घर आकर, पारो चुगली के रूप में, रूही की संपूर्ण बातें, डॉक्टर साहब और तारा जी को बताती है। वे दोनों उसकी बातें सुनकर हैरत में पड़ जाते है,वे चाहते थे कि रूही, इस विषय में उनसे बातें करें किंतु रूही ने कह दिया -अब बहुत देर हो गई है ,मैं सोने जा रही हूं।
न जाने, यह लड़की क्या सोच रही है और क्या कर रही है ? कुछ भी समझ नहीं आ रहा है तारा जी ने चिंतित स्वर में कहा।
कोई बात नहीं, यदि यह बाहर निकली है तो कोई रास्ता भी निकल आएगा, जिससे इसकी सभी समस्याओं का निदान होगा, डॉक्टर साहब ने कहा।
पारो को लग रहा था, कि मौसा जी और मौसी जी, रूही के चाल- चलन को लेकर, उससे बातें करेंगे ,उसे डाटेंगे या उसे समझाने का प्रयास करेंगे। उस पर उनका विश्वास बढ़ जायेगा ,न जाने उसको, क्यों लगने लगा है ?वे उसकी अपेक्षा, रूही पर अधिक विश्वास करते हैं किंतु उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि वे उसके लिए चिंतित हो उठे। वे रूही से जानना चाहते थे, आखिर वह लड़का कौन था ? किंतु रूही तो अपने कमरे में चली गई थी, तब उन्होंने पारो से पूछा -क्या तुमने, उस लड़के के विषय में जानने का प्रयास नहीं किया,जब वो लोग बातें कर रहे थे ,तब तुम्हें रूही के साथ होना चाहिए था।
आपकी प्यारी बिटिया ने ,मुझे कार्यक्रम में जाने के लिए कह दिया था और स्वयं उस लड़के के समीप बैठकर, अकेले में उससे बातें कर रही थी। कुछ स्मरण करते हुए बोली - हां , जब वह बातें कर रही थी तब मैंने, किसी हवेली का जिक्र तो सुना था किंतु मेरे जाने के पश्चात, दोनों चुप हो गए थे।
डॉक्टर अनंत कुछ देर शांत होकर सोचते रहे और पारो से बोले -बेटा !अब तुम भी, जाकर सो जाओ !हम भी सोते हैं ,कहते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चले।
हवेली का नाम आते ही, दोनों पति-पत्नी, पारो को उसके कमरे में भेजकर, अपने कमरे में आकर तब डॉक्टर साहब तारा जी से बोले -मुझे लगता है, वह लड़का अवश्य ही, हवेली में किसी को जानता है, या उस गांव का होगा इसीलिए हमारी रूही, उसमें इतनी दिलचस्पी दिखला रही होगी ताकि वह हवेली के विषय में, जानकारी जुटा सके।
आप सही कह रहे हैं, हमारी रूही ऐसा कोई भी गलत कदम नहीं उठाएगी और अपने मम्मी- पापा को नहीं बताएगी, ऐसा तो हो ही नहीं सकता, निश्चिंत होकर दोनों पति-पत्नी सो गए।
रूही को भी, कई दिनों से कोई सपना नहीं आया था क्योंकि वह देवी मां के आशीर्वाद से, उनका व्रत -पूजन ,हवन कर रही थी किंतु आज उसे, एक बड़ी इमारत दिखलाई दी, वह इमारत, जिसके अंदर से उसे चीखें सुनाई दे रही थीं। एक बुजुर्ग व्यक्ति, जो उस हवेली को ताक रहा था। कितनी चीखें उसके कानों में गूंज रहीं थी। कुछ अदृश्य नज़रें जैसे उसका पीछा कर रही थीं ,उन नज़रों से बचने के लिए वो अपने आप में सिकुड़ती जा रही थी। कुछ डरावने से भयावह चेहरे भी, उसे दिखलाइ दिए , शायद वे सपने, अब उसे कुछ याद दिलाने का प्रयास कर रहे थे किंतु उन चीजों के कारण डरकर रूही, फिर से उठ गई थी। न जाने, ये स्वप्न मेरा पीछा कब छोड़ेंगे ? घबराते हुए रूही उठी ? उसने अपने आसपास देखा और अपने को सुरक्षित महसूस किया।
तुम आजकल बाहर बहुत रहने लगे हो, कहां जाते हो ?बताकर नहीं जाते।
आप तो जानती ही हैं, इस घर के कल्याण के लिए, किसी न किसी को, कोई न कोई कार्य तो करना ही होगा।
वह तो मैं जानती हूं, हम प्रयास भी कर रहे हैं लेकिन तुम तो जानते ही हो , इस परिवार को सभी जानते हैं, डरते भी हैं, कोई अपनी बेटी इतनी आसानी से, देना नहीं चाहता। अब तो बात इतनी बढ़ गई है, लोग पूछने लगे हैं तुम्हारी, पहली बहू कहां है ?
कितनी बार मैंने लोगों को समझाया है और आस -पास के लोगों से कहा भी है कि वह अपने मायके चली गई है किंतु लोगों को सच्चाई जानने की क्या खुजली होती है? वे उसके घर भी चले गए। उसके माता -पिता को परेशानी हो गयी ,वे यहाँ आ गया ,तब मैंने उन्हें समझाया -बड़े बेटे के साथ, शहर से बाहर गई है किंतु न जाने, क्यों रिश्ते आते हैं और चले जाते हैं ?
तभी तो मैंने सोचा,'' घी सीधी उंगली से नहीं निकल रहा है तो उंगली को टेढ़ा क्यों न कर लिया जाए ?''
तब तुम, अपनी उंगली टेढ़ी करने के लिए कहां गए थे ?
आप तो जानती ही हैं, मैं कहां जा सकता हूं ? जहां ठाकुरों के लिए, कोई सुंदर, सुशील बहू मिल जाए।
क्या बात कर रहे हो ?खुश होते हुए दमयंती जी ने गर्वित की तरफ देखा।
हां, दूसरे शहर में, डांडिया रास'' और ''गरबा नृत्य'' चलता है,अब तक वहीं जा रहा था, और अब आप यह देखिए ! हमारा अच्छा समय आ रहा है, मुझे एक लड़की मिल भी गई है हालांकि वह अपने को बहुत होशियार समझ रही है, मेरे विषय में, परिवार के विषय में, बहुत कुछ जान लेना चाहती है किंतु आपके बेटे पर मोहित हो गई है।कुछ ही दिनों की बात है ,इस घर की नई मालकिन और ठाकुर ख़ानदान की बहु 'रूही ठाकुर' होगी।
क्या उसका नाम' रूही' है ?मन की प्रसन्नता को रोकने का प्रयास करते हुए पूछा -देखने में कैसी है ?
दूध जैसी सफेद ,मक्ख़न जैसी मुलायम ,गुलाब सी नाजुक और केसर सी सुगंध ! उसके विषय में सोचते हुए ,वो जैसे रूही के करीब पहुंच गया।
अच्छा ,तूने उससे बात की थी।
किस विषय में ?
क्या, तू हमारे घर के नियम नहीं जानता है ,क्या उसे सब स्वीकार है ?
ओहो !आपके ये नियम ! गर्वित ख्यालों से जैसे बाहर आया ,आप ही बताइये !आज के समय में ऐसी कौन सी लड़की होगी ,जो सहर्ष ये सब स्वीकार कर लेगी ,कोई मानता नहीं है ,मनवाना पड़ता है। ये नियम कभी इस हवेली जगमगाने नहीं देंगे।
ये नियम मैंने नहीं, तुम्हारी दादी सुनयना देवी ने बनाये थे ,मैं भी इनका शिकार हुई हूँ किन्तु न जाने उन्होंने क्या किया था ?आगे भी यही नियम चलेंगे वरना हवेली का सर्वनाश निश्चित है ,चेतावनी देते हुए दमयंती जी ने कहा।