Khoobsurat [ part40 ]

विनीत को, कुमार के चचेरे भाई सुनील, की कहानी में दिलचस्पी होती है और वह कुमार से जानना चाहता  है- कि आगे क्या हुआ ?

 तब कुमार ,उसे बताता है -मेरा भाई, इस जिंदगी से,बेज़ार हो चुका था। उसे स्नेहा का धोखा , और उसके वे शब्द आगे बढ़ने नहीं दे रहे थे। वह दिन- प्रतिदिन हताश होता जा रहा था ,उसकी आगे बढ़ने की जिज्ञासा जैसे समाप्त हो चुकी थी। रातों को जागता रहता दिन में भी, घर में बंद रहता। माता-पिता उसके लिए चिंतित थे, वे परेशान हो रहे थे, सुनील ने जैसे जीवन में आगे बढ़ने का अपना रास्ता स्वयं ही बंद कर लिया था।घरवाले समझ नहीं पा रहे थे, कि क्या किया जाए, कैसे इसको, इस दुख से बाहर निकाला जाए ?


 तब उन्होंने सोचा, क्यों न इसका विवाह करा दिया जाए , किंतु इसके लिए भी तो भाई को, तैयार करना होगा। यही सब वह लोग, अभी सोच ही रहे थे कि किस तरह विवाह के लिए सुनील को मनाया जाये और यह निर्णय लिया गया ,चाची जी, ही भाई को जीवन में आगे बढ़ने के लिए समझा सकती हैं।  

यही बात करने के लिए ,जब सुनील की मम्मी ,उसके कमरे की तरफ गयीं , तभी जो कुछ भी उन्होंने, उसके कमरे में देखा, उनकी हालत खराब हो गई ,उन्होंने शोर मचाया , पूरा घर भाई के कमरे की तरफ दौड़  पड़ा क्योंकि वे अपने लिए फांसी का फंदा तैयार कर रहे थे। सभी ने दरवाजा खटखटाया, जब उन्होंने दरवाजा नहीं खोला, तो दरवाजा तोड़ दिया गया और उन्हें बचाया गया। 

 माता-पिता का जवान बेटा, जो जीवन से हार मान चुका था , उसे कैसे ? उज्जवल भविष्य की राह दिखाई जाए , उसमें कैसे जीने की उमंगें जगाई जाएं  ?

तब एक दिन, चाचा जी ने कहा -तू, उसके लिए मर सकता है, तो क्या हमारे लिए जी नहीं सकता ? जीवन में, ईश्वर ऐसे अनेक कार्य दे देता है, जिसकी इंसान को अपेक्षा भी नहीं होती यानी कि इस तरह से विपरीत परिस्थितियों में ड़ालकर हमारी परीक्षा लेता है और उस परीक्षा में तू फेल होने जा रहा था। हमने तो जीवन में न जाने कितनी परीक्षाएं दी हैं और उन परीक्षाओं को पास भी किया है और तू एक परीक्षा से ही, हार मान गया। तूने ,आत्महत्या करने से पहले, हमारे लिए एक बार भी नहीं सोचा ,कि मेरे जाने के पश्चात इनका क्या होगा ?जो उम्मीदों की ज्योति जलाये ,सुबह तेरा चेहरा देखकर उठते हैं।  

 अरे ! जब वह तेरे बिना जी सकती है, तो तू क्यों नहीं जी सकता ? जिस पैसे की खातिर, वह तुझे छोड़कर गई है, तू उसे दिखा देता , कि तू असफल इंसान नहीं है, तूने अभी उम्मीदें नहीं छोड़ी हैं। तू कुछ कदम के लिए पीछे गया था, और अब फुर्ती के साथ आगे बढ़ता चला जा ! उसे दिखला दे ! कि यह पैसा तेरे हाथों का मैल है, उस मैल के लिए वो  मेरे 'सोने 'जैसे बेटे को छोड़ गई,कहते हुए चाची भावुक हो उठी। 

 ऐसे समय में ही तो अपनों की पहचान होती है। यदि वो तुझे छोड़ गयी ,इसका मतलब वह तेरे लिए बनी ही नहीं थी। हो सकता है, ईश्वर उसका असली चेहरा, तुझे दिखलाना चाहता था इसीलिए उसने, तुझे इस परीक्षा में डाल दिया। यह परीक्षा तेरी ही नहीं थी, यह उसकी भी परीक्षा थी ,वह भी तो फेल हुई है लेकिन अब तू यह सोच कि किस तरह तुझे इस परीक्षा में, अब आगे बढ़ना है और सफल होना है। यदि तू अपनी जान दे देता, तो अपनी नजर में ही नहीं, हम लोगों की नजर में भी, फेल ही हो जाता। अब तुझे आगे बढ़ना होगा, अपने उसे व्यापार को इतना बढ़ाना होगा कि उसे तुझे छोड़ने पर अफसोस हो,उत्साह में कहते हुए चाचा जी बोले। 

 मां और पिता के वचन सुनकर, सुनील के अंदर उसकी मृत आत्मा ने जैसे पुनः जन्म लिया, उसकी आत्मा पुनः जागृत हो उठी , उसे एहसास हुआ कि तू कितनी बड़ी गलती करने जा रहा था ? एक गैर लड़की के लिए, हालांकि वह उसे दिल से अपना मानता था, अपनों को ही, धोखा देने जा रहा था। तब भाई ने अपने व्यापार पर ध्यान केंद्रित किया सारी बातें भुला दीं और रात- दिन कारोबार में लगे रहते जिसका परिणाम भी बहुत अच्छा आया। आज के समय में वे एक सफल व्यापारी बन गए हैं, हालांकि उनके हृदय में स्नेहा के लिए अभी भी कसक रह गई है, जिसकी टीस कभी-कभी उभर आती है।

 तब उनके घर वालों ने, उनके विवाह के लिए , एक लड़की भी ढूंढ़ ली लेकिन स्नेहा के प्रति उनके मन में जो भाव थे , वो  छुप ना सके। शायद उनके मन में अभी भी एक उम्मीद बाक़ी थी, एक दिन उसे ढूंढते हुए उसी  स्थान पर गए, जहां पर उन्होंने उसे किसी लड़के के साथ देखा था किंतु स्नेहा उन्हें नहीं मिली उन्होंने वहां आसपास पूछताछ की किंतु वहां स्नेहा के विषय में कोई नहीं जानता था कि वो कौन थी और कहाँ गयी ?

 उसे ढूंढते- ढूंढते भाई निराश हो गए, न जाने कहां चली गई या फिर उस शहर को ही छोड़ कर चली गई। तब भाई ने घर वालों की खुशी के लिए, उनकी पसंद की लड़की से विवाह कर लिया और आज, वे अपने घर- परिवार में खुश हैं। 

इस कहानी से तुमने क्या सीख़ ली , विनीत ने पूछा। 

मुझे क्या सीख लेनी होगी, मैंने तो यही जाना कि लड़कियां, लड़कों को अपने मतलब के लिए, उनसे संबंध बनाती हैं और फिर जब उनका, मतलब समाप्त हो जाता है , तो उन्हें किसी के प्यार से या किसी की जिंदगी से कोई मतलब नहीं रह जाता है। मैं भी इस सब बातों को भूला कर,' तमन्ना' की कल्पना करने लगा था, उसकी कलाकृतियों को देखकर उसे मन ही मन चाहने लगा था। मेरे अंदर एक खूबसूरत अक्श उभरता था , जो मेरे जीवन को, आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता और मेरे सुंदर पलों को और भी सुंदर बना देता। 

मैं मानता हूं, कि तुम्हारी वह कल्पना अपनी है , जिसमें कोई वास्तविकता नहीं है, क्योंकि तुमने वास्तव में तो उस' तमन्ना' को देखा ही नहीं था और जब तुमने, उसे देखा, तो वो तुम्हारी कल्पना से परे थी,वह  कुछ अलग थी , क्या मैं सही कह रहा हूं ?

हां यह बात तो सही है, जब नित्या नाम की उस लड़की से' तमन्ना' के रूप में परिचय कराया गया, तब मुझे कुछ अजीब लगा, मैंने महसूस किया ,जैसे , मेरी भावनाएं सिमट कर, कहीं छुप गईं हैं ? जो भाव, प्रतिदिन उसकी कलाकृतियों को देखकर उभरते थे, वे भाव, न जाने कहां सिमट कर रह गए थे ?

तब क्या यह, उस लड़की, की गलती है क्योंकि वह लड़की सुंदर होने की बावजूद भी, तुम्हारे हृदय को स्पर्श न कर सकी , सही है न...... 

यह बात तो सही है किंतु मुझे लग रहा था उसके नाम में, उसके व्यवहार में या उसके जीवन में, कुछ तो झूठ छुपा है, वही झूठ मैं जानना चाहता था और जानने का प्रयास भी किया तब मुझे कुछ लोगों से पता चला।

क्या पता चला ?

चलिए !यही बात जानने के लिए आगे बढ़ते हैं।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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