Qabr ki chitthiyan [part 3]

                                                                       ' ब्लैकबोर्ड का रहस्य'

 कमरा खामोशी में डूबा हुआ था,अर्जुन और इंस्पेक्टर राघव दोनों ठिठके हुए खड़े थे।''ब्लैकबोर्ड ''पर चॉक से उभरे शब्द -“कब्र”

मानो किसी अनजानी ताक़त ने,वे शब्द लिख दिए हों,दोनों आश्चर्य से एक -दूसरे को देख रहे थे।अर्जुन को लगा - शायद, कोई अदृश्य शक्ति हमारे आस -पास है।  

राघव की सांसें भी, जैसे उखड़ने लगीं थीं, उसने तुरंत ही 'टॉर्च की रौशनी '' बोर्ड पर डाली और पास जाकर उस शब्द पर हाथ फेरकर देखा ,शब्द थोड़ा धुंधला तो हुआ, लेकिन मिटा नहीं, जैसे ये शब्द किसी चॉक नहीं, बल्कि किसी और तत्व से लिखा गया हो,वह घबराकर पीछे हट गया ,“ये सब क्या बकवास है…” राघव बुदबुदाया, लेकिन उसकी आवाज़ से डर स्पष्ट  झलक रहा था।


अर्जुन ने धीरे से कहा -“क्या यहाँ कोई है… जो हमें दिशा दिखाना चाहता है।”अर्जुन को लग रहा था ,अवश्य ही यहाँ कोई है ,जो चाहता है कि हम सच्चाई तक पहुंचे। 

राघव ने गुस्से में पलटकर कहा—अर्जुन ! दिमाग़ खराब मत कर...  ये सब किसी इंसान का किया-धरा है। किसी ने लिखा होगा और भाग गया होगा ,वो अपने ड़र को अपने शब्दों से दबा देना चाहता था। 

तब अर्जुन ने पूछा -वो ताज़ा लिखावट क्या थी ? हवा के झोंके से मिटकर दोबारा शब्द उभरना,किसने लिखा ? अर्जुन की आँखों में दृढ़ता थी। ये मज़ाक नहीं, राघव ! मुझे विश्वास है कि ये चिट्ठी लिखने वाला… यानी ‘कब्र से बोलने वाला’ हमें यहीं लेकर आया  है। 

दोनों ने पूरे स्कूल की तलाशी लेने का फैसला किया।हर क्लासरूम में अंधेरा, दीवारों पर जलने के निशान और टूटी मेज़-कुर्सियाँ,लेकिन एक कमरे में घुसते ही अर्जुन ठिठक गया। फर्श पर राख का एक बड़ा ढेर इकठ्ठा था—जैसे किसी ने अभी हाल ही में, वहाँ कुछ जलाया हो।

राख के बीचों-बीच दबा हुआ, एक कागज़।

अर्जुन ने कांपते हाथों से वह कागज़ उठाया। वह एक पुराना पन्ना था, जिस पर वही जानी -पहचानी लिखावट थी—टेढ़ी-मेढ़ी, कांपती हुई -

"बीस बच्चों की आत्माएँ यहाँ नहीं रुक पाईं, उन्हें उनकी कब्र नहीं मिली,अगर सच्चाई चाहते हो तो पुराना श्मशान में ढूँढो !वहीं उनकी आवाज़ें भी मिलेंगी।"

पन्ने के नीचे वही निशान—राख से बना हुआ अंगूठे का निशान !

राघव अब तंग आ चुका था,वह क्रोध में बोला -अर्जुन ! ये सब देख के तुझे नहीं लगता कि कोई हमें फँसा रहा है? कोई पागल है, जो कब्र और आत्माओं का नाटक कर रहा है।”

अर्जुन ने,उसकी बात पर ध्यान दिए बग़ैर वो पन्ना अपनी जेब में रख लिया और बोला -मुझे तो लगता है -' सचमुच किसी की आत्मा न्याय चाहती है।”

“बस करो !ये ड्रामा!” राघव चीख़ पड़ा,और बोला -मैं पुलिस अफ़सर हूँ, तंत्र-मंत्र वाला बाबा नहीं और अगर तू इस भूत-प्रेत के चक्कर में पड़ा, तो मुझे मजबूरी में तुझे भी रोकना पड़ेगा।”

अर्जुन ने गहरी सांस ली और विश्वास के साथ बोला -“राघव… चाहे तू मेरे साथ न भी आए, मैं इस श्मशान तक ज़रूर जाऊँगा। ये सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बीस मासूम बच्चों की आत्माओं का सवाल है।”

राघव खामोश हो गया, उसकी आँखों में गुस्से के साथ-साथ एक झिझक भी थी।

स्कूल से निकलते समय, आसमान में बादल घिर चुके थे और तेज़ हवाएँ पेड़ों को हिला रही थीं। स्कूल के मुख्य द्वार से बाहर निकलते ही अर्जुन ने महसूस किया—जैसे ,कोई उन्हें देख रहा है।

उसने पीछे पलटकर देखा,धुंध के बीच, स्कूल की तीसरी मंज़िल की टूटी खिड़की में एक छायादार मानव आकृति खड़ी दिख रही थी। काली परछाईं… स्थिर, लेकिन साफ़ दिख रही थी।

अर्जुन ने राघव का हाथ पकड़ा और उसे दिखाना चाहा कि मैं गलत नहीं हूँ ,देख! वहाँ… कोई खड़ा है।”

राघव ने अपनी टॉर्च उधर ही घुमा दी ,लेकिन टॉर्च की रोशनी पड़ते ही, वह परछाईं गायब हो गई।

“बस अब बहुत हुआ।” राघव ने झल्लाकर कहा -ये खेल खेलने वाला चाहे इंसान हो या भूत… मैं इसे पकड़कर ही रहूँगा।”

घर लौटकर अर्जुन ने चुपचाप फाइल और वो पन्ना, जो उसे स्कूल में मिला था ,अपने बैग में रखा लेकिन का व्या उसकी बेचैनी पढ़ चुकी थी।

“कहाँ गए थे ?तुम ! उसने कठोर स्वर में पूछा।

“पुराने स्कूल में…” अर्जुन ने आधी सच्चाई बताई,संक्षिप्त शब्दों में ही कहा -किसी केस की जाँच के  सिलसिले में। 

काव्या ने गहरी सांस ली,उसने फिर से समझाने का प्रयास किया -अर्जुन ! तुम क्यों नहीं समझते? ये सब केस तुम्हें अंदर से खा रहे हैं। तुम्हारी आँखें देखो,कैसी हो रही हैं ? नींद नहीं, चैन नहीं,अगर ऐसा ही चलता रहा तो मैं, तुम्हें खो दूँगी।” कहते हुए काव्या रुआंसी हो गयी। 

अर्जुन उसके करीब आया और उसका हाथ थामकर बोला -काव्या ! मैं वादा करता हूँ… ये आखिरी बार है। इस बार सच सामने लाकर रहूँगा।”

काव्या की आँखों में आँसू आ गए,“आखिरी बार… तुम ये बात हर बार कहते हो।”

अगली सुबह अर्जुन और राघव पुराने श्मशान पहुँचे,वह जगह शहर से अलग-थलग थी, घने पेड़ों और ऊँची घास के बीच छिपी हुई।अंदर टूटे-फूटे चबूतरे, आधे जले लकड़ी के ढेर और कुछ पुरानी, काई लगी कब्रें।

हवा में अजीब-सी नमी थी, मानो ज़मीन अब भी किसी की राख से भरी हो।अर्जुन ने चारों ओर देखा और धीरे-धीरे एक कब्र की ओर बढ़ा।उस पर कुछ अक्षर धुंधले से खुदे थे—“अनाम”।

अचानक… उसी कब्र से उसे फुसफुसाहट सुनाई दी।
बच्चों की धीमी, डरी हुई आवाज़ें—
“हमें घर चाहिए…”
“हमें शांति दो…”
“सच बताओ…”

अर्जुन का दिल तेज़ी से धड़कने लगा,राघव ने तुरंत पिस्तौल निकाल ली और बोला -“कौन है, वहाँ? बाहर आओ!”

लेकिन कुछ देर तक कोई जबाब नहीं आया वहां सिर्फ़ एक गहरी खामोशी थी। 

अर्जुन झुककर, कब्र की मिट्टी कुरेदने लगा।कुछ ही देर में उसकी उंगलियों को लकड़ी का टुकड़ा महसूस हुआ उसने अब तेजी से खोदना आरम्भ किया ,वह लड़की का टुकड़ा नहीं वरन एक पुराना बक्सा था, जंग लगा हुआ, आधा टूटा हुआ।

दोनों ने मिलकर उसे बाहर निकाला।बक्से पर भी वही निशान बना था—राख से बना, अँगूठे का निशान ।

अर्जुन ने काँपते हाथों से बक्सा खोला,अंदर एक और चिट्ठी रखी थी ,लेकिन यह चिट्ठी खून जैसे लाल रंग से लिखी गई थी।

उसमें लिखा था:

"तुम्हारा आना तय था,पर अब तुम पीछे नहीं हट सकते,हर कदम पर तुम्हें मौत मिलेगी।
अगला सच जानने के लिए उस आदमी को ढूँढो !जिसने मेरी चिता जलाई थी।
उसका नाम है … गुरुदत्त पांडे।"

अर्जुन और राघव ने एक-दूसरे की ओर देखा,नाम अनजान था, लेकिन डर… बहुत परिचित।

एकाएक ठंडी हवा का झोंका चला,कब्र के चारों ओर रखी सूखी घास अचानक खुद-ब-खुद जल उठी,दोनों उसे देखकर पीछे हट गए ,अग्नि की लपटें आसमान तक उठीं, और हवा में बच्चों की चीख़ें  गूँज उठी।

अर्जुन और राघव पीछे हटे, लेकिन वह बक्सा अब भी अर्जुन के हाथ में था।
और उस पर खून जैसे शब्द चमक रहे थे— “अब मौत तुम्हारे साथ है।”

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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