Kathor kadam

 गीता को उसके घर वालों ने कितना समझाया था ? किंतु लगता है, उसने तो कहना न मानने, की जिद पकड़ ली है। कई दिनों पहले गीता के पिता ने उसको एक लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर जाते हुए देखा था। वह उस लड़के को पहचानने का प्रयास कर रहे थे और सोच रहे थे कि यह लड़का कौन है ? मेरी बेटी तो लड़कियों के स्कूल में पढ़ती है, फिर यह लड़का कौन है ?

 जब गीता घर पर आई तो घर का वातावरण, बेहद शांत था। गीता को आभास हो गया कि अवश्य ही कुछ हुआ है। तब वह अपनी मां के करीब जाती है और उनसे पूछती है -क्या कुछ हुआ है ?

हां, बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है। 


यह सुनकर गीता बुरी तरह घबरा गई और उसने पूछा -आखिर! हुआ क्या है ?

अब तुझे क्या बताऊं ? हमारे संस्कारों की बलि दी गई है, हमारी परवरिश को गाली मिली है , हमने जीवन में इतना परिश्रम और बच्चों को अच्छे संस्कार देने का प्रयास किया किंतु आज हम अपने आप से ही नजरें  नहीं मिला पा रहे हैं। 

उनकी बातों से गीता को कुछ भी समझ में नहीं आया, तब वह बोली -यह आप क्या कह रही हैं, कैसे संस्कार ? और कैसी परवरिश !

यही तो हमने गलती की है, अपने बच्चों को इतना पढ़ाया- लिखाया , अपनी नजरों में उठने के काबिल बनाया, तुम्हारे कारण आज हमारी नजरें झुक गईं , कोई बात नहीं बेटा, गलती तो, इंसानों से ही होती है। मेरा मानना है, यदि हमसे गलती हो भी जाती है तो हमें समय रहते, उसे सुधार लेना चाहिए। 

किससे, कैसी गलती हो गई है ?

तुम आज किस लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर थीं ,उन्होंने उससे पूछा।  उनकी बात सुनकर गीता सब कुछ समझ गई और घबरा भी गई कि घरवालों को उसके विषय में जानकारी हो गई है। बताओ !वह लड़का कौन था ? जिसके साथ तुम मोटरसाइकिल पर थीं उन्होंने दोबारा प्रश्न किया ?

वो.....  मम्मी ! वह लड़का बहुत अच्छा है, एक दिन उसने मेरी सहायता की थी, कुछ लड़के मुझे छेड़ रहे थे , तब उसने ही उन्हें भगाया था। 

उसने उन लड़कों को भगाया और अपना रास्ता साफ कर लिया, या फिर उसने ही उन लड़कों को, अपने आप को हीरो बनकर दिखाने के लिए भेजा था ताकि तुम उसके करीब आ सको !

 नहीं, मम्मी ऐसा नहीं है, वह लड़का बहुत अच्छा है। 

क्या करता है ? कौन सी क्लास में पढ़ता है ?

 वह पढ़ता नहीं है, बहुत ही मेहनतकश, ईमानदार लड़का है। उसकी एक छोटी सी दुकान है।  

तुम, उसका नाम क्यों नहीं बता रही हो ?

उसका नाम राशीद है , आठवीं तक पढ़ा हुआ है, परिवार में बहुत से लोग हैं, इसलिए छोटी सी दुकान करके अपना घर का खर्चा चलाता है। 

अच्छी बात है, उसने तुम्हारी सहायता की, किंतु अब मैं कहती हूं , तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो ! हम लोग उससे बहुत अलग हैं। यदि कोई हमारी सहायता करता है, तो हमें उसका शुक्रगुजार होना चाहिए , उसे धन्यवाद देना चाहिए , इसका अर्थ यह नहीं, अपना बहुमूल्य समय और जीवन बर्बाद करें। आज तुम्हारे पापा ने उसके साथ तुम्हें देख लिया है। अब तुम्हें उसके साथ, कभी ना देखें ! यही तुम्हारे लिए बेहतर होगा। किंतु आज फिर धर्मपाल जी ने, गीता को उसके साथ देख लिया। अब उन्हें लगा बात, ''हद से ज्यादा गुजर गई है'',' पानी सर से ऊपर जा रहा है।' 

घर आकर उन्होंने पूछा -तुम्हारी मां ने उस दिन तुम्हें समझाया था या नहीं, क्या वह बात तुम्हारे पल्ले नहीं पड़ी थी ? अब तुम, आगे की पढ़ाई, आगे जाकर ही करना। यह कहकर उन्होंने उसका स्कूल छुड़वा दिया और उसके लिए लड़का देखने लगे। उन्हें लगा ,अब यही इसके जीवन के लिए बेहतर होगा ,यह ''कठोर कदम ''उन्हें उठाना ही होगा।

 गीता की मम्मी परेशान थीं कि इस कारण से उसका सम्पूर्ण जीवन अंधकारमय हो जायेगा। क्या वो ससुराल में जाकर सुख से रह पायेगी ?मैंने कितना चाहा था कि वो पढ़- लिखकर अपने जीवन में उन्नति करे किन्तु इसकी ज़िद ने हमें यह' क़दम' उठाने पर मजबूर कर दिया। इससे ज्यादा कुछ किया भी नहीं जा सकता था किन्तु गीता पर तो जैसे राशीद की मुहब्बत का भूत सवार था।

 इस बीच उसने रशीद को न जाने कैसे संदेशा पहुंचाया और उसके साथ भागने की योजना बना डाली ,इधर ससुरालवालों को किसी भी बात की भनक न लगा जाये, इस बात का ड़र, दूसरी तरफ लड़की के व्यवहार से लग रहा था ,कहीं उनकी इज्ज़त पर आंच न आये ,समाज में बदनामी का डर !बेटी ने घरवालों की परेशानी को नहीं समझा उसे जैसे अपने घरवालों की इज्जत ,मान -सम्मान से कोई लेना -देना ही नहीं था और वो राशीद के साथ भाग गयी। 

जब उसके पिता को इस बात का पता चला तब वो बहुत ही आहत हुए। जिसके भविष्य के लिए ,उसके अच्छे जीवन के लिए उन्हें ये कदम उठाना पड़ा , वो अपनों से ही छल करके भाग गयी।

तब गीता की माँ ने अपने पति को समझाया -बेटी को समझा -बुझाकर घर वापस ले आइये ! वह रास्ता भटक गयी है ,एक सप्ताह पश्चात उसका विवाह है।

 धर्मपाल जी भी यही सोचकर ,घर से निकले थे और उन्होंने अपनी बेटी को बहुत ढूंढा किन्तु वो उन्हें देखकर भागने लगी। किसी तरह उन दोनों को पकड़ लिया गया और तब उन्होंने बेटी से घर वापस चलने के लिए कहा किन्तु वो घर वापस आने के लिए तैयार ही नहीं थी। उन्होंने अपनी इज्जत ,मान -सम्मान का वास्ता दिया किन्तु उसे तो जैसे किसी भी बात की परवाह नहीं थी। उनकी आँखों के सामने उसका बचपन उसकी ज़िद, उसके लिए भविष्य के देखे गए, सपने सभी घूमने लगे और अब गर्त में गिरता उसका भविष्य नजर आने लगा।  अचानक उनका क्रोध बढ़ गया ,जो पिता अपने को विवश पा रहा था ,अचानक उनका आत्मसम्मान जाग उठा ,उन्हें लगा, जिस बेटी को हमारे मान -सम्मान की कोई परवाह ही नहीं,हमें भी उससे कोई उम्मीद नहीं रखनी है  किन्तु इस तरह अपनी आंखों देखी गर्त में तो नहीं जाने देंगे।

 यह सोचकर उन्होंने एक और 'कठोर क़दम ''उठाया और तुरंत बंदूक निकाली और उसे गोली मार दी। वहां आस -पास के लोग हतप्रभ हो, यह देखकर भौचक्के रह गए कि क्या हुआ ?उन्होंने बस इतना ही कहा -जिस बेटी को ,अपने पिता के मान -सम्मान से कोई मतलब नहीं ,वो मेरी बेटी कैसे हो सकती है ?उसे मैंने पाला था ,मैंने ही मृत्यु दे दी। 

माना कि' प्यार अँधा होता है 'किन्तु इतना अँधा भी नहीं होना चाहिए कि उचित -अनुचित का ,ख़्याल ही न रहे ,कुछ माता -पिता को छोड़कर ,अधिकतर माता -पिता अपने बच्चों का भला ही चाहते हैं।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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