Mehamaan

आए वो ! जीवन भर के मेहमान बनकर,

टिक गए यहीं, देखा न फिर पीछे मुड़कर।

जाना है ,एक दिन , सोचा न एक पलभर। 

बना अपने घर ,बंगले बैठे  ,यहीं जमकर।

 


मेहमान को इक दिन तो जाना ही होगा। 

रिश्तों का कर्ज़  , यहीं पर चुकाना होगा। 

मेज़बान बड़े दिलवाला,यहीं छोड़ जाना होगा। 

बांधों ! कर्मों की गठरी, किसी ने पुकारा होगा।

 

उसने भी न देखा ! न कहा ,बसा सबको, खुश रहा,

मेहमान है, जाना तुझको एक दिन, क्यों भ्र्म में रहा?  

 कमाओ! कर्म की दौलत, लुटाओ ! धर्म की दौलत !

समझा नहीं वो मेहमान,समेटने लगा धन की दौलत !

 

कुछ मुफ्तखोर मेहमान !कुछ दिल फ़ेंक मेहमान !

कुछ दिनों के मेहमान, कुछ धरती के बोझ मेहमाँ  !

कुछ डूबे अपनी धन -दौलत पर करते अभिमान !

भूले  यहाँ ,वे बनकर आये, कुछ दिनों के मेहमान। 


मेज़बान ! बड़ा कारसाज़! बैठा देख रहा , मुस्कुराता ,

समेट लो !आखिर तुमको जाना होगा ,तुम हो मेहमान !

समय सभी का तय है ,बारी -बारी तुमको जाना होगा।

रातभर बसेरा, पंछी प्यारे ! इक दिन उड़ जाना होगा।   


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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