Mysterious nights [part 108]

रूही, बेटा चलो! आज तैयार हो जाओ !आज तुम्हें अपने फार्म हाउस पर घूमाकर लाते हैं ,वहां जाकर तुम्हें अच्छा लगेगा, मन को सुकून मिलेगा डॉक्टर अनंत ने कहा।  

क्या?'फॉर्म हाउस '' आपका कोई फार्म हाउस भी है, इससे पहले तो आपने कभी नहीं बताया,अचम्भित होते हुए रूही ने पूछा।  

बताने का समय ही कहां मिला था ? पहले तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं थी फिर तुम अपने सपनों से जूझ रही थीं। तुम्हारे लिए ,हम भी परेशां थे, कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं गया। कोई बात नहीं, आज पता तो चल गया और आज देख भी लेना, आज मेरी भी छुट्टी है, बहुत दिन हो गए,' फार्म हाउस' पर गए हुए, वहीं चलते हैं। आराम से एक सप्ताह वहीँ व्यतीत करेंगे। 



गाड़ी में बैठकर तीनों, फार्म हाउस के लिए निकलते हैं, तब रूही कहती है-पार्वती को भी बुला लेते तो अच्छा रहता, जब पहली बार पार्वती इस घर में आई थी तो रूही को अच्छा नहीं लगा था किन्तु अब पार्वती का साथ उसे अच्छा लगने लगा है। 

 उसकी नौकरी है, उसका अपना काम भी है, जब उसे फुर्सत होगी तब आ जाएगी,मैंने उससे बोल दिया है जब भी फ़ुरसत मिले 'फॉर्म हाउस ''पर आ जाना ,तारा जी ने जबाब दिया। 

सभी गाड़ी में शांत बैठे थे ,गाड़ी अपने गंतव्य की ओर बढ़ती जा रही थी। रूही, गाड़ी में बैठी बाहर के नजारे देख रही थी,तभी बड़े जोरों से उसे गाने की आवाज सुनाई दी। उसने यह देखने के लिए अपनी नजरें घुमाई ही थीं कि कौन है ,जो इतने तेज स्वर में गाने बजा रहा है ,इससे पहले कि वो कुछ देख पाती, तभी एक गाड़ी बडी तेजी से, उनके बराबर में से निकल गयी। दूर जाते हुए कुछ लड़के शोर मचाते हुए ,मस्ती करते हुए आगे जा रहे थे ,उनमें से कुछ उस गाड़ी को देख रहे थे जिसमें डॉक्टर अनंत का परिवार बैठा था। अचानक ही, रूही चिल्ला उठी - बंद करो ! कहते हुए उसने अपने कानों पर हाथ रख लिए। 

डॉक्टर अनंत ने तुरंत ही, गाड़ी रोक दी और रूही से पूछा -क्या हुआ ?तुम ठीक हो ! तब तक वे लोग काफी आगे निकल चुके थे। शोर कम हो जाने के कारण रूही ने अब अपनी आँखें खोलीं ,डॉक्टर अनंत और तारा उसके समीप ही थे। रूही के आँखें खोलते ही उन्होंने पूछा -बेटा !क्या हुआ ?

वो संगीत..... वो गाना..... 

हाँ, कुछ लड़के थे जो मस्ती कर रहे थे ,हमारी तरह ही कहीं पिकनिक मनाने जा रहे होंगे कहते हुए रूही को तारा जी ने पानी दिया। जब रूही ने पानी पीया तब तारा जी ने पूछा -अब कैसा लग रहा है ?

अब ठीक है ,कहते हुए सीधी बैठी और बोली -मैं अब ठीक हूँ आपको परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

 डॉक्टर अनंत फिर से गाड़ी चलाने लगे,तब तारा जी ने पूछा - तुम्हें क्या हुआ था ?

पता नहीं ,उस गाने से ऐसा लग रहा था ,जैसे मेरे कान के पर्दे फट जायेंगे। 

गाना तो हमने भी सुना था ,आवाज तो तेज थी किन्तु इतनी भी तेज नहीं थी,तुम्हें वैसे ही लगा होगा। तुम आराम करो ! ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है ,कहते हुए उसके सिर को अपनी गोद में रखकर सहलाने लगीं। रूही को शीघ्र ही नींद ने अपने आगोश में ले लिया। वही गाना बज रहा था और कुछ ऐसे ही लोग उसके इर्द -गिर्द मंडरा रहे थे। उसे वहशी नजरों से देख रहे थे। रूही बेहद डरी हुई थी ,वो सभी उसके ऊपर झुके हुए थे ,उनकी नजरें उसकी आत्मा तक को भेद गयी थीं और वो चीखकर उठ बैठी। उसकी हालत देखकर डॉक्टर अनंत और तारा जी दोनों ही परेशान हो उठे। 

तभी डॉक्टर अनंत ने कहा - इसके सपनों का संबंध कहीं इसके अतीत से तो नहीं,अब उन्हें भी लगने लगा हो सकता है ,जो अब तक तारा जी कह रहीं थीं ,सही हो ! 

मैं इतने दिनों से आपसे क्या कह रही हूँ ?हो न हो इसके स्वप्न इसके अतीत से जुड़े हैं किन्तु तुम तो मेरी बात न ही सुनना चाहते थे, न ही कुछ समझना चाहते थे,तारा ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की।  

अच्छा ,अब तुमने अपने सपने में क्या देखा ? डॉक्टर अनंत ने पूछा। 

बहुत अजीब सी जगह है ,शायद ,आबादी से दूर है ,वहां ऐसा ही तेज स्वर में गाना बज रहा था और कुछ लोग शराब के नशे में झूम रहे थे और तब वे मेरी तरफ बढ़ने लगे, जिससे ड़र के कारण मेरी नींद खुल गयी। 

लो ,हो गया निर्णय ,ये बात तो अभी की है ,इसके अतीत से इसका क्या संबंध है ?अभी कुछ देर पहले इसने गाना सुना ,जिसके कारण इसके दिमाग़ में वो गाना और उन लड़कों की हरक़तें बैठ गयी और सपने में इसे लगने लगा ,जैसे सब इसकी तरफ बढ़ रहे हैं। ये इसके अंदर का भय है ,जो कोई भी कल्पना कर लेता है।  डाक्टर ने तारा की बात का जबाब देते हुए कहा -ये अपने साथ कोई भी घटना को लेकर, उसे नकारात्मक रूप में ले लेती है और वही डर इसके सपनों में आ इस पर हावी हो, इसे सताता है।

 रूही ! मैं तुम्हारा पिता नहीं ,वरन एक डॉक्टर होने के नाते कहना चाहता हूँ -किसी भी घटना को लेकर उस पर इतना ध्यान नहीं देना है ,वे लड़के इधर से गुज़रकर चले गए ,अब इसमें ऐसा क्या सोचना ?

मैंने सोचा नहीं था ,हाँ ,उस गाने के स्वर को सुन, थोड़ा डर महसूस हुआ था और उन लड़कों की हरक़तें कहते हुए अचानक वह चुप हो गयी। 

हाँ ,बताओ ! तारा जी ने उस पर दबाब बनाते हुए पूछा ,उनकी हरकतों से तुमने क्या महसूस किया ?

कुछ समझ नहीं आ रहा ,ऐसा महसूस हुआ ,जैसे मेरे साथ ऐसा कभी हुआ है ,कहते हुए रूही बच्ची की तरह, तारा के आगोश में सिमटने लगी। 

तारा ने उसका हाथ पकड़ा और सहलाते हुए बोली -क्यों परेशान हो रही हो ?तुम्हारे पापा और मैं तुम्हारे साथ हैं ,हम ,तुम्हें कुछ भी नहीं होने देंगे।

 तभी डॉक्टर साहब ने गाड़ी रोक दी और बोले -आओ !इस ढाबे पर चाय -नाश्ता करते हैं ,ये भजिया बहुत अच्छी बनाता है। तुम्हारा मूड़ भी फ़्रेश हो जायेगा। 

 गाड़ी से उतरते हुए ,रूही ने चारों तरफ देखा ,एक काली नागिन सी बलखाती नंगी सड़क जिस पर दूर -दूर तक कोई दिखलाई नहीं दे रहा था ,उसके आस -पास घने पेड़ों का झुरमुट, उसे ढकने का प्रयास कर रहा था। हवा में ठंडक थी ,जहाँ पर उनकी गाड़ी खड़ी थी ,उसके ठीक सामने एक ढाबा था। वे लोग उस ओर बढ़ चले ,वो ढाबे वाला ,शायद डॉक्टर साहब को पहले से जानता था ,उनको देखते ही मुस्कुराया और बोला -आइये !डॉक्टर साहब !अबकि बार बहुत दिनों पश्चात आना हुआ। 

हाँ ,भई ! समय ही नहीं मिल रहा था ,आज सोचा-चलो , चलते हैं ,वैसे डॉक्टर की कभी छुट्टी नहीं होती किन्तु अपने लिए भी समय निकालना पड़ता है ,यदि डॉक्टर ही बिमार पड़ जाये तो वो किसे दिखायेगा ?कहते हुए हंसने लगे जैसे उन्होंने कोई बड़ा चुटकुला सुनाया हो ,उनकी बात सुनकर वो भी हंस दिया।तब तक उनके सामने भजिया और चाय हाज़िर हो गयी थीं। आप अभी तक भूले नहीं ,आपको स्मरण है ,हमें क्या पसंद है ?

आप हमारे यहाँ सालों से आ रहे हैं ,जब भी इधर आते हैं हमारे यहाँ अवश्य आते हैं ,अबकि बार तो आपकी बिटिया भी साथ है ,पहले कभी नहीं देखा। 

हाँ ,ये अब तक अपनी नानी के यहाँ रहती थी ,अब इसकी नानी नहीं रही ,तो हमें बुलाना पड़ा। 

रूही ,देख और महसूस कर रही थी ,मुझे, ये लोग कभी अपने से नहीं लगे किन्तु इन्होने अपने व्यवहार और बातचीत से कभी भी मुझे पराया महसूस होने नहीं दिया। अपना नाम दिया ,अपनी बेटी होने का सम्मान दिया फिर मैं क्यों अपने अतीत को ढूंढ़ रही हूँ ? यदि पता भी चला गया तो क्या वे मुझे फिर से अपना लेंगे ?क्या मुझे इस परिवार को छोड़कर चले जाना चाहिए ? क्या ये मेरा कदम उचित होगा ?

क्या सोच रही हो ?तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है ,तारा जी के कहने पर उसका ध्यान भंग हुआ। 

कुछ नहीं ,कहते हुए रूही चाय पीने लगी। 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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