Khoobsurat [part 48]

शिल्पा, जान ही नहीं पाई थी ,वो कैसे, अपने घर वापस आई और उस दिन,जब वो कुमार को अपनी कहानी बतला रही थी, तो उसके पश्चात क्या हुआ था ? तीसरे दिन ,जब वो अपने कॉलिज पहुंची तो, उसकी कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की काव्या ने उससे पूछा -क्या ,तुमने कल का समाचार- पत्र पढ़ा था।  

क्यों ? ऐसी क्या बात है ?जो अख़बार पढ़ती, तब अपने मन के बढ़ते बोझ को, हल्का करने का प्रयास करते हुए, बोली -मैं पुरानी ख़बरें नहीं पढ़ती, कहकर अपनी ही बात पर ज़बरन ही, मुस्कुराने का प्रयास किया किन्तु उसकी वो मुस्कुराहट और वो वाक्य भी, उसे बेमानी से लगे, उसके मन की परेशानी को कम न कर सके। तब उसने गंभीर होते हुए,पूछा-  कल  के अखबार में ऐसी क्या खबर थी, जो पढ़ना इतना जरूरी था, शिल्पा ने पूछा। 


तू, कुछ भी नहीं जानती,यह बात तो, पूरे कॉलिज को तो क्या, पूरे शहर को मालूम है।  'रोमानिया होटल' में क्या हुआ था ? उसकी बात सुनकर अचानक से शिल्पा चौंक गई और पूछा -क्या हुआ था ?

तभी तो कह रही थी, अखबार पढ़ना जरूरी है , अब क्यों इतनी दिलचस्पी दिखा रही है ? उस लड़की ने मुंह बनाते हुए कहा। 

सच में, मैं आज का समाचार -पत्र नहीं पढ़ पाई। 

ये आज की खबर नहीं है, यह कल की खबर है, कल के समाचार-पत्र में थी। 

इतनी देर से पहेलियां बुझा रही है, लेकिन यह नहीं बता रही, कि बात क्या है ? शिल्पा चिढ़ते हुए बोली। 

बात यह है, कि' रोमानिया होटल' में,पुलिस की रेड़ पड़ी थी और कई लड़के -लड़की उस होटल के कमरों में पकड़े गए थे। 

 क्या ?आश्चर्य से शिल्पा की'' ऑंखें फटी की फटी'' रह गयीं और पूछा -ये कब की बात है ?

अभी तो बताया ,परसों की बात थी, कहते हुए उसने कुछ वीडियोज  भी उसे दिखाए ,उन वीडियोज को देखते समय, शिल्पा की सांसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गयीं । मन ही मन सोच रही थी, उस दिन तो मैं भी, कुमार के साथ उसी होटल में थी। उसने दुबारा उन तस्वीरों को देखा, किन्तु उनमें वो कहीं नहीं थी। ऐसा कैसे हो सकता है ? वह सोचने का प्रयास करने लगी ,वो कुमार के साथ कमरे में थी। उससे कुछ कह रही थी ,तब.... क्या पुलिस ने हमें नहीं देखा ?मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा ?

वह, उस लड़की के पास से हट गयी,मन ही मन सोच रही थी ,ये मेरे साथ क्या हो रहा है ?उस दिन प्रतियोगिता के नाम पर मुझे, गलत जगह भेजा गया और गलत इल्ज़ाम भी, लगाने का प्रयास किया गया और परसों मुझे, ऐसे होटल में बुलाया गया ,जहाँ लड़के -लड़की.... छी.....  यदि उस समय पुलिस मुझे पकड़ लेती तो क्या होता ? सोचकर ही उसकी रूह काँप गयी।तभी मन में विचार आया- तब मैं, वहां से कैसे बाहर आई ?किसने मुझे बचाया ? वहां तो कुमार ही था , तो क्या मुझे, कुमार ने बचाया। मुझे ही क्या, अपने आप को भी बचाया होगा ? वरना यह मेरे साथ दूसरा कांड हो जाता। उस दिन भी तो वही, ''नेताजी ऑडिटोरियम ''में पहुंचा था।  मैं मम्मी- पापा को क्या जवाब देती ? यह सब मेरे साथ ही, क्यों हो रहा है ?या फिर किसी की साज़िश !

 नित्या कहती है -कि ये अवश्य ही कुमार की कोई योजना है ,यदि उसकी योजना होती तो, अन्य लड़के -लड़कियों से उसकी क्या दुश्मनी थी ? मुझे फंसाने के लिए ,स्वयं क्यों, उस आग में कूदेगा ?आज मैं उसे बतला दूंगी, कुमार ने ही मुझे बचाया है। नित्या उस पर विश्वास ही नहीं करती है किंतु वह कहीं दिखलाई क्यों नहीं दे रहा है ?ये तो अच्छा हुआ, नित्या ने समाचार- पत्र नहीं पढ़ा होगा ,पढ़ लेती तो, पचास सवाल पूछती। शिल्पा कॉलिज के ऐसे स्थान की बैंच पर बैठी हुई थी जहाँ से वह कॉलिज के हर आते -जाते लड़के -लड़की पर नजर रख सकती थी किन्तु उसकी किसी में भी कोई रूचि नहीं थी। उसकी सोच ,उसके विचार उसे घेरे हुए थे ,उसकी नजरों के सामने से सभी लड़के -लड़की किसी परछाई की तरह गुजरते जा रहे थे। 

शिल्पा की नजरें कुमार को ढूंढ़ रही थीं किन्तु कुमार उसे कहीं दिखलाई नहीं दे रहा था। तब शिल्पा ने कुमार के दोस्त, विनीत से ही पूछा। 

वह कहाँ जाता है ,क्या करता है ?मुझे उसके विषय में कुछ भी मालूम नहीं है कहकर विनीत ने ''अपना पल्ला झाड़ लिया। ''वो कुमार से मिलकर जानना चाहती थी उस दिन क्या हुआ? किन्तु कुमार, उसे कहीं भी दिखलाई नहीं दिया। 

मधुलिका और कुमार कॉलिज में ही नहीं ,वरन एक अन्य स्थान पर भी मिलते थे ,वो एक ख़ाली कमरा था,जो कुमार के, दोस्त के घर का पिछला हिस्सा है,उस कमरे में कोई आता -जाता नहीं है ,तब कुमार के दोस्त ने, उस कमरे को अपनी पढ़ाई के लिए कहकर ,ख़ाली करवाकर उसकी सफाई करवाई थी ,ताकि एकांत में वो पढ़ सके। तब वही कमरा उसने ,कुमार और मधुलिका के मिलन का स्थान भी बना दिया। आज भी वे दोनों, उसी कमरे में एक साथ बैठे हैं। जो खबर अख़बार में छपी थी ,वही ख़बर मधुलिका ने भी पढ़ी थी ,इस बात को जानने के लिए ,वो कुमार से मिलने के लिए आई थी -तुमने, उसके साथ क्या किया था ? मधुलिका, कुमार से प्रश्न पूछ रही थी। 

मैं क्या करता ? मैं तो उसे वहीं छोड़ कर भाग आया, वरना उसके साथ-साथ मैं भी, पकड़ा जाता। 

यह समाचार पत्र तो मैंने भी पढ़ा है, सुना भी है, किंतु उसका नाम कहीं भी नहीं है ,न ही उसकी कोई तस्वीर है, फिर वह वहां से  बाहर कैसे निकली होगी ?

मैं कुछ भी नहीं जानता, मैं तो वहां से आ गया था, वह भी पीछे के रास्ते से, आगे के रास्ते पर मैंने  पुलिस को देखा था।

 पता नहीं, उस पर क्या बीत रही होगी? क्या सोच रही होगी ? अब वह मुझसे कम ही बात करती है, क्योंकि उसे मुझ पर शक है, मैं तुम्हें पटा लूंगी। 

उसका शक सही है, यह कार्य तो तुमने कर दिया है, हंसते हुए उसके करीब आते हुए, कुमार बोला। 

दोस्ती के नाते, मुझे, उसकी फिक्र हो रही है, पता तो चलना चाहिए ,आखिर वहां क्या हुआ है ? वैसे उसे किसी ने तो बचाया है। उससे, तुम्हारी जो दुश्मनी थी ,वो अभी समाप्त हुई या नहीं। 

मुझे, उसकी संपूर्ण सच्चाई का पता चला है, उसने अपना नाम, अपने रंग -रूप के कारण ही बदला था। इसके पीछे उसका कोई और उद्देश्य नहीं था किंतु मैं कुछ और ही, समझ बैठा था।  अब मुझे पता चला है कि मुझे कोई गलतफहमी हो गई थी किंतु इस बात का भी मुझे ख़ेद है , जिस तमन्ना को मैंने चाहा था , वह सच में ही, एक धोखा था। आज जीवन में एक सच्चाई का एहसास हुआ, जो तुम्हारे सामने है, उस पर विश्वास करना चाहिए , न कि कोई कल्पना बना लेनी चाहिए,वो कल्पना तुम्हें धोखा भी दे सकती है।  पेंटिंग तो वह बहुत अच्छी बनाती है और शायद ! बहुत उन्नति भी करे  किंतु वह मेरी तमन्ना से दूर-दूर तक भी,मिलती-जुलती नहीं है।


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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