सभी दिनभर के थके थे ,रूही और पारो अपने घर आ जाते हैं और उसके दोस्त वापस हॉस्टल में चले जाते हैं। घर आकर कुछ ख़ाया भी नहीं और दोनों अपने -अपने कमरे में चली गयीं। आज रूही के मन की बेचैनी,उसके मन में उठते अनेक प्रश्न ,उसके अतीत की जिज्ञासा सभी शांत थी। समीर के समझाने पर उसके मन में ,विचारों में, थोड़ा परिवर्तन तो हुआ था इसलिए उसका मन अभी तो शांत ही था इसी कारण आज उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी। वो शांतिपूर्वक अपने कमरे में गयी और बिना कपड़े बदले ही सो गयी ,लेटते ही उसे नींद आ गयी।
आज तो रूही के चेहरे पर मुस्कान दिख रही है,तारा जी ने पारो से पूछा।
क्यों, नहीं होगी ?हमारे साथ घूमकर जो आई है ,मेरा दोस्त समीर है ,न... उसने न जाने,रूही को क्या समझाया है ? तब से शांत है।
क्या वो कोई डॉक्टर है ? डॉक्टर तो नहीं है किन्तु लोगों के मन को पढ़ना, उसे बहुत अच्छे से आता है और जब उसे पढ़ लेता है तो उसके नकारात्मक विचारों को , किस तरह सकारात्मकता में बदलना है ,वो ये कार्य अच्छे से जानता है। मैं रूही को जानबूझकर, उसके पास छोड़कर गयी थी ताकि वो उसे समझा सके। अब देखते हैं ,उसके समझाने से रूही के व्यवहार में अंतर तो आया है किन्तु कितने समय के लिए यह नहीं कह सकती ?
खूबसूरत वादियों में, रूही घूम रही थी ,सब कुछ आज कितना अच्छा लग रहा है ? रूही ,बगीचे में, एक पेड़ के नीचे खड़ी हो जाती है ,जिससे छोटे -छोटे श्वेत वर्ण के पुष्प झड़ रहे थे। रूही को बड़ा अच्छा लगा ,जैसे नए जीवन में, वे उसका स्वागत कर रहे हों। दूर एक पेड़ की शाख पर ,एक चिड़िया अपने घोंसले में जाती है और फिर फुर्र से उड़कर गायब हो जाती है ,तभी एक दूसरी चिड़िया वहां आती है और वो भी कुछ देर वहां रूकती है और वो भी उड़ जाती है। दोनों ही बारी-बारी से यही प्रक्रिया दोहरा रहीं थीं। रूही उन्हें ध्यान से देख रही थी ,तब उसने देखा ,वे एक -एक तिनका लेकर आती हैं ,वे मिलकर उस घोंसले को तैयार कर रहीं थीं। उनका तरह एक -दूसरे का साथ देना ,सहयोग करना ,रूही को बहुत अच्छा लगा।पंछियों में भी यह सहयोग की भावना होती है ,हो सकता है ,ये इसका चिड़ा हो।
अभी रूही ये सब सोच ही रही थी , तभी मौसम बदलने लगता है और तेज हवाएं चलने लगती हैं जिसके कारण वो दोनों चिड़ा और चिड़िया वहां से उड़कर न जाने कहाँ छुप जाते हैं ?और उनका घोंसला हवा में उड़ जाता है ,रूही उस आंधी में खड़ी उस घोंसले को तिनका -तिनका होते देख रही थी।कभी -कभी प्रकृति भी कितनी क्रूर हो जाती है ?इन दोनों ने इसको बनाने में कितना परिश्रम किया ?और भगवान को उन पर तनिक भी तरस नहीं आया। कम से कम उन्हें कुछ दिन बसने तो दिया होता।तभी उसे समीर की कुछ बातें स्मरण हो आईं ,उस ऊपरवाले ने भी तो कुछ सोचा होता है ,हो सकता है ,इसी में इनकी भलाई हो ,सही तो है ,यदि इनका घोंसला बनकर तैयार हो गया होता ,तब चिड़िया अंडे भी दे देती, तब आंधी आती तो इनके अंडे भी टूटते ,हो सकता है ,मोहवश ये इस स्थान को छोड़कर जाते ही नहीं और स्वयं की जान भी गंवा देते कम से कम इनका परिश्रम ही गया है ,जान रही तो दूसरा बना लेंगे।
न जाने क्यों ? रूही का ह्रदय द्रवित हो उठा, आँखों से आंसू बहने लगे। उसे पता ही नहीं चल पा रहा था वो रो रही थी या फिर उस आंधी के पश्चात जो बरसात की बूँदे उसके कपोलों को भिगो रहीं थीं या फिर उसके आंसूं हैं किन्तु उसका मन बहुत ही व्याकुल हो रहा था। उसे लग रहा था ,जैसे इस तूफान ने उसका अपना घर तोड़ डाला हो और वो इस तूफान में कहीं भटक रही है। उस अँधेरे में कहीं खोती जा रही है ,वह वहां से चले जाना चाहती है किन्तु उसके पांव जड़ हो गए हैं ,वो हिल भी नहीं पा रही है।
तभी उसे कुछ आँखें दिखलाई पड़ती हैं, वह उन्हें पहचानने का प्रयास कर रही है किन्तु वे चेहरे विकृत होते जा रहे हैं ,इतने भयानक चेहरे उसका ह्रदय कांपने लगा ,वो चेहरे पल -पल उसकी तरफ बढ़ते जा रहे थे ,उसके करीब और क़रीब आते जा रहे थे ,तभी उसके गले से तेज चीख निकल पड़ती है और इसी डर के साथ ,उसकी नींद खुल जाती है। अभी भी उसे घबराहट हो रही थी ,उस अँधेरे में अभी भी, उसे वही आँखें नजर आ रहीं थीं। घबराकर वो बल्ब जलाती है ,तेज रौशनी से उसकी आँखें बंद हो जाती हैं। धीरे -धीरे वो अपनी आँखें खोलती है और इधर -उधर देखती है ,और जग में से पानी लेकर पीती है। मन ही मन सोचती है ,पता नहीं, ये सपने ! मेरा पीछा कब छोड़ेंगे ?
समीर के समझाने पर उसका मन शांत था ,तभी चिड़िया वाला वो स्वप्न कितना अच्छा आया था ? क्या ये स्वप्न ही था या फिर कोई संकेत !बहुत देर तक बिस्तर में पड़ी ,उसी स्वप्न के विषय में सोचती रही ,न जाने कब उसे नींद आई किन्तु जब उसकी आँख खुली तो कोई उसके कमरे का दरवाजा खटखटा रहा था। अलसाते हुए वो उठती है और दरवाजा खोलती है ,आज उसके सामने चाय की ट्रे लिए ,दिनेश नहीं वरन पारो खड़ी थी। मुस्कुराते हुए बोली -गुड़ मॉर्निंग 'कहूं या ''गुड नून ''कब तक सोती रहोगी ?घड़ी में समय देखा है क्या हुआ है ?तब रूही ने अपनी नजरें घड़ी की तरफ घुमाई और बोली -ओह !इतना समय हो गया ,मुझे पता ही नहीं चला।
रात्रि में ठीक से नींद तो आई थी ,कहते हुए रूही के चेहरे की तरफ देखा। पारो की बात सुनकर रूही को फिर से अपने उसी स्वप्न का स्मरण हो आया और वो चुप हो गयी किन्तु उसके चेहरे पर भाव आ जा रहे थे। क्या फिर से कोई बुरा स्वप्न आया था ?पारो ने प्रश्न किया।
रूही ने हाँ में गर्दन हिलाई और बोली -न जाने, ये स्वप्न मेरा पीछा कब छोड़ेंगे ?
सपना ही तो हैं, तू तो ऐसे परेशान हो रही है, जैसे वास्तविकता में, तेरे साथ कुछ हो रहा हो।
ऐसा ही लगता है, जो भी स्वप्न मैं देखती हूं, वह मेरे साथ व्यतीत हो रहा है, उस सपने मैं जी रही हूं। यह समझ लो ! सोते हुए भी, मैं आराम नहीं कर पा रही हूं , बल्कि उन सपनों को जीती हूं, उनमें डरती हूं, कुछ अलग ही महसूस करती हूं,तभी तो मैं अपना अतीत जानना चाहती थी।
रूही की बात सुनकर पारो सोचने लगी और बोली - तू ऐसा कर, अबकि बार तू, अपनी सोने की स्थिति बदल ले , रूही उसकी बात को नहीं समझी, तब पारो ने पूछा - क्या समझ में नहीं आया ? मेरे कहने का मतलब है, सोने की दिशा और स्थान बदल ले ! वास्तु के अनुसार कहा जाता है -' जिस दिशा में आप सो रहे हैं, उस दिशा में, अच्छी नींद नहीं आ रही है, बुरे स्वप्न आ रहे हैं तो उस स्थान को बदल लेना चाहिए। यह कार्य भी करके देख ले। हो सकता है, वास्तु कार्य कर जाए। अच्छा ! अभी मैं चलती हूं , मुझे आज अपने कॉलेज भी जाना है ,अपनी नौकरी पर भी जाना है।
तुम तो विदेश से पढ़ाई करके आई हो ना, फिर यहां पढ़ाई की क्या आवश्यकता रह गई।
उस पढ़ाई से हमें डिग्री मिलती है किंतु जो पढ़ाई अब मैं कर रही हूं , उससे मेरी उन्नति होगी, अच्छे से और काम सीखना चाहिए, सीखने की कोई उम्र नहीं होती। आज तुम अपने इस पलंग की दिशा बदलो !अबकि बार आऊंगी तो कहीं और घूमने चलेंगे कहते हुए ,वह तीव्रता से कमरे से बाहर निकल गई।