बेटी शिखा, किशोरी लाल जी के गले से आ लगी, उसको देखकर, किशोरी लाल जी को, थोड़ा सुकून मिला। जब वह गले मिलकर रो रही थी , तो उनका हृदय भी बहुत ही दुखी था। मन ही मन सोच रहे थे -कुछ ही दिनों में ,इसकी ज़िंदगी क्या से क्या हो गयी ? कहाँ तो बेटी के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना कर रहे थे ,कहाँ आज ये इस हालत में पहुंच गयी है। क्या करते ,रो भी नहीं सकते थे। शिखा को, धैर्य बंधाते हुए बोले - सब ठीक हो जायेगा। मन ही मन सोच रहे थे -इस विवाह से मेरी बेटी को क्या मिला ? उन्होंने उसे अपने से अलग किया और एकांत में ऐसे स्थान पर ले गए, जहां पर उससे बात कर सकें । तब उन्होंने शिखा से पूछा -तुम ठीक तो हो ना। बेटी को विधवा के रूप में, सफेद कपड़ो में देखकर, उनका हृदय रो उठा। उन्होंने महसूस किया, शिखा पहले से बहुत कमजोर हो गई है। क्या तुम परेशान हो ? दुखी हो , क्या किसी ने कुछ कहा है ?
शिखा ने' न ' में गर्दन हिलाई और बोली -मुझे यहां कोई क्या कहेगा ? सभी अपने-अपने में परेशान हैं , आपकी बेटी तो आपके सामने बैठी है, किंतु उनका बेटा तो अब उन्हें कभी नहीं मिलने वाला है।
तब किशोरी लाल जी को लगा -शायद, शिखा' तेजस' के जाने से दुखी तो है ही किंतु उसके अंदर हीन भावना भी पनप रही है , वह सोच रही है, कि तेजस उसके कारण गया है। संपूर्ण जिंदगी इसी 'अपराधबोध ' में जीती रहेंगी। यह तो अच्छा नहीं है, तब वह बोले -जीवन में,जो कुछ होता है, वह सब पहले से ही तय होता है लेकिन हम उसे जान नहीं पाते। तुम तो एक बहाना हो। हो सकता है ,यह बीमारी भी उसके जाने का एक बहाना हो। यदि उसका जीवन इतना ही था, तो वह किसी न किसी बहाने से जाता ही। माध्यम कोई भी हो, उसकी उम्र इतनी ही थी। तुम्हें यह सब नहीं सोचना चाहिए। तुम्हारी मां ने कहा है-'उसे घर लेकर आना 'अब तुम घर चलो !वहां थोड़े दिन आराम से रहना।
आराम तो मुझे यहां भी है, किसी चीज की कोई कमी नहीं है ,उसने किशोरी लाल जी को यह नहीं बताया -कि यहां पर अभी तक उसने किसी से कोई बात नहीं की है न हीं, किसी ने उससे कोई बात की है। अभी तो, वे लोग उसके यहां रहने से प्रसन्न है, अथवा दुखी, नहीं जानती। आगे उनका क्या व्यवहार होता है ? वह नहीं जानती।
पिता को अपने सामने देखकर,अब शिखा को अपने घर जाने की इच्छा बलवती होती है ,वह बोली -हां पापा! मैं आपके साथ जाऊंगी। भावुकता में ,वह यहां आ तो गई ,किन्तु उसे अब लग रहा था। उसका यहां रहना व्यर्थ है। तेजस यहां होता तो कुछ और बात होती लेकिन जब वही, यहां नहीं है तो मैं उस कमरे में कब तक घुटती रहूंगी ? दस दिनों से,वह ऐसे ही कमरे में पड़ी थी, तब उसके विचारों का बदलना स्वाभाविक था।
यही तो मैं कह रहा था, घर चलकर, अपनी पढ़ाई पूरी करना और जीवन में आगे बढ़ना। यहां रहकर क्या करेगी ?
शिखा को अपने पापा की बात उचित लगी , और उनके पास से उठ खड़ी हुई और बोली -पापा !अब मैं आपके साथ चलूंगी।
हाँ , तू तैयार हो जा ! और ये कपड़े नहीं छोड़ देना। जो अपने घर से लेकर आई थी, वही ले चलना , उनसे अपनी बेटी को इस रूप में देखा ही नहीं जा रहा था। आज कई दिनों पश्चात, शिखा के चेहरे पर एक मुस्कान आई किंतु उस मुस्कान को भी, उसने छुपा लिया और अपने कमरे में चली गई। धीरे-धीरे सभी लोग जाने लगे। तब सरपंच किशोरी लाल जी ने भी, उन लोगों से इजाजत मांगी और बोले -अब हम चलते हैं , इजाजत दीजिए। लड़के वालों ने भी हाथ जोड़कर, सहर्ष स्वीकृति दे दी।
तभी उन्होंने, शिखा को अपने कपड़ों की अटैची के साथ, बाहरआते हुए देखा, तो एकदम से चौंक गए. जोर से बंदनी को आवाज़ लगाई -बंदिनी ! बंदिनी !
जी मालिक, वह दौड़ते हुए आई।
तुम बहू का ख्याल नहीं रखती हो, वह देखो ! बहू कहां जा रही है ?
किशोरी लाल जी ने सुना तो बोले -कहां क्या जा रही है ? वह तो मेरे साथ जा रही है।
क्या बहू ने, अपनी सास से पूछा है ? कहते हुए उन्होंने शिखा की तरफ देखा - शिखा ने नजरें नीचे कीं और न में गर्दन हिलाई। जबान में मिठास घोलते हुए बोले -बेटा ! तुमने एक बार भी अपनी सास से नहीं पूछा - मम्मी जी! मैं जाऊं या नहीं। उसे कितना बड़ा है ?सदमा लगेगा, जब उसे पता चलेगा कि तुम उसे बिना बताए ही इस घर से चली गईं ।
यह सुनकर किशोरी लाल जी को भी अपनी गलती का एहसास हुआ और बेटी से बोले -हां बेटा, अपनी सास से इजाजत ले लो! क्या तुमने उनसे नहीं पूछा था ?
उनके इतना कहते ही, शिखा अपने कपड़ों की अटैची वहीं छोड़कर अंदर चली गई। जगत सिंह जी बोले -बिटिया बहुत ही प्यारी है, कहना मानती है अभी तक तो हमारा उससे ठीक से परिचय भी नहीं हुआ। उसे एक अलग कमरा दे दिया गया था ताकि परिवार में यदि किसी को बीमारी हो, तो वह बची रहे। इस बीमारी में, सावधानी भी जरूरी है इसीलिए हमने ज्यादा लोगों को भी नहीं बुलाया , बस कुछ अपने ही लोग थे। मैं मानता हूं, बिटिया घर में अपने को अकेलापन महसूस कर रही होगी किंतु बेटे की तेहरवीं तक तो रुकना ही पड़ता। अभी तक तो उसने अपना ससुराल भी ठीक से नहीं देखा। ख़ैर ! कोई बात नहीं, कुछ दिन मायके रहकर आ जाएगी उसका मन बदल जाएगा।
मन ही मन किशोरी लाल जी सोच रहे थे -अब मैं अपनी बेटी को यहां कभी नहीं भेजूंगा जीवन भर विधवा का कलंक लगाकर, उसे इस तरह जीने नहीं दूंगा। मैं उसको शिक्षित करके, जीवन में आगे बढ़ने के लिए शहर भेज दूंगा। तब मुस्कुराते हुए बोले -बिटिया को अंदर गए हुए, बहुत देर हो गई उसे बुला दीजिए अब तो उसने अपनी सास से इजाजत ले ली होगी।
आती ही होगी, क्योंकि वह भी काफी थकी हुई है, हो सकता है, आराम कर रही हो।
थोड़ी देर पश्चात बंदिनी बाहर आई और शिखा की अटैची उठाकर, वापस जाने लगी।
अरे !तुम यह क्या कर रही हो ? शिखा को शीघ्र भेजो !
साहब !मालकिन ने, बहु जी के कपड़े मंगवाए हैं।
उसे तो अपने घर जाना है।
नहीं, अब वह कहीं नहीं जा रही हैं उनका मन बदल गया है , अब कुछ दिन यही और रहेंगी। इस तरह 'तेहरवीं' करते ही एकदम से नहीं जाते हैं, वह मेहमान नहीं है, इस घर की बहू हैं।
किशोरी लाल जी ने जगत सिंह की तरफ देखा , जगत सिंह जी मुस्कराकर बोले -यह तो महिलाओं का काम है, इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता। हो सकता है, उन्होंने बेटी को रहने के लिए मना लिया हो।