दूर किसी शहर के ,''मुल्तान नगर'' में कोठी नंबर २३०'' स्वप्न विला '' बहुत ही सुंदर कोठी है,बिल्कुल किसी के सपनों की तरह ,सुंदर बनी हुई है। शायद इसीलिए उसका नाम ''स्वप्न विला ''रखा गया है ,जो इस परिवार के सपनों जैसी है। इस परिवार में ,डॉक्टर अनंत और उनकी पत्नी तारा ,अपनी बेटी रूही के साथ रहते हैं और साथ में उनके प्यारे -प्यारे दो कुत्ते डबी -टपि रहते हैं। साथ में दो नौकर जो एक हरदम डॉक्टर साहब के साथ रहता है। दूसरा घर के कार्यों में 'तारा जी' का हाथ बंटाता है।
दिनेश !अपने साहब को, नाश्ता देकर जरा देखो ! रूही उठी है या नहीं ,उसे भी एक कप चाय दे आओ !
जी मैडम !अभी जाता हूँ।
डबी -टपि को उनका भोजन मिल गया।
तुम उनकी चिंता मत करो ! वे मेरी ज़िम्मेदारी हैं ,मैंने दोनों का पेट भर दिया है ,दोनों बगीचे में खेल रहे हैं,नाश्ता करते हुए ,डाक्टर साहब ने जबाब दिया,आओ ! तुम भी नाश्ता कर लो !समय से नाश्ता नहीं किया तो दवाई नहीं ले पाओगी और तुम्हारी तबियत बिगड़ जाएगी।
मेरी तबियत को कुछ नहीं होगा ,आप मेरी चिंता मत कीजिये !
कैसे चिंता न करूं ? तुम ही तो मेरे जीवन की डोर हो, डॉक्टर रोमांटिक होते हुए बोले -जो इस पतंग को अपने इशारों पर इधर -उधर उड़ाती रहती हो ,तुम्हारे सहारे ही तो मैं भी उड़ रहा हूँ इसीलिए ड़ोर का मजबूत होना बहुत आवश्यक है।
बस -बस डॉक्टर साहब !इतने रोमांटिक होने की आवश्यकता नहीं है ,आप एक ज़िम्मेदार डॉक्टर हैं।
तो क्या ज़िम्मेदार डॉक्टर प्यार नहीं करते ,रोमांस नहीं करते ?कहते हुए उन्होंने तारा के गालों को चूम लिया ,तभी तारा की दृष्टि चाय लेकर आते हुए दिनेश पर पड़ी ,जिसे देखकर वो बुरी तरह लजा गयीं और बोली -हटो भी ,न ही समय देखते हैं ,न ही माहौल ! दिनेश आ रहा था कहकर एकदम चुपचाप बैठ गयीं ,जैसे अभी उनके साथ क्या हुआ ?उन्हें पता ही नहीं ,दिनेश ने एक नजर डॉक्टर साहब !को देखा और तारा जी को, चाय की ट्रे मेज पर रखकर, मुस्कुराकर चला गया। उसके जाने के पश्चात तारा अपने पति अनंत के लिए चाय बनाते हुए कहती है - इस लड़की से कितनी बार कहा है -'बेटा, प्रातःकाल उठना सेहत के लिए अच्छा रहता है और देखो, अभी तक नहीं उठी है।
तुम क्यों परेशान होती हो ?बच्चे तो ऐसे ही होते हैं ,रात्रि में देर से सोते हैं और दिन में देर से उठते हैं ,यही उम्र तो होती है ,जब बच्चा बेफ़िक्र रहता है।
अभी दोनों बातचीत कर ही रहे थे ''तभी उन्हें रूही के कमरे से उसकी चीख सुनाई देती है। नाश्ता छोड़कर दोनों रूही के कमरे की तरफ दौड़ते हैं। जब वो लोग, उसके कमरे में पहुंचे ,तो देखा रूही डर से बुरी तरह काँप रही थी। रात्रि के सूट में एक दुबली -पतली सी,दूध के जैसे गोरी लड़की अपने बिस्तर पर डरी हुई बैठी थी।
रूही ! बेटा !क्या हुआ ?तारा ने उसके सिर को सहलाते हुए पूछा।
मुझे लगता है ,आज इसने फिर से कोई बुरा सपना देखा है ,अनंत जी ने संभावना व्यक्त की।
क्या हुआ ?बेटा ! कैसा स्वप्न था ?
अभी तुम इससे ये सब मत पूछो !देखा नहीं, कितनी डरी हुई है ,उस स्वप्न को दुबारा दोहराएगी ,कहते हुए वे उसे पानी के साथ एक गोली देते हैं। ये मात्र एक स्वप्न था ,डरने की कोई बात नहीं है ,ये गोली खाकर आराम मिलेगा। रूही गिलास हाथ में लेकर गोली खाकर, अपनी माँ की गोद में लेट जाती है।
डॉक्टर साहब !आप नाश्ता करके अपने क्लिनिक पर जाइये ! मैं यहाँ हूँ ,इसे सम्भाल लूंगी।
मैंने इसे दवाई दे दी है ,इसे शीघ्र ही आराम मिल जायेगा कहकर वो कमरे से बाहर निकल जाते हैं। तारा ने बड़े प्रेम से अपनी बेटी के हाथों को सहलाया और पूछा -तुमने ऐसा क्या देखा था? जो इस तरह चीख़ी।
मैंने देखा ,मेरा विवाह हो रहा है ,बहुत सारे लोग इकट्ठा हो रहे हैं ,तभी मैंने देखा, दूल्हा और उसका परिवार मुझे अजीब सी नजरों से देख रहे हैं ,धीरे -धीरे वे राक्षस बन जाते हैं। मैं उनसे डर रही हूँ ,छुप रही हूँ ,वो मुझे ढूंढ़ रहे हैं ,मैं जगह -जगह भाग रही हूँ ,कभी बगीचे में जाती हूँ, तो कभी छत पर चढ़ जाती हूँ ,वे लोग मेरा पीछा कर रहे थे ,आख़िर में मैं, सबसे ऊपर छत पर जाती हूँ ,वहां मेरा पैर फिसल जाता है और मैं नीचे गिरने लगती हूँ ,तभी मेरी चीख निकलती है और आँखे खुल जाती हैं। सोचकर वो फिर से परेशां हो उठती है और तारा से कहती है - न जाने, ये सपने मेरा पीछा कब छोड़ेंगे ?
कोई बात नहीं ,अपने मन को मजबूत बनाओ ! तुम्हारे पापा तुम्हें दवाई तो दे ही रहे हैं ,तभी तो कहती हूँ ,सुबह उठकर टहलने जाया करो ! लोगों से मिलो -जुलो !धीरे -धीरे सब ठीक हो जायेगा। तब तक दिनेश भी चाय लेकर आ गया था। मैडम !आपने अभी नाश्ता नहीं किया ,अपनी दवाई कब लेंगीं ?
हाँ ,यहीं ले आओ !मैं अपनी बेटी के साथ ही नाश्ता करूंगी।
अब रूही अपने को बेहतर महसूस कर रही थी ,बोली -मम्मी ! मैं फ्रैश होकर आती हूँ।
कुछ देर पश्चात तोलिये से मुँह पोंछते हुए वो बाहर आती है। उसे देखकर ,तारा जी उससे कहती हैं -न जाने ये कैसे सपने हैं ?
हाँ मम्मी ! मैं भी इन सपनों से परेशान हो चुकी हूँ ,जब भी सोती हूँ ,ये सपने मेरा पीछा करने लगते हैं क्या इनका कोई इलाज नहीं है।
शायद ,तुम सही कह रही हो ,हमें किसी मनोचिकित्सक से मिलना चाहिए ,अभी तक तो मैं यही समझ रही थी ,आम सपने होंगे किन्तु इस तरह वही सपने आना और तुम्हारा इस डरना, ये कोई साधारण बात नहीं है। ये भी तो हो सकता है ,इन सपनों के माध्यम से तुम्हारी स्मृति में जो कुछ भी छुपा है ,मेरा मतलब जो तुम्हें याद नहीं आ रहा है ,वो कुछ याद दिलाना चाहते हों।
ये मैं कैसे कह सकती हूँ ?कि इन सपनों का मेरी यादों से कोई संबंध है।
हाँ ,ये बात भी है ,मेरी एक सहेली डॉक्टर है ,मैं उससे मिलने का समय ले लूंगी किन्तु तुम्हें भी मेरी बात माननी होगी। इस तरह घर में बैठे रहने से भी काम नहीं चलेगा ,थोड़ा बाहर जाओ !लोगों से मिलो -जुलो ,हो सकता है ,ताकि मन परिवर्तित हो।
एक डॉक्टर की बेटी अब किसी और डॉक्टर से इलाज़ कराएगी ,हँसते हुए रूही बोली ,उसकी बात समझ कर तारा जी भी हंसने लगीं।