Mysterious nights [part 96]

पारो ,अपनी मौसी के घर आती है और शोर मचाने लगती है -मौसीजी ! मौसीजी आप किढर हैं ? देखो !मैं आ गयी, कहते हुए वो लड़की घर के अंदर चली आ रही थी। जब वो घर के अंदर गयी तो उसे वहां तारा जी कहीं भी दिखलाई नहीं दीं बल्कि उसका सामना' रूही' से अवश्य  होता है। ए लरकी ! क्या टुमने मेरी मौसीजी को डेखा है ,पारो कुछ अंग्रेजी तरीके से हिंदी बोल रही थी। रूही ने, उस लड़की को पहली बार देखा था ,उसे समझ नहीं आया, ये लड़की कौन है ?

पहले मुझे, तुम ये बताओ ! तुम कौन हो ?उसे ऊपर से नीचे देखते हुए रूही ने पूछा 

ओह ! यू घटिया लरकी ! टुम मुझे नहीं जानटी,अपनी आँखों को मिचमिचाते हुए वो बोली। 

हाँ, नहीं जानती ,तभी तो पूछ रही हूँ। 


तब वो लड़की सोफे पर बैठते हुए कहती है -मैं टुमको क्यों बताऊं ?पहले टुम मुझे बटाओ !टुम कौन हो ?

मेरे घर में खड़ी होकर मुझसे ही पूछ रही हो ,मैं कौन हूँ ?

क्या????? वो आश्चर्य से सोफे से उठ कर खड़ी हो गयी और बोली -टुम्हारा  घर...... ये घर टुम्हारा कब से हो गया ? 

ये मेरा ही घर है ,मैं अपने मम्मी -पापा के साथ यहां रहती हूँ ,अब तुम यहाँ से जाओ !तुम्हारी मौसी का कोई और घर होगा। 

क्या ये टारा मौसीजी  का घर नहीं है ,इस घर के मालिक डॉक्टर अनंत नहीं हैं। 

हाँ ,वो ही तो हैं। 

तब टुम कौन हो ?उनके...... इससे पहले की वो और कुछ कह पाती, तभी बाहर से आवाज़ आई -पार्वती  !

दोनों ने बाहर की तरफ देखा ,तारा जी अपनी मैक्सी में बाहर से चली आ रहीं थीं ,उन्हें देखते ही पार्वती  चहक  उठी ,ओह ! माय मौसीजी !कहते हुए उनकी तरफ दौड़ी और उनके गले से लिपट गयी।

 तू कब आई ?न ही फोन किया ,न ही कोई सूचना ! अचानक ही कैसे आना हुआ ?

आपसे मिलने  की इच्छा हुई टो चली आई ,उसकी बोली सुनकर तारा जी बोलीं - मुझे तो लगता है ,तुम विदेश में जाकर स्वयं भी विदेशी हो गयी हो।आधी देशी ,आधी विदेशी कहते हुए हंसने लगीं और उससे पूछा - क्या दो साल में अपनी 'मातृभाषा 'ही भूल गयी। 

ओह नो ,मौसीजी !भूली नहीं हूँ ,बस ठोरा सा लहज़ा बद्ल गया है। 

हिंदी को तो हिंदी के तरीक़े से ही बोल ,दो साल में कोई, कैसे अपनी' मातृभाषा 'को भूला सकता है ?

अच्छा! आप ये सब छोरिये ! ये अपना स्टाइल है इस तरीक़े से बोलने से इज्ज़त बढ़ती है। लोग टुमको सम्मान देने लगटे हैं और इसीलिए तो मैंने अपने बाल भी गोल्डन कराये हैं। उसकी विचारधारा सुनकर तारा जी हंसने लगीं और बोलीं -आ मेरी आधी अंग्रेज भांजी ! आ मेरे समीप बैठ ! तूने पानी पिया या अब तक अंग्रेजी का रॉब ही दिखा रही थी। दिनेश ! खाने के लिए कुछ ले आओ !अभी तक रूही उन दोनों को देख रही थी और सोच रही थी -मैं इसे क्यों नहीं जानती ?

अच्छा पार्वती ये बताओ ! तुम्हारी पढ़ाई पूरी हुई या नहीं। 

नो ,नो मौसीजी आप मुझे पार्वती नहीं न कहें ,मेरा नेम 'पारो 'है ,'पारो '

'' देवदास की पारो ! कहते हुए हंसने लगीं ,तभी दिनेश वहां फल और मेवे लाकर मेज़ पर रख देता है। अंगूर मुँह में डालते हुए पार्वती बोली -मौसीजी ! ये लरकी कौन है ?

ये हमारी बेटी है ,तुम्हें स्मरण नहीं ,तभी स्वयं ही बोलीं -कैसे याद होगा ?तुम तो विदेश में पढ़ाई करने गयीं हुईं थीं ,रूही !जाओ ,बेटा !अपनी बहन के लिए अपने हाथों से बढ़िया सी कोल्ड कॉफी बनाकर  ले आओ !इस तरह से उन्होंने रूही को वहां से हटाया और तब वो पार्वती से बोलीं - ये लड़की एक साल से कोमा में थी ,तुम्हारे मौसाजी ने ही, इसका इलाज किया था ,जब से ये कोमा से बाहर आई तो इसे कुछ भी याद नहीं था  ,ये कौन है ,इसके माता -पिता कौन है ?देखने से तो ये किसी अच्छे खानदान की लग रही थी। अब इसे इतनी बड़ी दुनिया में अकेले तो नहीं, जाने दे सकते थे ,तुम तो जानती ही हो ,हमारे कोई संतान नहीं हुई थी ,तब हमने ही इसे बताया-तुम हमारी बेटी हो , हम ही तुम्हारे माता -पिता हैं किन्तु ये हमें पहचान नहीं पा रही थी ,तब हमने ही इससे कहा - तुम्हारे साथ जो दुर्घटना हुई थी ,उसमें तुम अपनी याददाश्त भूल चुकी हो इसीलिए तुम्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा है। 

 ओह ! तो यह बात है ,तभी रूही कोल्ड कॉफी लेकर आ गयी,लो !दीदी ! 

कॉफी पीते हुए रूही !हम्म्म्म 'कॉफी' तो बहुत अच्छी बनाई है ,यहां आओ बैठो !रूही और तारा जी पार्वती को आश्चर्य से देख रहीं थीं ,वो अब ठीक से बोल रही थी। उन्हें इस तरह आश्चर्य से देखते देखकर ,वो जोर -जोर से हंसने लगी और बोली -ये सब इसकी कॉफ़ी के कारण हुआ ,मेरी जीभ भी सीधी हो गयी ,तब हँसते हुए उसने अपनी विग उतारी और अपना बाक़ी का मेकअप भी उतार दिया और हँसते हुए बोली -मौसीजी ! मैं अब आपकी वही पार्वती हूँ ,मैं आपके साथ थोड़ा सा मजाक कर रही थी। 

मैं ,वही तो सोचूं ,कोई इतनी जल्दी कैसे बदल सकता है ?अब बताओ !क्या तुम्हारी पढ़ाई पूरी हो चुकी है ?

हाँ ,पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है और मेरी नौकरी भी लग गयी है। 

बहुत बढ़िया !बधाई हो ! वैसे तुम्हारी नौकरी कहाँ पर लगी है ?

आपको यह सुनकर ख़ुशी होगी ,यहीं इसी शहर में..... 

ओह !ये तो बड़ी अच्छी बात है ,अब तुम यहीं रहना,रूही को भी, साथ मिल जायेगा खुश होते हुए तारा जी ने पूछा  -तुम्हारा सामान कहाँ है ?

मेरा सामान अभी होटल में ही है ,मेरे साथ, दो लोग और हैं ,उनके रहने का इंतज़ाम हो जायेगा तो मैं भी आ जाऊंगी। रूही को वहां बैठे रहना अच्छा नहीं लग रहा था और वो उठकर अपने कमरे में आ गयी। वो न ही ,पार्वती यानि पारो को जानती थी और न ही उससे मिलकर उसे कोई प्रसन्नता का एहसास हुआ। 

जब रूही वहां से चली गयी ,तब पार्वती अपनी मौसी से बोली -क्या वास्तव में ही ,इसकी याददाश्त जा चुकी है या ये कोई अभिनय तो नहीं कर रही है। 

अरे ,नहीं -नहीं ,ऐसा अभिनय क्यों करेगी ,बल्कि ये तो रो रही थी और हमसे ही पूछ रही थी -मैं कौन हूँ ,मेरा क्या नाम है ?

इसे अपना नाम भी स्मरण नहीं है। 

हाँ ,ये ''रूही'' नाम भी ,हमने ही इसे दिया है इसे अपने अब से पहले के जीवन की कोई जानकारी नहीं है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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