रूही और अपनी पत्नी को साथ लेकर डॉक्टर अनंत अपने' फॉर्म हाउस' पर जाते हैं किन्तु राह में रुककर वे एक ढाबे पर रुकते हैं। जब वो ढाबेवाला ,रूही को देखकर डॉक्टर से पूछता है -ये आपकी बिटिया है ,तब वो जिस तरह से कहते हैं ,उनकी बात सुनकर रूही के विचारों में एक जबरदस्त परिवर्तन आता है। ढाबे से निकलकर वे आगे बढ़ते हैं। तब अचानक ही रूही ने पूछा -अभी और कितनी दूर है ?
अभी एक घंटे का रास्ता बाक़ी है ,क्या तुम बोर हो रही हो ?
नहीं, ऐसे ही पूछ रही थी,उसका दिल कर रहा था कि वो उस दोनों से बातें करते हुए आगे बढ़े ,तभी अचानक बोल उठी -मैं तो यह भी नहीं जानती, मैं कितनी पढ़ी- लिखी हूं ? पढ़ी-लिखी भी हूं या नहीं , क्या मैं भी कोई कार्य सीख सकती हूं ?
डॉ अनंत गाड़ी चला रहे थे, गाड़ी चलाते-चलाते,रूही की बात सुनकर उनके चेहरे पर मुस्कान आई, उन्होंने, गर्दन पीछे की तरफ घूमाकर रूही की तरफ देखा और उससे पूछा -यह बात तुम्हारे दिमाग में कैसे आई ?
पारो, को देखकर, वह अभी भी, पढ़ भी रही है और कुछ सीख भी रही है और नौकरी भी करती है।
हां,यह बात तो सही है, सीखने की तो कोई उम्र नहीं होती, तुम भी सीख सकती हो ,पढ़ -लिख सकती हो किंतु और कोई और विचार तो तुम्हारे मन में नहीं है,तारा जी ने पूछा।
कैसा विचार ?
अभी तो रूही अपने ही विचारों में खोई हुई रहती थी, आज अचानक ही उसने इस तरह से प्रश्न कर दिया था। तब तारा के मन में कुछ अलग ही विचार घूमने लगा,तब वो बोलीं -यही कि तुम नौकरी भी करना चाहती हो।
नहीं, अभी तक तो ऐसा कुछ नहीं सोचा है किंतु मैंने सोचा- सारा दिन बैठी ही रहती हूं, विचारों में खोई रहती हूं इससे तो बेहतर है कुछ सीख लिया जाए।
यह तुमने सही सोचा, जब 'फार्म हाउस' से वापस जाएंगे, तब तुम सोचना, तुम्हें क्या सीखना है ? तुम्हारी मम्मी तुम्हें सब समझा देंगीं।
फार्म हाउस का बड़ा सा मुख्य द्वार, देखकर रूही को कुछ अजीब सा लगा। उसे लगा, जैसे मैंने इतना बड़ा दरवाजा उसने कहीं देखा है, कहां देखा है ? कुछ स्मरण नहीं हो रहा ,कुछ धुंधले से चित्र उभरकर आते हैं और ओझल हो जाते हैं ,तब वे लोग अंदर जाते हैं। खुली -खुली जगह थी, हरियाली थी, फूलों की क्यारियां थीं , पेड़ पौधे थे। रूही, उस स्थान को घूम -घूमकर देखने लगी,एक तरफ 'पूल 'बना हुआ था,जिसमें से नीला जल स्वच्छ और शांत नजर आ रहा था जिसमें से श्वेत बादलों से भरा गगन झांक रहा था। यह सब देख रूही को अच्छा लगा ,अपने को अब इस परिवार और घर से जोड़ने का प्रयास कर रही थी।
डॉक्टर और तारा जी ,अंदर चले जाते हैं ,तब रूही भी अंदर जाने के लिए उस राह पर मुड़ती है ,उस जगह बहुत सारे कमरे थे ,इतने कमरे देखकर ,उसके मन में अज़ीब सी बेचैनी होने लगी ,अपनी बेचैनी को छुपाते हुए , बोली - यह बहुत बड़ी जगह है।
शहर के शोर- शराबे से दूर,शांति की तलाश में,तुम्हारे पापा और मैं कभी-कभी यहां आ जाते थे। तुम्हें यहां आकर अच्छा तो लगा।
हां, अच्छा लगा, एक तरफ'' स्विमिंग पूल'' है तो दूसरी तरफ जंगल ही जंगल था ,उस जंगल को देखकर उसे घबराहट होने लगी और वह वापस आ गई। उसे ऐसा लग रहा था ,जैसे कुछ नई चीजें, उसे देखने को मिल रहीं हैं। उन्होंने खाना खाया, कुछ देर के पश्चात अपने-अपने कमरे में सोने चले गए। आज इस अकेले कमरे में सोते हुए रूही को डर लग रहा था , ऐसा लग रहा था जैसे कोई शीशे की खिड़की में से झांक कर उसे देख रहा है, कभी लगता, कोई जंगल की तरफ से कोई आ जाएगा।एक अनजाना सा भय उसे सता रहा था।
एक बार जाकर उसे देख आओ ! नई जगह है , कोई परेशानी तो नहीं ,पारो होती तो दोनों साथ रहतीं ,डॉक्टर अनंत ने तारा जी से कहा।
बच्ची नहीं है ,किन्तु न जाने कौन सा डर है ?जो उसे रह -रहकर डरा रहा है ,उस मेले में जो महिला मिली थी ,उसके अनुसार तो इसका विवाह हो चुका है।
तुम, ये क्या कह रही हो ?तुमने ,उसकी उम्र देखी है ,तुमने ,मुझे ये बात पहले तो नहीं बताई।
ऐसा कोई प्रसंग ही नहीं आया ,अभी भी ,इसकी उम्र बीस या बाइस वर्ष से अधिक नहीं होगी,स्वयं ही जबाब दिया -गांवों में तो शीघ्र ही विवाह हो जाते हैं। उसके ससुराल वालों ने अवश्य ही सताया होगा ,तभी इसने आत्महत्या का कदम उठाया होगा।
मुझे तो नहीं लगता ,कि ये आत्महत्या करना चाहती थी वरन ये तो सहायता के लिए ही हमारी गाड़ी के सामने आ गयी थी। अच्छा ! एक बार इसे देख आओ !इतनी कम उम्र में न जाने, इसने क्या -क्या सहा होगा ?अपनी यादें तो भूल चुकी है किन्तु उनका बोझ अभी भी ,इसके मानस पटल में कहीं छुपा है ,इसी कारण ये डरती होगी।
रूही को अकेले डर तो लग रहा था इसलिए उसने लाइट भी बंद नहीं की थी ,जब उसे दरवाजे पर आहट महसूस हुई तो उसने तुरंत ही चादर ओढ़ ली। तारा जी ,ने उसके कमरे का दरवाजा खटखटाया ,पूछा -रूही ! तुम ठीक हो ! अंदर से कोई जबाब नहीं आया ,शायद सो गयी है ,सोचकर वापस जाने लगीं ,तभी दरवाजे के नीचे से उन्हें प्रकाश दिखलाई दिया। वे वापस उस दरवाजे के करीब गयीं ,हल्का धक्का दिया ,दरवाजा खुल गया। तारा जी ने अंदर आकर देखा ,रूही तो सोई हुई है किन्तु कमरे की लाइट अभी भी जली हुई थी। उन्होंने कमरे को देखा,ठीक से खिड़कियाँ बंद कीं और लाइट बंद की और कमरे से बाहर आ गयीं। लाइट बंद होते ही ,रूही ने कसकर अपनी आंखें बंद कर लीं। न जाने, उसे कब नींद आई ?
आज उसे सजाया जा रहा है ,उसका विवाह जो हो रहा है ,उसकी सहेलियां और वो बेहद प्रसन्न हैं ,लाड़ो गायी जा रही हैं। तभी जैसे-' कुदरत का कुठाराघात' हुआ ,सब रोने लगीं ,उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वे लोग क्यों रो रहीं हैं ? उसका ह्रदय विषाद से भर उठा ,वो जिसका भी चेहरा देखती है ,उसका रुदन उसे सुनाई पड़ता है। वो सबसे पूछना चाहती है किन्तु कोई भी उसे कुछ नहीं बताता है ,सारे घर में घूम रही है ,परेशान है ,जब वो अपने होने वाले पति की मृत देह देखती है ,तो चीख उठती है और उसकी नींद खुल जाती है। उस सुनसान जगह में ,उसकी ह्रदयविदारक चीख बाहर सो रहे हरिया काका ने भी सुनी।