Prem ke niyam

प्रेम के नियम जानने से पहले, हमें यह जानना होगा कि'' प्रेम क्या है ?'' कुछ लोग प्रेम को त्याग,विश्वास  और समर्पण की भाषा से परिभाषित करते हैं। प्रेम में मन, एकदम शिशु के समान निर्मल हो जाता है। वह अपने प्रेमी से अत्यधिक प्रेम करता है, बदले में, वह खुश रहे, उसकी खुशियों को ध्यान में रखते हुए ही उसके  जीवन को सुंदर बनाना चाहता है। प्राचीन समय में प्रेम की यही भाषा रही है, प्रेम उदार होता है, उसमें  समर्पण भाव होना चाहिए। प्रेम, ईश्वर से किया जाए या इंसान से,जब प्रेम हो जाता है संपूर्ण संसार' प्रेम पूर्ण 'ही नजर आता है। 


किन्तु कुछ लोगों के लिए प्रेम का दायरा संकुचित हो जाता है ,और वो अपने प्रेमी को बांधना भी चाहता है ताकि वो उसके सिवा किसी ओर से प्रेम न करे,कई बार ये भावना इतनी बलवती हो उठती है ,मन कुंठित हो जाता है ,ऐसे प्रेम से अपने आपको  और दूसरे को दर्द देने के सिवा कुछ हासिल नहीं होता।   

तब यही प्रेम के नियम भी बन जाते हैं ,प्रेम मन को आनंदित कर देता है,प्रेम से भरा ह्रदय अपने प्रेम में मग्न रहता है किन्तु कई बार हम गलत व्यक्ति से प्रेम कर बैठते हैं ,जो जीवनभर को दर्द देकर चला जाता है। कई बार तो देखा -सुना गया है -' प्रेम की शक्ति ने ,इसकी मासूमियत ने ,दुष्ट व्यक्ति के ह्रदय में भी प्रेम का संचार कर दिया और उसने दुष्टता छोड़ ,विनम्रता अपनाई।''  वैसे देखा जाये तो प्रेम स्त्री -पुरुष ,अथवा युवक -युवती के मध्य ' प्रेम 'को माना जाता रहा है। विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण को भी प्रेम ही मान लिया जाता है।

 प्रेम तो किसी से भी हो सकता है ,उस प्रेम में प्यार होने के साथ -साथ ,एक -दूसरे का साथ ,एक -दूसरे की परवाह भी, प्रेम के स्तर में ही आते हैं। जैसे -माता -पिता का अपने बच्चों के प्रति प्रेम जो निस्वार्थ भाव से किया जाये।  किन्तु ऐसा प्रेम तो कम ही देखने में आता है ,जो निःस्वार्थ भाव से किया जाये। जब आप प्रेम करते हैं और आप दूसरे से बदले में, प्रेम की अपेक्षा न रखें। 

पहले समय में ,प्रेम में धोखा खा जाने के पश्चात भी ,विश्वास बना रहता था ,दुनिया की रुसवाइयों के पश्चात भी सम्पूर्ण जीवन उस पर न्योछावर कर दिया जाता था। कई बार परिवार के मान -सम्मान के लिए प्रेम का तो नहीं किन्तु प्रेमी का भी त्याग करना पड़  जाता था।  

प्रेम के पुराने समय के कई प्रेमी जोड़ों के उदाहरण देखने को मिलेंगे जिनमें अपने प्रेम के लिए कुछ भी कर गुजरने को प्रेमी युगल तत्पर रहता है। इसमें उन्हें अपनी जान की भी परवाह नहीं रहती क्योकि एक -दूजे पर अटूट विश्वास जो रहता है। एक -दूसरे के सुख -दुःख को महसूस करते हैं। सम्पूर्ण संसार प्रेम से फलता -फूलता है किन्तु '' आजकल प्रेम परिस्थितियों का दास हो गया है। '' जैसी स्थिति आती है प्रेम उसी तरह से ढल जाता है। त्याग और समर्पण और विश्वास हर कोई पाना चाहता है ,किन्तु अपनाना नहीं चाहता।  आजीवन उसमें बंधे रहना चाहता है किंतु परिस्थिति वश प्रेम परिवर्तित होता रहता है।

 प्रगाढ़ प्रेम ,होता भी है ,तो छल ,अहम ,अविश्वास,लोभ,आकर्षण  भी साथ में प्रवेश कर जाते हैं। यह आकर्षण ही एहसास कराता है ,उसे प्रेम है ,एक अनुभूति है ,जो धीमे -धीमे महसूस होती रहती है ,एक बचपना भी ,जो उसकी गहराई को समझ नहीं पाता। तब चाहे -अनचाहे ही वो प्रेम समय से पूर्व ही अपनी सीमाएं लांघने लगता है जो कि सामाजिक दृष्टि से अनुचित है यहीं पर प्रेम का वह नियम लागू होता है ,कि समय से पूर्व ,सीमाएं न लांघें ,'मर्यादित प्रेम ''प्रेम 'ह्रदय का बंधन है ,तन का नहीं। '' 

कुछ लोग, कुछ दिनों के दिल बहलाने को ही प्रेम समझने लगते हैं, जिसका परिणाम कुछ मुलाक़ातों में ही नजर आने लगता है। आजकल तो हर उम्र का प्रेम है - बचपन में प्रेम का बचपना ,किशोरावस्था में प्रेम एक आकर्षण ,युवावस्था में प्रेम एक उत्तरदायित्व ,प्रौढ़ावस्था में प्रेम मस्ती और एकांत जीवन का सहारा। आजकल ''प्रेम विवाह ''भी टिकते नहीं क्योंकि प्रेम परिस्थितियों के अनुसार बदलता जो रहता है। ऐसे में प्रेम के भला क्या नियम होंगे ? सबसे पहले तो प्रेम हो जाये और ताउम्र साथ बना रहे इसी को मुमकिन बनाना मुश्किल हो रहा है। नियम तो एक ही है -विश्वास ! किन्तु ये दोनों में बराबर होना चाहिए। 




laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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