महेश्वर ,ने अपनी हवेली के अंदर तीनों को देख लिया था और अपनी शक्ति का परिचय देते हुए ,उन्हें अपने तहखाने में कैद करने के लिए ले गया था ,जहाँ पर पहले से ही बहुत सारे बच्चों की आत्माएं कैद थीं ,अब महेश्वर उन्हें भी कैद कर लेना चाहता था। अचानक राघव ने अपनी पूरी ताक़त जुटाकर एक साधक के हाथ से उसकी मशाल छीन ली।
उसने जोर से चिल्लाकर कहा—“अर्जुन! पिंजरे को तोड़ो!”
अर्जुन दौड़ा और लोहे के पिंजरे को पकड़ा,लेकिन जैसे ही उसने छूआ,उसे बिजली के जैसा झटका लगा और उसका शरीर पीछे जा गिरा।
महेश्वर गरजा—“ये पिंजरा किसी इंसानी हथियार से नहीं टूटेगा,ये तंत्र के मंत्रों से बँधा है।”
काव्या अर्जुन के पास भागी और रोते हुए बोली—“अब हम क्या करेंगे?”
महेश्वर ने धीरे-धीरे हाथ उठाया और कुछ मंत्र पढ़ने लगा ,अचानक ही ,उसकी हथेली में एक लाल रंग का चाकू चमक रहा था, जो रक्तरंजित था ऐसा लग रहा था,जैसे वो रक्त से बना हो,वह धीरे-धीरे काव्या की ओर बढ़ा और क्रूर हंसी हँसते हुए बोला—“अब अगली बलि तुम्हारी होगी… और तुम्हारी आत्मा मेरे साम्राज्य की सबसे बड़ी शक्ति बनेगी,उसकी ये बात सुनकर राघव और अर्जुन एकदम सकते में आ गए ,कुछ पल के लिए वहां सन्नाटा छा गया।
तहखाने में गहरा सन्नाटा था, लेकिन उस सन्नाटे में डर की धड़कनें साफ़ सुनाई दे रही थीं,किसी के कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करने वाला है और उससे बचाव के लिए हमें क्या करना चाहिए ?
महेश्वर की आँखें काव्या पर टिकी थीं, और उसके हाथ में वो रक्तरंजित चाकू चमक रहा था,काव्या सिहरकर अर्जुन के पीछे छिपी खड़ी थी ,जैसे ही महेश्वर आगे बढ़ा वो दहशत से चीख़ी -“नहीं… मुझे मत मारो !”
अर्जुन अब और भी सतर्क होकर, उसकी ढाल बनकर खड़ा हो गया था और चिल्लाया -“अगर इस पर हाथ उठाया तो तेरी आख़िरी साँस होगी, महेश्वर !!!”
महेश्वर ने ठहाका लगाया -“तेरी जुबान बहुत लंबी हो गई है, पत्रकार ! तुझे, क्या लगता है ?—मैंने हज़ारों बलियाँ ली हैं, और एक तेरा विरोध मुझे रोक देगा?”हहहहह
उसने अपने साधकों की तरफ इशारा किया, महेश्वर के साधक उसके इशारे पर आगे बढ़े ,उनमें से दो ने अर्जुन को पकड़ा और काव्या को ज़बरन पकड़कर वे एक चक्र के मध्य खींचकर ले गए और उसके चारों ओर मंत्रोच्चारण करते हुए ,लाल धागों का घेरा बना दिया गया। तब महेश्वर ने, अपनी झोली से एक छोटा तांबे का कलश निकाला, जिसमें एक गाढ़ा काला तरल पदार्थ भरा था,वह कलश से उस तरल पदार्थ को जमीन पर टपकाने लगा और मंत्र पढ़ने लगा—
“ॐ कालरूपाय नमः…”
“ॐ रक्तपीनेश्वरी नमः…”
जैसे ही ,वह तरल पदार्थ ज़मीन पर गिरा, वहाँ से धुएँ के लहरें उठने लगीं वो धुआँ विभिन्न सांपों की तरह लहराता हुआ ऊपर जा रहा था।
काव्या काँपते हुए रोने लगी।“अर्जुन! ये मुझे मार देगा…”
अर्जुन के भीतर आग भड़क उठी,वह ''क्रोध में आग बबूला हो उठा ''चिल्लाते हुए आगे बढ़ा और महेश्वर पर टूट पड़ा लेकिन जैसे ही वह उसके नज़दीक पहुँचा, अचानक उसका शरीर जैसे ज़मीन से चिपक गया,वो अपने पैर उठाना चाह रहा था ,बहुत प्रयास करने के पश्चात भी, वह विफ़ल रहा —ऐसा लग रहा था ,जैसे कोई अदृश्य हाथ उसे दबोचे हुए है ।
महेश्वर की हँसी गूँजी—“मेरे मंत्रों की पकड़ से कोई नहीं बच सकता,तुम्हारा शरीर भी अब मेरी हवेली का हिस्सा बन चुका है।”
राघव ने तुरंत, अपनी जेब से एक छोटा सा चाकू निकाला और एक साधक पर झपट पड़ा,साधक को पकड़ कर उसका गला रेत दिया ,साधक चीख़ता हुआ नीचे गिरा और उसकी गर्दन पर गहरे कट से खून बहने लगा,उसकी ऐसी हालत देखकर अन्य साधक भी, पलभर के लिए विचलित हो गए।
राघव गरजकर बोला—“अर्जुन! यही मौका है!”
उसी समय लोहे के पिंजरे में कैद आत्माएँ भी ,तेज़ी से काँपने लगीं,उनकी चीख़ें और ऊँची होने लगीं—
“हमें… आज़ाद करो…!”
“हमें यहाँ से निकालो…!”
उनकी पुकार इतनी गहरी और दर्दभरी थी, कि महेश्वर का ध्यान बँट गया ,वह गुस्से से दहाड़ा—
“चुप रहो! तुम सब मेरे क़ैदी हो!”
लेकिन वे आत्माएँ !अब पहले जैसी डरपोक नहीं रहीं,वे पिंजरे की सलाखों से टकराने लगीं ,उनकी हर टकराहट से चिंगारियाँ उठतीं और उनकी चीखें भी क्योंकि उस पिंजरे में मंत्रों का असर जो था।
लोहे के घेरे में बैठी, काव्या की आँखों से आँसू बह रहे थे ,अब उसे लग रहा था, उसका अंत निश्चित है, तभी उसने महसूस किया—आसपास की आत्माएँ उसकी ओर उम्मीद से ताक रही हैं,उनकी नज़रें मदद की गुहार कर रही थीं, और साथ ही उसे विरोध करने की शक्ति भी दे रही थीं किन्तु तब भी काव्या ठीक से समझ नहीं पा रही थी कि वो क्या करे ?
तब अपने को विवश पा काव्या को, ईश्वर का ही सहारा नजर आया ,तब काव्या ने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की—“हे भगवान !अगर मेरी जान जानी ही है… तो इससे पहले इन मासूम आत्माओं को, मुक्त कर दीजिए।”प्रार्थना करते हुए अचानक ही उसका हाथ अपने गले में पड़ी ''माँ दुर्गा ''की छोटी माला पर चला गया ,जो अब तक कपड़ों में छुपी हुई थी ,तुरंत ही उसने उसे बाहर निकाला ,बाहर निकलते ही वह माला चमक उठी,वह माला उसकी माँ ने,उसे शादी के समय दी थी ,जो हमेशा उसके गले में पड़ी रहती थी। उससे एक तेज़ रोशनी निकली और वो बलि का लाल धागा टूट गया,माला की उस शक्ति का ज्ञान तो स्वयं काव्या को भी नहीं था ,उसने प्रसन्नता से देवी माँ को प्रणाम किया। आज अपनी माँ के दिए, उस उपहार का मूल्य काव्या को समझ आया।
जब महेश्वर ने काव्या को उस लाल धागे से मुक्त देखा तो चीख़ उठा—“ये कैसे संभव है?
काव्या ने मौका देखकर, जमीन पर रखा कलश लात मारकर दूर फेंक दिया।काला तरल ज़मीन पर फैल गया और धुआँ तुरंत गायब हो गया।
अर्जुन जो अब तक, उस ताकत से लड़ने का प्रयास का रहा था ,अब उसने पूरी ताक़त से,उस अदृश्य पकड़ से खुद को छुड़ाया क्योंकि उसके समीप काव्या आकर जो खड़ी हो गयी थी, उस ताकत से मुक्त होकर अर्जुन तुरंत ही राघव के पास जाकर खड़ा हो गया,दोनों ने मिलकर एक और साधक को मार गिराया और उसकी मशाल छीन ली।
अर्जुन गरजा—महेश्वर !!!अगर पिंजरा मंत्रों से बना है, तो मंत्रों की आग ही अब इसे तोड़ेगी।”
उसने मशाल पिंजरे की ओर फेंकी, लेकिन उससे कुछ नहीं हुआ,दोनों घबरा गए ,तभी अचानक पिंजरे पर बने अक्षर जलने लगे और पिंजरे की धातु लाल होकर पिघलने लगी।
बच्चों की आत्माएँ जोर से चिल्लाईं—“हमें आज़ाद करो!
महेश्वर गुस्से से कांप उठा,उसकी आँखें खून की तरह लाल हो गईं थीं ।उसने हाथ उठाया और हवा में चाकू घुमाया, अचानक अर्जुन के चारों ओर काले धुएँ की दीवार खड़ी हो गई।
महेश्वर गरजा—“तुम सोचते हो, एक मशाल मेरे साम्राज्य को खत्म कर देगी?मैं वो आग हूँ… जो खुद मौत को निगल जाती है!”उसके शब्दों के साथ ही धुआँ सर्पों में बदल गया और अर्जुन की ओर बढ़ने लगा।