कुमार ,विनीत को अपने चचेरे भाई सुनील की कहानी सुनाता है और तब उससे कहता है ,शिल्पा के प्रति, मैं जो भी व्यवहार कर रहा हूँ वो बेबुनियाद नहीं है ,उसके पीछे की वजह इन दोनों लड़कियों का झूठ है। जब उसके सामने नित्या 'तमन्ना 'के रूप में सामने आई तो उसे कुछ अच्छा नहीं लगा ,न जाने क्यों उसे नित्या पर विश्वास नहीं होता है कि ये' तमन्ना' हो सकती है ,तब वो नित्या की छानबीन करने के लिए ,नित्या के कॉलिज जाता है ,तब उसे पता चलता है - नित्या नाम की, उस लड़की का 'कला' से तो दूर -दूर तक का नाता नहीं है , वह पेंटिंग बनाना तो दूर ठीक से चित्रकारी भी नहीं जानती है।
मैं, नित्या के कॉलेज भी गया था, वहां जिससे भी मिला, उसने यही जवाब दिया - वह कोई कलाकार नहीं है। हाँ, पढ़ने में अच्छी है। तुम ,मुझे गलत ठहरा रहे थे, कि कम से कम सच्चाई का तो पता लगा लेता और मैंने सच्चाई का पता लगाने का प्रयास भी किया ,मैंने स्वयं, नित्या से भी जानना चाहा, कि क्या वह एक अच्छी चित्रकार है किंतु उसने एक बार भी मुझसे, सच नहीं कहा। यदि वो मुझे अपने नाम की सच्चाई या फिर उस नाम को बदलने की वजह ही बता देती ,तो मुझे अच्छा लगता और मैं उसकी परिस्थितियों को समझ, इन बातों को शायद भूला देता।
तभी उन्हीं दिनों, मेरा परिचय, शिल्पा से होता है। देखने में, रूप- रंग में, वह साधारण लड़की है और जब एक 'चित्रकला प्रतियोगिता' में, वह मुझसे मिली, तब उसने मुझसे कहा -कि वह किसी भी' तमन्ना' को नहीं जानती है इसीलिए वह उससे मिलने आई है किंतु मुझे लगता है ,ये दोनों एक दूसरे को अच्छे से जानती हैं। इस बात पर भी, मुझे क्रोध आया कि इसमें झूठ बोलने की क्या बात थी ? जो सच्चाई थी, सामने आ जाती, उसमें क्या बुराई थी ?
मैंने वह विज्ञापन, नित्या को इसीलिए दिया था ताकि वह प्रतियोगिता में हिस्सा ले और यदि वह प्रतियोगिता में हिस्सा लेती है, और वहां प्रतियोगिता में कुछ तो बनाती और यदि नहीं बना पाती तो उसका झूठ ! मैं, सबके सामने ले आता और उसके उस दौहरे रूप का पर्दाफ़ाश करता।
मेरे विचार से तो यह उन दोनों की, अपनी इच्छा है ,वो अपने किस रूप को, किस तरह लोगों के सामने प्रस्तुत करती हैं। इस बात पर किसी की कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए। वह अपने जीवन की सच्चाई को छुपाने के लिए स्वतंत्र हैं। एक अभिनेता है ,पर्दे पर उसके विभिन्न रूप होते हैं किन्तु उसकी असल ज़िंदगी का, पर्दे वाली ज़िंदगी से कोई सरोकार नहीं होता है। यदि वह अपने जीवन की सच्चाई ,लोगों के सामने नहीं लाना चाहता है ,तो आप उसे मजबूर नहीं कर सकते हैं।
किन्तु उनके प्रशंसक तो उनको जानना चाहेंगे या नहीं ,और जब वो उसके विषय में जानना चाहेंगे ,तो उन्हें एक उम्मीद होती है ,जिसको तुम इतना पसंद करते हो, उसकी वास्तविकता क्या होगी ? कुछ तो उनके इतने प्रशंसक बन जाते हैं ,उनसे जुड़ना ,मिलना ,उनके समीप रहने की तमन्ना कर बैठते हैं और उन कला कृतियों को देखकर मुझे भी उस [तमन्ना ]नाम से प्यार हो गया था और मन ही मन उसे चाहने लगा था। ख़ैर ! अब ये सब छोडो ! मेरा उसके कॉलिज जाने मतलब यह था कि मैं अपने आप को विश्वास दिलाना चाहता था कि वह एक अच्छी चित्रकार है किंतु उसने प्रतियोगिता में भाग लेने से इनकार कर दिया और वही पर्चा मुझे शिल्पा के हाथ में मिला।
जब शिल्पा ,नित्या को जानती ही नहीं थी,तब उसके पास वो विज्ञापन कैसे आया ?तब मैंने जाना , मैं किसी झूठ के साथ, बातचीत करता हूं किंतु मुझे उस झूठ की सच्चाई तक जाना था। तब मुझे अपने भाई का किस्सा स्मरण हो आया और मुझे एहसास हुआ कि मैं भी एक धोखे में जी रहा हूं, दोनों लड़कियां ही एक धोखा हैं , छलावा हैं।
ऐसे सभी नहीं होते, अभी तुमने बताया -कि तुम्हारे भाई ने, जिससे विवाह किया, उसके साथ, तुम्हारा भाई अच्छी गुजर- बसर कर रहा है क्या वो कोई लड़की नहीं है। मेरे कहने का तात्पर्य है, कि सभी लड़कियां एक जैसी नहीं होतीं, इसलिए मैं चाहता था कि तुम आपस में बैठकर बातचीत कर लो ! क्या सही है और क्या गलत है ?
अब वह समय निकल चुका है, तुनक कुमार ने जवाब दिया, अब तो मुझे इनकी असलियत सामने लानी ही है, और'' जैसे को तैसा'' करके दिखाना है, कुर्सी से उठा और बोला -यदि मुझे सच्चाई पता चल जाएगी तो मैं तुझे भी बता दूंगा कि मैं सही था और तू गलत था।
एक दिन शिल्पा और नित्या , मंदिर में पूजा करने के लिए जाती हैं ,'' नवरात्रि'' जो चल रही थी , नवरात्रि पर दोनों ही, देवी मां की पूजा -अर्चना करती थीं, प्रतिदिन मंदिर जाती थीं और व्रत रखती थीं। शिल्पा के पास तो, देवी मां से मांगने के लिए ,एक ही इच्छा थी - कुमार, उसकी जिंदगी में प्रेम की फुहार बनकर आ जाए। वह नहीं जानती थी कि वह देवी मां से क्या मांग रही है ? क्या वह उसके लिए सही होगा, इसकी भी उसने परवाह नहीं की। जिस मंदिर में, शिल्पा पूजा के लिए जाती थी, अचानक ही, उसकी टक्कर कुमार से हो गई कुमार भी, वहां पूजा के लिए आने लगा, यह देखकर और सोच कर शिल्पा को बहुत आश्चर्य हुआ और मन ही मन प्रसन्न भी हुई ,देवी मां को धन्यवाद दिया।
शिल्पा को लग रहा था -कि मेरी भक्ति, श्रद्धा और मेरी अर्चना से देवी माँ प्रसन्न हैं, जो मैं चाहती हूं , मेरी प्रार्थना देवी मां ने सुन ली। न जाने भविष्य के गर्भ में क्या छुपा था ? किंतु अभी तो, शिल्पा को यही लग रहा था कि देवी मां उससे पर प्रसन्न हैं , उनकी कृपा दृष्टि उस पर बनी हुई है इसीलिए तो, कुमार भी इस मंदिर में ही आता है। यह देवी मां का इशारा नहीं तो और क्या है ? वे भी चाहती हैं, हम दोनों मिलें।
जैसे ही नित्या ने , कुमार को मंदिर में देखा वो तुरंत ही, शिल्पा से अलग हो, आगे चली गई किंतु कुमार ने दोनों को एकसाथ पहले ही देख लिया था। वह भी अनजान बना रहा , उनके प्रति जो उसके मन में शक था, वह बढ़ गया ,जबकि नित्या जानती थी ,शिल्पा,' कुमार' को पसंद करती है ,इसीलिए उन्हें एक साथ मिलने का मौका दे रही थी।
शिल्पा का, कुमार के प्रति विश्वास बढ़ता चला गया। यहां तक की दशहरे के मेले में भी, वे दोनों साथ ही पहुंच गए। अब तो शिल्पा, नित्या से भी कुछ नहीं बताती थी, वह कहां जा रही है, किससे मिल रही है और क्यों मिल रही है ?उसे लगता था, जब कुमार, मुझसे बातचीत करता है, मुझसे मिलता है ,मुझसे बातें करना चाहता है तो वो ईर्ष्या से जल उठेगी। जिस लड़के ने, उसे देखा तक नहीं, वह मुझसे मिलता है, यह क्या कम बड़ी बात है ? लेकिन वह यह नहीं जान पाई कि वह कहीं फँस तो नहीं रही है। यह झूठ का भ्रमित जाल था जिसमें वह एक छोटी सी कीट मात्र थी और वह उस जाल में फँसती जा रही थी, जिसके आकर्षण में शिल्पा बहती जा रही थी ।