देवी माँ की शक्ति से ,काव्या की निस्वार्थ प्रार्थना से, काव्या जिस लाल धागे में बंधी थी ,वो धागा टूट गया और वो मुक्त हो गयी। तब महेश्वर, अर्जुन पर अपनी शक्ति का प्रयोग करता है ,जिसके कारण अनेक सर्प अर्जुन की तरफ बढ़ते हैं ,तब काव्या, अर्जुन को सचेत करते हुए चिल्लाई—“अर्जुन! सावधान!”
तब तक पिंजरे की सलाखें पूरी तरह टूट गईं थीं ,दर्जनों आत्माएँ बाहर निकल आईं थी —उनकी आँखों में दर्द था, लेकिन अब कोई डर नहीं था,वे सब महेश्वर की ओर झपट पड़ीं ,उसके चारों ओर घूमने लगीं और उसके मंत्रों को काटने लगीं।
महेश्वर दर्द से चीख़ने लगा—“नहीं… ये संभव नहीं… तुम मेरी हो!”
लेकिन आत्माएँ गरजकर बोलीं—“हम अब किसी की नहीं! हम मुक्त हैं!
महेश्वर को दर्द में देखकर ,तहखाने में अफरातफरी मच गई, डर से सभी साधक भागने लगे, पिंजरे का धातु पिघलकर जमीन पर गिरा।आत्माओं ने महेश्वर को घेर लिया और उसकी शक्ति को कमज़ोर करने लगीं।अर्जुन ने काव्या और राघव का हाथ पकड़ा और बोला—“यही समय है! इसे हमेशा के लिए खत्म करना होगा।”
महेश्वर चीख़ता हुआ घुटनों के बल गिर पड़ा,लेकिन उसकी आँखों में अब भी आग थी,वह जोर से दहाड़ा—“तुम मुझे नहीं हरा सकते… 'क्योंकि मौत भी मेरे साथ है।'
अब तक पिंजरा पूरी तरह से टूट चुका था।अब आत्माएं स्वतंत्र होकर प्रसन्नता से चारों तरफ़ तैर रही थीं—कुछ के चेहरों पर अभी भी दर्द नजर आ रहा था और कुछ के चेहरों पर ग़ुस्सा उभर आया था।वे सब एक स्वर में चीख़ रही थीं—“हमें… मुक्त करो!”“हम अब बँधकर नहीं रहेंगे!”
महेश्वर प्रसाद, जो कुछ पल पहले तक, विजयी ठहाके लगा रहा था, अब वह क्रोध और ड़र के मिलेजुले भावों के कारण काँप रहा था,उसकी आँखें अब भी लाल थीं,धीरे -धीरे उसके अंदर मौत और आत्माओं का भय समाता जा रहा था, वो डर उसकी आँखों से स्पष्ट झलक रहा था।तब महेश्वर ने खुद को सँभाला,उसने अभी भी अपने को बचाने के लिए आस -पास नजर डाली शायद ,कुछ तो ऐसा हो ,जिससे वह अपना बचाव कर सके ,तभी उसे वही चाकू दिखलाई दिया ,जिससे राघव और अर्जुन ने साधक को निशाना बनाया था,महेश्वर ने बड़ी फुर्ती से वो चाकू उठा लिया और उसे उठाकर बिना देर किये अपनी हथेली काटी,उसकी हथेली के कटते ही ,उससे रक्त की बूंदें टपकने लगीं ,जैसे -जैसे वो बूंदें टपक रहीं थीं ,वैसे ही, उसने मंत्र पढ़ना आरम्भ कर दिया—
“ॐ कालाग्नि महादेवाय नमः!”
खून की हर बूँद ज़मीन पर गिरते ही,वहां पर काले धुएँ के विशाल स्तंभ बन गए ,वो धुआँ मिलकर दानव जैसी आकृति बनाने लगा—लाल आँखें, लंबे पंजे और विशाल मुँह।
अर्जुन की साँसें थम गईं।“ये तो… राक्षस है!”
महेश्वर हँस पड़ा।“ये है, मेरी शक्ति का असली रूप,आत्माओं की चीख़ से जन्मा…'' भैरव छाया''!ये अब तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर देगा।”
किन्तु महेश्वर अपने दम्भ में ,इस बात को भूल चुका था कि अब आत्माएँ उसकी क़ैद में नहीं रह गयीं हैं ,अब वे भी चुप नहीं बैठने वाली हैं ,उन आत्माओं ने जब देखा ,महेश्वर अपनी शक्ति को बढ़ा रहा है ,तब उन्होंने भी मिलकर रोशनी का एक बड़ा गोला बनाया—जो उनके मन की तरह सफेद, शुद्ध और गर्माहट से भरा था।वो रोशनी धीरे-धीरे महेश्वर की बनाई'' भैरव छाया'' की ओर बढ़ी ,दोनों ताक़तें भिड़ीं—एक तरफ़ अंधेरे का दानव, दूसरी तरफ़ मासूम आत्माओं की रोशनी।हवा में धमाका हुआ, तहख़ाने की दीवारें काँप गईं।धूल और चिंगारियाँ हर तरफ़ फैल गईं।
अर्जुन, काव्या और राघव पीछे हटकर दीवार से चिपक गए,काव्या डरते हुए बोली—“ये तो दो शक्तियों के मध्य उचित -अनुचित को लेकर युद्ध है… हम बीच में फँस गए हैं!”
राघव ने दाँत भींचे और बोला -“नहीं, अब अर्जुन को ही कुछ करना होगा,ये आत्माएँ अब उसी पर भरोसा कर रही हैं।”
अर्जुन ने गहरी साँस ली,उसके मन में आवाज़ गूँजी—“तूने हमें यहाँ तक पहुँचाया है… अब हमें मुक्त कर।”
ये आवाज़ उन आत्माओं की थी,अर्जुन ने अपनी जेब टटोली और वही डायरी का आधा जला हुआ टुकड़ा, निकाला जो गुरुदत्त की हवेली से मिला था।उस पर अब भी कुछ अक्षर बचे थे,उसने उन्हें ध्यान से पढ़ा—
“जो बँधन आत्माओं को कैद करता है… वही शब्द उन्हें मुक्त कर सकते हैं।”अर्जुन ने कांपती आवाज़ में उन्हें पढ़ना शुरू किया—
“ॐ मुक्तात्मने नमः…
ॐ शांति स्वाहा…”
जैसे ही उसने उन शब्दों को दोहराना आरम्भ किया, वे आत्माएँ और शक्तिशाली होने लगीं ,उनका वह उज्ज्वल प्रकाश फैलने लगा, उस प्रकाश की शक्ति के बढ़ने से ''भैरव छाया'' पीछे हटने लगी।
महेश्वर गरजा—“नहीं! चुप रहो! वो शब्द मत पढ़ो!”कहते हुए ,वह अर्जुन की ओर झपटा।
लेकिन तभी राघव ने अपनी बंदूक उठाकर उसकी ओर निशाना साधा और गरजते हुए बोला -“एक कदम और आगे बढ़ाया … तो गोली मार दूँगा।अर्जुन तुम पढ़ते रहो !मैं इसे देख लूंगा।
मंत्र और आत्माओं की शक्ति से तहख़ाना काँपने लगा,दीवारों से पत्थर टूटकर गिरने लगे।छत से मिट्टी बरसने लगी।
काव्या ने घबराकर कहा—“अगर ये तहख़ाना गिर गया तो हम सब यहीं दबकर मर जाएँगे!”
अर्जुन ने मंत्र पढ़ना जारी रखा -“ॐ आत्ममुक्तये नमः… ॐ शांति शांति…”
रोशनी और तेज़ और तेज होती चली गई,उस प्रकाश में ''भैरव छाया'' चीख़ मारकर बिखर गई, और धुएँ के टुकड़े बनकर मिट्टी में समा गई,'भैरव छाया ''के मिटते ही महेश्वर पागलों की तरह हँसने लगा।
“तुम सोचते हो… तुम जीत गए?तुम्हें पता ही नहीं, असली खेल तो अभी शुरू हुआ है।”तभी ,उसका शरीर काँपने लगा, आँखें उलट गईं और उसके शरीर में जगह -जगह काले घाव उभर आए ,ऐसा लग रहा था मानो आत्माएँ उसके भीतर घुस रही थीं और उसे चीर रही थीं।उसकी हालत देखकर अर्जुन ने चौंककर देखा।“ये… ये इसे क्या हो रहा है ?”
काव्या फुसफुसाई—“शायद आत्माएँ इसे अब निगल रही हैं।”वे इससे अपना बदला ले रहीं हैं ,आत्माएं गोल घेरा बनाकर महेश्वर को घेरने लगीं।उनकी आवाज़ गूँज रही थी —“जिसने हमें कैद किया… अब वही कैद में रहेगा।”
महेश्वर चीख़ रहा था -“नहीं! मैं मालिक हूँ… मैं स्वामी हूँ… मैं…”लेकिन उसकी आवाज़ धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ती चली गई।आत्माओं ने उसे पकड़कर, अपने साथ घसीट लिया—रोशनी और अंधेरे के भँवर में ले गयीं।
क्षण भर में महेश्वर गायब हो गया,सिर्फ़ उसकी गूँजती हुई चीख़ रह गई—“आह्ह्ह्ह्ह्ह…”महेश्वर के गायब होते ही पूरा तहख़ाना हिल गया,दीवारों में दरारें पड़ गईं, छत से बड़े-बड़े पत्थर गिरने लगे।
राघव ने जोर से चिल्लाया—“भागो! ये सब गिरने वाला है!”
अर्जुन ने काव्या का हाथ पकड़ा और सीढ़ियों की ओर दौड़ा,राघव उनके पीछे-पीछे था,पीछे आत्माओं की आवाज़ अब भी गूँज रही थी—“धन्यवाद… हमें मुक्त करने के लिए…”तीनों किसी तरह अपनी जान बचाकर सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए ,सीढ़ियों से चढ़कर जब वे हवेली के आँगन में पहुँचे,और जैसे ही वे उससे बाहर निकले, हवेली ज़ोरदार धमाके के साथ ध्वस्त हो गई, चारों ओर धूल का बादल छा गया।
कुछ देर पश्चात काव्या ने अपनी गर्दन उठाई और हाँफते हुए बोली—“क्या… क्या ये सचमुच खत्म हो गया?”
अर्जुन ने धूल से ढकी अपनी आँखें झपकाई ,उसकी पलकों पर धूल और मिटटी अभी भी लगी हुई थी ,उसने अपनी पलकें झपकाते हुए ,उस हवेली के अवशेषों को देखा ,उन्हें देखकर भी उसके मन में सुकून नहीं लग रहा था ,उसके भीतर अजीब सी बेचैनी थी,तब वो बोला -“पता नहीं…लेकिन महेश्वर ने जो कहा था—‘असली खेल अभी शुरू हुआ है’—वे शब्द मेरे कानों में अभी भी गूँज रहे हैं।