Qabr ki chitthiyan [part 2]

                                                                         पहला सुराग - 

सुबह का उजाला, कमरे में भर चुका था, लेकिन अर्जुन की आंखों में अभी भी, नींद नहीं थी, काव्या ने उसे चाय पीने के लिए कई बार पुकारा था ,अर्जुन  !क्या तुम उठ गए ? चाय पियोगे ! किन्तु अर्जुन तो जैसे कहीं ओर ही खोया हुआ था ,उसका ध्यान यहां नहीं था ,वह खामोश बैठा, खिड़की के बाहर देखता रहा। उसने अपनी हथेली में भूरे रंग की चिट्ठी कसकर दबा रखी थी, जैसे डर रहा हो ,कहीं कोई इसे छीन न ले। 

काव्या जब उसके करीब आई तो, उसने भी, अर्जुन के हाथ में कुछ देखा, ध्यान से देखने पर, उसे एक कागज नजर आया,उसने सोचा -अवश्य ही,इस कागज़ में ऐसा कुछ होगा जिसके कारण अर्जुन परेशान है,उसकी आँखें देखकर बोली -मुझे लगता है , तुम रातभर सोये नहीं हो,तुम्हारी आखें कैसी लग रही हैं ? तब काव्या ने, उसके हाथ से वह कागज झपटने की कोशिश की और पूछा - यह क्या है ?



अर्जुन ने तुरंत अपना हाथ पीछे खींचा, कुछ नहीं......  एक पुराना केस है। 

फिर वही....  अर्जुन, तुम समझ क्यों नहीं रहे हो? यह तुम्हें बर्बाद कर देगा। '' समझाने का प्रयास करते हुए काव्या ने कहा। 

अर्जुन ने धीमी आवाज में कहा -' काव्या ! यह कोई आम केस नहीं है, ये बच्चों की वे चीखें हैं जो अब तक दबी हुई ही नहीं वरन दबाई गयीं हैं। काव्या  के चेहरे पर, ड़र स्पष्ट नजर आ रहा था, तब अर्जुन ने उसे अपने दफ्तर में हुआ' चिट्ठी का संपूर्ण किस्सा 'बतलाया। 

उस क़िस्से को सुनकर काव्या ने पूछा  -' क्या ,मरे हुए लोग, चिट्टियां लिखकर सच बतलाते हैं ?क्या ऐसा कभी हुआ है ? किंतु अर्जुन के पास उसके सवाल का कोई जवाब नहीं था किंतु मन ही मन वह इस सच को, खोजने का निश्चय कर चुका था। 

अर्जुन घर से निकला तो सीधे थाने पहुंच गया , वहां उसका पुराना दोस्त, और शहर का तेज़तर्रार अफसर इंस्पेक्टर राघव उसे मिल गया। राघव ने, उसे देखते ही मुस्कुराकर कहा -आजकल का मशहूर पत्रकार मेरे थाने में.... आश्चर्यचकित होने का अभिनय करते हुए पूछा -बताओ ! इस बार किस मर्डर की बू सूंघ ली है ? 

अर्जुन ने,अपनी जेब से निकालकर,उसकी मेज पर वह चिट्ठी रख दी। राघव ने बड़े ध्यान से वह चिट्ठी पढ़ी फिर हल्की हंसी के साथ बोला -भाई, तुम्हें पता ही है न....  यह सब बकवास है, कोई तुम्हारे साथ मजाक कर रहा है। 

नहीं, राघव! इसमें जो लिखा है, 2008 का' रोहिणी स्कूल हादसा' तुम्हारे पास उसकी फाइल तो होगी। 

स्मरण करने का प्रयास करते हुए राघव बोला -होगी पर.....  उसमें सब क्लियर है,' शॉर्ट सर्किट !'

तो देर किस बात की ?फाइल निकालो !उत्साहित होते हुए ,अर्जुन ने कहा। 

राघव ने भौंहें चढ़ाई, वह नहीं चाहता था कि बंद केस को फिर से खोले , किंतु वह अर्जुन की जिद भी जानता था, कुछ देर पश्चात उसने एक अलमारी से एक बहुत पुरानी धूल जमी , फाइल निकाली। 

फाइल में बस यही था -रिपोर्ट पढ़ते हुए राघव बोला - 'शॉर्ट सर्किट !

मौत- 20 बच्चे !

केस बंद ! कहकर उसने फ़ाइल मेज पर रख दी। 

 अर्जुन मन ही मन सोच रहा था ,ऐसा कैसे हो सकता है ?कुछ तो ऐसा मिलना चाहिए जिससे मुझे इस केस  में आगे बढ़ने में सहायक हो ,उसने मेज पर रखा पानी पीया और उस फ़ाइल को ध्यान से देखने लगा ,तभी उसकी नजर एक हाथ से लिखे नोट पर पड़ी जो फाइल के पीछे चिपका हुआ था, उसमें लिखा था -''असली कारण मत छेड़ो ! ऊपर से आदेश है।'' 

अर्जुन का दिल जोरों  से धड़कने लगा, राघव को अभी भी यह सब मजाक लग रहा था,तब वह बोला -यार ! यह नोट तो किसी' बेवकूफ क्लर्क' ने लिख दिया होगा, ज्यादा दिमाग लगाने की आवश्यकता नहीं है। 

अर्जुन ने सिर हिलाया, नहीं, राघव ! अब मुझे उसी स्कूल जाना होगा। 'वहां जाकर ही सच्चाई का पता लगाना होगा। 

राघव ने हँसते हुए कहा -ठीक है ,तू मानेगा थोड़े न....  मैं भी ,शाम को तेरे साथ चलूंगा किन्तु एक शर्त पर' अगर वहां कुछ न निकला तो तू अपना यह पागलपन छोड़ देगा। '

अर्जुन ने अपनी सहमति जतलाई लेकिन जाने से पहले राघव ने मजाक में कहा -वैसे अर्जुन अगर यह  चिट्ठी सच में किसी कब्र से आई है तो शायद ,उसके लिफाफे पर उस कब्र का पता भी तो लिखा होगा। 

अर्जुन ने उसकी तरफ देखा,थोड़ा मुस्कुराया किन्तु तभी अचानक उसके मोबाइल पर एक नया संदेश  आया - भेजने वाले का कोई नंबर नहीं था ,सिर्फ दो शब्द लिखे थे -'स्कूल आओ !

अब दिन काटे नहीं कट रहा था ,शाम ढलते- ढलते, अर्जुन और राघव दोनों ही रोहिणी सेक्टर 15 के उस पुराने स्कूल के बाहर खड़े थे। स्कूल की इमारत अब खंडहर में बदल चुकी थी, टूटी हुई खिड़कियां, अधजली कुर्सियां , जले हुए क्लास रूम की गंध अभी भी हवा में घुली हुई थी। 

अंदर कदम रखते ही, अर्जुन की रीढ़ की हड्डी में ठंडक सी दौड़ गई ,दीवारों पर जलने के निशान थे , छत से लटकते तार और फर्श पर बिखरी, टूटी बेंचें !अब वहाँ अँधेरा बढ़ गया था।  

इसीलिए राघव ने टॉर्च जलाते हुए कहा - देख भाई ! यहां कुछ नहीं है, इस खंडहर में तुझे क्या मिलेगा ?अब हमें वापस चलना चाहिए। 

अर्जुन चुपचाप एक क्लास रूम की तरफ बढ़ा,उसका दरवाजा अर्ध- खुला था, जैसे कोई अभी-अभी वहां से निकला हो। 

अंदर घुसते ही, उसकी नजर' ब्लैकबोर्ड' पर पड़ी, उस पर चॉक से लिखा हुआ था - ''अर्जुन, मैं यही हूं।'' 

तभी अर्जुन चिल्लाया -देख राघव ! यहाँ कुछ लिखा है ,राघव ने भी उन शब्दों को पढ़ा ,उसने तुरंत ही टॉर्च घुमाई लेकिन कमरे में कोई नहीं था। 

अर्जुन का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा, उसने धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए 'ब्लैक बोर्ड' की ओर अपना  हाथ बढ़ाया, चॉक की लिखावट ताज़ी थी, जैसे किसी ने अभी-अभी लिखा हो। 

अचानक कमरे की खिड़की से तेज हवा का झोंका आया और' ब्लैक बोर्ड 'की लिखावट मिट गई जैसे ही वह झोंका शांत हुआ, उस 'ब्लैक बोर्ड' पर एक नया शब्द उभर आया  - ''क़ब्र ''

अर्जुन और राघव दोनों ठिठक यह देखकर गए राघव ने आश्चर्य से कहा - यह कैसे हुआ ?

अर्जुन फुसफुसाया  -''बस यही तो पता लगाना है।'' 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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