आए वो ! जीवन भर के मेहमान बनकर,
टिक गए यहीं, देखा न फिर पीछे मुड़कर।
जाना है ,एक दिन , सोचा न एक पलभर।
बना अपने घर ,बंगले बैठे ,यहीं जमकर।
मेहमान को इक दिन तो जाना ही होगा।
रिश्तों का कर्ज़ , यहीं पर चुकाना होगा।
मेज़बान बड़े दिलवाला,यहीं छोड़ जाना होगा।
बांधों ! कर्मों की गठरी, किसी ने पुकारा होगा।
उसने भी न देखा ! न कहा ,बसा सबको, खुश रहा,
मेहमान है, जाना तुझको एक दिन, क्यों भ्र्म में रहा?
कमाओ! कर्म की दौलत, लुटाओ ! धर्म की दौलत !
समझा नहीं वो मेहमान,समेटने लगा धन की दौलत !
कुछ मुफ्तखोर मेहमान !कुछ दिल फ़ेंक मेहमान !
कुछ दिनों के मेहमान, कुछ धरती के बोझ मेहमाँ !
कुछ डूबे अपनी धन -दौलत पर करते अभिमान !
भूले यहाँ ,वे बनकर आये, कुछ दिनों के मेहमान।
मेज़बान ! बड़ा कारसाज़! बैठा देख रहा , मुस्कुराता ,
समेट लो !आखिर तुमको जाना होगा ,तुम हो मेहमान !
समय सभी का तय है ,बारी -बारी तुमको जाना होगा।
रातभर बसेरा, पंछी प्यारे ! इक दिन उड़ जाना होगा।