उससे बड़ी हो, पहले तुम्हारा विवाह होना चाहिए, कल्याणी जी ने चिंता व्यक्त की किंतु मैं जानती हूं, तुम्हें रिश्तों की कोई कमी नहीं होगी तुम पढ़ी-लिखी समझदार और सुलझी हुई लड़की हो, किंतु तुमने देखा है, शिल्पा किन-किन परिस्थितियों में उलझती रहती है, वह भावुक है, बातों को जल्दी से दिल पर लगा लेती है, किंतु दिल की अच्छी है यदि  इस लड़के को शिल्पा पसंद आती है तो मुझे भी यह लड़का पसंद है।

 तभी पीछे से आकर शिल्पा बोली -हो सकता है ,उसे नित्या पसंद हो। 

यह बात सुनकर कल्याणी जी को अच्छा तो नहीं लगा किंतु उसकी बात को भी, रखने के लिए बोली -मेरी तो दोनों ही बेटियां हैं, विवाह तो दोनों का ही होना है। जिसे भी पसंद करेगा, उसी से इसका विवाह कर देंगे। 

यह क्या बात हुई? बुआ जी! क्या उसकी ही पसंद मायने रखती है। हमारी पसंद -नापसंद का क्या कोई महत्व नहीं है , वैसे आपकी मैं यह गलतफहमी दूर कर देती हूं , उस लड़के को देखकर, मैंने पहले ही, उसे शिल्पा के लिए सोच लिया था। दोनों को मिलने देते हैं, बातचीत करने का मौका देते हैं। हो सकता है, दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगें।  शिल्पा से पूछा -'तुम्हें तो वह लड़का पसंद है या नहीं।' 

शिल्पा, न जाने क्या सोच रही थी ? उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे ? अब उसके जीवन में कुमार तो वापस लौटकर नहीं आएगा , उसे यदि लौट कर आना होता, तो वह मधुलिका से विवाह ही क्यों करता ? क्यों ? मैं व्यर्थ में ही, उसके लिए पागल हो रही थी। चलो, अच्छा ही हुआ , समय रहते ही यह भ्रम टूट गया। हो सकता है, यह रंजन भी किसी से प्यार करता हो , हम वैसे ही ,अपने मन में, खुशियां मनाने लगते हैं। यदि उसके मन में ऐसा कुछ होगा तो वह फिर से मिलने का प्रयास करेगा , अब शिल्पा के मन में, पहले जैसा भाव नहीं रहा, अब जीवन में आए, हर व्यक्ति पर वह संदेह करने लगी है, उसको लगने लगा है , मैं भावुकता में पहले ही धोखा खा  चुकी हूँ , अब'' दूध का जला भी ,छाछ फूंक-फुंककर पीता है।'' 

शिल्पा को ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी, अगले दिन ही, जब वह कॉलेज जा रही थी, रंजन की गाड़ी उसके सामने आकर रुकी, और वो शिल्पा से बोला -आओ, बैठो ! तुम्हें कॉलेज छोड़ देता हूं। 

रंजन का इस तरह अचानक  उसके सामने आ जाना और फिर गाड़ी में बैठने के लिए आग्रह करना , शिल्पा को बड़ा अजीब लगा, वह सोच रही थी - क्या मुझे, इसके साथ जाना चाहिए ? वह आसपास नजरें  घूमा कर देखने लगी,कोई देख तो नहीं रहा है।  उसे ऐसा लग रहा था- जैसे हर कोई उसे ही घूरकर देख रहा है, उसे तुरंत ही निर्णय लेना होगा,वरना तमाशा बन जायेगा।  रंजन के साथ जाना है या नहीं , तभी बिना देर किये  वह ,गाड़ी में बैठ गई। शिल्पा के गाड़ी में बैठते ही रंजन ने, गाड़ी आगे बढ़ा दी और बोला -मेरे साथ आने से पहले, आप बहुत सोच रही थीं , क्या आपको मुझ पर विश्वास नहीं था ? अब तो आपकी मम्मी से भी मुलाकात हो गई है ,या आप मुझे अभी भी वही रिक्शा वाला समझ कर अपने बराबर का नहीं समझ रहीं हैं। 

नहीं ,ऐसी तो कोई बात नहीं है ,शिल्पा ने नजरें झुकाते हुए कहा।  


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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