Khoobsurat [part 57]

तीनों सहेलियां ,मधुलिका के विवाह में शामिल होने के लिए जाती हैं ,वहां अपनी बातों में ऐसे उलझ जाती हैं ,रिया उन्हें मस्ती -मस्ती में बता देती है ,उसका एक 'बॉयफ्रेंड ' 'श्रवण'


है ,जिसको लेकर शिल्पा और प्रिया उसका मज़ाक उड़ाती हैं। 

 इसलिए तो मैं तुम्हें नहीं बता रही थी, मुझे पता था, तुम दोनों मेरा मजाक बनाओगी ,रूठते हुए रिया बोली।

हम मजाक नहीं बना रहीं हैं ,हम तो तुम्हें लेकर खुश हैं किन्तु ये तो बताओ !वो क्या करता है ?

वो भी तो मेरे कॉलिज में ही है ,मेरे साथ ही डॉक्टरी कर रहा है किन्तु मुझसे सीनियर है। 

ये तो बड़ी अच्छी बात है ,दोनों ही एक -दूसरे का इलाज़ कर लिया करेंगे ,चलो ! इसी ख़ुशी में बताओ ! आइसक्रीम खाओगी, लेकर आऊं शिल्पा ने पूछा। 

अरे यार ! क्या हम नहीं बैठे कुछ न कुछ खाते ही रहेंगे, मधुलिका से नहीं मिलना है, जिसके विवाह में आए हैं, उससे नहीं मिलना है।

 मधुलिका का नाम आते ही, शिल्पा के विचारों में फिर से परिवर्तन हो गया,वो तो यही चाह रही थी ,वे सब यहीं बैठी रहें और यहीं से चले जाएँ किन्तु उन दोनों का सोचना भी ठीक था-' जिसके विवाह में आये हैं ,उससे तो मिलना चाहिए'किन्तु शिल्पा विवाह में नहीं ,उनका साथ निभाने के लिए ही आई थी ,तब  वो चुप हो गई। 

आओ, चलो! चलते हैं, आइसक्रीम खाते हुए ही, वहां तक पहुंच जाएंगे प्रिया ने कहा। 

 जब वे तीनों मधुलिका के पास पहुंची, तब तक वह मंच से उतर चुकी थी, और एक अलग कुर्सी पर बैठी हुई थी, उसके फोटो खींचें जा रहे थे, पहले तो, शिल्पा अपनी कोई तस्वीर नहीं खिंचवाना चाहती थी,ज़िद करने पर आगे बढ़ी, चारों की एक तस्वीर ली गई। 

ऐसे समय में ,शिल्पा उसे कुछ कह भी नहीं सकती थी, अचानक ही, उसके मन में न जाने क्या विचार आया और वह फोटो खींचने वाले से बोली -भैया !हमारी एक अलग से फोटो खींच दो ! कहते हुए, मधुलिका की कुर्सी के हथ्थे पर जा बैठी और मधुलिका के कान में बोली -'' सौतन के साथ तस्वीर कैसी रहेगी ? यह तस्वीर तुम्हें जीवनभर याद दिलाती रहेगी कि तुमने किसी का हक छीना है ,'' कहकर हंसते हुए वहां से फोटो खिंचवाकर वापस आ गयी। 

देखने वाले, यही सोच रहे थे -सहेली है, कोई मजाक किया होगा। तीनों सहेलियां उससे विदा लेकर, अपने -अपने घर आ गई।

 मधुलिका का विवाह सम्पन्न हुआ,वह अपनी ससुराल में पहुंच गई थी, जब उपहार खोल कर देखने की बारी आई , कुमार और मधुलिका, समय मिलते ही सभी उपहार खोलकर देखने लगे, जब उन्होंने शिल्पा का उपहार खोला , तो उसमें एक तस्वीर थी , पति-पत्नी और वो के स्थान पर, एक दिल बना हुआ था और दिल के अंदर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा हुआ था। दोनों ने एक दूसरे को देखा।

  कुमार, मधुलिका से बोला  -तुम इस बात को दिल पर मत लो ! इस तस्वीर को फेंक दो ! कोई इस तरह के उपहार देता है, जैसी वह है, वैसे ही, उसने अपनी सोच दिखाई है किंतु न जाने क्यों ? मधुलिका उस तस्वीर को देखकर रोने लगी थी और कुमार से पूछा - इन पति पत्नी के बीच में,' वो ' कौन है ?' मैं' या' वो ' 

वो ही होगी, कहते हुए कुमार में उस तस्वीर को उठाया और कचरे के डिब्बे में फेंक दिया, तब वह बोला -अब हम पति-पत्नी के बीच में कोई ''वो '' नहीं है। तुम क्यों परेशान होती हो ? इन सब बातों को पीछे छोड़ो ! अब हम आगे बढ़ते हैं ,कहते हुए उसने मधुलिका को अपने गले से लगा लिया। 

तुम्हें पता है ,उसने मेरे साथ एक अलग फोटो खिंचवाई ,और जब फोटो खिंच रही थी ,तब वो बोली -एक तस्वीर सौतन के साथ ,अब इसका क्या अर्थ हुआ ?

वो पागल है ,तुम जानती ही हो ,मैं उससे प्रेम नहीं करता ,वो ही मेरे पीछे पड़ी थी ,अब तुम ये सब बातें करके हमारी रात खराब मत करो !कहकर कुमार ने मधुलिका को अपनी तरफ खींच लिया। 

घर पहुंचकर शिल्पा अपने कमरे में कैद हो गयी ,बहुत देर तक बिस्तर में मुँह छिपाये रोती रही ,नित्या ने उससे कुछ नहीं कहा ,उसे रोने दिया। सोचा ,सुबह तक इसका मन धुलकर साफ हो जायेगा और सच्चाई उसे स्पष्ट नजर आने लगेगी ,इस तरह परछाइयों के पीछे भागना व्यर्थ है। प्रातःकाल जब शिल्पा उठी ,उसकी आँखें सूजी हुई थीं ,उसका किसी से भी, बातें करने का मन नहीं कर रहा था। 

जब कल्याणी जी ने उसका चेहरा देखा तो शिल्पा से पूछा -तुझे क्या हुआ है ?तू तो कल विवाह में गयी थी तेरी आँखें इस तरह से क्यों सूजी हुई हैं ,क्या कुछ हुआ है ?

हाँ ,बुआ जी !सहेली के जाने का दुःख जो हुआ है। 

किसी सहेली के जाने का इतना दुःख, कि आँखें ही सूज जाएँ ,आश्चर्य से वो बोलीं -कमाल है ! तेरे लिए भी अब लड़का देखना आरम्भ करना पड़ेगा। 

अभी तो मुझसे बड़ी नित्या है ,वे अपने बोलने में मस्त थीं किन्तु शिल्पा वहां से उठकर जा चुकी थी। 

समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था, धीरे-धीरे समय के साथ विचारों पर धूल पड़ने लगती है।जख़्म धीरे -धीरे भर रहे थे ,एक दिन अचानक शिल्पा और नित्या बाजार जा रहीं थीं ,तभी उनके सामने एक गाड़ी आकर रूकती है ,उस गाड़ी से एक लड़का उतरकर उनके सामने आकर खड़ा हो जाता है। देखने में बड़ा ही हैंडसम लग रहा था। स्त्री किए हुए कपड़े,उसने सूट पहना हुआ था, आंखों पर चश्मा ! दोनों खड़ी होकर उसे देखने लगीं , यह कौन है ? और हमारे सामने आकर क्यों खड़ा हो गया ?और अब हमारी तरफ क्यों देख रहा है ? तब नित्या ने उसे ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखा, उसे कुछ एहसास हुआ ,जैसे इस लड़के को मैंने कहीं देखा है।

 वह लड़का और करीब आया और उन दोनों से बोला- मुझे पहचाना ! मैं रंजन ! कहते हुए उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। 

अरे, वाह ! तुम तो वही रिक्शावाले हो ! तब उसने अपने हाथों के इशारे से नित्या से धीरे बोलने को कहा और बोला -वो मेरी गाड़ी है। 

अच्छा !तो तुम अब, गाड़ी चलाने लगे,हँसते हुए नित्या ने धीरे से पूछा , किन्तु रंजन के चेहरे के भाव पढ़कर हंसी और बोली -मज़ाक कर रही थी।तुम्हारे तो बड़े ठाठ हो गए हैं ,तुम्हें देखकर तो लग रहा है हम किसी बड़े अफसर से बातें कर रहे हैं। उसके जबाब देने से पहले ही उसने शिल्पा की तरफ देखा और उससे कहा -यही ''रंजन ''है ,जिसका ज़िक्र मैंने तुमसे किया था। 

 मैं , जानती हूँ ,उस समय शिल्पा का चेहरा गंभीर था।उसे इस बात का दुःख था ,उस दिन होटल में इसी ने मुझे बचाया याद आते ही बोली -थैंक्स !

किसलिए ?रंजन ने पूछा।  

इससे पहले की शिल्पा कुछ कह पाती ,उससे पहले ही नित्या बोली -अब इतनी दूर आ ही गए हो ,तो आओ ! हमारे साथ घर चलो !


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post