यह खबर कॉलेज में ही नहीं वरन पूरे शहर में फैल गई थी, उस खबर को मधुलिका ने भी पढ़ा था और वह जानती थी कि कुमार, शिल्पा को लेकर उस'' रोमानिया होटल'' में गया है। वह नहीं चाहती थी, कि कुमार, शिल्पा से मिले किंतु कुमार का बदला और उसका क्रोध, देखकर मधुलिका ने उसे नहीं रोका। वह जानती थी- कि जिसके साथ वह जा रहा है, वह मेरी दोस्त है किंतु इतना भी जानती है कि वह कुमार को लेकर,थोड़ा परेशान रहती है,उससे प्यार जो करने लगी है, किन्तु कुमार, शिल्पा को नहीं ,मुझे पसंद करता है, यहाँ मधुलिका का स्वार्थ और उसकी विवशता दोनों ही शिल्पा के साथ, कुमार को जाने से नहीं रोक पाते हैं।
मधुलिका का स्वार्थ यही है कि कुमार उससे प्यार करने लगा है और उससे विवाह का वायदा भी किया है और विवशता यही है कि वह शीघ्र ही, अपने घर से दूर चले जाना चाहती है क्योंकि उसकी भाभी उसे आराम से रहने नहीं देना चाहती है ,वो चाहती है, कि शीघ्र ही,मधुलिका विवाह करके यहां से चली जाये ,ऐसे में अब मधुलिका को कुमार का साथ मिल जाना ,उसके जीवन के लिए, सबसे बड़ी राहत की बात है, इसीलिए सब कुछ जानते हुए भी, उसे कुमार का साथ देना पड़ रहा है। यह सब बातें कुमार ने, मधुलिका को पहले ही बता दी थीं ,कुमार ने ,उससे कुछ भी नहीं छुपाया था।
तुम भी कैसे इंसान हो ?किसी को बिना जाने,बिना देखे ही,उसकी सुंदरता की, कल्पना की और इतना ही नहीं ,उसे दिल दे बैठे, मुझे समझ नहीं आ रहा, इस बात पर मुझे कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए ? मन ही मन मधुलिका सोच रही थी - कुमार ने, इंसानियत के नाते भी, शिल्पा को बचाने का प्रयास नहीं किया बल्कि वह उसे धोखा देकर वहां से भाग आया। यह बात उसे पसंद नहीं आई किंतु तब भी उसने, कुमार को कुछ नहीं कहा,चुप रहना ही उचित समझा ,उसे इस बात की प्रसन्नता थी ,कुमार ने उसके साथ कुछ भी गलत नहीं किया।
शिल्पा मन ही मन बहुत परेशान हो रही थी, किंतु यह बात किसी से कह भी नहीं सकती थी , अब तो वह नित्या से भी अपना दुख नहीं बांट सकती क्योंकि उसने, नित्या को जवाब भी ऐसे दिए हैं, अब उसका नित्या से बात करने का'' मुंह ही नहीं पड़ रहा था''। नित्या भी, उसे देखकर चुप रहती, उससे कुछ बात नहीं करती, और न ही कोई बात, उससे पूछती है। दोनों के मध्य एक ख़ामोशी भरा द्व्न्द चल रहा था। शिल्पा तो अपने अंतर्दवंद से भी लड़ रही थी।
अचानक ही एक दिन, नित्या जोर-जोर से कोई किताब पढ़ने लगी -''जो हो गया, हमें उसे छोड़ देना चाहिए और जीवन में ,आगे बढ़ जाना चाहिए वरना वह कार्य हमें कष्ट देता रहेगा। अपने मित्र जनों से ,अपने शुभचिंतकों से, अपने हृदय की भावनाओं को, बांट लेना चाहिए। हो सकता है ,वे ही, कोई उचित परामर्श दे दें ! इस तरह कब तक व्यथित होते रहोगे ?
शिल्पा को लगा, जैसे नित्या यह सब, उसे सुनाने के लिए ही पढ़ रही है ,तब वह बोली -यह तुम्हारी कौन सी किताब है ? जिसमें यह सब लिखा है और तुम इतनी जोर-जोर से क्यों पढ़ रही हो ? आराम से भी, तो पढ़ सकती हो।
मेरी इच्छा ! मेरी किताब! मैं कैसे भी पढ़ूं, तुम्हें क्या ? उसने पलट कर उसे, उसी तरह जवाब दिया जैसे शिल्पा देती थी।
मुझे लगता है, यह सब तुम मुझे सुनाने के लिए कह रही हो , यह तुम्हारा कौन सा विषय है ? जिसमें यह सब लिखा हुआ है।
मैं तुम्हें क्यों बताऊं ? मैं, तुम्हारी लगती ही कौन हूं ? वैसे यदि तुम पूछ ही रही हो तो बता देती हूं, यह मेरी ''नैतिक ज्ञान'' की किताब में लिखा है।
जानती हूं,'' नैतिक शिक्षा'' हमने बचपन में खूब पढ़ी है।
इससे पहले, कि वह कुछ और कहती, नित्या बोली -सिर्फ पढ़ी है, उससे' ज्ञान' कुछ भी नहीं लिया।
तुम तो, जैसे बहुत बड़ी ज्ञानवान हो ? अपने को बड़ी बुद्धिमान समझ रही होगी, किसी पर क्या बीत रही है ?तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं।
हम क्यों'' किसी के फटे में टांग अड़ाएं ,'' वरना लोग- बाग हमें दुश्मन समझने लगेंगे, दोनों ही एक दूसरे से किसी अपरिचित की तरह ,अपनी बातें कह रही थीं। नित्या ने फिर से वह पुस्तक पढ़नी आरंभ की,- ''कुछ लोग अपनों को ही, दुश्मन समझ बैठते हैं , उन्हें इतना भी ज्ञान नहीं होता, कि जिन पर तुम भरोसा किए हुए हो, क्या वे, तुम्हारे अपने हैं, क्या वे, तुम्हारे साथ खड़े हैं ?
अब तो शिल्पा को पूरा- पूरा यकीन हो गया, यह मुझे सुनाने के लिए ही यह सब कह रही है। तब वह अपने स्थान से उठकर आती है और कहती है -जरा, मैं भी तो देखूँ ! वह कौन सी किताब है ?जिसमें यह सब लिखा हुआ है।
मैं, तुम्हें अपनी किताब क्यों दिखाऊं ? तुम्हारे पास तो अपनी किताब पढ़ने के लिए भी, समय नहीं है, कहते हुए, वहां से उठकर भागती है, उसके पीछे-पीछे शिल्पा दौड़ी। आज मैं वह किताब देख कर ही रहूंगी, जिसमें, दूसरों पर' व्यंग्य बाण' चलाये जाते हैं। दोनों ही एक दूसरे के पीछे दौड़ते हुए ,कमरे से बाहर आ गईं और बगीचे में चली गईं। कुछ देर के लिए ही सही, शिल्पा अपनी सभी परेशानियां भूल गई थी हालांकि वह अपनी परेशानियों का, कोई हल नहीं निकाल पा रही थी। उसे कुमार की प्रतीक्षा करते हुए लगभग एक सप्ताह हो गया था। वह किसी से कह भी नहीं पा रही थी, मन ही मन घुट रही थी, कभी उसे लगता ,कुमार उसे धोखा दे रहा है किन्तु उसका प्यार उसे मना लेता और कहता -हो सकता है ,उसकी कोई मज़बूरी रही हो ,तभी वह नहीं आ पा रहा है।
यह सब नित्या भी प्रतिदिन देख रही थी, लेकिन वह ,उसे अपने को संभालने के लिए थोड़ा समय दे रही थी। जब उसे लगा, कि यह अपनी परेशानियों से उबर नहीं पा रही है, तब उसने, यह चाल चली थी। बहुत दिनों पश्चात, दोनों छोटी बच्चियों की तरह एक दूसरे के पीछे भाग- दौड़ कर रही थीं।
कभी-कभी बच्चा बन जाना भी अच्छा लगता है, बगीचे में लगे, झूले पर बैठकर शिल्पा सोचती है, क्योंकि अब वह नित्या के पीछे दौड़कर थक चुकी थी। आज उसे एहसास हो रहा था, जैसे वह अंदर ही अंदर घुटती जा रही है और खोखली भी होती जा रही है,उसकी चिंता उसे दीमक की तरह खोखला किये दे रही थी। इससे पहले तो वह जब नित्या के पीछे दौड़ती थी, थकती नहीं थी। अब वह न जाने, कहां चली गई? यही सब सोच रही थी,सोचते हुए इधर -उधर देखा।
तभी अंदर से कल्याणी जी, आते हुए कहती हैं -आज दोनों बहनों ने कैसे हुड़दंग मचाया हुआ है ?बच्चों की तरह दौड़ लगा रही हो।