रूही को लेकर, डॉक्टर साहब अपनी पत्नी के साथ' गुची' गांव की तरफ बढ़ रहे थे किन्तु रास्ते में ,कुछ चीजें रूही को पहचानी सी लगीं ,वो याद करने का प्रयास करती है किन्तु कुछ धुंधली यादें ,स्पष्ट नहीं हो रहीं हैं किन्तु उसे लगता है ,इन राहों से अवश्य ही कोई संबंध है,बहुत जोर लगाने पर भी वो समझ नहीं पाती है ,न ही कुछ याद आ रहा था ,तब वो डॉक्टर अनंत से पूछती है -ये जो पीछे गांव गया है ,उसका क्या नाम था ?
क्यों ,तुमने नहीं पढ़ा ,लिखा हुआ तो था -बीजापुर !
अचानक चौंककर वो उछली और बोली -बीजापुर ! मैंने ये नाम कहीं सुना है।
कब और कहाँ ?तारा जी ने पूछा।
यही तो याद नहीं आ रहा। अब वह डॉक्टर साहब से और तारा जी से कुछ छुपाना नहीं चाहती थी , तब उसने पूछा -मैं आपको कहां मिली थी ?
रूही का प्रश्न सुनकर दोनों पति-पत्नी हतप्र्भ रह गए, दोनों ने एक दूसरे को देखा और फिर रूही की तरफ देखा और पूछा -ऐसा तुम क्यों कह रही हो ? तुम तो, हमारी बेटी हो।
मैं मानती हूं,मैं आपकी बेटी हूं किंतु मैं यह भी जानती हूं कि मैं आपको कहीं मिली थी। वही जानना चाहती हूं।
क्या ,तुम यह बात जानती थीं , तारा ने आश्चर्य से पूछा।
गंभीरता से, रूही ने हाँ में गर्दन हिलाई और बोली -जिस दिन आप लोग मेरी सच्चाई पारों दीदी को बता रहे थे, उसी दिन मैंने सब सुन लिया था,ये बात वो भी जानती हैं।
तब तुमने हमें क्यों नहीं बताया ?कि मैं संपूर्ण सच्चाई जानती हूं, डॉक्टर अनंत ने पूछा।
आप लोगों ने मुझे अपनाया था, अपना स्नेह दिया था और मुझे अपनी बेटी मानने लगे थे, और कभी मुझे एहसास नहीं होने दिया कि मैं आप लोगों की बेटी नहीं हूं,उस ढाबे वाले से भी, आपने यही बताया कि मैं नानी के घर गई थी। अब आप ही बताइए ! यह सच्चाई आपको बताकर मैं ,आप लोगों के दिल को दुखाना नहीं चाहती थी, आपके प्यार का अपमान नहीं करना चाहती थी।
तभी डॉक्टर साहब बोले -अरे! याद आया, यह जो गांव गया है इसकी मुख्य सड़क के दूसरी तरफ, ही तुम मुझे मिली थीं। इस बात का दोनों पति-पत्नी को दुख हुआ कि रूही सब सच्चाई जानती है और इतना सब जानते हुए भी इतने दिनों से उसने सच्चाई को हमसे छुपाये हुई थी, ताकि हमें दुख न हो।
कहीं ऐसा तो नहीं, तुम इसी गांव की हो,तारा जी ने संभावना व्यक्त की , यह बात हम किससे पूछेंगे ? तभी डॉक्टर साहब ने गाड़ी रोक दी और गाड़ी का रुख बीजापुर गांव की ओर मोड़ दिया।
यह आप क्या कर रहे हैं ? हम तो दूसरे गांव जाने वाले थे।
हां, उससे पहले अब हम इस गांव में घूम कर आएंगे ,हो सकता है, रूही इसी गांव से हो , इस गांव को देखकर इसे कुछ स्मरण हो आए कहते हुए उन्होंने गाड़ी बीजापुर गांव की सड़क पर दौड़ा दी। यही वे सड़कें और गलियां हैं , जो मुझे सपने में दिखते हैं।
तुम्हें तो, बहुत सी चीजें पहले भी, देखी हुई सी लगती थीं ।
सभी का तालमेल, आसपास से ही है, इसीलिए मुझे सब कुछ देखा-भाला सा लगता था। डॉक्टर अनंत की गाड़ी बीजापुर गांव की ओर बढ़ रही थी। तभी अचानक रूही की आंखें बंद हो गईं जैसे -उसे कोई रास्ता दिखा रहा था। वह बोली -इस सड़क के दाएं तरफ एक मंदिर है , जब मंदिर से आगे हम जाएंगे एक बड़ा सा बरगद का पेड़ आएगा। बरगद के पेड़ से आगे, दो रास्ते हैं , कुछ समझ नहीं आ रहा किधर जाना है ? उसका ध्यान जैसे टूट गया और उसने अपनी आंखें खोली। जब उन्होंने गांव के अंदर प्रवेश किया वास्तव में ही सड़क के दाएं तरफ एक मंदिर था। उन्होंने रूही को वहां पर उतारा और स्वयं भी मंदिर के अंदर प्रवेश किया। गांव के लोगों ने, ऐसे देख रहे थे , जैसे न जाने कौन विदेशी आ गए हों ? तब वे मंदिर के पुजारी से पूछते हैं - क्या यहां पर एक बरगद का पेड़ भी है ?
जी हाँ, आप कहां जाना चाहते है ?
क्या , उसके आगे दो रास्ते हैं, वे दोनों रास्ते किधर जाते हैं ?
एक रास्ता गांव के अंदर प्रवेश करता है तो दूसरा रास्ता ठाकुर साहब की हवेली की तरफ जाता है,आप कहाँ जायेंगे ?पंडित जी ने फिर से प्रश्न किया।
तारा और अनंत ने रूही की तरफ देखा , रूही के चेहरे पर दर्द था। तुम्हें क्या हो रहा है ? उन्होंने पूछा इससे पहले की रूही कुछ कहती, वह बेहोश हो गई।
यह बच्ची कौन है ?
हमारी बेटी है।
क्या, इसकी तबियत ठीक नहीं है ?
हाँ ,एक दुर्घटना के पश्चात से इसकी ऐसी हालत हो गयी है। अच्छा ये बताइये !वो हवेली किसकी है ?
ठाकुर अमर प्रताप सिंह जी की है ,आप क्यों पूछ रहे हैं ?
हमें वहीँ जाना था किन्तु अब हमें वापस जाना होगा क्योकि आप देख ही रहे हैं, हमारी बिटिया की तबियत ठीक नहीं लग रही है।
जरा रुकिए !कहते हुए पंडित जी मंदिर के अंदर गए और देवी माँ का सिंदूर लाकर रूही के मस्तक पर लगा दिया और बोले -ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक हो जायेगा ,कहते हुए रूही पर गंगाजल छिड़का। क्या बिटिया के विवाह की चिंता सता रही है ?
जी ,अभी तो हम इसके स्वास्थ्य को लेकर ही परेशान हैं ,अभी हम जाते हैं फिर कभी आएंगे।
डॉक्टर अनंत, रूही को लेकर' गूची' गांव के लिए रवाना होते हैं ,उन्हें लग रहा था ,हो सकता है ,वे महात्मा इसे ठीक कर सकते हैं। वो मन ही मन सोच रहे थे -क्या जमाना आ गया है ?अब डॉक्टर ही महात्माओं के चक्कर लगा रहा हैं।
क्या सोच रहे हैं ?
कुछ नहीं ,सोच रहा था ,डॉक्टर होकर क्या मुझे इधर -उधर जाना चाहिए था ?
कोई बात नहीं ,डॉक्टर अपना काम करते हैं किन्तु दुआ और आशीर्वाद वे अपना काम करते हैं ,और कुछ नहीं तो, आशीर्वाद तो मिल ही जायेगा।
हाँ ,तुम सही कह रही हो ,उन महात्मा के विषय में पूछते -पाछते वे जगंल में एक कुटिया के सामने अपनी गाड़ी रोक देते हैं। बाहर का नजारा देख रहे थे ,एक पेड़ के नीचे छोटी सी कुटिया थी ,उसके आस -पास थोड़ी सी फुलवाड़ी बना रखी थी।
क्या कोई है ?उन्होंने कुटिया के द्वार की तरफ देखते हुए पूछा। तारा जी से बोले -ये महात्मा गांव में नहीं रहते ,गांव से बाहर जंगल में हैं।
आइये ! आप ही की प्रतीक्षा हो रही थी ,कहते हुए एक पतला सा नौजवान उस कुटिया से बाहर निकला।