डॉक्टर अपर्णा ,एक मनोचिकित्सक ! जिनकी डॉक्टर अनंत की पत्नी तारा से अच्छी दोस्ती है। तारा जी, अपनी सहेली अपर्णा के घर रूही को लेकर आती हैं। वो उनके क्लिनिक पर नहीं बल्कि उनके घर गयीं थीं। बड़ी आलीशन कोठी थी ,ऐसी कोठियां देखकर न जाने क्यों ? रूही को कुछ अजीब सा महसूस होता है। उसे ऐसा प्रतीत होता है ,ऐसे ही किसी बड़े घर को वो जानती है किन्तु स्मरण नहीं हो रहा है। मुख्य द्वार पर पहुंचकर,वो घंटी बजाती हैं। कुछ देर पश्चात अपर्णा जी का नौकर घर का दरवाजा खोलता है। क्या अपर्णा घर पर है ?
जी आइये !वे आप ही की प्रतीक्षा कर रहीं हैं ,कहते हुए वो दरवाजे के सामने से हट जाता है ,तब दोनों घर के अंदर प्रवेश कर एक बड़े से हॉल में पहुंचती हैं। वहाँ पर पहले से ही ,अपर्णा जी बैठी हुईं किसी कार्य में व्यस्त थीं। उन दोनों को देखकर खुश होते हुए बोलीं -अरे !आओ !आओ ! क्या हाल है ?
हम तो ठीक -ठाक हैं ,तुम अपना हाल सुनाओ !कहते हुए तारा जी उनके करीब आकर गले लगती हैं।
रूही, उनसे हाथ जोडकर नमस्ते करती है ,उसे देखकर वो बोलीं - बैठो ,बेटा !और कैसी हो ?
आंटी ! मैं ठीक हूँ।
आजकल क्या कर रही हो ? उन्हें लगा, शायद उन्होंने उससे यह सवाल पूछकर कोई गलती कर दी है ,मेरा मतलब है , कोई दोस्त बना या नहीं।
इससे पहले की, रूही कोई जवाब देती, तारा जी बोल उठीं -वही तो मैं इससे कह रही थी , बाहर जाया करो ! किसी से दोस्ती करो ! सारा दिन घर में पड़े रहने से भी, मन में नकारात्मक विचार आते रहते हैं।
मान लो !तुम्हें यह भी नहीं करना है, तो तुम्हें किसी चीज का शौक हो तो उसे पूरा कर सकती हो।
अच्छा, यह बताओ ! तुम्हें किसी चीज का शौक है, डॉक्टर अपर्णा ने हीं रूही से पूछा।
रूही सोच रही थी-मुझे क्या शौक हो सकता है ? आज तक मैंने जाना ही नहीं , तब वह बोली -पता नहीं !
पता नहीं, इसलिए तो कह रही हूं जब तुम चार चीज़ें देखोगी, उन्हें महसूस करोगी, प्रकृति से जुडोगी, तब तुम्हें आभास होगा, शायद तुम्हें कुछ बातें भी याद आ जाएं । अभी तक कहां घूमने गई हो ?
अभी तक हम लोग कहीं गए ही नहीं है, इससे पहले तो यह बीमार थी, उसके पश्चात जब से यह घर आई है तब से ये बुरे सपने दिखाई दे रहे है।
हम्म्म ! तुम्हें ,किस तरह के सपने दिखाई देते हैं ?
बेहद डरावने !
वह तो मैं समझ गई ,किन्तु उनमें क्या दिखलाई देता है ,कोई विशेष स्थान ,घर या लोग अथवा कोई घटना !
कभी मुझे एक भरा -पूरा परिवार दिखलाई देता है ,कभी लगता है ,वो सभी लोग मुझे मिलकर मारने का प्रयास कर रहे हैं ,कभी लगता है ,कोई बड़ी सी हवेली है ,जिसमें मैं कहीं खो गयी हूँ ,उससे बाहर निकलने का प्रयास कर रही हूँ किन्तु निकल नहीं पा रही हूँ ,मुझे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा और मैं बेहद घबरा जाती हूँ। कभी एक महिला मुझे दिखती है और मुझे देखकर जोर -जोर से हंसने लगती है। एक दिन तो मुझे एक दूल्हा दिखलाई दिया ,जो फेरे होते -होते मर गया।
रूही के चुप होते ही, तारा जी बोली -अब आप ही बताइए ! इसे क्या हुआ है ?
मुझे लगता है, कोई ऐसी बात है , जो इसके मानस पटल में,कहीं गहरे में, छुपकर बैठी हुई है, और ये स्वप्न इसे बार-बार उन घटनाओं का आभास कराते हैं जो घटनाएं शायद इसके साथ हुई हैं या फिर इसे किसी बात का स्मरण कराना चाहते हैं या यह भी हो सकता है, इसके सपनों का इसकी यादों से कोई संबंध हो। अभी मैं इसको दवाई दे देती हूं, 15 दिन में दवाई खायेगी,इनसे इसे आराम मिलेगा दिमाग़ पर कम दबाव पड़ेगा। यदि इन दवाइयों से असर हो जाता है तो कोई बात नहीं है और यदि नहीं होता है तो फिर कुछ और इलाज करेंगे। इसे कहीं घूमाने ले जाओ ! थोड़ा इसका मन बहलेगा, इसको भी अच्छा लगेगा।
तब वह रूही से कहती है -तुम भी, कोई दोस्त बना लो ! या जिस भी चीज का तुम्हारा मन करता है, उसे करने का प्रयास करो जैसे लोगों के कई तरह के शौक होते हैं गाना गाने का, पेंटिंग करने का, घूमने का कुछ भी किया जा सकता है। कहते हुए, उसके हाथ में एक दवाई का पैकेट थमा देती हैं । तब तक उनका नौकर उनके लिए चाय लेकर आ गया था। पहले तीनों ने चाय पी, उसके पश्चात, वो उन्हें अपने बगीचे में घुमा ने के लिए ले गई, जो बेहद ही खूबसूरत था। उस बगीचे को देखकर, रूही को ऐसा लग रहा था, जैसे ऐसा ही कोई बड़ा सा बगीचा उसने कभी कहीं देखा है , कहां देखा है ?स्मरण नहीं हो रहा।
डॉक्टर अपर्णा से विदा लेकर, वे दोनों अपने घर आती हैं तब तारा जी, रूही से पूछती हैं -अब हम कहीं पिकनिक मनाने चलेंगे, बताओ, तुम कहां जाना चाहती हो ?
मैंने तो ऐसी कोई जगह देखी ही नहीं, तब मैं आपको क्या बताऊं ?
कोई बात नहीं, गूगल है, गूगल पर सर्च कर सकती हो और उससे पूछती हैं - क्या यह तुम्हें चलाना आता है ?
नहीं,वे चुपचाप उसके समीप बैठकर, उसे,' पर्यटन स्थल 'के चित्र दिखाने लगतीं हैं और कहती हैं - इसमें देख लो और जहां जाना चाहती हो, इनमें से कोई भी एक स्थान चुन सकती हो , तब तक मैं, अपने कपड़े बदल कर आती हूं।
रूही, फोन पर इस तरह के' दर्शनीय स्थल 'पहली बार देख रही थी , वह नहीं जानती कि वह कितनी पढ़ी- लिखी है ? किंतु पढ़- लिख लेती है। वह बस इतना जानती है, कि उसके जीवन की कुछ स्मृतियां कहीं खो गई हैं। उसने यह बात तारा जी और डॉक्टर अनंत से पूछी थी -कि मेरे साथ क्या हुआ ?
तब उन्होंने बताया था-किसी दुर्घटना में, तुम एक साल तक कोमा में रहीं और जब तुम्हें होश आया तो तुम अपनी याददाश्त खो चुकी थीं। अपने विषय में वह बस, इतना ही जानती है , डॉक्टर अनंत और तारा जी उसके माता-पिता हैं। ऐसे ही फोन में चित्र ढूंढते -ढूंढते अचानक रूही एक जगह ठहर गई , वह कोई पुराना स्थल था, जैसे कोई पुराना महल हो। उसके विषय में पढ़ती है, तब उसकी इच्छा होती है कि मुझे इस महल में घूमने जाना चाहिए। तब वह , यह बात अपनी, मां तारा जी से कहती है।
तुम यहां जाना चाहती हो, बहुत पुराना महल है, खंडहर भी हो चुका है , देखने के लिए वहां बचा ही क्या होगा ? वो लापरवाही से कहती हैं , फिर सोचती है -यदि इसकी इच्छा यहां जाने की है तो हमें इसे अवश्य ही यहां घूमाकर लाना चाहिए। हो सकता है, इसकी यादों में से, कुछ यादें स्मरण हो आएं।